अनिश्चित, अप्रत्याशित न कहलाए तो क्रिकेट कैसा! और नवजोत सिंह सिद्धू जैसा पूर्व क्रिकेटर सियासत में भी हमेशा रहस्य न बना रहे, यह भी मुमकिन नहीं लगता। कांग्रेस में आने के बाद से ही सिद्धू के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ खट्टे-मीठे रिश्तों के दौर आते-जाते रहे हैं। लेकिन दो महीने से सिद्धू अपनी पार्टी की सरकार और कैप्टन पर निशाना धारदार करते जा रहे हैं। इससे खफा कैप्टन ने सिद्धू को अपने खिलाफ चुनाव लड़ने की चुनौती दे डाली। साथ ही कहा कि अगर सिद्धू ने उनके खिलाफ चुनाव लड़ा तो जनरल जे.जे. सिंह की तरह उनकी भी जमानत जब्त हो जाएगी। सिद्धू की बयानबाजी से यह सुगबुगाहट तेज हो गई है कि कहीं वे 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले नई सियासी पिच तो नहीं तलाश रहे हैं। कैप्टन से दो मुलाकातों के बाद भी मंत्रिमंडल में उनकी वापसी संभव नहीं हो पाई है। सो, सुगबुगाहटें तो ये हैं कि सिद्धू की अगली सियासी पारी आम आदमी पार्टी (आप) की ओर से भी हो सकती है या वे बागी टकसाली अकाली पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींढसा, पूर्व सांसद रणजीत सिंह ब्रहमपुरा की टोली के साथ सूबे की सियासत में एक चौथे धड़े का अगुआ चेहरा भी हो सकते हैं।
दो महीने से सोशल मीडिया पर कैप्टन अमरिंदर न केवल सिद्धूवाणी के निशाने पर हैं, बल्कि उन्होंने इन दिनों अमृतसर का अपना इलाका छोड़कर कैप्टन के गृह नगर तथा निर्वाचन क्षेत्र पटियाला में डेरा जमा लिया है और वहां प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कैप्टन पर निशाना साध रहे हैं। हालांकि पटियाला सिद्धू की भी जन्मभूमि है पर उन्होंने अपनी सियासी पारी दो दशक पहले अमृतसर से ही शुरू की थी।
तीन बार के भाजपा सांसद और कांग्रेस की कैप्टन सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे सिद्धू चुनावी रैलियों में भीड़ जुटाऊ चेहरे हैं। 2019 में उनके स्थानीय निकाय जैसे अहम महकमे का कैबिनेट मंत्री पद छोड़ने की एक वजह अधिकारियों से अनबन भी बताई जाती है। कहा जाता है कि वे मंत्रिमंडल में वापसी के लिए मनचाहा स्थानीय निकाय विभाग ही चाहते हैं लेकिन अमरिंदर संतुलन नहीं बिगाड़ना चाहते।
वैसे, चर्चा यह भी है कि कैप्टन और कांग्रेस को भी सिद्धू की खास परवाह नहीं है। हालांकि कांग्रेस की मुख्यधारा में सिद्धू की वापसी के लिए प्रदेश कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत से लेकर पार्टी आलाकमान की ओर से कोशिशें हुईं पर कैप्टन के आगे सिद्धू की महत्वकांक्षा को और बढ़ाने को कोई तैयार नहीं है। पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने आउटलुक से कहा, ‘‘मुख्यमंत्री उन्हें शपथ दिलाने को तैयार हैं पर दो दौर की मुलाकात के बाद भी सिद्धू ने अभी विचार करने के लिए और समय मांगा है।’’
इधर 2022 के चुनाव में भी कांग्रेस आलाकमान कैप्टन के हाथ ही कमान सौंप पंजाब में लगातार दूसरी पारी जारी रखने के प्रति आश्वस्त है। सिद्धू की नाराजगी को कांग्रेसी हलकों में बड़े हल्के में लिया जा रहा है। कहते हैं, जालंधर कैंट से विधायक, भारतीय हाकी टीम के कप्तान रहे परगट सिंह को छोड़ कोई कांग्रेसी विधायक सिद्धू का हिमायती नहीं हैं।
मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा रखने वाले सिद्धू आम आदमी पार्टी प्रमुख तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के संपर्क में बताए जाते हैं। हालांकि आम आदमी पार्टी में भी संगरूर से सांसद तथा पार्टी के पंजाब अध्यक्ष भगवंत मान, सिद्धू की बतौर सीएम चेहरा एंट्री में एक बड़ा रोड़ा हैं, पर आप में सीएम चेहरे के अभाव में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले सिद्धू के लिए रास्ता खुल सकता है। 2014 के लोकसभा चुनाव में पंजाब की सियासत में पर्दापण करने वाली आम आदमी पार्टी के चार सांसद पंजाब से ही थे। तीन साल बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ने 20 विधायकों के साथ तब शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था और मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई थी। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले सिद्धू की आप में एंट्री का पेंच यहीं फंसा था कि केजरीवाल उन्हें बतौर सीएम चेहरा उतारने को राजी नहीं हुए।
शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल से नाराज सुखदेव सिंह ढींढसा और रणजीत ब्रह्मपुरा जैसे दिग्गज मई के पहले हफ्ते में अपनी नई पार्टी की घोषणा करने जा रहे हैं। इन दोनों दिग्गज नेताओं का मालवा और माझा क्षेत्र में अच्छा-खासा प्रभाव है। पर उम्रदराज होने के नाते उन्हें भी एक ऊर्जावान युवा चेहरे की तलाश है, जिसकी भरपाई शायद सिद्धू कर दें। देखना है कि सिद्धू कैप्टन की चुनौती स्वीकार करते हैं या नई पिच पर बैटिंग के लिए उतरते हैं।