डेढ़ दशक बाद छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके फिर पूरी तरह कांग्रेस के साथ हो गए हैं। अब आदिवासी बहुल बस्तर और सरगुजा क्षेत्र की 24 विधानसभा सीटों में एक पर भी भाजपा का विधायक नहीं है। लोकसभा चुनाव में राज्य में बुरी तरह मात खाई कांग्रेस आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा के सफाये से गदगद है। इसका श्रेय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को जाता है। इन इलाकों में कुपोषण के खिलाफ अभियान, हाट बाजारों में चलित चिकित्सा की सुविधा और तेंदूपत्ता का बोनस प्रति बोरा 2,500 से बढ़ाकर 4,000 रुपये करने का निर्णय कांग्रेस को पहले दंतेवाड़ा और अब चित्रकोट उपचुनाव में फायदा दे गया। लोहरीगुण्डा में टाटा की फैक्ट्री के लिए अधिग्रहीत जमीन आदिवासियों को लौटाने के फैसले का भी इसमें बड़ा योगदान रहा।
2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा बस्तर की 12 विधानसभा सीटों में से एकमात्र दंतेवाड़ा जीती थी। लोकसभा चुनाव के दौरान नक्सली हिंसा में विधायक भीमा मांडवी की मौत के कारण यह सीट रिक्त हो गई। 23 सितंबर को हुए उपचुनाव में भाजपा ने भीमा की पत्नी ओजस्वी को चुनाव लड़ाकर सहानुभूति लेने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुई। नौ महीने पहले भीमा के हाथों पराजित देवती कर्मा करीब 11 हजार वोटों से जीत गईं। दंतेवाड़ा में हार के बाद भाजपा ने हथियार डाल दिए। चित्रकोट में बुजुर्ग लच्छू राम कश्यप को उतारकर उसने एक तरह से कांग्रेस को वाकओवर दे दिया। यहां कांग्रेस के राजमन बेंजाम 17 हजार वोटों के अंतर से जीत गए। करीब 32 फीसदी आदिवासी आबादी वाले इस राज्य में 29 सीटें एसटी के लिए रिजर्व हैं। इनमें से 27 सीटें अब कांग्रेस के पास हैं। 2003 और 2008 में आदिवासी विधायकों के दम पर सरकार बनाने वाली भाजपा के पास अब कोरबा जिले की रामपुर सीट से ननकी राम कंवर एकमात्र आदिवासी विधायक हैं।
भाजपा ने 15 साल के राज में आदिवासियों को साधने के लिए कई कदम उठाए, फिर भी वह आदिवासी वोटरों को बांध कर नहीं रख पाई। इसके पीछे कुछ फैसले रहे। आदिवासियों की जमीन गैर-आदिवासियों और उद्योगों को देने की कोशिश और पत्थलगड़ी जैसे आंदोलन से दूरियां बढ़ीं। अब केंद्र के स्तर पर भी आदिवासियों को साधने की कोशिश हो रही है। सरगुजा की सांसद रेणुका सिंह को केंद्र में मंत्री बनाया गया है। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविचार नेताम भी छत्तीसगढ़ से हैं। अनुसुइया उइके को यहां का राज्यपाल बनाकर भी आदिवासी समाज को संदेश दिया गया है। भाजपा की रणनीति का लाभ दो उपचुनावों के नतीजों में तो नहीं दिखा, इन नतीजों से राज्य में कांग्रेस की साख और धाक दोनों जरूर मजबूत हुई है।