आम आदमी, उद्योग जगत, राजनैतिक दल, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री सबकी जुबान पर एक ही सवालः मोदी सरकार कब राहत पैकेज का ऐलान करेगी और क्या वह पैकेज दुनिया की बड़ी और उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों की तर्ज पर होगा। देशव्यापी लॉकडाउन का दूसरा दौर भी खत्म हो रहा है। वजह यह कि लॉकडाउन के इन 40 दिनों में गरीब-गुरबों, रोज कमाने-खाने वाले लोगों, प्रवासी मजदूरों के आगे तो भुखमरी की हालत है, संगठित क्षेत्र के वेतनभोगी भी वेतन कटौती से मुकाबिल हैं और बड़े उद्योग भी भारी घाटे की जद में हैं। ऐसे में आर्थिक दुर्दशा मुंह बाए खड़ी है और देश का सामाजिक ताना-बाना बिखरने का खतरा पैदा हो गया है। लेकिन सरकार बेफिक्र लगती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 अप्रैल को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ लॉकडाउन के दौर की चौथी बातचीत में कहा, अर्थव्यवस्था की फिक्र की जरूरत नहीं। वैसे, अभी तक सरकार ने ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही राहत दी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 27 मार्च को 22 अरब डॉलर (करीब 1.7 लाख करोड़ रुपये ) का जो राहत पैकेज का ऐलान किया था, उसमें नया कुछ ढूंढे ही मिलता है। बहुत सारे प्रावधान तो इस साल बजट के ही हैं, जिन्हें दोबारा पैकेज की तरह ऐलान कर दिया गया। वह भी हमारी जीडीपी का महज 0.8 फीसदी है।
इसके उलट दूसरे देशों की तत्परता और पैकेज की बानगी देखिए। अमेरिका ने जीडीपी का 10 फीसदी, जर्मनी ने 33 फीसदी, फ्रांस ने 14 फीसदी, जापान ने 19 फीसदी की राशि राहत पैकेज के रूप में दी है। यही नहीं, बांग्लादेश ने 2.5 फीसदी राशि राहत पैकेज अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए दिया है। हमारे यहां उद्योग जगत, अर्थशास्त्री से लेकर राजनैतिक दल सभी 5-6 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की जरूरत बता रहे हैं। सरकार बार-बार यही संकेत देती रही है कि जल्द ही राहत पैकेज का ऐलान होगा। लेकिन चिंता की बात यह है कि पैकेज में हो रही देरी संकट को गहरा कर रही है। दूसरे देशों ने तो मार्च में ही विस्तृत पैकेज का ऐलान कर दिया था। अमेरिका ने 26 मार्च, जर्मनी ने 23 मार्च, बांग्लादेश ने 3 अप्रैल और जापान ने 7 अप्रैल को ऐलान कर दिया। ऐसे में सरकार की देरी पर भी सवाल उठ रहे हैं। पैकेज में देरी पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी.चिदंबरम का सवाल है “सरकार या तो बहुत ज्यादा सोच रही है या फिर सोच ही नहीं रही है। मौजूदा संकट साहस भरे कदम उठाने का है। सरकार को तुरंत 5-6 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का बिना समय गंवाए ऐलान कर देना चाहिए।” कांग्रेस पार्टी ने भी सरकार से बड़े राहत पैकेज की मांग करते हुए कहा है, “गरीब तबके को कैश ट्रांसफर के जरिए 7500 रुपये की तुरंत सहायता दी जाए।” कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है, “छोटे और मझोले उद्योग को जल्द से जल्द 2 लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज देना चाहिए।”
संकट कितना गंभीर है, इसे दुनिया भर की एजेंसियों के आकलन से भी अहसास होता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ), विश्व बैंक, मूडीज, फिच जैसी एजेंसियां कोरोना संकट से पहले भारत की ग्रोथ रेट 2020-21 में 5-6 फीसदी के बीच रहने का अनुमान लगा रही थी। उन्हीं एजेंसियों ने अब ग्रोथ रेट का अनुमान घटाकर दो फीसदी से लेकर 0.8 फीसदी तक कर दिया है। फिच ने इस अवधि के लिए ग्रोथ का अनुमान 0.8 फीसदी कर दिया है। उद्योग जगत के संगठन एसोचैम के सेक्रेटरी जनरल अशोक सूद का कहना है, “संकट इतना गंभीर है कि सरकार को तीन लक्ष्य लेकर चलना चाहिए। कर्मचारियों और श्रमिकों को वेतन की दिक्कत न आए, इसलिए सरकार की तरफ से तुरंत राहत मिलनी चाहिए। दूसरे, कंपनियों को नकदी की दिक्कत न आए, यह भी देखना चाहिए। तीसरे, मांग बढ़ाने के लिए सरकार को निवेश करना चाहिए। इन सबके लिए 200-300 अरब डॉलर के राहत पैकेज की दरकार होगी, जो जीडीपी के करीब 10 फीसदी के बराबर है। यह पैकेज दो हिस्सों में अगले 12-18 महीने में चरणबद्ध तरीके से लागू करना चाहिए।”
गहराते संकट का अहसास सरकार और सत्तारूढ़ दल को भी है। भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री को अर्थव्यवस्था के रिवाइवल के लिए कई अहम सुझाव दिए हैं। सूत्रों के अनुसार, पार्टी ने मौजूदा भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव, बिजनेस करने की लागत में कमी लाने संबंधी उपाय, कम आय वालों को वित्तीय सहायता और खासकर ठेका मजदूरों को कार्य स्थल पर आवास और उनके बच्चों के लिए स्कूल वगैरह का प्रबंध करने की नीति बनाने का सुझाव दिया है।
लॉकडाउन में श्रमिकों को हो रही दिक्कतों पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर विवेक कुमार कहते हैं, “लॉकडाउन के ऐलान से साफ है कि सरकार ने यह सोचा ही नहीं कि गरीब का क्या होगा। आखिर महानगरों के स्लम में ही 1.5-2 करोड़ लोग रहते हैं। इनमें ज्यादातर लोग अपने घरों को छोड़कर शहरों में आकर अपना भेट भर रहे हैं। अचानक हुए लॉकडाउन से उनकी स्थिति काफी खराब हो गई है। उनके सामने केवल जीवन बचाने का संकट नहीं, बल्कि उनकी आजीविका पर भी संकट खड़ा हो गया है। साथ ही इस दिक्कत में उन्हें यह भी समझ में आ रहा है कि कैसे उनकी अनदेखी की जा रही है, जिससे भारी असंतोष पैदा हो सकता है।”
असल में देश का 90 फीसदी श्रमिक वर्ग असंगठित क्षेत्र में काम करता है, जिनकी आजीविका ज्यादा छोटे और मझोले उद्योग-धंधों पर टिकी है। लॉकडाउन की वजह से इस सेक्टर पर सबसे ज्यादा प्रतिकूल असर पड़ा है। इसी को देखते हुए उद्योग जगत के संगठन फिक्की ने छोटे और मझोले उद्योगों (500 करोड़ रुपये तक टर्नओवर वाली कंपनियां) को राहत पैकेज के तहत एक साल के लिए ब्याज मुक्त और कोलैटरल फ्री लोन (बिना गारंटी लिए, दिया जाने वाला कर्ज) देना चाहिए। यह कर्ज इस शर्त पर कंपनियों को मिलना चाहिए कि वे अगले एक साल तक अपने कर्मचारियों की छंटनी न करें। इसी तरह लॉकडाउन के तहत कर्ज पर मिली मोरेटोरियम सुविधा को भी बढ़ाना चाहिए। जीएसटी सहित दूसरी टैक्स देनदारियों को अगले छह महीने तक टाल देना चाहिए। इसके अलावा कर्ज नहीं चुकाने पर गैर निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) के नियमों के तहत 90 दिन की सीमा को बढ़ाकर 360 दिन करने की जरूरत है।
ऑल इंडिया एसोसिएशन ऑफ इंडस्ट्रीज के प्रेसिडेंट विजय कलंतरी का कहना है, “छोटे उद्योग-धंधों में ज्यादातर कामगार ऐसे हैं जिनकी कमाई रोजाना होती है। उनके पास प्रॉविडेंट फंड की सुविधा नहीं है। ऐसे में सरकार द्वारा पीएफ से पैसे निकालने की सुविधा का उन पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। इस समय उनको डायरेक्ट कैश ट्रांसफर की जरूरत है। लॉकडाउन लंबा खिंचने से उनकी आजीविका पर संकट आ गया है। इससे छोटे और मझोले उद्योगों को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान होने की आशंका है। गंभीर होती स्थिति को देखते हुए सरकार को चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन खत्म करना चाहिए।
एक सवाल केंद्र सरकार के खर्चों में हो रही कटौती पर भी उठ रहा है। हाल ही में सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के बढ़े हुए महंगाई भत्ते पर रोक लगा दी है। यह रोक जून 2021 तक लागू रहेगी। इस संबंध में माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कई सारे सवाल उठाए हैं। उनका कहना है, “सरकार को गैर-जरूरी खर्चों में तुरंत कटौती करनी चाहिए। यह बहुत आश्चर्य की बात है कि इतने बड़े संकट में भी सरकार सेंट्रल विंस्टा प्रोजेक्ट, बुलेट ट्रेन जैसे गैर जरूरी प्रोजेक्ट, मूर्तियां बनाने को रोकने की बात नहीं कर रही है। जबकि इस समय उसकी प्राथमिकता महामारी से लड़ने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा पर खर्च बढ़ाने की होनी चाहिए। इसी तरह अचानक हुए लॉकडाउन की वजह से प्रवासी श्रमिकों के सामने अाजीविका और भोजन का संकट खड़ा हो गया है। जब केंद्रीय गोदामों में प्रचुर मात्रा में अनाज का भंडार है तो सरकार को हर जरूरतमंद को मुफ्त भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए।” कांग्रेस भी यह मुद्दा उठा चुकी है। साफ है कि लॉकडाउन ने आर्थिक और सामाजिक स्तर पर गहरी चोट पहुंचाई है। ऐसे में कोविड संकट के बीच सरकार को तुरंत राहत पैकेज देकर मरहम लगाने की जरूरत है। इसमें देरी बड़े स्तर पर चोट पहुंचा सकती है।
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संकट गंभीर: कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और राहुल गांधी