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चिंता का सबब दोनों ओर

वसुंधरा सरकार से नाराजगी को पूरा नहीं भुना पाई कांग्रेस, भाजपा की हर कोशिश हुई फेल
नतीजों की फिजाः जीत के बाद कांग्रेस नेताओं के साथ पायलट और गहलोत (बाएं)

राजस्थान में मतदाताओं ने 25 साल से चल रही परंपरा को बरकरार रखा है। कांग्रेस बहुमत के जादुई आंकड़े से एक कम 99 सीटों पर रुक गई मगर उसके कई बागी बतौर निर्दलीय जीते हैं जिनका समर्थन उसे हासिल हो चुका है। इस बार प्रदेश में 13 निर्दलियों ने चुनाव जीता है। जनादेश से साफ है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ लोगों में नाराजगी थी, लेकिन चुनावों से पहले कयास लगाए जा रहे थे कि कांग्रेस को एकतरफा जीत मिलेगी, वैसा नहीं हुआ। मुख्यमंत्री (अब पूर्व) वसुंधरा राजे सिंधिया के नेतृत्व में चुनाव लड़ने वाली भाजपा को 73 सीटें मिलीं। राज्यपाल कल्याण सिंह को अपना इस्तीफा सौंपने के बाद वसुंधरा ने कहा कि हमारी सरकार ने काफी काम किया पर जनता का फैसला सिर-माथे। भाजपा सार्थक विपक्ष की भूमिका निभाएगी। इन चुनावों में बहुजन समाज पार्टी ने छह और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी ने तीन सीट जीतकर अपनी उपस्थिति भी दर्ज कराई है।

जानकारों का कहना है कि कांग्रेस पर अब 2019 के लोकसभा चुनावों में अच्छे प्रदर्शन का दबाव है। कांग्रेस के चुनाव अभियान के मुख्य सूत्रधार अशोक गहलोत कहते हैं, “कांग्रेस की सरकार सभी का सहयोग लेगी। कई ऐसे लोग भी जीत कर आए हैं जो कांग्रेस के विचारों के करीब हैं।” प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने इसे भाजपा और उसकी सरकार के अहंकार के विरुद्ध जनादेश बताया है।

पांच साल से सत्ता से दूर बैठी कांग्रेस कार्यालय में भी जीत का जश्न दिखा, हालांकि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के समर्थकों की अपने नेता के समर्थन में की गई नारेबाजी ने मुख्यमंत्री पद की खींचतान को भी उजागर कर दिया।

सियासी पंडित कह रहे हैं कि अगर कांग्रेस ने प्रत्याशी चयन में होशियारी बरती होती और प्रचार अभियान बेहतर चलाया होता तो कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिल सकता था। दलित अधिकार कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी कहते हैं कि परिणाम उम्मीद के मुताबिक ही है। हां, पार्टी वंचित वर्गों को भरोसे में लेकर इससे अच्छा प्रदर्शन कर सकती थी। नई उभरी भारतीय ट्राइबल पार्टी ने गुजरात से लगते जनजाति बहुल इलाकों में दो सीट जीत कर दोनों प्रमुख पार्टियों को चौंका दिया है। पार्टी के राज्य अध्यक्ष डॉ. वेलाराम घोघरा खुद चुनाव हार गए। मगर वे कहते हैं कि इस छोटी-सी कामयाबी ने बता दिया कि आदिवासी भाजपा और कांग्रेस दोनों से खुश नहीं हैं।

"चुनाव अभियान शुरू में मुद्दों पर आधारित था। मगर, धीरे-धीरे  चौकीदार, नामदार, कामदार, अंबानी- अडाणी जैसे जुमले गूंजने लगे"

दोनों मुख्य पार्टियों भाजपा और कांग्रेस के प्रमुख नेता चुनाव जीत गए। इनमें वसुंधरा राजे, गहलोत, सचिन पायलट, गिरिजा व्यास, सी.पी. जोशी प्रमुख हैं। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी भी अपनी सीट नहीं बचा सके। कांग्रेस को तब झटका लगा जब प्रतिपक्ष के नेता रामेश्वर डूडी चुनाव हार गए। पूर्व मुख्यमंत्री अपनी परंपरागत सीट झालरपाटन पर जीत जरूर गए। मगर, कांग्रेस के मानवेन्द्र सिंह ने उन्हें चुनौती देकर राजे की पिछले चुनाव में मिली जीत का अंतर आधा कर दिया। ऐसे ही भाजपा से बगावत कर अलग हुए पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी और उनकी पार्टी भारत वाहिनी को मतदाताओं ने नकार दिया। लेकिन राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल खुद के साथ दो और प्रत्याशियों को जिताने में सफल रहे। माकपा ने भी दो स्थानों पर अच्छा प्रदर्शन किया मगर उसके दिग्गज नेता अमराराम शिकस्त खा गए।

राजस्थान चुनाव अभियान शुरू में मुद्दों पर आधारित था। मगर, धीरे-धीरे चौकीदार, नामदार, कामदार, अंबानी-अडाणी जैसे जुमले प्रचार में गूंजने लगे। भाजपा का प्रचार अंतिम दौर में हड़बड़ी भरा रहा है। अचानक यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सभाओं में संख्या का इजाफा किया गया। उन्हें उन चुनाव क्षेत्रों में भेजा गया, जहां मुस्लिम समुदाय के वोटों की संख्या ज्यादा थी। अलवर जिले में अपनी सभा में योगी ने हनुमान जी की जाति खोज निकाली और उन्हें दलित बता दिया। मगर परिणाम बताते हैं अलवर में भाजपा 10 में से आठ सीट हार गई।

कांग्रेस को उम्मीद थी कि पुष्कर में राहुल गांधी का गोत्र मदद करेगा। अपनी चुनावी यात्रा के दौरान राहुल ने पुष्कर में पूजा-पाठ किया और वहीं बताया गया कि राहुल गांधी का गोत्र दत्तात्रेय है। पुष्कर से कांग्रेस उम्मीदवार नसीम अख्तर चुनाव हार गईं। प्रधानमंत्री मोदी ने कोटा में अपनी सभा में कांग्रेस पर यह कह कर हमला बोला कि कांग्रेस उनके माता-पिता और जाति के मुद्दे उठा रही है। पर, कोटा में भाजपा को तीन सीट ही मिल सकी है। ऐसे ही शेखावटी के सीकर में मोदी ने अपनी सभा में नामदार का मुद्दा उठाकर राहुल गांधी को निशाने पर लिया। लेकिन सीकर जिले में भाजपा को सिर्फ एक सीट पर  विजय मिली और कांग्रेस ने छह स्थानों पर जीत दर्ज कराई है।

राज्य में सत्ता के पारंपरिक प्रबल दावेदार भाजपा और कांग्रेस खुद को यह कह कर तसल्ली देते दिख रहे हैं कि उनका चुनावी प्रदर्शन ठीक रहा है। मगर, चुनाव नतीजे दोनों दलों को थोड़ी खुशी, थोड़ा गम दे गए हैं। भाजपा सरकार के तीस में से बीस मंत्री चुनावी संग्राम में ढेर हो गए। दो मंत्रियों ने अपने पुत्रों को उम्मीदवारी दिलवाई थी। वे दोनों भी हार गए। सत्तारूढ़ दल के दो महंत भी प्रतिष्ठा की लड़ाई में हार गए। इनमें एक ओटाराम देवासी तो गो-पालन मंत्री थे।

चुनाव परिणाम दोनों पार्टियों के लिए कई तरह की चिंताएं भी ले कर आए हैं। कुछ विश्लेषक कहते हैं कि कांग्रेस ने अगर अपने पारंपरिक वोट दलित और आदिवासियों को नहीं सहेजा तो उसके लिए भविष्य में दिक्क्त आ सकती है। जानकार कहते हैं कि बसपा ने छह सीट जीत कर अपनी मौजूदगी का एहसास कराया है। यह भी सही है कि इस साल दो अप्रैल को दलितों के भारत बंद के बाद से कई नए दलित समूह उभर आए हैं। राज्य में अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी 17 फीसदी है।

ऐसे ही जनजाति बहुल मेवाड़ में कांग्रेस कोई अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई है, जबकि भाजपा ने अपना असर बनाए रखा है। मेवाड़ में नई उभरी ट्राइबल पार्टी ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को चौंका दिया है। इस पार्टी ने बहुत जल्दी ही अपनी जगह बना ली है। इससे संकेत मिलता है कि जनजाति समाज में दोनों पार्टियों का असर घट रहा है। जानकार कहते हैं कि कांग्रेस अगर ठीक से अपने अभियान को संचालित करती तो उसे भाजपा सरकार के खिलाफ बने माहौल का बड़ा लाभ मिल सकता था। मगर, कांग्रेस एंटी इंकंबेंसी का उतना लाभ नहीं उठा सकी है। 

भाजपा नेता जयपुर संभाग में अपने खराब प्रदर्शन से चिंतित हैं, क्योंकि जयपुर भाजपा का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। मगर, जयपुर संभाग में भाजपा को 16 सीटों पर ही जीत मिली हैं, जबकि कांग्रेस ने 25 सीटें झटक लीं। जोधपुर संभाग में भी कांग्रेस ने अपना प्रदर्शन सुधारते हुए 16 विधानसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की है, जबकि भाजपा को 13 सीटों पर कामयाबी मिली है। मगर, भाजपा के लिए भरतपुर संभाग के चुनाव नतीजे ज्यादा चिंता पैदा करने वाले हैं। इस संभाग में कांग्रेस को 13 और भाजपा को सिर्फ एक सीट मिली है। उत्तरी राजस्थान में कांग्रेस की गुटबाजी ने उसके प्रदर्शन पर बुरा असर डाला है। बीकानेर जिले में प्रतिपक्ष के नेता रामेश्वर डूडी अपनी नोखा सीट से मात खा गए। जबकि डूडी ने अपनी सीट बचाने के लिए उन्हें शिकस्त दे चुके गोपाल झंवर को कांग्रेस में शामिल कराकर बीकानेर से पार्टी टिकट दिलवाया था। मगर यह जतन कोई काम नहीं आया। कांग्रेस को इसका खामियाजा उठाना पड़ा है। बीकानेर संभाग में कांग्रेस को ग्‍यारह और भाजपा को दस सीटें मिली हैं।

बहरहाल, भाजपा के लिए ये नतीजे इसलिए भी चिंता का सबब हैं कि लोकसभा चुनावों में इन नतीजों के हिसाब से उसे कम से कम आधी सीटें गंवानी पड़ सकती हैं। फिर, मोदी की घटती लोकप्रियता इसमें और इजाफा कर सकती है।

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