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3 मार्च 2025 · MAR 03 , 2025

प्रयाग महाकुंभः आध्यात्म और संस्कृति का अनोखा संगम

महाकुंभ में देश और विदेश से पहुंचे करोड़ों लोगों ने गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम पर डुबकी लगाई
आस्था की डुबकीः पवित्र गंगा में स्नान करते नागा साधु

कुंभ का भव्य और सुंदर आयोजन अपने अंतिम चरण में है। 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के स्नान के साथ ही महाकुंभ 2025 का समापन हो जाएगा। आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभवों के साथ यह कुंभ एक अभिनेत्री के महामंडलेश्वर बनने और फिर पद छिनने, एक आइआइटी ग्रेजुएट युवा के बाबा बनने और सोशल मीडिया पर माला बेचने वाली नीली आंखों वाली एक लड़की जैसे तमाशों के लिए भी याद किया जाएगा। हाइवे पर लंबी कतारों, श्रद्धालुओं से पटी पड़ी गलियों, मौनी अमावस्या की भगदड़ के बीच भी श्रद्धालुओं का उत्साह कम होने का नाम नहीं ले रहा। महाकुंभ से भारतीयों के लगाव को समझा जा सकता है कि हमारी परंपरा और पौराणिक कथाओं में कुंभ से अमृत छलकने की कहानियां और इस मेले की प्राचीनता का महत्व समाया हुआ है। लेकिन जिस तादाद में विदेश से लोग इस अनोखे मेले को देखने आए, वह अविश्वसनीय है। ऐसे महामेले को देखने हर बार की तरह विदेशों से ढेरों पर्यटक भी पहुंचे। उम्र से परे, हर आयुवर्ग ने कुंभ में शामिल होकर संगम में डुबकी लगाई और खुद को मोक्ष की परंपरा से जोड़ा।

विधि-विधानः संगम पर उदासीन अखाड़े के साधु स्नान से पहले

विधि-विधानः संगम पर उदासीन अखाड़े के साधु स्नान से पहले

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुले हृदय से विश्व भर के श्रद्धालुओं का स्वागत किया। सरकार के आंकड़ों के अनुसार, तकरीबन 40 करोड़ लोगों के प्रयाग में पहुंचने का अनुमान है। सरकार ने, उसके दावे के मुताबिक, चाक-चौबंद व्यवस्था, स्नान के लिए घाट, ठहरने के लिए बनी कुंभ टेंट सिटी ने श्रद्धालुओं की सहूलियत का ख्याल रखा। 40 करोड़ लोगों का कुंभ में आना और स्नान करना बताता है कि मनुष्य का आस्था से गहरा संबंध है और जब मौका आता है, श्रद्धालु अनुशासित रहकर इस बात को पुख्ता करते हैं। महाकुंभ ने बताया कि पवित्र गंगा नदी के लिए सब एक हैं फिर चाहे वह राजा हो या रंक। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने साधारण लोगों की तरह त्रिवेणी संगम में स्नान किया। यह भारत का सांस्कृतिक सौंदर्य है, जो कुंभ के जरिये पूरी दुनिया ने देखा। भारत आस्था का देश है, इस मेले ने यह स्पष्ट संदेश जन-जन तक पहुंचाया।

13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के दिन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में शुरू हुए सनातन धर्म के सबसे बड़े पर्व में शामिल होने के लिए हर वर्ग में होड़ थी। 12 वर्ष में एक बार आयोजित होने वाले इस मेले में दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने प्रयागराज पहुंचे। प्रशासन ने आगंतुकों की सुविधा के लिए बेहतरीन इंतजाम किए हैं। सरकार ने आने वाले सभी लोगों की सुरक्षा निश्चित करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी सहारा लिया। सरकार का दावा है कि पहले स्नान यानी पौष पूर्णिमा के दिन करीब 3 करोड़ लोगों ने पुण्य सलिला में स्नान किया था। इस स्नान के बाद ही कल्पवास शुरू होता है और कल्पवासी पूरा एक महीना प्रयाग में ही रहने का संकल्प लेते हैं। 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर पहले अमृत स्नान में 13 अखाड़ों के साधु संतों ने क्रमबद्ध तरीके से स्नान किया। यह दृश्य देखते ही बनता है, जब छावनी से हाथी-घोड़े और पैदल निकले साधु-संत हर-हर महादेव और जय श्रीराम के नारे लगा कर गंगा में डुबकी लगाते हैं। शरीर पर चिता की भस्म लगाए, नरमुंडों की माला गले में डाले साधुओं को देखने के लिए आपार जनसूमह किनारों पर खड़ा हो इनके दर्शन कर खुद को कृतार्थ करता है।

महाकुंभ के दौरान प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती भक्तों को अनुशासित ढंग से स्नान कराने की थी। लेकिन वीआइपी और वीवीआइपी लोगों के लगातार और स्नान की तीथियों के आसपास पहुंचने से व्यवस्‍था में लापरवाही दिखी। सभी त्रिवेणी संगम पर ही स्नान करें, लोगों की इस भावना से भी थोड़ी अव्यवस्था और अफरा-तफरी मची। खामियाजा कुछ भक्तों को अपनी जान गंवा कर चुकाना पड़ा। सरकार का दावा है कि 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान के समय अचानक मची भगदड़ से 30 से 40 के बीच श्रद्धालुओं की मौत हो गई और 60 से अधिक लोग घायल हुए। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सरकार ने फिर से सुरक्षा प्रबंध की समीक्षा की और 3 फरवरी को बसंत पंचमी के अवसर पर हुए अमृत स्नान पर विशेष इंतजाम किए।

महाजुटानः संगम तट पर कुंभ की रौनक

महाजुटानः संगम तट पर कुंभ की रौनक

इसके अलावा 20 दिनों में तीन बार आग लगने की घटनाएं भी हुईं। शुक्र है कि किसी के हताहत होने की खबर नहीं आई। दुनिया भर से आने वाले लोगों के ठहरने, शौचालय, पीने के पानी की उचित व्यवस्था की गई थी। सरकार के अलावा अन्य समाजसेवी संस्थाओं ने भी महाकुंभ को सफल बनाने में अपना योगदान दिया। इस्कॉन संस्था ने भक्तों के लिए विशाल भंडारा चलाया। सिखों के समूह ने भी महाकुंभ में लंगर सेवा दी। भारत की संस्कृति की खूबसूरत मिसाल तब देखने को मिली, जब प्रयागराज की मस्जिदों ने कुंभ में आ रहे भक्तों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए। भारी संख्या में लोगों ने ठहरने के लिए मस्जिद की शरण ली। इसके अलावा प्रयागराज विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी अपने अपने स्तर पर श्रद्धालुओं की सेवा का काम किया। प्रयागराज के स्थानीय लोग अपनी मोटरसाइकिल पर बुजुर्गों को निःशुल्क संगम घाट पर पहुंचाते दिखे।

नागा साधुओं, अघोरियों, शंकराचार्यों की उपस्थिति में आइआइटी बाबा की भी खूब चर्चा रही। आइआइटी मुंबई से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके अभय सिंह को लेकर सोशल और राष्ट्रीय मीडिया दो भागों में बंट गया। उनके संन्यासी बनने के विचार के बारे में जानने की उत्सुकता के साथ कुछ को यह युवाओं को वे आध्यात्मिक प्रेरणा लगे, तो कुछ को मानसिक रूप से बीमार। दूसरा विवाद हिंदी सिनेमा की अभिनेत्री ममता कुलकर्णी का संन्यास रहा। किन्नर अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और तमाम महामंडलेश्वरों की मौजूदगी में उनका पट्टाभिषेक कराया गया। उन्हें ममता नंद गिरी नाम दिया गया। इस फैसले का संत समाज ने विरोध किया। विरोध में किन्नर अखाड़े के संस्थापक ऋषि अजय दास भी शामिल थे। उनके मुताबिक, स्त्री को किन्नर अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाना ‘सिद्धांतों के खिलाफ’ है। ममता कुलकर्णी पर आरोप लगा कि उन्होंने पद के लिए 10 करोड़ रुपये दिए हैं। विरोध के बाद, ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर पद से हटा दिया गया। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से भी आचार्य महामंडेलश्वर का पद छीन लिया गया।

श्रद्घालुओं का रेलाः नए बने नैनी पुल से पैदल गुजरते लोग, ढेरों लोग मीलों पैदल चलकर पहुंचे

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बहरहाल, ऐसे तमाशे हर बार होते हैं। इस बार सोशल मीडिया के जोर से कुछ अधिक उछले। लेकिन कुंभ का देश के लोगों के लिए आध्यात्मिक महत्व है। इससे लोगों में सेवा, भक्ति, करुणा और परोपकार की कहानियां भी मानस पटल पर अंकित होती हैं। धर्म मनुष्य में दया और प्रेम का बीज रोपने का काम करता है। उम्मीद है कि महाकुंभ से हम सभी और बेहतर और संवेदनशील बनेंगे, नफरत की दीवारें टूटेंगी। यही उम्मीद हमें बेहतर भविष्य की ओर ले जाएगी।

कुंभ की कहानी

पौराणिक मान्यता है कि देव-दानव ने मिलकर समुद्र मंथन किया। इस मंथन में कई अन्य वस्तुओं के साथ अमृत का कलश भी निकला। दोनों के बीच इस कलश को लेकर लड़ाई हुई। तब विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया और वे कलश लेकर भाग गए। भागने से कलश से अमृत की कुछ बूंदे निकलीं और ये बूंदे नासिक, उज्जैन, हरिद्वार और प्रयागराज में गिरीं। यही वजह है कि इन चारों जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इस बार का कुंभ इसलिए भी विशेष रहा क्योंकि पंडितों-पुरोहितों के मुताबिक, 144 साल बाद कुछ दुर्लभ ग्रह-योग था। गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम का वैसे भी विशेष महत्व है।

 

 

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