कहावत है कि जो जितना सराहा जाता है, कई बार वही फंदा बन जाता है। जिस आगरा मॉडल की चर्चा ऐसी हुई कि केंद्र ने कोविड-19 से निपटने के लिए उसे भीलवाड़ा, केरल मॉडल के साथ मिसाल बनाने की कोशिश्ा की, उसकी पोल भाजपा के ही एक मेयर की चिट्ठी और एक क्वारेंटाइन केंद्र की बदइंतजामी के वायरल हुए वीडियो ने ऐसी खोली कि उत्तर प्रदेश की आदित्यनाथ सरकार की तमाम कोशिशों पर सवाल खड़े होने लगे। हालांकि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ पिछले एक महीने से लगभग हर रोज अपने सरकारी आवास पर अफसरों के साथ बैठक कर प्रदेश में कोरोना संक्रमण और उससे जुड़ी समस्याओं पर चर्चा करते रहे हैं। उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों के नेतृत्व में स्वास्थ्य, राहत और अलग-अलग समस्याओं पर काम करने के लिए 11 टीमें बना रखी हैं। हर रोज होने वाली इस बैठक में मुख्यमंत्री कोरोना पर काबू करने में आने वाली समस्याओं के हर नए पहलू पर अपनी टीम से विमर्श करते हैं, उन्हें टास्क देते हैं और पिछले टास्क की प्रगति की समीक्षा करते हैं। मुख्यमंत्री की इस सक्रियता की वजह से अफसरों के बीच सख्ती का संदेश गया है।
लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में मुख्यमंत्री ने अपने नोएडा दौरे के समय न केवल वहां के डीएम बीएम सिंह को फटकार लगाई थी, बल्कि उनका तबादला भी राजस्व विभाग में कर दिया था। इससे भी अफसरों में सख्ती का संदेश गया। एक तरफ अफसरों पर सख्ती और दूसरी ओर कोरोना को हराने के लिए मुख्यमंत्री की चुस्ती ने प्रदेश की सीमा के बाहर एक कुशल प्रशासक के रूप में उनकी छवि को गढ़ने का काम किया। आनंद विहार की सीमा से पैदल चलकर यूपी में दाखिल होने वाले मजदूरों को घर भेजने का सवाल हो या कोटा में फंसे प्रदेश के विद्यार्थियों से लेकर दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों को बस से घर वापसी की उनकी मुहिम, मुख्यमंत्री की प्रशंसा उनके विरोधी भी करने लगे। कोटा में फंसे छात्रों की वापसी के फैसले पर भी उन्हें विपक्षी नेताओं की तारीफ मिल चुकी है।
अप्रैल का आखिरी हफ्ता आते-आते आदित्यनाथ की छवि को करारा झटका दिया आगरा के एक मेयर नवीन जैन की चिट्ठी ने। नवीन जैन ने अपने जिला प्रभारी मंत्री और प्रदेश के डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा को चिट्ठी लिखकर जो सवाल उठाए हैं, वह कोरोना संक्रमण से लड़ने की सरकार की तैयारियों की पोल खोलते हैं। प्रदेश में कोरोना संक्रमण का केंद्र बने आगरा से उठे आरोपों के इस गुबार में यह चिट्ठी मुख्यमंत्री की सक्रियता और सख्ती दोनों पर सवाल उठाती है। इस चिट्ठी के बाद विपक्षी नेताओं ने भी योगी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कोरोना पर काबू पाने में सरकारी कोशिशों को कटघरे में खड़ा कर दिया है।
नवीन जैन ने साफ तौर पर कहा है कि आगरा चीन का वुहान बनने की कगार पर खड़ा है। शहर के हॉट स्पाॉट में बनाए गए क्वारेंटाइन सेंटरों में न तो समय से टेस्ट कराए जा रहे हैं, न ही वहां लाए गए मरीजों को समय से खाना-पानी और स्वास्थ्य सुविधाएं मिल रही हैं। नवीन ने यह भी लिखा है कि लॉकडाउन के दौरान जरूरी सामान की 'डोर स्टेप डिलीवरी' के दावे भी फेल साबित हुए। जरूरी सामान की कालाबाजारी का आरोप भी उन्होंने स्थानीय प्रशासन पर मढ़ दिया है।
ये सब ऐसे सवाल हैं, जो मुख्यमंत्री की रोज-ब-रोज होने वाली बैठकों की चिंताओं और दावों का उपहास उड़ाते हैं। ये सवाल अगर विपक्षी दल के नेताओं की ओर से उठाए जाते तो मुमकिन है कि उन्हें राजनैतिक मानकर भुला दिया जाता। लेकिन नवीन आगरा में भाजपा के कार्यकर्ता और मेयर हैं। इतना ही नहीं, वे अपने शहर के मेयर होने के साथ ही भारतीय महापौर परिषद के अध्यक्ष भी हैंं। हालांकि भाजपा के प्रवक्ता डाॅ. चंद्रमोहन आगरा के मेयर की शिकायत को एक जनप्रतिनिधि के नाते उनकी चिंता बताते हैं। डॉ. चंद्रमोहन कहते हैं, “आगरा में बड़ी संख्या में तबलीगी जमात के आयोजन से लौटे लोगों का आवागमन हुआ, जिसके कारण वहां संक्रमण बहुत तेजी से फैला। इस वजह से वहां इस समस्या ने बड़ा रूप धारण किया। आगरा के जनप्रतिनिधि होने के नाते वहां के मेयर ने जो चिंता जताई, उसको प्रशासन ने गंभीरता से लिया है और स्थिति को संभाला है। अब वहां स्थितियां काफी हद तक नियंत्रण में हैं।”
हालांकि आगरा निवासी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नेता सीपी राय कहते हैं, “आगरा या पूरे देश में इस संक्रमण का जो विस्तार है, उसे लेकर मेरा नजरिया बिलकुल अलग है। मैं इसे इतना गंभीर नहीं मानता कि इसके लिए सबको घरों में बंद कर दिया जाए। मैं तो शुरू से ही लॉकडाउन के विरोध में हूं। इसकी जरूरत ही नहीं थी। आगरा के एक क्वारेंटाइन केंद्र में आज कोरोना के मरीजों के साथ दुर्व्यवहार की जो तसवीरें सामने आ रही हैं, वे जरूर प्रशासनिक अदूरदर्शिता का नतीजा हैं।” राय उस वीडियो का जिक्र करते हैं, जिसमें कोरोना संक्रमण के शक में क्वारेंटाइन सेंटर में लाए गए लोगों का हाल दिखाया गया है। इस वीडियो में साफ दिख रहा है कि क्वारेंटाइन सेंटर के गेट पर पानी की बोतलों को पैकिंग समेत गेट पर छोड़ दिया गया है और कथित रूप से कोरोना संक्रमित लोग गेट की जालियों से हाथ निकालकर उन्हें लेने की होड़ करते दिख रहे हैं। सवाल उठ रहे हैं कि अगर मुख्यमंत्री की टीम इलेवन इतने कम संख्या में मरीजों को हैंडल कर पाने में इस कदर लाचार दिख रही है तो इस संख्या के विस्फोट होने पर क्या हालात हो सकते हैं। घटना के बाद सरकार ने आगरा के बीडीओ मनीष वर्मा को सस्पेंड कर दिया, लेकिन सवाल सिर्फ मरीजों के साथ दुर्व्यवहार या क्वारेंटाइन सेंटर की अव्यवस्थाओं का ही नहीं है। गोपामऊ के भाजपा विधायक श्याम प्रकाश मेडिकल उपकरण और सामान खरीदने के लिए विधायक निधि से दिए गए 25 लाख रुपये वापस मांग रहे हैं। इसके लिए श्याम प्रकाश ने हरदोई के मुख्य विकास अधिकारी को बाकायदा चिट्ठी लिखी है। उनका आरोप है कि इस तरह के सामान की खरीद में भारी भ्रष्टाचार किया जा रहा है।
आदित्यनाथ सरकार का प्रशासन एक तरफ अपने ही पार्टी के लोगों के निशाने पर है, तो दूसरी ओर विपक्षी नेता भी सवाल उठा रहे हैं। उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते हैं, “चाहे पीपीई का मामला हो या वेंटिलेटर, आइसीयू की व्यवस्था का सवाल, सभी मामलों में सूबे की यह सरकार पूरी तरह फेल है। कोई बताएगा कि आगरा में क्वारेंटाइन किए गए लोगों के साथ बुरा बर्ताव करने वाले अफसरों के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है।” सवाल यह भी है कि आगरा मॉडल को केंद्र सरकार भी बेहतर बता रही थी, उसकी खामियां उजागर होने के बाद योगी सरकार दोहरे संकट में आ सकती है।
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अप्रैल का आखिरी हफ्ता आते-आते आदित्यनाथ की छवि को करारा झटका दिया आगरा के एक मेयर नवीन जैन की चिट्ठी ने