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26 मई 2025 · MAY 26 , 2025

आवरण कथा/पहलगाम हमलाः जिंदगियां मौन, सवाल मुखर

बैसरन घाटी में सैलानियों पर आतंकी कहर से कश्मीरियों पर भी दोहरी मार, सुरक्षा और खुफिया नाकामी पर उठे सवालों के बीच जवाबी कार्रवाई का इंतजार
पीड़ा का चेहरा बन गई विनय नरवाल की शोकमग्न पत्नी

दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में पहलगाम की खूबसूरत वादियों की बैसरन घाटी के घास के मैदान में, जो मिनी स्वीट्जरलैंड भी कहा जाता है, 22 अप्रैल को आतंकियों ने सैलानियों को निशाना बनाया। गोलियां चलने लगीं, तो घबराए लोग बैसरन से पहलगाम बाजार तक जाने वाले तीन-चार किलोमीटर लंबे रास्ते की ओर भागे। आतंकवादी हमले की खबर फैली, तो पहलगाम में दुकानों के शटर गिर गए। रेस्तरां मालिकों ने घबराए हुए पर्यटकों को मुफ्त भोजन की पेशकश की और वाहनों की व्यवस्था की ताकि वे कश्मीर में कहीं और सुरक्षित स्थानों पर पहुंच सकें या घर वापस जा सकें।

अगले दिन, 26 ताबूत तैयार थे। यह जम्मू-कश्मीर में आम लोगों पर सबसे घातक कुछेक आतंकवादी हमलों में एक था, जिसमें 24 देसी पर्यटक, एक नेपाली नागरिक और एक कश्मीरी टट्टू वाला अपनी जान गंवा बैठे। कई लोग इसमें गंभीर रूप से घायल हो गए। सुरक्षा एजेंसियों ने शुरू में द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) को इस हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया था, जिसका उसी दिन जिम्‍मेदारी लेने वाले किसी ई-मेल के मिलने का दावा किया गया था। टीआरएफ प्रतिबंधित पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा है। बाद में टीआरएफ ने इस हमले में किसी भी तरह का हाथ होने से इनकार कर दिया और उस ई-मेल को फर्जी बताया। 22 अप्रैल को हमले में बचे हुए अधिकांश लोगों और कई स्थानीय कश्मीरियों ने मीडिया को बताया कि भारी हथियारों से लैस फौजी वर्दी में आए आतंकवादियों ने हमला किया था, तब बैसरन घास के मैदान पर कोई सुरक्षा तैनाती नहीं थी। कहा जा रहा है कि रोज यहां 2,000 से 3,000 सैलानी पहुंते हैं, फिर भी वहां कोई सुरक्षाकर्मी या पुलिसवाला नहीं था। वहां पहुंचने वाला घुमावदार रास्ता कीचड़ भरी पगडंडियों, छोटी नदियों, घने जंगल और एक आर्मी कैंप से होकर गुजरता है। गौरतलब यह भी है कि यह घास का मैदान अमरनाथ यात्रा के मार्ग पर स्थित है, जो इस साल 3 जुलाई से शुरू हो रही है।

सुरक्षा चूक

सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि बैसरन में आम लोगों पर हमले के दौरान गंभीर और कई स्तरों पर सुरक्षा चूक सामने आई है। शायद सुरक्षा तंत्र यह मान बैठा था कि वहां “कोई आतंकवादी घुस नहीं सकता है” और यह भी कि आतंकवादी “पर्यटकों पर हमला नहीं करेंगे।” जिस दिन गोलियां चलीं, उस दिन बैसरन की ओर जाने वाले रास्ते के किनारे रहने वाले 55 वर्षीय अब्दुल मजीद अवान के परिवार को पहले तो पता ही नहीं चला कि लोग क्यों भाग रहे हैं। अवान की बेटी मुमताज अख्तर केवीके स्कूल में पढ़ती है। वह याद करती है, “जब हमारे शिक्षकों को हमारे घर के पास गोलीबारी की घटना के बारे में पता चला, तो उन्होंने छुट्टी कर दी।” मुमताज बताती है कि उसने कुछ पर्यटकों को पीने के लिए पानी दिया, वे लोग “बेतहाशा भाग रहे थे।”

घटनास्थल पर बिखरे पर्यटकों के एल्बम

घटनास्थल पर बिखरे पर्यटकों के एल्बम

करीब डेढ़-दो घंटे बाद घटनास्‍थल पर पहुंचे जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और सेना की आस-पास की इकाइयों के जवानों ने बैसरन इलाके की घेराबंदी की और तलाशी अभियान शुरू किया। अभियान का हिस्सा रहे एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि आतंकवादियों का पता लगाने के लिए ऑपरेशन में लगभग 15,000 जवान लगे हुए थे। 24 अप्रैल को सुबह 9.30 बजे भारतीय वायुसेना का एक एमआइ-17 हेलिकॉप्टर बैसरन में साफ आसमान के ऊपर मंडरा रहा था। सुबह 10 बजे तक, अर्धसैनिक बल के जवानों की एक टुकड़ी घटनास्थल पर पहुंच गई और बाद में, टोही मिशन पर दो हेलिकॉप्टर भी थे। टीम में शामिल एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि उन्होंने घटनास्थल के चारों ओर चौबीसों घंटे घेराबंदी बनाए रखी है और सुरक्षा बलों की कुछ कंपनियां आसपास के जंगलों में आतंकवादियों की तलाश कर रही हैं।

पहलगाम हमले के पीड़ित

बैसरन घाटी से सुरक्षित बचे कई पर्यटक तो पहलगाम से चले गए, लेकिन चेन्नै की डॉ. नयनतारा और गुजरात के निवासी विनो भाऊ जैसे लोग इतने भाग्यशाली नहीं थे। अनंतनाग में गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज ऐंड एसोसिएटेड हॉस्पिटल (जीएमसीएच) के आइसीयू) में डॉ. नयनतारा पति डॉ. परमेश्वरन की तीमारदारी में जुटी थीं। उन्‍होंने याद किया कि उनके पति को गोली लगी, तो वे चीख-चिल्‍ला रही थीं। उन्हें पहलगाम के सिविल अस्पताल से जीएमसीएच में स्थानांतरित कर दिया गया था।

घायलों का कश्मीर के कई अस्पतालों में इलाज चल रहा है। स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा मंत्री सकीना इटू ने कहा, ‘‘हमने निश्चित किया है कि हर पर्यटक को उपचार मिले। एक पर्यटक को पहलगाम से एयरलिफ्ट कर एसकेआइएमएस सौरा ले जाया गया है।’’ जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि घायलों को सर्वोत्तम संभव इलाज दिया जा रहा है। उन्होंने घोषणा की है कि राज्य सरकार हमले में जान गंवाने वालों के परिवारों को 10 लाख रुपये, गंभीर रूप से घायलों को दो लाख रुपये और मामूली घायलों को एक लाख रुपये देगी।

कानपुर के शुभम की पत्नी

कानपुर के शुभम की पत्नी

आतंकवादी हमले के बाद, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने लोगों की आवाजाही को सीमित करने के लिए कश्मीर के कई हिस्सों में प्रतिबंध लगा दिए हैं। हमले के 48 घंटे बाद तक और दिल्ली से श्रीनगर पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जब तक राष्ट्रीय राजधानी लौट नहीं गए, तब तक दक्षिण कश्मीर में पर्यटकों और गैर-स्थानीय लोगों की जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर आवाजाही को रोक दिया गया था।

सेना की सक्रियता

सुरक्षा के शीर्ष अधिकारियों की गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक हुई। 25 अप्रैल को उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी से कश्मीर में आतंकी ढांचे को कुचलने की कोशिश तेज करने के लिए प्रभावी कदम उठाने को कहा। अधिकारियों के अनुसार, एलजी ने सेना प्रमुख से कहा कि हमले में सीधे शामिल तत्‍वों और उन्‍हें मदद देने वालों को तुरंत पकड़ा जाए। 26 अप्रैल को पुलिस की टीमें श्रीनगर में फैल गईं और आतंकवादियों की मदद करने के आरोप में कई युवाओं को हिरासत में ले लिया।

एक पुलिस प्रवक्ता ने कहा कि उन्होंने श्रीनगर शहर में कई स्थानों पर ओवर ग्राउंड वर्कर्स (ओजीडब्‍लू) और आतंकवादियों के मददगारों के घरों की तलाशी ली। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि 65 युवाओं के घरों की तलाशी ली गई, उनमें से कई को पुलिस हिरासत में रखा गया है जबकि कुछ “न्यायिक हिरासत” में हैं।

पुलिस प्रवक्ता के मुताबिक, ‘‘जम्मू-कश्मीर पुलिस के अधिकारियों की देखरेख में कार्यकारी मजिस्ट्रेट और स्वतंत्र गवाहों की मौजूदगी में उचित कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार तलाशी ली गई। तलाशी सबूत जुटाने और खुफिया जानकारी जुटाने के उद्देश्य से हथियार, दस्तावेज और डिजिटल डिवाइस जब्त करने के लिए की गई।’’ हमले के बाद सुरक्षा बलों ने संदिग्ध आतंकवादियों के घरों को भी ढहा दिया, जिसमें एक कश्मीरी युवक आदिल हुसैन ठोकर का घर भी है। उसे हमले का एक सूत्रधार बताया जा रहा है। 24 अप्रैल की रात दक्षिण कश्मीर के बिजबेहरा में आदिल के घर को विस्‍फोटक से उड़ाया, तो इलाके में तीन अन्य घरों को भी नुकसान पहुंचा। कश्मीर के अन्य हिस्सों में भी संदिग्ध आतंकवादियों के घरों को ध्वस्त करने के दौरान कई अन्य घर क्षतिग्रस्त हो गए।

एक और कथित आतंकवादी आसिफ शेख के चचेरे भाई अरबिया नजीर का घर भी ढहाया गया। आसिफ ने बताया कि जब से पता चला कि वह आतंकवादियों के साथ जुड़ गया है परिवार का उससे कोई संपर्क नहीं था। उसकी बहन यासमिन अख्तर ने बताया कि उनके परिवार से पूछा गया था कि वह उनके संपर्क में था क्या।

घुड़सवारी कराने वाले मारे गए आदिल की मां

घुड़सवारी कराने वाले मारे गए आदिल की मां

एक दौर 2014 का था, तब प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान कश्मीर में सुरक्षा माहौल पर गंभीर सवाल उठाए थे। उन्होंने तब केंद्र में सत्तारूढ़ यूपीए सरकार से जवाब मांगा था। उन्होंने पूछा था, “आतंकवादी सीमा पार घुसने में कैसे कामयाब हो जाते हैं, उन्हें हथियार और धन कैसे मिल जाता है और आतंकवादियों और उनके आकाओं के बीच बातचीत में ‘नाकामी’ क्यों है? ऐसा क्यों है कि सभी सीमाएं केंद्र सरकार के नियंत्रण में हैं, लेकिन आतंकवादी अभी भी भारत में आने में कामयाब हो जाते हैं?” पहलगाम में हुए भयानक हमले के बाद, ये सवाल फिर उठ खड़े हुए हैं और जवाब की मांग कर रहे हैं, लेकिन अंतर यह है कि कम लोग ये पूछते दिख रहे हैं।

बैसरन में सुरक्षा के सवाल

बैसरन सीमा के किनारे जंगल हैं, जो एक तरफ अमरनाथ और अरु घाटी को जोड़ते हैं, तो दूसरी तरफ डोडा-किश्तवाड़ की सीमा पर स्थित कोकरनाग है; तीसरी तरफ अनंतनाग शहर है। पिछले कुछ वर्षों में पीर पंजाल और चिनाब घाटी जम्मू-कश्मीर में आतंक के नए ठिकाने की तरह उभरी है। पहाड़ी इलाके की वजह से आतंकवादियों की घुसपैठ आसान हो जाती है। सेना की 3 आरआर बटालियन इस क्षेत्र में तैनात है, जबकि सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में तैनात है। अनुच्छेद 370 हटाए जाने और उसके बाद राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में बदलने के बाद से, केंद्र सरकार के ही जिम्‍मे सुरक्षा और पुलिस-व्‍यवस्‍था है। वर्षों से इस इलाके में नजर रख रहे सुरक्षा विशेषज्ञ इस हमले को ‘‘सुरक्षा में बड़ी चूक’’ बताते हैं। पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) एस.पी. वैद्य ने कहा, ‘‘यह भारी सुरक्षा चूक थी। वहां पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था की जानी चाहिए थी। यह खुफिया नाकामी भी है।’’

चौकसीः श्रीनगर में क्लॉक टॉवर के पास राहगीर की तलाशी लेता जवान

चौकसीः श्रीनगर में क्लॉक टॉवर के पास राहगीर की तलाशी लेता जवान

बैसरन में सुरक्षा चूक पर सवाल उठाने में शुरू में हिचकिचाहट दिखाने वाले स्थानीय कश्मीरी नेता अब बोलने लगे हैं। इनमें सत्‍तारूढ़ और विपक्षी दलों के नेता दोनों शामिल हैं। उन्होंने सवाल उठाया है कि भारी तैनाती वाले क्षेत्र में, खासकर अमरनाथ यात्रा से पहले 26 लोगों की गोली मारकर हत्या कैसे की जा सकती है। 24 अप्रैल को नई दिल्ली में आयोजित सर्वदलीय बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में आतंकी हमले वाली जगह पर सुरक्षाकर्मियों की गैर-मौजूदगी के गंभीर मुद्दे पर भी चर्चा की गई।

अमरनाथ यात्रा के दौरान पहलगाम और उसके आसपास के इलाकों में सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए जाते हैं, लेकिन बैसरन हमेशा से ही रडार से दूर रहा है। स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों के बारे में कहा जाता है कि वे लापरवाह हो गए हैं, क्योंकि पर्यटकों पर शायद ही कभी हमला होता है, इसलिए उनके लिए कोई विशेष सुरक्षा व्यवस्था नहीं की गई। पहलगाम विकास प्राधिकरण (पीडीए) के लेखा अधिकारी बशीर खान कहते हैं कि बैसरन घाटी साल भर खुली रहती है, सिवाय सर्दियों के कुछ महीनों के लिए जब बर्फबारी होती है। पिछले साल अमरनाथ यात्रा के दौरान बैसरन को दो महीने के लिए बंद कर दिया गया था, लेकिन इसे बंद रखने का कोई निर्देश नहीं था। खान कहते हैं, ‘‘12 अप्रैल, 2024 को हमने घास के मैदान के रखरखाव का काम एक ठेकेदार को तीन साल के लिए 3 करोड़ रुपये में आउटसोर्स किया था। मैं भी वहां दो बार गया हूं, लेकिन कभी कोई सुरक्षा नहीं देखी, न अंदर, न रास्ते में, न बाहर। मौके पर जाने के लिए किसी विशेष इजाजत की जरूरत नहीं थी; टूर ऑपरेटर खुद को पंजीकृत करते हैं, लेकिन उन्हें किसी विशेष मंजूरी की दरकार नहीं होती है।’’ एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अन्य स्थानों पर बंद के दौरान भी यह इलाका शांत रहता था। इस लोकप्रिय पर्यटन स्थल पर कोई चिकित्सा या आपदा प्रबंधन टीम नहीं है, जो सभी पर्यटन स्थलों के लिए जरूरी है।

पहलगाम हमले के दौरान क्या हुआ?

रिपोर्ट के मुताबिक, बैसरन मैदान पर हमले के दिन, एक महिला ने इसकी सूचना दी थी, जिसके पति को आतंकवादियों ने गोली मार दी थी। इस सूचना के आधार पर पुलिस को सतर्क किया गया। जम्मू-कश्मीर पुलिस सबसे पहले घटनास्थल पर पहुंची, लेकिन उसके पहले स्थानीय लोगों और टट्टूवालों ने पर्यटकों को निकालने में मदद की। बैसरन मैदान से पहलगाम तक का कच्चा रास्ता बिना सुरक्षा के था। करीबी सीआरपीएफ कैंप लगभग पांच किमी दूर था और स्थानीय लोगों के अनुसार, सीआरपीएफ को घटनास्थल पर पहुंचने में लगभग डेढ़ घंटा लग गया। एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने कहा कि आतंकवादी पांच से छह के समूह में आए थे। उन्होंने कहा, ‘‘एक गेट पर पहरा दे रहा था और बाकी अंदर घुसे। ज्यादातर लोगों को सिर में गोली मारी गई।’’

उधर, पीडीए के प्रवेश द्वार पर साइनबोर्ड में प्रवेश शुल्क 35 रुपये बताया गया है, जो दर्शाता है कि प्रशासन को इस बात की पूरी जानकारी थी कि पर्यटकों की आमद किस पैमाने पर होनी है। एक अधिकारी ने कहा, ‘‘हर साल नीलामी के जरिए शुल्क वसूला जाता है और इस साल बोली 3 करोड़ रुपये को पार कर गई।’’ पहले यह वन विभाग के अधीन था, लेकिन बाद में इसे पीडीए को सौंप दिया गया। मुफ्ती मोहम्मद सईद के मुख्यमंत्री काल में इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए पर्यटन विभाग को सौंप दिया गया।

हालात जटिल इसलिए भी हैं कि पीडीए पर निगरानी के लिए फिलहाल कोई नहीं है। करीब एक महीने पहले सरकार ने अनंतनाग के अतिरिक्त उपायुक्त (एडीसी) इलियास अहमद का तबादला कर दिया था, जो पीडीए के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे थे। अब वे सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) में तैनाती का इंतजार कर रहे हैं। बदतर यह है कि इस क्षेत्र में सेना की कोई गश्त नहीं हुई, जो लिडरू में आरआर कैंप के अधिकार क्षेत्र में है। कैंप सिर्फ 25-30 मिनट की दूरी पर स्थित है। क्षेत्र के प्रभारी इकाई के कमांडिंग अधिकारी को तीन महीने पहले एक नए अधिकारी से बदल दिया गया था।

साख का सवालः हमले के बाद दिल्ली में सर्वदलीय बैठक में गृह मंत्री अमित शाह

साख का सवालः हमले के बाद दिल्ली में सर्वदलीय बैठक में गृह मंत्री अमित शाह

हमले को लेकर कई सवाल उठने के बाद विपक्ष अब यह आरोप लगा रहा है कि केंद्र और सुरक्षा एजेंसियां खतरे के स्तर का आकलन करने में नाकाम रहीं। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा कि “खुफिया नाकामी और सुरक्षा चूक” की जांच होनी चाहिए। जम्‍मू-कश्‍मीर में सम्‍मारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) भी जांच की मांग कर रही है। एनसी के मुख्य प्रवक्ता तनवीर सादिक ने कहा कि उनकी पार्टी ने पहलगाम हमले के बाद पहले कुछ दिनों में “सुरक्षा चूक” का सवाल नहीं उठाया, क्योंकि देश शोक का माहौल था। उन्होंने कहा, “यह इंसानियत पर हमला है। हमें लगता है कि देश को अपने सभी संसाधनों को एक जगह लगाने और पहलगाम में निर्दोष लोगों की हत्या करने वाले बर्बर लोगों की तलाश करने की जरूरत है। यह बेहद जरूरी है, लेकिन यह भी तथ्य है कि यह सुरक्षा चूक हो सकती है। देश के शीर्ष नेतृत्व को यह तय करना चाहिए कि कहीं न कहीं जिम्मेदारी तो आए।” उन्होंने कहा कि “यह एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां सुरक्षा नहीं है। इसकी जांच होनी चाहिए और इतनी बड़ी सुरक्षा चूक के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह बनाना चाहिए।”

फिलहाल जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बल हाई अलर्ट पर हैं। कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक वी.के. बिरदी ने कहा कि पुलिस ने अब तक पूरे कश्मीर में 1,900 लोगों को हिरासत में लिया है और उनसे पूछताछ की जा रही है। दक्षिण और उत्तरी कश्मीर में कम से कम नौ संदिग्ध आतंकवादियों के घरों को उड़ा दिया गया है और आगे भी कई घरों को ध्वस्त किया जा सकता है। पहलगाम हमले के बाद भारत-पाक के बीच तनाव बढ़ने और आरोपों और खंडन के बाद दोनों देशों की सेना के बीच नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर गोलीबारी हुई है। संयुक्त राष्ट्र ने दोनों पड़ोसियों को बड़े सैन्य संघर्ष से बचने के लिए ‘‘अधिक संयम’’ बरतने की चेतावनी दी है।

इस बीच, पहलगाम शहर वीरान नजर आ रहा है। अमूमन इस मौसम में भारी भीड़ वाली सड़कों और बाजार में अजीब-सी खामोशी छाई हुई है। कुछेक छुट-पुट पर्यटक बाद में पहुंचे भी, लेकिन ज्‍यादातर होटल और रेस्तरां खाली पड़े हैं। होटल मालिक और कर्मचारी काम के नुकसान की भयावह आशंका से घिरे हुए हैं। बैसरन में हमले में जान गंवाने वाले टट्टूवाले सैयद आदिल के दोस्त मकबूल खान (30 वर्ष) ने कहा कि ‘‘काम का नुकसान लंबे समय तक रह सकता है और इस बात की उम्‍मीद कम है कि पर्यटक जल्द ही पहलगाम लौटेंगे।’’ पहलगाम के यानर इलाके में एक स्थानीय रेस्तरां मालिक सबजार अहमद डार ने कहा कि यह हमला ऐन पर्यटन सीजन में हुआ है। डार ने अपने बंद पड़े रेस्तरां की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘होटलों में 100 फीसद कारोबार चल रहा था।’’

सैयद आदिल के पिता सैयद हैदर शाह ने याद किया कि कैसे 22 अप्रैल को उनका अपने बेटे से संपर्क टूट गया था क्योंकि आतंकवादियों के गोली मारने के बाद आदिल के मोबाइल फोन पर बार-बार कॉल करने पर भी कोई जवाब नहीं मिला। आंसू भरे स्वर में हैदर शाह ने कहा, ‘‘मेरा बेटा घुड़सवारी से रोजाना करीब 300 से 400 रुपये कमाता था। हमने परिवार का कमाने वाले एक सदस्य को खो दिया है।’’ कश्मीर में कई लोगों की रोजी-रोटी दांव पर लगी हुई है। अनंतनाग के हापटनाड इलाके से करीब 200 युवा रोजाना पहलगाम में घुड़सवारी कराने के लिए आते थे। उनकी रोजाना की कमाई करीब 500-700 रुपये हुआ करती थी, लेकिन अब, जब पर्यटक ही नहीं हैं, तो काम का सवाल ही पैदा नहीं होता। इस हमले के बाद कई लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। उनके पास खुद का और अपने परिवार का भरण-पोषण करने का कोई साधन नहीं है।

 

 

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