नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता इमरान नबी डार ने अब भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है। इतने उथल-पुथल भरे दौर में भी उनकी पार्टी ने जिस तरह खुद को बचाए रखा है, वे उससे आश्वस्त दिखते हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के बंद कार्यालय के बाहर बैठे डार कहते हैं, “यह वक्त भी बीत जाएगा।” डार, नेशनल कॉन्फ्रेंस के उन कुछेक खुशकिस्मत नेताओं में से हैं, जो अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने की प्रक्रिया में गिरफ्तारी से बच गए थे। सरकार ने जब 5 अगस्त, 2019 को इस फैसले की घोषणा के बाद तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया, उसके बाद से ही नवाई सुभ में स्थित नेशनल कॉन्फ्रेंस कार्यालय लंबे समय तक सुनसान पड़ा रहा। जैसे-जैसे समय बीतता गया, डार और उनके सहयोगियों ने दोबारा अपने कार्यालय से काम करने का साहस जुटाया। भले ही इसके लिए उन्हें किसी भी पल गिरफ्तार किए जाने का डर था।
वे बताते हैं, “उस समय हमारा सारा नेतृत्व जेल के भीतर था और मुझे उम्मीद नहीं थी कि कश्मीर में कभी सियासी माहौल ठीक हो पाएगा। हमारे कार्यालय को अकसर नोटिस भेजा जाता था और हमें आशंका थी कि सरकार इसे अपने कब्जे में ले लेगी।”
डार और उनके सहयोगियों ने धीरे-धीरे स्थानीय अखबारों को प्रेस विज्ञप्ति भेजना शुरू किया, जिसमें उन्होंने अपने गिरफ्तार नेताओं की दुर्दशा सहित विभिन्न मुद्दों को उजागर किया। इसके बावजूद उनकी कोशिशें बेकार जा रही थीं क्योंकि डर के माहौल में प्रमुख क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की प्रेस विज्ञप्तियों को प्रकाशित करने के बजाय दबाया जा रहा था। सरकार ने डार की सुरक्षा भी खत्म कर दी जबकि वे दक्षिण कश्मीर में सुरक्षा की दृष्टि से नाजुक इलाके कुलगाम के निर्वाचन क्षेत्र से नेशनल कॉन्फ्रेंस की नुमाइंदगी करते हैं। इसके बावजूद डार विचलित नहीं हुए।
डार कहते हैं कि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने पिछले तीन वर्षों में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना किया है। भारी दबाव के बावजूद पार्टी मजबूती से खड़ा होने में कामयाब रही है। यहां तक कि जम्मू से भाजपा के एक पूर्व दिग्गज नेता को भी पार्टी ने अपने में शामिल कर लिया है। डार कहते हैं, “नेशनल कॉन्फ्रेंस को खत्म करने के उद्देश्य से दिए गए हर झटके के साथ पार्टी लगातार मजबूत हुई है।”
महबूबा मुफ्ती
अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद सरकार शांति स्थापित करने, विकास करने और जम्मू-कश्मीर के लिए एक नए युग की बात कर रही है। इस संदर्भ में डार कहते हैं कि अगर सरकार को अपने काम पर भरोसा है, तो उसे चुनाव कराने दीजिए। उनका कहना है कि घाटी में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को निशाना बनाने का सरकार का असली मकसद उन्हें खत्म करना और लोगों पर अपना पसंदीदा नेतृत्व थोपना है, “लेकिन वे बुरी तरह से विफल रहे हैं। वे हमें तोड़ना चाहते थे और अब वे चुनाव के दौरान हमारा सामना करने से डर रहे हैं।”
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला लंबे समय से जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराए जाने की मांग कर रहे हैं। वे साफ कहते रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव नहीं होने का सीधा संबंध भाजपा से है। उनका कहना है कि अगर भाजपा अपनी जीत को लेकर आश्वस्त होती तो क्षेत्र में चुनाव पहले ही हो चुके होते। जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य में एक खालीपन है- कुछ दिन पहले मुख्य चुनाव आयुक्त की कही इस बात का हवाला देते हुए वे कहते हैं, “भाजपा की अनिच्छा ने यह शून्य पैदा किया है।”
एक ओर जब राजनीतिक दल चुनाव की मांग कर रहे हैं, वहीं सरकार ऐसे फैसले कर रही है जिनके बारे में विश्लेषकों का कहना है कि इसे निर्वाचित सरकार के ऊपर छोड़ दिया जाना चाहिए था। इस साल जुलाई में उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा के प्रशासन के तहत सरकार ने बेघर, भूमिहीन और प्रवासी श्रमिक आबादी को भूमि प्रदान करने के लिए कई पहल की हैं। क्षेत्रीय दलों को आशंका है कि ये योजनाएं बाहरी लोगों के लिए जम्मू-कश्मीर में बसने का रास्ता खोल सकती हैं। जुलाई में सिन्हा ने प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाइ-जी) के माध्यम से भूमिहीन व्यक्तियों को पांच मरला (252 वर्ग फुट) भूमि आवंटित करने की योजना का अनावरण किया था। शुरुआती चरण में लगभग 2,711 परिवारों को ‘भूमिहीन’ के रूप में पहचाना गया। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 2024 तक जम्मू-कश्मीर में बेघरों को 1.99 लाख घर उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है।
मनोज सिन्हा
कुछ हफ्ते पहले ही सिन्हा ने किफायती किराया आवास परिसर (एआरएचसी) योजना शुरू की जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) और कम आय वाले समूहों (एलआइजी) को किराये के आवास की पेशकश की गई। इनमें मजदूर, रेहड़ी-पटरी वाले और रिक्शाचालक जैसे शहरी प्रवासी शामिल थे। इस योजना के लिए पात्रता मानदंड- जैसा कि जम्मू-कश्मीर आवासीय बोर्ड द्वारा निर्धारित किया गया है- में कोई भी भारतीय नागरिक शामिल है जो अस्थायी रूप से या स्थायी रूप से रोजगार, शिक्षा, पर्यटन आदि के लिए जम्मू में स्थानांतरित हो गया है। इससे यह धारणा बनी कि सरकार प्रवासी श्रमिकों और उनके बच्चों को जम्मू-कश्मीर में अधिवास के लिए पात्र बना रही है, जिससे उन्हें 2019 के बाद लागू किए गए नए अधिवास कानूनों के अंतर्गत भूमि और नौकरी के अवसरों के लिए पात्र बनाया जा रहा है।
यहां तक कि जम्मू संभाग के भीतर काम करने वाली पार्टियों- जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को पर्याप्त समर्थन प्राप्त है- ने भी इन घटनाक्रमों की आलोचना की है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा कि बेघर व्यक्तियों की आधिकारिक गिनती और 1.99 लाख घर उपलब्ध कराने के लक्ष्य के बीच एक महत्वपूर्ण विसंगति है। उन्होंने प्रशासन द्वारा बाहरी लोगों को संभावित रूप से झुग्गियों में बसाए जाने पर चिंता जाहिर की है। इस मसले पर लोगों के आक्रोश के बाद प्रशासन ने स्पष्ट किया कि जम्मू-कश्मीर के बेघर व्यक्तियों की 2018-19 की स्थायी प्रतीक्षा सूची (केंद्र द्वारा विशेष दर्जा रद्द करने से पहले) में सूचीबद्ध 2,711 भूमिहीन परिवार ही इस योजना के तहत भूमि आवंटन के पात्र होंगे। यह विवाद जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक वर्ग और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के बीच बढ़ते विभाजन को रेखांकित करता है।
सिन्हा ने 16 जुलाई को अपने रेडियो कार्यक्रम ‘अवाम की आवाज’ में समाज के सभी वर्गों से उन तत्वों से सतर्क रहने का आह्वान किया था जो लोगों को गुमराह कर रहे हैं और गरीबों के हित के खिलाफ काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा था, “लोगों को अतीत का बंधक नहीं बनना चाहिए। हमें जम्मू-कश्मीर के सुनहरे भविष्य के निर्माण के लिए वर्तमान की परिवर्तनकारी यात्रा में शामिल होना चाहिए।”
अनुच्छेद 370 मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चलने से राजनीतिक दलों और लोगों में कुछ उम्मीद जगी है। महबूबा मुफ्ती ने कहा कि पैरवी कर रहे वकील जिस तरह से सर्वोच्च न्यायालय में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की “अवैधता और असंवैधानिकता” को उजागर कर रहे हैं, उससे वे संतुष्ट हैं।
मुफ्ती ने कहा कि वे राहत महसूस कर रही हैं कि भाजपा-आरएसएस सरकार सुप्रीम कोर्ट में इस तरह के गैरकानूनी कृत्य के खिलाफ आवाज और तर्कों को दबाने में सक्षम नहीं होगी। महबूबा ने कहा कि जिस दिन राज्य के टुकड़े किए गए थे और इसका विशेष दर्जा छीन लिया गया था, उसी दिन से वे और उनकी पार्टी के सहयोगी जम्मू-कश्मीर के लोगों की भावनाओं को आवाज देने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, हालांकि उन्हें सत्ता प्रतिष्ठान की क्रूरता का खमियाजा भुगतना पड़ा है जो असंतोष की आवाज को लगातार दबाने की कोशिश कर रहा है। मुफ्ती का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में खुले तौर पर यह बताया जा रहा है कि कैसे तत्कालीन राज्यपाल ने खुद को संविधान सभा के रूप में नियुक्त किया और उनके सलाहकारों ने मंत्रिपरिषद की भूमिका निभाई। वे कहती हैं कि यह बात अब खुलकर सामने आ चुकी है कि कैसे जम्मू-कश्मीर की वास्तविक संविधान सभा से सहमति के अभाव में केंद्र द्वारा की गई पूरी प्रक्रिया स्पष्ट रूप से अवैध और असंवैधानिक है। मुफ्ती ने कहा कि ये बातें वे और उनकी पार्टी पहले दिन से कह रही हैं।
उमर अब्दुल्ला ने भी निष्पक्ष फैसला आने की उम्मीद जताई है। वे लगातार अदालती सुनवाइयों में उपस्थित रह रहे हैं। उन्होंने कहा, “हम न्यायपूर्ण समाधान की उम्मीद करते हैं। जम्मू-कश्मीर के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हुए, हम आशावादी हैं कि हम 5 अगस्त, 2019 की घटनाओं की असंवैधानिक और अवैध प्रकृति को स्थापित कर सकते हैं।”
प्रधान न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दैनिक सुनवाई शुरू की है। अब्दुल्ला ने कहा कि अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को समाप्त करना और 2019 में पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करना “असंवैधानिक और अवैध” है।
इस सुनवाई ने भाजपा को चिंतित कर दिया है। पार्टी अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का अपना फैसला सही ठहराते हुए हर रोज नए बयान जारी कर रही है। अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद भाजपा अब्दुल्ला और मुफ्ती को दरकिनार करते हुए जम्मू-कश्मीर में वैकल्पिक नेतृत्व कायम करना चाहती थी। पार्टी इसमें विफल रही। अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद कथित तौर पर भाजपा के इशारे पर अधिकांश वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़ने के बावजूद पीडीपी अब भी कायम है। महबूबा मुफ्ती ने न केवल इसे जीवित रखा है, बल्कि इसे चुनावी रूप से मजबूत बनाने के लिए काम कर रही हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस से एक भी नेता छोड़कर नहीं गया है। इसके उलट, भाजपा के एक वरिष्ठ नेता और पूर्व एमएलसी सुरिंदर चौधरी जम्मू में नेशनल कॉन्फ्रेंस में शामिल हो गए और इस तरह भाजपा के साथ अपना एक साल से कुछ ही अधिक पुराना रिश्ता उन्होंने तोड़ दिया।
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद भाजपा जम्मू-कश्मीर के इतिहास से शेख अब्दुल्ला और उनकी विरासत को मिटाने की कोशिश में जुटी है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़ ने अब्दुल्ला की दूरदर्शिता की तारीफ करते हुए उनके एक भाषण को उद्धृत कर डाला। सीजेआइ ने खुद वह भाषण पढ़ा और कहा कि अब्दुल्ला के पास 1951 में एक दृष्टि थी।
उन्होंने कहा, “शेख अब्दुल्ला ने इसे बहुत दिलचस्प तरीके से रखा है। वे कहते हैं कि पाकिस्तान के पक्ष में सबसे शक्तिशाली तर्क यह दिया जा सकता है कि पाकिस्तान एक मुस्लिम देश है और हमारे (कश्मीर के) लोगों का एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम है, इसलिए हमें पाकिस्तान में शामिल होना चाहिए। मुस्लिम देश होने का दावा छलावा है- यह आम आदमी को धोखा देने की आड़ है ताकि वह देख ही न पाए कि पाकिस्तान एक सामंती राज्य है जहां बस एक गुट खुद को सत्ता में बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।”
अब्दुल्ला की प्रशंसा करते हुए सीजेआइ ने सिब्बल से कहा कि वे उनकी दूरदर्शिता पर गौर करें। उन्होंने कहा, “उनके पास 1951 में एक दृष्टिकोण था जब वे आर्थिक हितों के बारे में बात कर रहे थे, जिसके बारे में आज दुनिया बात कर रही है।” शेख अब्दुल्ला की सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश द्वारा की गई प्रशंसा को भाजपा आसानी से निगल नहीं पाएगी। बेशक, कश्मीर के लोग इस बहस को उम्मीद से देख रहे हैं।