देश में 4 अक्टूबर से लगातार कोविड के नए मामलों की तुलना में ज्यादा मरीज ठीक हो रहे हैं। इस वजह से एक्टिव मामलों की संख्या 17 सितंबर के उच्चतम स्तर 10.17 लाख से घटकर 8.39 लाख (12 अक्टूबर) पर आ गई है। यही नहीं, कोविड-19 से प्रतिदिन मरने वालों की संख्या भी 2 अक्टूबर से लगातार 1000 से नीचे बनी हुई है। रिकवरी रेट भी 87 फीसदी हो गया है। सभी आंकड़े सुकून देने वाले हैं। साफ है कि भारत में कोरोना का ग्राफ गिर रहा है, लेकिन क्या यह गिरावट बनी रहेगी, ऐसा राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) की चेतावनी से नहीं लगता। उसका कहना है कि सर्दियों के मौसम और त्योहारी सीजन को देखते हुए अकेले दिल्ली में हर दिन 15 हजार नए मामले आ सकते हैं। हमें यह भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि भारत संक्रमण के मामले में न केवल दूसरे नंबर पर पहुंच गया है, बल्कि वह पहले नंबर पर मौजूद अमेरिका से बहुत पीछे नहीं है। 12 अक्टूबर तक भारत में 71.77 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके थे, जबकि अमेरिका में 80.37 लाख मामले थे।
एनसीडीसी की बात को इसलिए बल मिलता है क्योंकि दक्षिण भारत के चार राज्य ओणम और गणेश चतुर्थी से शुरू हुए त्योहारी सीजन के बाद कोविड-19 के संक्रमण की नई लहर का सामना कर रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार 22 अगस्त से शुरू हुए गणेश चतुर्थी के बाद महाराष्ट्र में 46 फीसदी, तेलंगाना में 50 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 67 फीसदी और केरल में 65 फीसदी नए मामले आए हैं। नवरात्रि, दशहरा, दीपावली, छठ और क्रिसमस त्योहारों के समय बड़े पैमाने पर लोगों के यात्रा करने और बाजारों में निकलने की पूरी संभावना है। इसे देखते हुए कोविड-19 का संक्रमण फिर तेजी से बढ़ने की आशंका है।
इस डर को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने भी स्वीकार किया है। रविवार (11 अक्टूबर) को संवाद कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “त्योहारों के मौसम में कोरोना के संक्रमण का खतरा निश्चित रूप से अधिक है। अगर हम इस वक्त ज्यादा भीड़भाड़ करेंगे तो बड़ी मुसीबत में फंस जाएंगे। लोग मास्क पहनें और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। तभी खतरे को कम किया जा सकता है।”
प्रसिद्ध वॉयरोलॉजिस्ट डॉ टी.जैकब जॉन ने भारत में कोरोना के ट्रेंड पर आउलुटक को बताया, “हर वायरस का एक चक्र होता है। सितंबर में वह अपने चरम पर था। मौजूदा ट्रेंड से साफ है कि कोरोना संक्रमण की दर कम हो रही है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं कि कोरोना खत्म हो रहा है। सर्दियों में वायरस के फैलने की पूरी आशंका होती है। मेरा मानना है कि यह दिसंबर तक हर हाल में रहेगा।” जैकब के अनुसार, “अब सबसे ज्यादा उन लोगों को संक्रमण का खतरा है, जिनको अभी तक कोविड-19 संक्रमण नहीं हुआ है। उसकी वजह यह है कि जिन लोगों को एक बार संक्रमण हो चुका है, उनमें वायरस से लड़ने की क्षमता मजबूत हो चुकी है।”
कोरोना संक्रमण पर सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी की रिपोर्ट एक और अहम खुलासा करती है। रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के जरिए न केवल बच्चों में संक्रमण फैल रहा है, बल्कि वे वयस्कों में भी संक्रमण पहुंचा रहे हैं। चिंता की बात यह है कि बच्चों में कोरोना संक्रमण के लक्षण नहीं के बराबर दिख रहे हैं। इसलिए संक्रमण फैलाने वाले के रूप में उनकी पहचान करना बहुत मुश्किल है।
रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश दो ऐसे राज्य हैं जहां पर सबसे ज्यादा संक्रमण फैलने का खतरा है। इन राज्यों में बस और ट्रेन से जो लोग सफर कर रहे हैं, उनके लिए जोखिम ज्यादा है। रिपोर्ट यह खुलासा भी करती है कि 60 फीसदी लोगों को संक्रमण आठ फीसदी संक्रमित लोगों से हुआ है। सबसे ज्यादा खतरा सफर के दौरान होता है। सर्वेक्षण के अनुसार अगर कोई संक्रमित व्यक्ति बिना मास्क के सफर कर रहा है, तो उसके पास बैठे व्यक्ति के संक्रमित होने की संभावना 80 फीसदी होती है।
सेंटर ने 5.75 लाख से ज्यादा लोगों पर संक्रमण के प्रभाव का अध्ययन किया है। इनमें से 85 हजार लोग कोविड-19 से पीड़ित थे। अध्ययन में एक और बात सामने आई कि 71 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिनके जरिए संक्रमण नहीं फैला है। इसका सीधा मतलब है कि बहुत कम लोगों के जरिए देश में 70 लाख लोगों को कोरोना वायरस ने अपने चपेट में लिया है। इसी तरह उम्र के आधार पर संक्रमण की स्थिति पर एसबीआइ की रिपोर्ट खुलासा करती है। उसने बताया है कि देश में 75.8 फीसदी संक्रमित 20-60 साल की उम्र के हैं। 20 साल तक के 11.9 फीसदी लोग संक्रमण के शिकार हुए हैं और 12.3 फीसदी संक्रमित लोगों की उम्र 60 साल से ज्यादा है।
हालांकि संक्रमण में आई गिरावट पर भी सवाल उठ रहे हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सेंटर फॉर कम्युनिटी डिजीज के पूर्व प्रमुख डॉ. चंद्रकांत एस. पांडव का कहना है, “भारत में संक्रमण के 70 लाख से अधिक मामले हो चुके हैं और इनमें से 1.09 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। संक्रमण का कम होना टेस्टिंग पर निर्भर करता है। टेस्टिंग कम कर दीजिए संक्रमण के मामले कम हो जाएंगे। सरकार शुरू से ही गलती कर रही है। अगर शुरू में बाहर से आए लोगों को क्वारंटीन कर दिया गया होता, तो लाखों लोग संक्रमण के शिकार नहीं होते और न ही एक लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई होती। अब सर्दियों में मामले बढ़ना तय है।” डॉ. पांडव जो दावा कर रहे हैं, वह बात आंकड़ों से भी साबित होती है। 30 सितंबर को देश में सबसे ज्यादा 14,23,052 लोगों की टेस्टिंग की गई। उसके बाद टेस्टिंग में लगातार कमी आई है और यह आंकड़ा नौ लाख से 12 लाख के बीच में बना हुआ है। हालांकि कम टेस्टिंग पर सरकार का दावा है कि वह विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइलाइन से कहीं ज्यादा टेस्टिंग कर रही है। भारत में 12 अक्टूबर तक 8.89 करोड़ से ज्यादा लोगों का कोरोना टेस्ट हो चुका है, जो दुनिया में अमेरिका (11.94 करोड़) के बाद सबसे ज्यादा टेस्टिंग है। हालांकि प्रति दस लाख लोगों पर टेस्टिंग के मामले में भारत प्रमुख देशों में बहुत पीछे है। भारत में प्रति दस लाख पर केवल 64,275 लोगों की टेस्टिंग हुई है, जबकि अमेरिका में यह 3.60 लाख, रूस में 3.47 लाख, ब्रिटेन 3.96 लाख, इजरायल में 4.30 लाख और इटली में दो लाख से ज्यादा है।
क्या भारत में आएगी नई लहर
अब सभी विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि भारत में कोरोना का संक्रमण अपने चरम पर पहुंच चुका है। ऐसे में दो सवाल उठ रहे हैं। पहला, भारत में स्थिति सामान्य होने में कितना वक्त लगेगा, और दूसरा, क्या भारत में भी अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और स्पेन में संक्रमण की दूसरी लहर आएगी? एसबीआइ रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में एक बार फिर संक्रमण के मामले बढ़ने लगे हैं। हालत यह है कि ब्रिटेन में संक्रमितों की संख्या छह लाख पार कर जाने के बाद दोबारा लॉकडाउन लगाने की बातें हो रही हैं। न्यू एंड इमर्जिंग रेस्पिरेटरी वायरस थ्रेट्स एडवाइजरी ग्रुप के अध्यक्ष एवं ब्रिटेन सरकार के सलाहकार पीटर हॉर्बी ने कहा है, “बढ़ते मामले को देखते हुए एक बार फिर दूसरा राष्ट्रीय लॉकडाउन लगाया जा सकता है।” ऐसे में आगे क्या हो सकता है, इस पर डॉ. जॉन का कहना है कि हमें यह कतई नहीं मानना चाहिए कि गिरावट का ट्रेंड है तो बीमारी खत्म हो जाएगी। हमें सर्दियों में बहुत सतर्क रहना होगा।
स्थिति सामान्य होने के सवाल पर एसबीआइ रिपोर्ट का आकलन है, “भारत में कोरोना संक्रमण चरण पर पहुंचने में 173 दिन लगे। स्थिति सामान्य होने में भी करीब इतने ही दिन लगने की संभावना है। एक उम्मीद की किरण यह भी है कि अगर भारत में संक्रमण घटने की दर जापान, पेरू, स्वीडन जैसी होती है, तो यह काफी कम समय में सामान्य हो सकता है।”
लेकिन जिस तरह अनलॉक के बाद सार्वजनिक स्थलों पर लोगों का आना-जाना बढ़ा है और मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर लापरवाही बढ़ी है, उससे त्योहारी मौसम में संक्रमण बढ़ने का ज्यादा खतरा है। अब यह लोगों पर है कि वे सावधानी बरत कर सुरक्षित रहते हैं या लापरवाही बरत कर बीमार होते हैं।
. कई देशों में संक्रमण की दूसरी लहर में दोगुनी गति से बढ़ रहे हैं मामले
. भारत में स्थिति सामान्य होने में लग सकता है छह महीने का समय
. पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, गुजरात, राजस्थान, केरल, कर्नाटक में अभी पीक नहीं
. दिल्ली में सर्दियों के दौरान हर रोज आ सकते हैं 15 हजार मामले
. महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश में तेजी से बढ़ रहा संक्रमण