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क्रिकेट: काबिलियत दिखाने का मौका

स्विंग पर नियंत्रण भारतीय टीम को इंग्लैंड में फतह दिला सकती है
न्यूजीलैंड के खिलाफ डब्लूटीसी फाइनल में रन लेते कोहली और रहाणे

इंग्लैंड की गर्मियों के बुलावे पर भारतीय क्रिकेट वहां पहुंच गई है। वहां गर्मियों की खासियत यह है कि अक्सर गर्म रहने वाले दिन कभी-कभी बेहद सर्द हो जाते हैं। ऐसे समय जब देश वैश्विक महामारी से उबरने की कोशिश कर रहा है, 20 सदस्यों वाली भारतीय क्रिकेट टीम चार महीने के इंग्लैंड दौरे पर गई है। साउथम्पटन के एगियस बाउल में 18 जून से इसने न्यूजीलैंड के खिलाफ आइसीसी वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप (डब्लूटीसी) का फाइनल मैच भी खेला। इंग्लैंड के खिलाफ पांच टेस्ट मैचों की श्रृंखला 4 अगस्त से शुरू होगी। भारत ने इंग्लैंड में पहली टेस्ट श्रृंखला 50 साल पहले 1971 में जीती थी। उसके बाद से इंग्लैंड का टूर भारत के लिए जैसे ‘अंतिम मोर्चा’ की तरह बन गया है। हमने हाल के वर्षों में कई अच्छी जीत दर्ज की हैं, लेकिन इंग्लैंड में 2007 से हमने कोई श्रृंखला नहीं जीती है। सच तो यह है कि 1971 से हमें वहां सिर्फ दो श्रृंखलाओं में जीत मिली है।

14 साल लंबा वक्त होता है और भारत इस बार न सिर्फ अच्छी जीत दर्ज करने को बेताब होगा, बल्कि दुनिया की नंबर एक टेस्ट टीम के रूप में अपनी धमक को भी बरकरार रखना चाहेगा। लेकिन इसके लिए उसे स्विंग करने वाली गेंदों की काट ढूंढ़नी पड़ेगी, क्योंकि पिछले दौरों में यही गेंदें भारतीय टीम के लिए अभिशाप साबित हुई हैं। न्यूजीलैंड के खिलाफ डब्लूटीसी फाइनल मैच में इसकी बानगी दिखी भी। भारतीय बल्लेबाजों को न्यूजीलैंड के तेज गेंदबाजों को सामने दिक्कत हो रही थी। इंग्लैंड में गर्मियों के शुरुआती दिनों में विकेट में जान होती है और हवा में काफी नमी रहती है। बीच-बीच में बारिश भी होती रहती है। न्यूजीलैंड के खिलाफ मैच में दो दिन तो बारिश में ही धुल गए।

डब्लूटीसी फाइनल इस लिहाज से बड़ा महत्वपूर्ण क्षण था कि दो सर्वोच्च रैंकिंग वाली टेस्ट टीमें एक दूसरे से भिड़ीं। उससे पहले न्यूजीलैंड की टीम इंग्लैंड के खिलाफ दो टेस्ट मैच खेल चुक थी। इससे उसे डब्लूटीसी फाइनल से पहले वहां के मौसम के अनुकूल खुद को ढालने और मैच प्रैक्टिस का मौका मिल गया। यह उनके लिए एक तरह से एडवांटेज की तरह था। डब्लूटीसी फाइनल से पहले न्यूजीलैंड के गेंदबाज ड्यूक गेंदों के भी अभ्यस्त हो चुके थे।

भारत के लिए डब्लूटीसी फाइनल ही इंग्लैंड दौरे का पहला महत्वपूर्ण गेम था। पहले मैच में ही ड्यूक गेंदों का अभ्यस्त होना और विश्वस्तरीय तेज गेंदबाजी का सामना करना थोड़ा कठिन रहा। लेकिन पुराने अनुभव को देखते हुए विराट कोहली की टीम से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी।

शुरुआती सत्रों में ड्यूक गेंदें काफी स्विंग करती हैं और सीम मूवमेंट भी बहुत होता है। बल्लेबाज को ऐसी गेंदें खेलने के लिए तकनीकी दक्षता और मानसिक दृढ़ता की जरूरत पड़ती है। यह जानना कि ऑफ स्टंप कहां है और उस लाइन से बाहर की गेंदों को छोड़ना ही इंग्लैंड में बल्लेबाजी की सफलता का राज माना जाता है। बल्लेबाजी की तकनीक, शॉट का चयन और स्कोरिंग दर काफी बदलने के बावजूद सफलता का यह राज अभी तक बरकरार है।

निस्संदेह सलामी और शीर्ष क्रम के बल्लेबाजों की विरोधी टीम के तेज गेंदबाज परीक्षा लेंगे। इन गेंदों के साथ बैट और पैड के बीच से निकलने वाली ‘इनकटर’ और ‘इनस्विंगर’ गेंदें भी होंगी। गेंदों की गति अलग चुनौती होगी। नतीजे इस बात पर निर्भर करेंगे कि बल्लेबाज कितनी जल्दी इन परिस्थितियों के अनुकूल होते हैं।

अगर मौसम नम होने के बजाय खुला और शुष्क रहा तब गेंद ज्यादा नहीं घूमेगी और विकेट अच्छा खेलेगी। मैच के शुरुआती दिनों में ऐसा देखने को मिल सकता है। रोहित शर्मा, विराट कोहली, ऋषभ पंत और रविंद्र जडेजा जैसे बल्लेबाज भारत को मजबूत परिस्थिति में ला सकते हैं। दूसरी तरफ, इंग्लैंड की बल्लेबाजी काफी हद तक जो रूट पर निर्भर है। यह बात भारत के पक्ष में जा सकती है। हालांकि इंग्लैंड के दूसरे बल्लेबाज भी अपने आप को स्थापित करने के लिए आतुर होंगे।

रोज बाउल की पिच आखिरी दो दिनों में बदलती है और उससे तेज गेंदबाजों को काफी मदद मिलती है। विकेट घूमने भी लगती है। पिछली बार भारत ने वहां अगस्त 2018 में खेला था और तब मोईन अली ने चौथी पारी में 6 विकेट लेकर इंग्लैंड को जीत दिलाई थी। इसलिए भारतीय फिरकी गेंदबाजों की भूमिका भी अहम हो सकती है। रविंद्र जडेजा या अक्षर पटेल जैसे खिलाड़ी पैड पर गेंदें डालकर, और उसके साथ दूर जाने वाली गेंदें चतुराई से फेंककर, चौथे और पांचवें दिन बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

इस विकेट पर पिछले पांच टेस्ट मैचों में विभिन्न टीमों ने पहली पारी में औसतन 300 रन बनाए हैं, लेकिन चौथी पारी में पिच के लगातार मुश्किल होते जाने के कारण औसतन 180 रन ही बने हैं। पहली पारी में 350 रनों से अधिक का स्कोर टीम को मजबूत स्थिति में खड़ा कर सकता है। भारतीय स्पिनर इंग्लैंड की परिस्थितियों में भी कारगर साबित हो सकते हैं। 1971 के दौरे में ओवल में भागवत चंद्रशेखर ने 38 रन देकर 6 विकेट लिए थे, जिसे ‘स्पेल ऑफ द सेंचुरी’ कहा जाता है।

इंग्लैंड हरी घास और सीम वाली विकेट पर भारत में अपनी हार का बदला लेना चाहेगा। लेकिन भारतीय टीम में विश्वस्तरीय फिरकी के अलावा उम्दा तेज गेंदबाज भी हैं। इससे इंग्लैंड को घरेलू मैदान पर खेलने का एकतरफा फायदा नहीं मिलेगा।

भारत के लिए एक और एडवांटेज यह है कि इसका बल्लेबाजी क्रम काफी गहरा है। ऑस्ट्रेलिया में खेले गए मैचों के साथ-साथ घरेलू मैदान पर इंग्लैंड के खिलाफ मैचों में निचले क्रम के बल्लेबाज भी अच्छा खेल दिखा चुके हैं। खराब परिस्थितियों में शीर्ष क्रम के आउट होने के बाद भी भारत पलटवार कर सकता है। ऑस्ट्रेलिया में 36 रनों पर सभी बल्लेबाजों के आउट हो जाने के बाद टीम का बेहतरीन प्रदर्शन इसका प्रमाण है। इस टीम में रोहित, पंत और जडेजा जैसे खिलाड़ी हैं जो दबाव में भी तेजी से रन बटोर सकते हैं और किसी भी सत्र में खेल का रुख बदलने की क्षमता रखते हैं।

भारत लंबे समय से टेस्ट रैंकिंग में शीर्ष पर बना हुआ है और खिलाड़ियों के फॉर्म को देखते हुए इंग्लैंड में भी उसके अच्छा खेलने की संभावना है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो भारत इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज भी जीत सकता है। इससे पहले भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शानदार जीत दर्ज कर चुकी है। पांच दशक पहले वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के खिलाफ उन्हीं के मैदान पर जीत दर्ज करने के गोल्डन जुबली के मौके पर भारत वैसा ही कारनामा दिखा सकता है।

(लेखक भारतीय वायु सेना के रिटायर्ड विंग कमांडर हैं। उन्होंने सेना की तरफ से रणजी ट्रॉफी खेली है)

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