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7 जनवरी 2025 · JAN 07 , 2025

व्यक्तित्व: सहज नेता से बड़े और कड़े निर्णय लेने वाले मुख्यमंत्री तक का सफर

विष्णु देव साय के असाधारण नेतृत्व कौशल को देखते हुए 1990 में ग्रामीणों ने उन्हें निर्विरोध सरपंच चुना। 1990 में ही वे भाजपा के टिकट पर तपकरा विधानसभा सीट से चुनाव जीत गए थे।
सभी के नेता विष्णु देव साय

छत्तीसगढ़ में 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर कई नेताओं के नामों पर कयास लगाए गए, लेकिन बाजी मारी विष्णु देव साय ने। साय न सिर्फ भाजपा आलाकमान यानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के चहेते रहे हैं, बल्कि भाजपा विधायक दल की भी पहली पसंद वही थे। यही वजह रही कि सभी ने उनके नाम पर मुहर लगा दी। यह साय के करिश्माई व्यक्तित्व का ही कमाल है कि 11 महीने की अल्प अवधि में उन्होंने राज्य मे विकास को नई गति प्रदान कर अपनी काम करने की क्षमता का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। वे जनता से सीधा संवाद बनाते हैं।  काम में निरंतर तत्परता बनाए रखते हैं।

सहज, सरल व्यक्तित्व, दृढ़ इच्छाशक्ति तथा तत्परता से उन्होंने अलग मुकाम हासिल किया है। बड़े और कड़े निर्णय लेने की उनकी क्षमता के सभी कायल हैं। मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुनावी गारंटियों को पूरा करना प्रारंभ कर दिया था। किसानों को धान के बोनस के तौर पर उनके खातों में 3716 करोड़ रुपये भेजे गए। 31 सौ के दाम पर 145 लाख मीट्रिक टन धान की रिकॉर्ड खरीदी भी की गई। 70 लाख महिलाओं को महतारी वंदन योजना के तहत 1000 रुपये प्रतिमाह का भुगतान हुआ, 18 लाख 12 हजार, 743 जरूरतमंद परिवारों को प्रधानमंत्री आवास की स्वीकृति और इसके लिए 12168 करोड़ रुपये बजट का प्रावधान किया।

वनवासियों के लिए तेंदूपत्ता के दाम 4000 रुपये से बढ़ाकर 5500 रुपये करना साय सरकार की ऐसी उपलब्धियां हैं जो मुख्यमंत्री के त्वरित निर्णय क्षमता और तत्परता द्योतक है। साय के व्यक्तित्व का लाभ लोकसभा चुनाव में भी स्पष्ट तौर पर मिला। राज्य की 11 में से 10 सीटों पर भाजपा की विजय तो उन्होंने सुनिश्चित कराई ही, साथ ही पड़ोसी राज्यों ओडिशा, मध्य प्रदेश में भी जहां-जहां प्रचार किया वहां भाजपा को विजय हासिल हुई। जशपुर जिले के अपने गांव बगिया के पंच बनने से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक विष्णु देव साय की कहानी संघर्ष से सफलता का प्रामाणिक दस्तावेज है।

विष्णु देव साय का जन्म 21 फरवरी 1964 को जशपुर जिले के ग्राम बगिया में हुआ था। उनके पिता स्वर्गीय राम प्रसाद साय तथा माता जसमनी देवी ने ग्रामीण परिवेश में ही उनका लालन-पालन किया। उनकी माता जसमनी देवी उन्हें बाबू कहकर बुलाती हैं। वह 10 वर्ष के थे, तभी पिता का निधन हो गया। तब विष्णु कक्षा चौथी में पढ़ते थे। गांव से निकलकर पढ़ाई करने के लिए वह उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कुनकुरी तक पहुंचे परंतु घर की जिम्मेदारियां उनके अध्ययन में आड़े आने लगीं। उन्होंने परिवार को सहारा देने को प्राथमिकता दी और पढ़ाई छोड़कर खेती-किसानी के पारिवारिक काम में जुट गए। दो छोटे भाइयों ओम प्रकाश साय तथा विनोद साय को पढ़ाने के लिए वह गांव के होकर रह गए। आज भी खेती में विष्णु देव साय का मन खूब रमता है। उन्होंने गांव में खेती-किसानी पर कई प्रयोग किए। सिंचाई के साधनों का स्थानीय स्तर पर विकास किया तथा सब्जी-भाजी की खेती से गांव के अन्य किसानों का जीवन स्तर उठाने में भी मदद की। राजनीति उन्हें विरासत में मिली थी।

उनके दादा स्वर्गीय बुधनाथ साय 1947 से 1952 तक मनोनीत विधायक रहे। उनके दिवंगत चाचा नरहरि प्रसाद साय 1962 से 1967 तक लैलूंगा तथा 1972 से 1977 तक बगीचा विधानसभा क्षेत्र के विधायक रहे। नरहरि प्रसाद 1977 से 1979 तक संसद सदस्य भी रहे तथा केंद्रीय संचार मंत्री के पद पर काम किया। उनके दूसरे चाचा केदारनाथ साय 1967 से 1972 तक तपकरा विधानसभा क्षेत्र से जनसंघ के विधायक थे। पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद विष्णु देव साय राजनीति से दूर खेती किसानी से जुड़कर पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करते रहे। जब वह पढ़ाई के लिए कुनकुरी गए तब उनकी मुलाकात भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता और सांसद स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव से हुई। विष्णु देव साय स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव को अपना राजनीतिक गुरु और मार्गदर्शक मानते हैं। उनके सान्निध्य में आकर विष्णु देव साय जनसंघ तथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रमों में भी हिस्सेदारी निभाने लगे।

1989 में साय बंदरचुआं पंचायत के अपने गांव बगिया के पंच चुने गए। विष्णु देव साय के असाधारण नेतृत्व कौशल को देखते हुए 1990 में ग्रामीणों ने उन्हें निर्विरोध सरपंच चुन लिया। 1990 में ही भाजपा के टिकट पर तपकरा विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर मध्यप्रदेश विधानसभा में पहुंच गए। 1990 से 1998 तक दो कार्यकाल तक वह विधायक रहे। 1999 में रायगढ़ लोकसभा सीट से वह संसद सदस्य बने तथा लगातार चार चुनावों में अपराजित रहे। 27 मई 2014 से 2019 तक उन्होंने मोदी कैबिनेट में इस्पात, खान, श्रम और रोजगार राज्य मंत्री का पद संभाला। विष्णु देव साय की अभूतपूर्व संगठनात्मक क्षमता को देखते हुए 2006 में उन्हें छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष मनोनीत किया गया था। 2020 से 2022 तक वह दोबारा प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहे। 2 दिसंबर 2022 को उन्हें भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति में विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में नामित किया गया। 8 जुलाई 2023 को भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति में पूर्णकालिक सदस्य के तौर पर उन्हें पदोन्नत किया गया। 13 दिसंबर 2023 को विष्णु देव साय ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वह राज्य के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री हैं। यहां यह ध्यान रखना होगा कि राज्य गठन के पश्चात अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने तो उन्हें आदिवासी मुख्यमंत्री कहा जरूर गया था लेकिन उनका प्रकरण हाईकोर्ट तक गया और यह माना गया कि वह आदिवासी नहीं थे।

परोपकारी व्यक्तित्व

परोपकारी मुख्यमंत्री

विष्णु देव साय में परोपकार की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है। जब वे सांसद थे, तब दिल्ली में उनका निवास छत्तीसगढ़ से दिल्ली इलाज उपचार कराने जाने वाले मरीजों और उनके परिजनों के लिए आश्रय स्थल बना रहता था। मुख्यमंत्री बनने के बाद रायपुर में उन्होंने मरीजों की सेवा के लिए कुनकुरी सदन की स्थापना की है। आदिवासी शिक्षा तथा दूरदराज के क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं के विकास पर उन्होंने ध्यान केंद्रित कर रखा है। साय ने कौशल्या देवी से विवाह किया है। वे भी सामाजिक आयोजनों में बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं। उनकी दो पुत्रियां और एक पुत्र है।

 

 

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