रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने 22 मई को मौद्रिक नीति की समीक्षा के बाद जब कहा कि 2020-21 में भारत की विकास दर शून्य से नीचे रह सकती है, तो यह एक तरह से इस बात की स्वीकारोक्ति थी कि राहत पैकेज के नाम पर केंद्र सरकार की घोषणाओं का तत्काल कोई असर नहीं होने वाला है। लॉकडाउन के चलते मैन्युफैक्चरिंग एमएसएमई के अलावा होटल, रेस्तरां, पर्यटन, कंस्ट्रक्शन और ऑटोमोबाइल जैसे सेक्टर में करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं। सरकार ने चुनिंदा उद्योगों के लिए राहत का ऐलान किया है, लेकिन इनसे मांग नहीं बढ़ेगी। विशेषज्ञों के अनुसार सरकार के फैसले आपूर्ति बढ़ाने वाले हैं, जबकि जरूरत आपूर्ति और मांग दोनों बढ़ाने की थी। उनका कहना है कि अगर सरकार ने जल्दी ही मांग बढ़ाने का पैकेज घोषित नहीं किया तो अर्थव्यवस्था की हालत और बिगड़ जाएगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को ऐलान किया कि अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये का ‘आत्मनिर्भर भारत’ पैकेज दिया जाएगा। इसके बाद पांच दिनों तक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पैकेज का खुलासा करती रहीं। हालांकि उन्होंने पांच दिनों में ऐसा कुछ नहीं कहा जिसे एक दिन में नहीं कहा जा सकता था। आखिर इससे ज्यादा घोषणाएं बजट में कुछ ही घंटों में कर दी जाती हैं। उन्होंने पैकेज के रूप में 20.97 लाख करोड़ रुपये गिना दिए, पर इसमें कुछ घोषणाएं पुरानी थीं तो कुछ तथाकथित सुधारवादी फैसले थे।
इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज में मैलकम आदिशेषैया चेयर प्रोफेसर अरुण कुमार कहते हैं, “पैकेज में तमाम नीतियां बदलने की बात है जिनका असर लंबे समय में दिखेगा, जबकि जरूरत तत्काल राहत की है। इस पैकेज के जरिए सत्तारूढ़ पार्टी अपने उस एजेंडे को बढ़ा रही है जिसे वह 2014 में सत्ता में आने के बाद से लागू नहीं कर पाई थी।” लॉकडाउन से प्रभावित एक बड़े वर्ग के लिए पैकेज में बहुत थोड़ी बाते हैं। 22 राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पैकेज को देश के लिए एक क्रूर मजाक बताया। दूसरे दलों ने भी इनकम टैक्स दायरे से बाहर के परिवारों को डायरेक्ट कैश ट्रांसफर देने की मांग की। जब कर्ज को भी राहत पैकेज बताने पर सवाल उठे तो वित्त मंत्री ने दलील दी कि भारत ऐसा करने वाला एकमात्र देश नहीं है। लेकिन ऐसा कहते वक्त वित्त मंत्री यह भूल गईं कि किसी भी देश के पैकेज का 90 फीसदी हिस्सा कर्ज नहीं है। राजनीतिक विरोधियों की बात छोड़ भी दें तो शायद ही किसी अर्थशास्त्री या उद्योग विशेषज्ञ ने इसे राहत पैकेज माना हो। प्रधानमंत्री ने कहा था कि राहत पैकेज जीडीपी का 10 फीसदी है, लेकिन विशेषज्ञों ने इसे 0.7 से 1.3 फीसदी तक माना है। आउटलुक से बातचीत में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर लेबर में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा ने कहा कि पैकेज वास्तव में जीडीपी का एक फीसदी है। एचडीएफसी बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री अभीक बरुआ ने आउटलुक से कहा, “मांग बढ़ाने के लिए कुछ न कुछ सपोर्ट होना चाहिए। गरीब कल्याण योजना के अलावा भी कमजोर वर्ग को सीधी मदद की जरूरत है। जनधन खातों के जरिए नकदी ट्रांसफर की जानी चाहिए। मेरे विचार से मांग और आपूर्ति दोनों के लिए कदम उठाए जाते तो बेहतर होगा।”
क्या है राहत पैकेज
वित्त मंत्री ने सबसे पहले 26 मार्च को 1.7 लाख करोड़ रुपये की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का ऐलान किया। इसमें सरकार का अतिरिक्त खर्च करीब 85,000 करोड़ का ही था, क्योंकि पीएम किसान फंड के 17,380 करोड़ रुपये का प्रावधान तो पहले ही बजट में कर लिया गया था। इसी तरह बिल्डिंग और कंस्ट्रक्शन कर्मचारियों की मदद के लिए 31,000 करोड़ रुपये के विशेष फंड का इस्तेमाल किया गया। आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत पांच दिनों में 11 लाख करोड़ रुपये से अधिक की घोषणाएं की गईं, लेकिन वास्तव में इन पर सरकार के 1.3 लाख करोड़ रुपये ही खर्च होंगे। बाकी घोषणाएं कर्ज देने और तरलता बढ़ाने से संबंधित हैं। रिजर्व बैंक ने आठ लाख करोड़ रुपये की तरलता बढ़ाने के उपाय किए, सरकार ने उसे भी अपने पैकेज में शामिल किया। पैकेज की राशि किस तरह बढ़ाई गई है, इसका एक उदाहरण देखिए। अनेक रणनीतिक जगहों के ऊपर से विमान उड़ाने की इजाजत नहीं होती। इसलिए कई रूटों पर एयरलाइंस को लंबा रास्ता तय करना पड़ता है। वित्त मंत्री ने कहा कि ये बंदिशें कम की जाएंगी जिससे एयरलाइंस के 1,000 करोड़ रुपये बचेंगे। इस 1,000 करोड़ को सरकार ने अपने पैकेज में शामिल कर लिया।
हालांकि यह कहना भी अतिशयोक्ति होगी कि सप्लाई बढ़ाने वाले पैकेज से कुछ नहीं होगा। इससे कुछ हद तक मदद मिलेगी, क्योंकि वर्किंग कैपिटल की समस्या साल-डेढ़ साल से चली आ रही है। एमएसएमई कर्ज न मिलने की शिकायत कर रहे थे। लॉकडाउन के दौरान कामकाज बंद रहने के कारण उन्हें वर्किंग कैपिटल की काफी जरूरत पड़ेगी। बैंक डिफॉल्ट के डर से पहले लोन देने से हिचकते थे। अब जब सरकार गारंटी दे रही है तो एमएसएमई को लोन बढ़ने की उम्मीद है।
वित्त मंत्री ने एमएसएमई के लिए 100 फीसदी सरकारी गारंटी वाले तीन लाख करोड़ रुपये के कर्ज, इक्विटी में मदद के रूप में 20 हजार करोड़ रुपये और 50,000 करोड़ रुपये के फंड आफ फंड की घोषणा की। उन्हीं के मुताबिक ही इनसे 47 लाख एमएसएमई को लाभ मिलेगा, जबकि एमएसएमई मंत्रालय के अनुसार देश में 6.3 करोड़ एमएसएमई हैं। इस अतिरिक्त कर्ज के साथ एमएसएमई की जो नई परिभाषा बनाई गई है, उससे मझोले आकार के उपक्रम ही स्कीम का ज्यादा फायदा लेंगे। बरुआ के अनुसार इस पैकेज का मकसद यह है कि फंड की कमी से कंपनियां बंद न हो जाएं। लॉकडाउन हटाए जाने के बाद जब कंपनियां दोबारा कामकाज शुरू करें तो उनके सामने फंडिंग की समस्या न हो।
छोटी कंपनियों के लिए भविष्य निधि में नियोक्ता और कर्मचारी का अंशदान तीन महीने तक सरकार करेगी, लेकिन इसके साथ रखी गई शर्तों के कारण बहुत कम कंपनियों को ही इसका लाभ मिल सकेगा। एनबीएफसी, हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों और माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं के लिए विशेष लिक्विडिटी योजनाएं लाई गई हैं, लेकिन जब मांग नहीं होगी तो इनसे कर्ज लेगा कौन। कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट मजबूत करने के लिए कई घोषणाएं हैं, जिनका तत्काल कोई असर नहीं होगा। वित्त मंत्री ने कई रणनीतिक सेक्टर को निजी कंपनियों के लिए खोलने और सरकारी कंपनियों में निजीकरण बढ़ाने की भी घोषणा की। यह कैसे राहत पैकेज है, विशेषज्ञ अभी तक समझ नहीं पाए हैं।
राज्य लगातार उधारी सीमा सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के तीन फीसदी से बढ़ाकर पांच फीसदी करने की मांग कर रहे थे। केंद्र सरकार ने इसे माना जरूर, लेकिन साथ में कई शर्तें जोड़ दीं। उधारी सीमा 0.5 फीसदी बढ़ाने के लिए कोई शर्त नहीं होगी। इसके बाद एक फीसदी की सीमा को 0.25 फीसदी के चार हिस्सों में बांटा गया है और इसे शहरी निकायों के राजस्व, एक देश एक राशन कार्ड, विद्युत वितरण में सुधार और इज ऑफ डूइंग बिजनेस से जोड़ दिया गया है। ये सुधार तत्काल होने से रहे। जब राज्य इनमें से तीन लक्ष्य हासिल कर लेंगे तब वे बाकी 0.5 फीसदी उधारी ले सकेंगे।
कॉरपोरेट को राहत का इंतजार
लॉकडाउन से होटल, रेस्तरां, एयरलाइंस, ऑटोमोबाइल, पर्यटन जैसे सेक्टर ज्यादा प्रभावित हुए हैं। लाखों छोटे प्रतिष्ठानों के बंद होने की नौबत आ गई है, पर पैकेज में इनके लिए कुछ भी नहीं है। रेटिंग एजेंसी इक्रा का अनुमान है कि भारतीय एयरलाइंस को रोजाना एक करोड़ डॉलर का नुकसान हो रहा है और उन्हें दो वर्षों में 35 हजार करोड़ रुपये अतिरिक्त फंडिंग की जरूरत पड़ेगी। फेडरेशन ऑफ एसोसिएशन इन इंडियन टूरिज्म एंड हॉस्पिटैलिटी का कहना है कि सरकार से कोई मदद नहीं मिलने के कारण छोटी कंपनियां दिवालिया हो जाएंगी और लाखों लोग बेरोजगार होंगे। इन उद्योगों को लगता है कि लोगों के व्यवहार में जो तब्दीली आई है उसकी वजह से लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी बिजनेस सामान्य होने में काफी वक्त लगेगा। इसलिए ये अलग पैकेज की मांग कर रहे हैं।
सरकार ने एक साल तक दिवालिया प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। इससे उन कंपनियों को जरूर राहत मिलेगी जिन्होंने बैंकों से कर्ज ले रखा है, लेकिन ज्यादातर कंपनियां यही कह रही हैं कि उन्हें तत्काल बेलआउट पैकेज नहीं मिला तो उनके सामने धंधा बंद करने के सिवाय और कोई चारा नहीं रह जाएगा।
राहत वाली घोषणाएं बहुत थोड़ी हैं। इनमें मनरेगा के लिए 40,000 करोड़ का बजट बढ़ाना सबसे प्रमुख है। इसके अलावा गरीबों और प्रवासी मजदूरों को मुफ्त अनाज, जनधन खातों में कैश ट्रांसफर, उज्जवला स्कीम में तीन महीने तक मुफ्त गैस सिलिंडर, रेहड़ी वालों के लिए लोन की व्यवस्था, किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए 2.5 करोड़ किसानों को दो लाख करोड़ का रियायती कर्ज शामिल हैं।
समस्या यह है कि जब करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं, लाखों लोगों के वेतन में कटौती हो रही है तो इससे मांग में कमी आएगी। मांग कम होगी तो कंपनियां नया निवेश नहीं करेंगी और नई नौकरियां भी नहीं निकलेंगी। कम डिमांड और कम निवेश से सरकार का राजस्व भी घटेगा। इसलिए राहत पैकेज के बावजूद विशेषज्ञ मंदी की आशंका जता रहे हैं। गोल्डमैन साक्स का अनुमान है कि लॉकडाउन के कारण जून तिमाही में जीडीपी का आकार 45 फीसदी घट सकता है। ब्रोकिंग फर्म एमके ग्लोबल ने लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था को 170 अरब डॉलर नुकसान का अंदेशा जताया है। फिच रेटिंग्स का कहना है कि राहत में जितनी देरी होगी अर्थव्यवस्था में सुधार उतना मुश्किल होगा। निजी कंपनियां तभी निवेश करेंगी जब उन्हें मांग बढ़ने की उम्मीद होगी। इसलिए मौजूदा हालत में सरकारी निवेश ही एकमात्र उपाय बच जाता है, भले ही सरकार उधार लेकर खर्च करे। लेकिन सरकार राजकोषीय घाटे को लेकर ज्यादा संवेदनशील नजर आ रही है। नेशनल काउंसिल आफ अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च का अनुमान है कि कोविड-19 के झटके से उबरने के लिए सरकार को बजट प्रावधानों के अलावा जीडीपी के तीन फीसदी के बराबर पैकेज लाना पड़ेगा।
सरकार अपने खाते से ज्यादा क्यों नहीं खर्च करना चाहती है, बरुआ इसकी वजह बताते हैं। उनके मुताबिक, “हो सकता है सरकार वायरस की दूसरी लहर के हमले को लेकर आशंकित हो। इस तरह की महामारी में दूसरा चरण ज्यादा खतरनाक होता है। इसलिए संभव है कि सरकार भविष्य के लिए पैसे बचा रही हो। तब स्वास्थ्य और दूसरी जरूरतों पर और खर्च की जरूरत पड़ेगी, राज्यों को भी पैसे ट्रांसफर करने पड़ेंगे। इसलिए हमें थोड़ा इंतजार करना चाहिए। आपूर्ति बढ़ाने के कदमों का असर देखने के बाद दूसरे चरण का पैकेज घोषित किया जा सकता है।”
कई विशेषज्ञ रुपया छापने (मनी प्रिंटिंग) का सुझाव दे रहे हैं। हालांकि यहां इसका मतलब करेंसी नोट छापने से नहीं है। मनी प्रिंटिंग कई तरीके से हो सकती है। रिजर्व बैंक लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन (एलटीआरओ) के जरिए तरलता बढ़ा सकता है। बाजार सरकार को कर्ज देने में सक्षम न हो तो रिजर्व बैंक सरकारी बांड खरीदे। अंतिम उपाय यह हो सकता है कि रिजर्व बैंक सरकार को कर्ज दे और फिर उस कर्ज को राइट ऑफ कर दे। इसे ‘हेलीकॉप्टर मनी’ भी कहते हैं। बरुआ के अनुसार रिजर्व कई उपायों पर अमल कर रहा है। अभी वह सेकेंडरी मार्केट से बांड खरीद कर पैसे डाल रहा है, हो सकता है आगे चलकर वह प्राइमरी मार्केट में भी खरीदे।
कोविड महामारी जिस तेजी से फैल रही है, अभी तो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में वही सबसे बड़ी बाधा है। सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार भारत की जीडीपी में महाराष्ट्र का योगदान सबसे ज्यादा 14 फीसदी है। शीर्ष पांच राज्यों में महाराष्ट्र के अलावा तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात हैं। जीडीपी में 30 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी रखने वाले महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात में ही कोविड-19 के मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा है। इसे देखते हुए अर्थव्यवस्था में फिलहाल सुधार तो मुश्किल लगता है। जल्दी सुधार इसलिए भी मुश्किल है, क्योंकि जैसा अर्थशास्त्री मेहरोत्रा कहते हैं, “सरकारों ने प्रवासी मजदूरों के साथ जो अमानवीय व्यवहार किया है, उसे देखते हुए वे मजदूर जल्दी लौटने वाले नहीं हैं।” जब मजदूर ही नहीं होंगे तो उद्योग का पहिया घुमाएगा कौन!
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राहत कम, घोषणाएं ज्यादा: वित्त मंत्री के ऐलान
26 मार्च 2020
1.7 लाख करोड़ रुपयेः मुफ्त अनाज वितरण, उज्जवला स्कीम के तहत मुफ्त गैस सिलिंडर, गरीबों के खाते में नकद ट्रांसफर, स्वास्थ्य कर्मियों का बीमा।
13 मई 2020
6 करोड़ रुपयेः एमएसएमई को तीन लाख करोड़ रुपये तक कर्ज की गारंटी, पीएफ में नियोक्ता और कर्मचारी का अंशदान, एनबीएफसी, हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों, माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं और डिस्कॉम के लिए लिक्विडिटी, टीडीएस-टीसीएस में कटौती।
14 मई 2020
3.1 लाख करोड़ रुपयेः प्रवासी मजदूरों को दो महीने तक मुफ्त अनाज, नाबार्ड के जरिए किसानों को 30,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज, किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए किसानों को दो लाख करोड़ रुपये का रियायती कर्ज।
15 मई 2020
1.5 लाख करोड़ रुपयेः कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए एक लाख करोड़ रुपये, छोटे खाद्य उपक्रमों और अन्य कृषि योजनाओं के लिए 49,000 करोड़, आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन।
16/17 मई 2020
48 हजार करोड़ रुपयेः मनरेगा के लिए 40,000 करोड़ रुपये, कई रणनीतिक सेक्टर को निजी कंपनियों के लिए खोलने, सरकारी कंपनियों के निजीकरण की घोषणा।
रिजर्व बैंक के कदम
8 लाख करोड़ रुपयेः कर्ज लौटाने पर छह माह का मोरटोरियम, रेपो, रिवर्स रेपो और सीआरआर में कटौती, लिक्विडिटी बढ़ाने के अन्य उपाय।
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वित्तीय संस्थानों की नजर में पैकेज
नोमुरा 0.95%
बैंक ऑफ अमेरिका 1.1%
सीबीएस 1.2%
डॉयचे बैंक 1.1%
मॉर्गन स्टैनली 0.7%
मोतीलाल ओसवाल 1.2%
एलारा कैपिटल 1.0%
एड्लवाइज 0.9%
जेफरीज 1.0%
फिलिप कैपिटल 0.8%
एचएसबीसी 1.0%
केयर रेटिंग्स 1.3%
कोटक 1.0%
सिटीबैंक 1.0%
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गरीब कल्याण योजना के अलावा भी सीधी मदद की जरूरत है, जनधन खातों से नकदी ट्रांसफर हो
अभीक बरुआ, मुख्य अर्थशास्त्री, एचडीएफसी बैंक