अचानक 'एन्काउंटर' और 'लिंचिंग' जैसे शब्द भी मानो कुछ सकारात्मक अर्थ लेने लगे। वह भी संसद तक में। तो, क्या इसी जुनूनी माहौल में हैदराबाद पुलिस फटाफट इंसाफ करने को तत्पर हो उठी? यह शहर के आधुनिक साइबराबाद इलाके में डॉक्टर युवती के गैंगरेप और हत्या के कथित चार आरोपियों को तथाकथित एन्काउंटर में मार गिराए जाने के बाद जश्न के माहौल से मानो साबित भी हुआ। उसके बाद तो वे सारे सवाल गुम हो गए कि वही पुलिस पहले पीड़िता की बहन की शिकायत तक को दर्ज करने को क्यों तैयार नहीं थी? क्यों हल्ला उठने के बाद ही उसकी सक्रियता में छलांग आई? इससे जुड़े और यहां तक कि उस एन्काउंटर से जुड़े भी अनेक सवाल हैं, जिस पर तेलंगाना हाइकोर्ट सुनवाई कर रहा है। लेकिन, इससे भी बढ़कर सवाल यह है कि सरकारें इसकी जवाबदेही क्यों नहीं लेतीं? जबकि देश भर में महिला उत्पीड़न भयावहता की हदें लांघने लगा है।
जिस दिन यह घटना हुई, उसके बाद जैसे ऐसी दहलाने वाली घटनाओं का सिलसिला ही शुरू हो गया और वह भी देश के अलग-अलग कोनों से। मानो देश में कोई वहशी साया उतर आया हो। आंकड़े यह भी गवाही देते हैं कि 2012 के इसी आखिरी महीने में दिल्ली में निर्भया कांड के बाद सख्त कानून के अमल में आने के बावजूद गैंगरेप और हत्या की वारदातों में इजाफा ही होता गया है। फिर, यह भी गौरतलब है कि 2014 के बाद ये आंकड़े जैसे छलांग लेने लगे। बेशक, इसकी सामाजिक और राजनैतिक वजहें भी तलाशी जा सकती हैं। लेकिन पहले इन हालिया चर्चित घटनाओं के वहशीपन और उससे निपटने के जुनूनी तेवरों पर गौर कर लिया जाए।
बेखौफ हैवानियत
28 नवंबर को हैदराबाद में 26 वर्षीय महिला पशु चिकित्सक का जला हुआ शव मिला। मामले में चार आरोपियों की गिरफ्तारी की गई, जिससे घटना की खौफनाक कहानी सामने आई। आरोपियों ने टोल प्लाजा पर खड़ी पीड़िता की स्कूटी के टायर की हवा निकाल दी थी। जब महिला डॉक्टर स्कूटी के पास पहुंची तो शराब पिये चारों आरोपी उसके पास मदद करने के बहाने पहुंचे। बाद में सभी ने डॉक्टर के साथ गैंगरेप किया और गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। इसके बाद सबूत मिटाने के इरादे से उसके शरीर को आग के हवाले कर दिया।
फिर, 3 दिसंबर को बिहार के बक्सर जिले में एक युवती से रेप के बाद गोली मारने और उसे जलाने का मामला सामने आया। उसके बाद पहचान छिपाने के इरादे से शव को जलाने की कोशिश की गई। फिलहाल, मृतक की पहचान नहीं हो पाई है और यह भी पता नहीं चल पाया कि वह बालिग थी या नाबालिग। अगले ही दिन 4 दिसंबर की सुबह बिहार के समस्तीपुर जिले में पुलिस को महिला का अधजला शव मिला। पुलिस को शक है कि महिला की हत्या किसी अन्य जगह पर की गई और पहचान छिपाने के लिए उसके शव को दूसरी जगह लाकर ठिकाने लगाने की कोशिश की गई।
उसके बाद 5 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के उन्नाव में जो हुआ, उससे तो पूरा देश दहल उठा। वहां 23 वर्षीय बलात्कार पीड़िता जब अपने मामले की पैरवी के लिए अदालत जा रही थी, तभी आरोपियों ने उस पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी। 90 फीसदी तक जल चुकी पीड़िता को पहले लखनऊ के सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया, फिर हालत बेहद नाजुक होने पर एयरलिफ्ट कर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया, जहां 8 दिसंबर को उसकी मौत हो गई (देखें, उन्नाव की बर्बर अंधेरगर्दी)। यह वही उन्नाव है जहां कुछ महीने पहले भाजपा नेता कुलदीप सिंह सेंगर की करतूत सामने आई थी और पीड़िता के परिवार के कई सदस्यों को मौत के घाट उतार कर पीड़िता को भी सड़क दुर्घटना में मार डालने की साजिश रची गई थी। बाद में भाजपा ने सेंगर को पार्टी से निकाल तो दिया मगर भाजपा के उन्नाव से सांसद साक्षी महाराज ने उनके खैरमकदम की कामना की। संयोग से पड़ोस के शाहजहांपुर जिले में ही एक और भाजपा नेता स्वामी चिन्मयानंद का भी कांड हाल ही में उजागर हुआ।
अब आइए राजस्थान के टोंक जिले में। 30 नंबवर को छह साल की मासूम बच्ची स्कूल के बाद घर नहीं लौटी। परिजनों ने रात भर उसकी तलाश की, लेकिन वह नहीं मिली। 1 दिसंबर को उसका शव गांव के बाहर बालाजी मंदिर के पास घनी झाड़ियों में मिला। उसकी हत्या उसी की स्कूल यूनिफॉर्म की बेल्ट से गला घोंटकर की गई थी। पोस्टमार्टम में दुष्कर्म की पुष्टि हुई।
रेप के बढ़ते आंकड़े
इन वारदातों के साथ आइए जरा ऐसे आंकड़ों पर गौर कर लीजिए। इससे पता चलता है कि 16 दिसंबर 2012 के दिल्ली में निर्भया कांड के बाद सख्त कानून बनाने के बावजूद रेप के मामलों में किस तरह इजाफा हुआ। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक, उस साल महिलाओं के खिलाफ कुल 3,09,546 मामलों में 33,707 मामले रेप के ही दर्ज किए गए। 2014 में महिलाओं के खिलाफ कुल 3,39,457 मामलों में रेप के 36,735 केस दर्ज किए गए। उस साल यौन उत्पीड़न के कुल 1,32,939 मामले दर्ज किए गए। 2015 में रेप के 34,651 मामले दर्ज हुए, जिसमें यौन उत्पीड़न के 82,422 मामले थे। वहीं, महिलाओं के खिलाफ कुल 3,29,243 मामले दर्ज किए गए। 2016 में महिलाओं के खिलाफ 3,38,954 मामले दर्ज किए गए, जबकि रेप के 38,947 और यौन उत्पीड़न के 84,746 केस दर्ज किए गए। 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,59,849 मामले दर्ज हुए, जबकि रेप के 33,658 मामले दर्ज हुए।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, निर्भया कांड के समय देश में हर दिन 69 बलात्कार होते थे। जबकि हालिया जारी एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों (2017) में हर दिन 90 बलात्कार हो रहे हैं।
महिला अपराधों में अव्वल शहर
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में सबसे खतरनाक स्थिति महानगरों और बड़े शहरों की है। एनसीआरबी के आंकड़े के अनुसार, 2017 में दिल्ली में महिलाओं के साथ अपराध के 11,542 केस दर्ज किए गए जो महानगर और बड़े शहरों जैसे मुंबई, कोलकाता और बेंगलूरू की तुलना में कहीं अधिक हैं। जबकि 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मुंबई में 5,453, लखनऊ 2,468 और जयपुर में 1,857 मामले दर्ज किए गए। इसके अलावा हिंदी प्रदेशों के शहरों इंदौर में 1,349, कानपुर में 1,574, गाजियाबाद में 1,166 और पटना में 870 मामले दर्ज किए गए। इनमें सबसे अधिक मामले अपहरण से जुड़े हैं। 2017 में दिल्ली में महिलाओं के अपहरण के 3,163, कानपुर में 403, इंदौर में 317, गाजियाबाद में 321, लखनऊ में 389 और पटना में 306 मामले दर्ज किए गए। वहीं, महिला के साथ यौन हिंसा की बात करें, तो इस मामले में दिल्ली में सबसे अधिक 2,548 केस दर्ज किए गए। वहीं, लखनऊ में 431, इंदौर में 305 और कानपुर में 271 मामले सामने आए।
सांसदों पर आरोप
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा लोकसभा में 19 सांसदों पर महिलाओं पर अत्याचार से जुड़े, तो तीन सांसदों के खिलाफ बलात्कार के मामले दर्ज हैं। जिन तीन सांसदों के खिलाफ बलात्कार के मामले दर्ज हैं, उनमें एक भाजपा, एक कांग्रेस और एक वाइएसआर कांग्रेस के हैं। एडीआर के अनुसार, 17वीं लोकसभा में जिन सांसदों पर केस दर्ज हैं, उनमें 29 फीसदी मामले बलात्कार, हत्या, हत्या की कोशिश या महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान 126 उम्मीदवारों ने महिलाओं के साथ आपराधिक कृत्य के मामले में दर्ज रिपोर्ट की घोषणा की थी। इनमें 9 उम्मीदवारों के खिलाफ रेप का केस दर्ज था।
सवाल उठता है कि आखिर इस तरह की वारदात क्यों रही है। जबकि इस पर अंकुश के लिहाज से देखें, तो सात साल पहले 16 दिसंबर, 2012 को देश की राजधानी में घटे निर्भया कांड के बाद दिल्ली की सियासत में भूचाल आ गया। लड़कियों के लिए असुरक्षित होती जा रही दिल्ली के आक्रोशित लोग इंडिया गेट पर उतर आए और सख्त कानूनों की मांग के साथ धरना-प्रदर्शन करने लगे।
दिल्ली के साथ-साथ देश के कई शहरों में विरोध-प्रदर्शन हुए। उस घटना के बाद रेप संबंधी कानूनों को सख्त करने के लिए न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति का गठन किया गया। समिति ने बलात्कार संबंधी कानून में बदलाव की सिफारिशें दीं। इसके अलावा सजा के प्रावधान के तौर पर महिला के कपड़े फाड़ने की कोशिश पर सात साल की सजा मिले, बदनीयती से देखने, इशारे करने पर एक साल की सजा, इंटरनेट पर जासूसी करने पर एक साल की सजा, मानव तस्करी के मामले में पीड़ित की सहमति गैरजरूरी, मानव तस्करी में कम-से-कम सात साल की सजा देने जैसी सिफारिशें की गई थीं। सिफारिशों के बाद रेप के मामलों में कम-से-कम 20 साल की सजा और पीड़ित की मौत पर दोषी को फांसी की सजा दिए जाने का भी प्रावधान किया गया।
निर्भया कांड के बाद गठित वर्मा आयोग ने रेप की परिभाषा का दायरा विस्तृत कर दिया। आइपीसी की धारा-375 में बताया गया है कि अगर किसी महिला के साथ कोई पुरुष जबरन शारीरिक संबंध बनाता है, तो वह रेप होगा। साथ ही महिला के साथ किया गया यौनाचार या दुराचार भी रेप के दायरे में होगा। अगर महिला के शरीर के किसी भी हिस्से में पुरुष अपना प्राइवेट पार्ट डालता है, तो वह भी रेप के दायरे में होगा। इतना ही नहीं महिला के प्राइवेट पार्ट में अगर पुरुष कोई भी ऑब्जेक्ट डालता है, तो वह भी रेप के लिए दोषी होगा।
सजा का प्रावधान- अगर महिला की उम्र 18 साल से कम है और उसकी सहमति है, तो भी वह रेप होगा। रेप मामले में सात साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा आइपीसी की धारा-376 ए के तहत प्रावधान किया गया कि अगर रेप के कारण महिला मरने जैसी स्थिति में चली जाए, तो दोषी को अधिकतम फांसी की सजा हो सकती है। साथ ही 376 ई के तहत प्रावधान किया गया कि अगर कोई शख्स रेप के लिए दोबारा दोषी पाया जाता है, तो उसे उम्रकैद से लेकर फांसी तक की सजा होगी।
पॉक्सो में भी फांसी का प्रावधान
बच्चियों के साथ रेप के कई मामले आने के बाद देश भर में इन मामलों में भी फांसी की सजा की मांग उठी। इसके बाद 21 अप्रैल 2018 को केंद्र सरकार ने 12 साल तक की बच्ची के साथ रेप के मामले में फांसी की सजा का प्रावधान कर दिया। इसके लिए पॉक्सो एक्ट में बदलाव के लिए ऑर्डिनेंस जारी किया गया। पॉक्सो कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का सेक्सुअल अपराध इस कानून के दायरे में आता है। इस कानून के तहत 18 साल से कम उम्र के लड़के या लड़की दोनों को ही प्रॉटेक्ट किया गया है।
लेकिन इन तमाम कानूनी सख्ती का हश्र क्या हुआ? इसकी मिसाल तो हैदराबाद कांड के बाद संसद में उठी आवाजों में जाहिर हो जाता है। इन बयानों से आपको ऐसा लग सकता है कि कानून बनाने वालों को ही इन कानूनों, अदालती प्रक्रिया और सरकारों की जवाबदेही पर भरोसा नहीं रह गया है। समाजवादी पार्टी की राज्यसभा सदस्य जया बच्चन ने कहा, "चाहे निर्भया हो या कठुआ सरकार को उचित जवाब देना चाहिए। इस तरह की चीजें कुछ देशों में होती हैं, वहां आम लोग इसका न्याय करते हैं। मेरा सुझाव है और मुझे पता है कि थोड़ा कठोर है, लेकिन मेरा मानना है कि ऐसे लोगों को भीड़ के हवाले कर देना चाहिए और उन्हें लिंच कर देना चाहिए।" द्रमुक सांसद पी. विल्सन ने कहा कि रेप के दोषियों को सजा पूरी करने के बाद जेल से रिहा करने से पहले उन्हें सर्जरी और रासायनिक तरीके से नपुंसक बना देना चाहिए।" केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने कहा कि "बलात्कार के मामलों में पीड़िता की उम्र जितनी हो, उतने महीने में फैसला सुनाया जाना चाहिए और दोषियों को दया याचिका दायर करने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।" खासकर बाल अपराधों के मामले में तो दोषियों को दया याचिका से वंचित करने की बात खुद राष्ट्रपति भी कर चुके हैं।
इन बयानों से क्या अर्थ निकलते हैं, यह तो विवेचना का विषय है लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि हालात उस मुकाम पर पहुंच गए हैं, जहां सरकार और कानूनी एजेंसियों की जवाबदेही तय करने का कोई हिसाब नहीं दिख रहा है, न ही अदालती प्रक्रिया पर पर्याप्त भरोसा रह गया है।