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अनुसंधान विश्वविद्यालयों की भावी रूपरेखा

अब अनुसंधान-केंद्रित विश्वविद्यालयों पर ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है
वैश्विक रैंकिंग में भारत के विश्वविद्यालय अभी भी बहुत पीछे हैं

भारत के पास एक बहुत व्यापक, अपेक्षाकृत नई और तेजी से बढ़ती उच्च शिक्षा प्रणाली है। हमारे यहां दो-तिहाई से अधिक विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की स्थापना इक्कीसवीं सदी में हुई है। कुछ उच्च शिक्षा संस्थानों की अनुसंधान के क्षेत्र में वैश्विक प्रतिष्ठा है, लेकिन उच्च शिक्षा प्रणाली का सारा जोर मुख्य रूप से शिक्षण पर ही रहा है। इसलिए अनुसंधान-केंद्रित विश्वविद्यालयों पर वह ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है जिसके वे हकदार हैं। इसी ध्यान की कमी का परिणाम है कि दुनिया की सबसे बड़ी उच्च शिक्षा प्रणालियों में से एक होने के बावजूद भारतीय विश्वविद्यालयों को वैश्विक रैंकिंग में कम प्रतिनिधित्व दिया जाता है।

किसी देश में अनुसंधान विश्वविद्यालयों की सफलता के लिए देश की समग्र उच्च शिक्षा प्रणाली महत्वपूर्ण होती है, हालांकि उसकी सफलता उद्योगों, पेशेवर संगठनों और अन्य हितधारकों सहित बड़े पारिस्थितिकी तंत्र पर भी निर्भर करती है। अनुसंधान और नवाचार संचालित उद्योगों की उपस्थिति अनुसंधान विश्वविद्यालयों को बढ़ावा देती है क्योंकि अधिकांश अनुप्रयुक्त शोध व्यवसायों द्वारा उनके उत्पादों और सेवाओं के वितरण में काम आते हैं। इसी तरह, पेशेवर संगठन अनुसंधान में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। ये संगठन अक्सर अनुसंधान की उपलब्धियों को पहचानने के लिए पुरस्कार, प्रतिष्ठित फेलोशिप आदि देते हैं। इसके अलावा समाज भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए, शोधकर्ताओं को उपयुक्त मान दिया जाए और शोध कैरियर को महत्व मिले, तो अनुसंधान केंद्रित विश्वविद्यालय देश के विकास में अपना योगदान दे सकेंगे।

भले ही कई कारक अनुसंधान विश्वविद्यालयों के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन सबसे आवश्यक समर्थन की जरूरत समग्र उच्च शिक्षा प्रणाली से ही होती है।

उच्च शिक्षा के लिए अलग-अलग व्यवस्था

आम तौर से किसी देश का समग्र उच्च शिक्षा क्षेत्र अनुसंधान विश्वविद्यालयों की संख्या के मुकाबले बहुत बड़ा होता है। किसी भी व्यापक उच्च शिक्षा प्रणाली को दो हिस्सों में बांटना जरूरी होता है। भारत जैसी व्यापक शिक्षा प्रणाली में सभी विश्वविद्यालय, अनुसंधान विश्वविद्यालय नहीं हो सकते। किसी विश्वविद्यालय के दो प्राथमिक लक्ष्य होते हैं शिक्षा और अनुसंधान, लेकिन सभी विश्वविद्यालयों को अनुसंधान विश्वविद्यालय नहीं बनाया जा सकता, न ही वे हो सकते हैं। अलग-अलग उच्च शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता शैक्षिक जरूरतों को पूरा करने और साथ में अनुसंधान संस्थानों को बनाए रखने के लिए जरूरी है। अलग-अलग दृष्टिकोण के बिना सभी विश्वविद्यालयों के साथ एक समान व्यवहार किया जाएगा, जो अनुत्पादक होगा क्योंकि अनुसंधान विश्वविद्यालयों का एक अलग उद्देश्य है और उन्हें उन विश्वविद्यालयों की तुलना में अलग तरह से समर्थन और व्यवहार की जरूरत है।

ज्ञान का पोषण: त्रिस्तरीय अनुसंधान वातावरण

उच्च शिक्षा प्रणाली को व्यवस्थित करने का एक प्राकृतिक तरीका इसे तीन स्तरों में विभाजित करना है: पहला स्तर अनुसंधान और डॉक्टरेट पर केंद्रित है, दूसरा स्नातकोत्तर और स्नातक शिक्षा पर, और तीसरा स्नातक शिक्षा पर। इस तरह की तीन-स्तरीय प्रणाली में शीर्ष (टियर 1) पर अनुसंधान विश्वविद्यालय आते हैं, जो अनुसंधान पर जोर देते हैं और अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान करते हैं। उनके पास मजबूत पीएचडी कार्यक्रम हैं और राष्ट्रीय अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र के लिए वे महत्वपूर्ण हैं। टियर 2 विश्वविद्यालय मास्टर्स और स्नातक शिक्षा पर जोर देते हैं और एक साधारण पीएचडी कार्यक्रम चला सकते हैं। इन विश्वविद्यालयों का प्राथमिक उद्देश्य उच्च शिक्षा प्रदान करना है। कॉलेज मुख्य रूप से तीसरे स्तर (टियर 3) पर स्नातक कार्यक्रमों पर जोर देते हैं, हालांकि वे मास्टर स्तर के पाठ्यक्रम भी प्रदान कर सकते हैं।

अनुसंधान-केंद्रित संकाय को सशक्त बनाना

अनुसंधान-उन्मुख विश्वविद्यालय में अनुसंधान संकाय होना चाहिए। विश्व स्तर पर अधिकांश शोध संकायों के सदस्य डॉक्टरेट डिग्रीधारी होते हैं। भारत के कई विश्वविद्यालयों के संकायों में उपयुक्त अनुपात में पीएचडीधारी नहीं हैं, इसलिए मानदंड यह निर्धारित करता है कि संस्थान को अनुसंधान विश्वविद्यालय मानने के लिए कम से कम 75 प्रतिशत संकाय सदस्यों को डॉक्टरेट होना चाहिए। अनुसंधान विश्वविद्यालय से यह उम्मीद की जाती है कि प्रत्येक संकाय सदस्य के नीचे कम से कम एक पूर्णकालिक पीएचडी छात्र होगा। यह दूसरी शर्त है।

अनुसंधान विश्वविद्यालय की स्वायत्तता का विकास

इन विश्वविद्यालयों का प्रबंधन केवल तभी कुशलतापूर्वक किया जा सकता है जब उनके पास पूर्ण परिचालन स्वायत्तता (समग्र उच्च शिक्षा नीति की सीमाओं के भीतर) हो। कोई देश चाहता है कि उसके शोध विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करें, तो उसे इन संस्थानों को यथासंभव स्वायत्तता प्रदान करनी चाहिए। स्वायत्तता का तात्पर्य है कि विश्वविद्यालय सभी परिचालन और प्रशासनिक निर्णयों के लिए जिम्मेदार है। विश्वविद्यालय प्रबंधन के तीन स्तर हैं: शीर्ष-स्तरीय शासन निकाय, जो नीतियां बनाता है और उनके कार्यान्वयन की देखरेख करता है; नेतृत्व, जिसमें मुख्य कार्यकारी शामिल हैं; और प्रबंधन और प्रशासन। भारत में अनुसंधान विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को पहले दो स्तरों पर मजबूत किया जाना चाहिए क्योंकि प्रबंधन स्तर पर स्वायत्तता आम तौर पर पर्याप्त होती है। अधिक स्वतंत्रता, जवाबदेही और प्रतिस्पर्धा वाले विश्वविद्यालय बेहतर प्रदर्शन करते हैं।

अनुसंधान विश्वविद्यालयों को एकजुट करना

भारत को वर्तमान में अनुसंधान विश्वविद्यालयों के एक संगठन की आवश्यकता है। इन विश्वविद्यालयों को अनूठी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और भारतीय विश्वविद्यालयों का एक सामान्य संघ जो सभी विश्वविद्यालयों की सदस्यता के लिए खुला है, अनुसंधान केंद्रित विश्वविद्यालयों के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। इसके परिणामस्वरूप सरकार और नीति-निर्माताओं को अनुसंधान विश्वविद्यालयों के सामने आने वाले प्रासंगिक मुद्दों पर ध्यान देना पड़ता है। ऐसे किसी एसोसिएशन के प्रभावशाली होने के लिए इसके आकार को छोटा रखा जाना चाहिए। इसकी सदस्यता और प्रतिनिधित्व चुनिंदा विश्वविद्यालयों तक सीमित होनी चाहिए और सरकार से इसे पूरी तरह स्वतंत्र होना चाहिए।

अनुदान का सवाल

भारत के शीर्ष विश्वविद्यालयों को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों के बीच जगह दिलवाने के लिए उनके शोध-व्यय में काफी वृद्धि की जानी चाहिए। अनुसंधान विश्वविद्यालयों के पनपने के लिए दो प्रकार के अनुसंधान वित्तपोषण की आवश्यकता होती है: दीर्घकालिक ब्लॉक अनुसंधान वित्तपोषण- जो विश्वविद्यालय के अनुसंधान प्रदर्शन पर आधारित है, और प्रायोजित अनुसंधान परियोजना वित्तपोषण- जो अनुसंधान प्रस्तावों के आधार पर प्रदान किया जाता है। अनुसंधान योगदान और प्रभाव के मूल्यांकन के आधार पर पांच से सात साल का ब्लॉक अनुदान प्रदान किया जाता है। विश्वविद्यालयों को इस फंडिंग का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त करने के लिए अपने शोध की गुणवत्ता और मात्रा में वृद्धि करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, उन्हें अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने की अनुमति होती है और हर पांच साल पर इसी अनुसार उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। यह एक उत्कृष्ट मॉडल है क्योंकि यह प्रदर्शन को प्रोत्साहित करता है और बेहतर प्रदर्शन वाले विश्वविद्यालयों को अधिक धन भी दिलवाता है। यह ब्लॉक अनुदान उन क्षेत्रों में भी अनुसंधान का समर्थन करता है जहां अनुदान वित्तपोषण उपलब्ध नहीं हो सकता है।

प्रायोजित अनुसंधान का समर्थन करने के लिए विश्वविद्यालयों के लिए सबसे अच्छा तरीका अनुसंधान प्रस्तावों के आधार पर संकाय को प्रतिस्पर्धी अनुसंधान अनुदान प्रदान करना होता है। विश्वविद्यालयों के लिए उपलब्ध अनुसंधान वित्तपोषण को बढ़ाने के लिए प्रत्येक भारतीय एजेंसी के बाह्य वित्तपोषण में पर्याप्त वृद्धि की जानी चाहिए। एक्स्ट्राम्यूरल फंडिंग इन एजेंसियों की प्रयोगशालाओं और विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के बीच सहयोग बढ़ाने की सुविधा भी प्रदान कर सकती है। विश्वविद्यालयों को आरएंडडी फंडिंग बढ़ाने के अतिरिक्त तरीके भी हैं, जैसे कि सरकारी विभागों की आवश्यकता, जो प्रायोजित अनुसंधान के लिए एक विशिष्ट अनुसंधान बजट रखने के लिए आर ऐंड जी से लाभ उठा सकते हैं।

इस तरह से समग्र उच्च शिक्षा  और अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र में कुछ पहल ऐसी की जानी चाहिए जो अनुसंधान विश्वविद्यालयों को पनपने में मदद कर सकें। इसके लिए ऐसी अलग-अलग व्यवस्‍था होनी चाहिए, जो अनुसंधान विश्वविद्यालयों को बाकी से अलग कर सके और अनुसंधान विश्वविद्यालयों को अधिक स्वायत्तता प्रदान कर सकती है ताकि वे अपने वैश्विक समकक्षों के साथ अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्धा कर सकें जो पहले से ही बहुत अधिक स्वायत्तता का आनंद ले रहे हैं। दूसरे, अनुसंधान प्रदर्शन के आधार पर अनुसंधान विश्वविद्यालयों में अनुसंधान के लिए विशेष फंड दिया जा सकता है। अनुसंधान विश्वविद्यालयों के लिए एक संघ की जरूरत है जो इन विश्वविद्यालयों की सामूहिक मांगों को आवाज दे सकता है।

इसके अलावा, विश्वविद्यालय के प्रशासनिक कार्यों को पेशेवर बनाने के लिए शिक्षा कार्यक्रम शुरू करना, कुछ मौजूदा विश्वविद्यालयों का विस्तार करके और कुछ संस्थानों को एक साथ विलय करके कुछ बड़े बहुविषयक विश्वविद्यालयों का निर्माण करना और उच्च शिक्षा अनुसंधान के लिए कुछ केंद्र विकसित करना जरूरी है। इन परिवर्तनकारी पहलों को गले लगा कर अनुसंधान विश्वविद्यालय अद्वितीय विकास और उत्कृष्टता की अपनी यात्रा शुरू कर सकते हैं, उच्च शिक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में क्रांति ला सकते हैं और वैश्विक ज्ञान के विकास में अपने प्रभाव को बढ़ा सकते हैं।

रैकिंग का तरीका

हमारी रैंकिंग प्रविधि पांच मुख्य मानदंडों के आधार पर उच्च शिक्षा संस्थानों का मूल्यांकन करती है: अकादमिक और अनुसंधान उत्कृष्टता, उद्योग इंटरफेस और प्लेसमेंट, बुनियादी ढांचा और सुविधाएं, शासन और प्रवेश, और विविधता और आउटरीच। प्रत्येक व्यापक पैरामीटर को उप-मापदंडों और संकेतकों में विभाजित किया गया है, प्रत्येक में एक विशिष्ट अधिभार है। निष्पक्षता और सटीकता आश्वस्त करने के लिए हम एक बहुआयामी डेटा संग्रह दृष्टिकोण का उपयोग करते हैं। हम छात्रों, संकाय और उच्च शिक्षा संस्थानों से जुड़े अन्य लोगों सहित विभिन्न हितधारकों को शामिल करते हुए व्यापक सर्वेक्षणों के माध्यम से रैंकिंग डेटा एकत्र करते हैं। इसके अतिरिक्त, हम सावधानीपूर्वक सबूत और विश्वसनीय तृतीय-पक्ष स्रोतों के साथ क्रॉस-संदर्भित करके डेटा की जांच करते हैं। ऐसे मामलों में जहां प्रत्यक्ष डेटा सीमित हो सकता है, हम जानकारी के लिए एआइएसएचई, एनएएसी, एनआइआरएफ आदि विश्वसनीय और आधिकारिक स्रोतों का सहारा लेते हैं। यह हमारी रैंकिंग प्रक्रिया की अखंडता और निष्पक्षता को बनाए रखती है।

हमारे द्वारा एकत्र किए गए डेटा को विभिन्न मापदंडों में स्कोर को मानकीकृत करने के लिए सामान्यीकृत किया जाता है। यह सामान्यीकरण संस्थानों की उचित तुलना को सक्षम बनाता है, भले ही उनके आकार या अन्य कारक कच्चे स्कोर को प्रभावित कर सकते हैं। सामान्यीकरण के बाद प्रत्येक माप के लिए स्कोर को उचित रूप से भारित किया जाता है, जिसका समापन 1000 के पैमाने पर अंतिम समग्र स्कोर में होता है।

रैंकिंग

(वाइस चेयरमैन, आइकेयर)

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