‘जीत के उन्माद में या दुखों के अंधेरों के बीच कभी कोई निर्णय मत कीजिए’, किसी महापुरुष के ये शब्द जीवन के हर क्षेत्र में सही बैठते हैं। भारतीय टीम के बढ़ते कदमों ने विश्व क्रिकेट के संतुलन में हलचल पैदा कर दी है। हमारी टीम विदेशों में जाकर पस्त हो जाया करती थी। इसीलिए हमें ‘अपने घर का शेर’ कहा जाने लगा था। पर इस भारतीय क्रिकेट टीम की खासियत यह है कि यह ‘घर में शेर तो बाहर सवा सेर’ साबित हो रही है। पिछले सत्र में हमने एकदिवसीय क्रिकेट में वेस्टइंडीज, ऑस्ट्रेलिया व दक्षिण अफ्रीका को उनके घर में मात दी है। श्रीलंका की तो बात न करें, तो ही बेहतर। श्रीलंका तो आज बांगलादेश व जिंबाबवे के खिलाफ भी संघर्ष कर रहा है। अब, जब भारतीय क्रिकेट टीम ने न्यूजीलैंड पर उनके घर में जाकर शृंखला में विजय प्राप्त कर ली है, तो कहा जाने लगा है कि जून 2019 में इंग्लैंड में होने वाले विश्वकप को जीतने का भारत प्रमुख दावेदार है।
न्यूजीलैंड को उसके घर में हराना एक बहुत ही मुश्किल काम माना जाता है। वहां परिस्थितियां बिलकुल भिन्न होती हैं। गेंद हवा में ‘स्विंग’ ज्यादा होती है और सीम के सहारे टप्पा खाने के बाद कांटा भी तेजी से बदलती है। दुनिया की अच्छी-अच्छी टीमें भी न्यूजीलैंड जाकर धराशायी हो जाती हैं। पर इस भारतीय टीम की यह विशेषता रही कि इसने परिस्थितियों और पिचों से तालमेल बैठाने में महारत दिखाई। इसका कारण है, लगातार प्रतिस्पर्धात्मक क्रिकेट खेलते रहना तथा दीर्घ अनुभव का फायदा उठाना। जब आप निरंतर गहमागहमी वाला संघर्षपूर्ण क्रिकेट खेलते हैं, तब मुश्किल परिस्थितियों से निकल आने का माद्दा भी आ जाता है। जब आप अलग-अलग मार्गों से साहसपूर्वक निकल आते हैं, तब आत्मविश्वास का संचय होता है। क्रिकेट को इसीलिए तकनीक, तरकीब और तरतीब का खेल तो कहा ही जाता है, किस्मत तथा आत्मविश्वास का खेल भी कहा जाता है।
न्यूजीलैंड में खेले गए पहले तीन एकदिवसीय मैंचों में विकेट और परिस्थितियां ‘स्विंग’ व ‘सीम’ के लिए माकूल नहीं थीं, तो भारत ने न्यूजीलैंड को एकतरफा मात दे दी। पर हैमिलटन के चौथे एकदिवसीय मैच में जैसे ही ‘स्विंग’ उछाल वाली परिस्थितियां आईं, भारतीय बल्लेबाजी ताश के पत्तों की तरह बिखर गई। यह एक चिंता का विषय है। क्योंकि इंग्लैंड में जून, 2019 में आरंभ होने वाले विश्वकप में माहौल लगभग ऐसा ही रहेगा। भारतीय बल्लेबाज उछाल पर तो काबू पाना सीख गए हैं, पर ‘स्विंग’ गेंदबाजी के सामने उनकी कमजोरी बार-बार उभर कर सामने आती है। इसी वजह से इंग्लैंड के खिलाफ इंग्लैंड में हमें टेस्ट सीरीज के साथ ही एक दिवसीय क्रिकेट में भी पराजय हाथ लगी थी।
यह सही है कि भारतीय तेज गेंदबाजी के कर्णधार, जसप्रीत बुमराह तथा मोहम्मद शमी इस मैच में नहीं खेल रहे थे और न ही दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज, भारतीय कप्तान विराट कोहली तथा अनुभवी व निर्णायक प्रभाव डालने वाले महेन्द्र सिंह धोनी इसमें भाग ले रहे थे। भारत का मध्यक्रम इनके बगैर अक्सर लड़खड़ा जाता है। कल्पना कीजिए कि विश्वकप के महत्वपूर्ण मैचों में, जिसमें भी विराट कोहली जब जल्दी आउट हो जाएंगे, तब भारतीय मध्यक्रम बल्लेबाजी पर असहनीय दबाव आ जाएगा। विराट कोहली का विकेट पर मजबूती से टिके रहना भारतीय सफलता की पहली और अनिवार्य शर्त बन गई है। पर विराट कोहली भी आखिर इंसान हैं। आप हमेशा उनसे चमकदार सफलता की उम्मीद नहीं कर सकते। इसलिए भारतीय मध्यक्रम को बड़ी जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार रहना पड़ेगा।
हेमिलटन में भारत के निम्नतम 92 रनों के स्कोर ने भारतीय चयनकर्ताओं की नींद उड़ा दी होगी। न्यूजीलैंड के स्विंग गेंदबाज ट्रेट बोल्ट ने तो साफ कहा है कि स्विंग को मदद देने वाले माहौल में वह एकदम ही अलग विकेट उखाडू गेंदबाज बन जाते हैं। भारतीय चयनकर्ताओं के सामने यह चुनौती है कि ‘अपने वाले’ को चुनें या ‘अच्छे वाले को।’ के. एल. राहुल को उद्घाटक बल्लेबाज की तरह बहुत मौके मिल गए। इतने मौकों में तो टेस्ट क्रिकेट के दरवाजे पर दस्तक देता कोई भी युवा खिलाड़ी सफलता प्राप्त कर लेता। पृथ्वी शॉ और हनुमा विहारी इसके उदाहरण हैं। के.एल. राहुल की जगह जैसे ही मयंक अग्रवाल को ऑस्ट्रेलिया में खिलाया, उनकी दृढ़ता, साहस और तकनीक ने टीम की तकदीर ही बदल दी। प्रतिभाएं तो बेशुमार हैं, पर बात केवल सही वक्त पर मौका देने की है। भारतीय चयनकर्ताओं को बड़े नामों को खिलाने का बड़ा शौक है। पर याद रखना चाहिए कि क्रिकेट में नाम नहीं, आप को खुद खेलना होता है। अगर आप का नाम विराट कोहली है, तो सैकड़ा अपने-आप नहीं टंग जाएगा। आप को हर नए मुकाबले में अपने नाम के अनुरूप खेलना होगा।
भारत के लिए खुशी की बात है कि जसप्रीत बुमराह के रूप में एक मैच विजेता उसके पास है। उसे आज दुनिया का सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाज कहा जा रहा है। बिलकुल छोटे ‘रन-अप’ से 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार प्राप्त करना हैरानी का विषय बन गया है। यह सब कुछ असरदार और निर्णायक तो लग रहा है, पर ऐसा प्रयास करते वक्त शरीर पर विपरीत असर पड़ना भी स्वाभाविक है। इसलिए भारत को उसका उपयोग बहुत ही ध्यान से करना होगा। न्यूजीलैंड में शृंखला जीतने के बाद उसे आराम देना उचित ही कहा जाएगा। विश्वकप 2019 के पहले अपने प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की संभावित चोटों से रक्षा करना एक अच्छी योजना है। हालांकि, यह भी कहा जाता है कि उनकी अनुपस्थिति के कारण मिली हार टीम की जीत की लय तोड़ देती है। पर, त्वरित लाभ के बजाय दीर्घगामी फायदा देखना ही बेहतर होता है। मोहम्मद शमी भी अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ स्विंग गेंदबाजी कर रहे हैं और बुमराह का अच्छा साथ निभा रहे हैं। मैं हमेशा कमेंटरी के दौरान कहा करता हूं कि तेज गेंदबाज जोड़ियों में अपना शिकार करते हैं। इसलिए जब जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद शमी दोनों सिरों से दबाव डालने में सफल होते हैं, तब ही विपक्षी टीम के विकेटों की पतझड़ शुरू होती है।
वक्त के साथ परिदृश्य ऐसे बदलता है कि आप हैरान रह जाते हैं। पहले कहा जाता था कि भारत चूंकि एक अहिंसक देश है और रफ्तार हिंसा की प्रतीक है इसलिए भारत में तेज गेंदबाज नहीं हो सकते। अब ऐसे महान समालोचक दिखाई नहीं दे रहे क्योंकि भारत में रफ्तार के सौदागरों की एक बाढ़-सी आ गई है। जसप्रीत बुमराह, उमेश यादव और वरुण अरोन 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गेंद करके दुनिया को चौंका रहे हैं। हां, स्पिन गेंदबाजी में नई प्रतिभाएं नहीं उभर रही हैं। पूरे देश में घरेलू क्रिकेट के दौरान कोई जादुई स्पिन प्रतिभा दिखाई नहीं दी। कुलदीप यादव की चाइनामैन, गुगली, टॉपस्पिनर और फ्लिपर आकस्मिक रूप से धोखा जरूर देती हैं, पर एक बार पहचानने के बाद उतनी असरदार नहीं रहतीं। चहल लेग स्पिन तथा गुगली से कुछ दबाव जरूर डालते हैं। पर, अप्रत्याशित स्पिनरों की परंपरा वाले देश में ये केवल कामचलाऊ ही हैं। यह भी भारतीय क्रिकेट के लिए चिंता का विषय है।
कुछ भी हो, भारतीय क्रिकेट टीम की ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड पर एकदिवसीय क्रिकेट में शृंखला की जीत ने विश्वकप, 2019 के अन्य दावेदारों में हड़कंप जरूर मचा दिया है।
(लेखक जाने-माने क्रिकेट कमेंटेटर हैं)