भारत में 34 साल बाद 2020 में जारी पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) से शिक्षा संस्कृति में आमूलचूल बदलाव देखा गया। केंद्रीय मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल द्वारा लॉन्च की गई इस नीति का मकसद स्कूल और उच्च शिक्षा में व्यवस्थागत सुधार की राह प्रशस्त करना है, ताकि भारत दुनिया में ज्ञान की महाशक्ति बने। इस नीति में शिक्षा के क्षेत्र में जीडीपी के 6 प्रतिशत अप्रत्याशित आवंटन, निवेश और अच्छे प्रबंधन के विविध हिस्सेदारों को आगे बढ़ाने की बात है।
भारत में चीन के बाद दुनिया में सबसे बड़ी स्कूली व्यवस्था है। 15 लाख से ज्यादा स्कूल और करीब 26 करोड़ छात्र हैं। हालांकि सेकेंडरी शिक्षा में स्कूल छोड़ने की दर अभी भी काफी ऊंची है। इसके अलावा, अनुपयुक्त छात्र-शिक्षक अनुपात, अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण, सरकारी स्कूलों से व्यापक मोहभंग, अनियंत्रित या गैर-लाइसेंसी प्राइवेट स्कूलों की बाढ़, और अधकचरी पढ़ाई जैसी दूसरी चुनौतियां हैं। एनईपी में छात्रों के हुनर विकास, शिक्षकों की काबिलियत में इजाफा और पढ़ाई के लिए विविध-विषयक और अंतरविषयक पठन-पाठन के तरीकों की सिफारिशों के जरिए इन खामियों को दूर करने का प्रस्ताव है। एनईपी के मुताबिक, स्कूली शिक्षा में हालिया फेरबदल के मद्देनजर स्कूली शिक्षा का संपूर्ण आकलन जरूरी है, ताकि स्कूली छात्र उच्च शिक्षा में जाने के लिए तैयार हो जाएं।
इसी तरह, भारत में उच्च शिक्षा को ‘ग्लोकल’ तरीके का बेहतरीन मिश्रण बनाने की दरकार है यानी ग्लोबल मानदंड और स्थानीय तौर-तरीकों का मेलमिलाप। भारत में सबसे बड़ी दिक्कत आज यह है कि कुछ ही डिग्रीधारी छात्र नौकरी के लायक हुनर वाले हैं। जलवायु परिवर्तन, महामारियों और विध्वसंक टेक्नोलॉजियों जैसी उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए देश में हर क्षेत्र में काबिलियत रखने वाले कार्यबल की दरकार होगी। इस तरह, विविध-विषयक पढ़ाई, अत्याधुनिक रिसर्च, लचीले डिग्री पाठ्यक्रम और रोजगारपरक प्रशिक्षण में इजाफा ही कुछ ऐसे बड़े बदलाव हैं, जिनसे उच्च हुनरमंद और बाजार-अनुकूल कार्यबल तैयार हो सकेगा।
भूमंडलीकृत दुनिया में, मेडिकल साइंस में रिसर्च के लिए इंजीनियरिंग की कुछ जानकारी की जरूरत हो सकती है या कंप्यूटर साइंस के छात्रों को भाषा-विज्ञान की जानकारी की दरकार हो सकती है। एईपी में अंडरग्रेजुएट एजुकेशन में मानविकी और कला के साथ साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) को जोड़ने का प्रस्ताव है। एनईपी अध्ययन के सभी क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण आकदमिक रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए नए राष्ट्रीय रिसर्च फाउंडेशन की मदद से बेहतर रिसर्च का माहौल बनाने के खातिर उच्च शिक्षा संस्थानों को प्रेरित कर रही है। इससे छात्रों और फैकल्टी में रचनात्मकता, नवाचार, जिज्ञासा, समस्या-समाधान क्षमताएं, टीमवर्क और संप्रेषण के हुनर में विकास होगा।
विलक्षणता की राह
जाहिर है कि पिछले दशक से वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में अधिकांश भारतीय संस्थानों का स्थान लगभग एक जैसा बना हुआ है। यह भी सही है कि यह स्थिति इसलिए है, क्योंकि चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान, हांगकांग और सिंगापुर जैसे एशियाई देशों के संस्थान बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, जो बेहतर गुणवत्ता वाली शिक्षा, रिसर्च और अंतरराष्ट्रीयवाद पर फोकस कर रहे हैं। यह भी सर्वविदित तथ्य है कि उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण का विचार सभी देशों के छात्रों, फैकल्टी सदस्यों, पाठ्यक्रमों और संस्थाओं के आदन-प्रदान पर आधारित है। हालांकि, भारत में यह एकतरफा है। हर साल 5,00,000 छात्र विदेश जा रहे हैं, जबकि पिछले तीन साल में करीब 40,000 अंतरराष्ट्रीय छात्रों ने ही, खासकर दक्षिण एशियाई देशों से, भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला लिया है।
भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में रिसर्च की गुणवत्ता निम्न-स्तर की मानी जाती है, जिससे बड़ी संख्या में निम्न-गुणवत्ता वाले रिसर्च प्रकाशन विश्व आर्थिक फोरम इंडेक्स (डब्लूईएफ, 2018) में 5 में महज 0.42 अंक पा सके। एनईपी मजबूत रिसर्च संस्थान की स्थापना पर जोर देती है और यूनिवर्सिटी, राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर शोध और विकास (आरऐंडडी) को बढ़ावा देने की बात करती है। एनईपी का फोकस स्टार्ट अप इनक्युबेशन सेंटरों, टेक्नोलॉजी विकास केंद्रों, व्यापक उद्योग-आकदमिक जुड़ाव और अंतरविषयक शोध के जरिए रिसर्च और इनोवेशन पर है। राष्ट्रीय शोध संस्थान उच्च शिक्षा संस्थानों को फंड मुहैया कराके रिसर्च और इनोवेशन काे प्रोत्साहन देगा और विस्तार की संभावनाएं जगाएगा। इससे आरऐंडडी टिकाऊ और तेज रफ्तार की पटरी पर लंबी अवधि के लिए स्थापित हो जाएगी। इस तरह रिसर्च का मौजूदा माहौल व्यापक होगा और मौजूदा खामियां दूर होंगी।
एनईपी का मकसद टॉप 100 वर्ल्ड रैंकिंग यूनिवर्सिटी को भारत में कैंपस खोलने के लिए न्यौता देने का भी है। अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी ज्ञान, टेक्नोलॉजी और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों की नई-नई अध्यापन विधियां लेकर आएंगी, जिससे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के नए मानक स्थापित होंगे। ऐसे घटनाक्रम से भारतीय उच्च संस्थानों का स्तर सुधरेगा और नतीजतन भारत में शिक्षा का संपूर्ण विकास होगा। इसकी वजह से उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या घटेगी, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा यहां कम खर्चे में मिलेगी। एनईपी में वर्कशॉप, ट्रेनिंग कोर्स, और ऑनलाइन फैकल्टी विकास मॉड्यूल्स के जरिए फैकल्टी ट्रेनिंग में सुधार पर भी फोकस है, जिससे शिक्षकों के हुनर और प्रोफेशनल ज्ञान में सुधार होगा।
यह स्थापित तथ्य है कि रैंकिंग और रेटिंग उच्चतर शिक्षा की दुनिया का अहम हिस्सा बन गए हैं। ये मौजूदा और संभावित छात्रों, फैकल्टी, अभिभावकों, नियोक्ताओं और फैसला लेने वाले अधिकारियों की धारणाएं बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं।
पिछले दशक में रैंकिंग और रेटिंग को मजबूत करने की सरकार और निजी एजेंसियों की ठोस कोशिशों से संस्थानों को विश्वस्तरीय हैसियत हासिल करने के लिए प्रोत्साहन मिला है। उच्च संस्थानों के आकलन और बेंचमार्क तय करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में इसका भारी अभाव है। स्कूली व्यवस्था में भी ऐसे अध्यापन नतीजे होने चाहिए, जिसे आंका जा सके, ताकि उसमें सर्व-समावेशी पढ़ाई को बढ़ावा मिल सके।
एनईपी के प्रभावी अमल से ज्ञान का ऐसा जीवंत दायरा तैयार होगा, जो सबकी पहुंच, किफायती, जवाबदेही, बराबरी और गुणवत्ता के सिद्धांतों पर आधारित होगा। इससे देश में सभी लोगों के लिए एक समावेशी मंच मुहैया होगा, ताकि वे आगे बढ़ सकें और अपना योगदान दे सकें। इस तरह, न सिर्फ देश की वैश्विक छवि का विस्तार होगा, बल्कि शिक्षा व्यवस्था भी दुनिया में श्रेष्ठ से होड़ ले सकेगी।
रैंकिंग पद्धति
विश्वविद्यालयों के आकलन में अकादमिक और शोध उत्कृष्ठता, उद्योग जगत से जुड़ाव और प्लेसमेंट, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुविधाएं, प्रबंधन और दखिला, विविधता और व्यापक दायरा जैसे पांच मानदंडों का इस्तेमाल किया गया। इन पांच व्यापक मानदंडों को फिर कई उप-मानदंडों/सूचकांकों में बांटा गया, हरेक का कुल वजन में योगदान रहा। उसके बाद मानदंडों के अंक का हर पैमाने के अंक से मिलान किया गया, जिससे अंतिम कुल अंक 1,000 पहुंचा। रैंकिंग के डेटा हमारे सर्वे से जुटाए गए और फिर साक्ष्यों और भरोसेमंद तीसरे सूत्रों से उसका पुनरीक्षण किया गया। कुछ मामलों में हमने एआइएसएचई, एनएएसी, एनआइआरएफ जैसे भरोसेमंद डेटा स्रोतों पर भरोसा किया। यह रैंकिंग 2016 से 2021 के बीच के डेटा पर आधारित है। इसके बावजूद कोविड-19 के चलते उच्च शिक्षा में हुए उथल-पुथल के मद्देनजर, हमने संस्थानों को विभिन्न फॉर्मेट में डेटा देने की छूट दी, हमारे तय फॉर्मेट से इतर, ताकि हिस्सेदारी अधिकतम हो और डेटा देने में सुविधा हो। रैंकिंग पद्धति वर्षों के रिसर्च का नतीजा है, इस तथ्य के बावजूद हम इसमें संबंधित पक्षों की फीडबैक, आकदमिक प्रमुखों और उच्च शिक्षा के विशेषज्ञों, समीक्षाओं, अपने डेटा से उभरे रुझानों, उपलब्ध नए डेटा और कुलपतियों, डीन, शोधकर्ताओं, आकादमिकों तथा प्रमुख शिक्षा-शास्त्रियों से संवाद के आधार पर लगातार सुधार करते रहते हैं।