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7 जनवरी 2025 · JAN 07 , 2025

अध्यात्म: जहां चरण पड़े प्रभु राम के वहां-वहां बन रहे धाम

छत्तीसगढ़ का रामनामी समाज राम का अनन्य भक्त है, जो एक अनोखी परंपरा का पालन सालों से करता आ रहा है
राम नाम की धूम

भगवान राम वनवास के दौरान दण्‍डकारण्य में ही ज्यादा रहे। दण्‍डकारण्य को पुराने समय में बस्तर कहा जाता था। श्रीराम छत्तीसगढ़ के जिन इलाकों से गुजरे, उसे ‘राम वन गमन पथ’ कहा जाता है, जोकि 528 किलोमीटर का है। छत्तीसगढ़ का रामनामी समाज राम का अनन्य भक्त है, जो एक अनोखी परंपरा का पालन सालों से करता आ रहा है।

500 साल के लंबे संघर्ष के बाद अंतत: 22 जनवरी 2024 की तारीख भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गई। इस दिन अयोध्या में रामलला के मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा हुई। तन-मन-धन समर्पित करने का भाव संजोए छत्तीसगढ़ भी इसका साक्षी बना। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और उनके कैबिनेट मंत्री अयोध्या धाम पहुंचे तथा श्रीराम के दर्शन करते हुए उन्हें खास उपहार दिए और प्रदेश जनता की खुशहाली की कामना की। साय ने ‘रामलला दर्शन योजना’ का ऐलान किया जिसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार श्रद्धालुओं को निःशुल्क अयोध्या धाम के दर्शन प्रतिमाह करवा रही है।

प्रकृति ने छत्तीसगढ़ को ‘धान का कटोरा’ के तौर पर समृद्ध किया है, ऐसे में विष्णु देव सरकार ने प्रभु श्रीराम जी के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह हेतु श्री राम जी के ननिहाल से 11 ट्रकों में 300 मीट्रिक टन सुगंधित चावल भेजा। माता शबरी की धरती कहे जाने वाले शिवरीनारायण से बेर फल से भरी टोकरी भी उपहार के रूप में रामलला को भेंट की गई। साथ ही विष्णुभोग चावल, कोसा वस्त्र, करी लड्डू, सीताफल और अनरसा रामलला को खास भेंट के रूप में दिया गया।

रामायणकालीन दण्डकारण्य

इतिहासकारों के अनुसार राम विंध्य पार कर दण्डकारण्य आए। उन दिनों यह क्षेत्र सभ्यता का बड़ा केंद्र हुआ करता था। अगस्त्य, सुतीक्ष्ण, शबरी, शम्बूक, माण्डकर्णि, शरभंग आदि ऋषि-मुनियों की यही कर्मस्थली रही है। तब शूर्पणखा, खर, दूषण, त्रिशिरा, अकम्पन, मारीच जैसे बलशाली राक्षस दण्डकारण्य में ही रहा करते थे और रावण की मर्यादा से बंधे हुए थे। सीता का रावण के द्वारा अपहरण भी दण्डकारण्य में ही हुआ, जटायु ने भी इसी पावन धरती पर प्राण त्यागे। सुग्रीव को राज्य दिला देने के बाद थोड़े समय के लिए राम जिस प्रस्रवण पर्वत पर रहने लगे थे, वह स्थान भी दण्डकारण्य में ही है।

आदिकवि वाल्मीकि कृत रामायण में जिस दण्डकारण्य का उल्लेख है, उसका अधिकांश हिस्सा छत्तीसगढ़ में पड़ता है। पुरातत्वशास्त्रियों के अनुसार वनवास के दौरान, अयोध्या से श्रीलंका यात्रा में भगवान  छत्तीसगढ़ के जिन इलाकों से गुजरे, उसे ‘राम वन गमन पथ’ कहा जाता है जोकि 528 किलोमीटर का है। छत्तीसगढ़ सरकार राम के वनवास काल से संबंधित 75 प्रमुख स्थानों को चिन्हित कर उन्हें नये पर्यटन सर्किट के रुप में विकसित करने जा रही है। इनमें मंदिर निर्माण, वृक्षारोपण और प्रमुख ऋषियों के आश्रमों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना शामिल है। सभी चयनित पर्यटन-तीर्थों पर सुगंधित फूलों वाली सुंदर वाटिकाएं तैयार की जा रही हैं।

आध्यात्म पर भी ध्यान

आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ का एक नाम कोसल प्रदेश भी है, जो भगवान राम की माता कौशल्या के नाम पर है। इस दृष्टि से भगवान राम से छत्तीसगढ़ का संबंध भांजे का है। राज्य के प्रत्येक जिले में भगवान राम से जुड़ी पौराणिक कथाएं और पुरातात्विक अवशेष अभी भी जिंदा हैं। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में राजधानी रायपुर के वीआईपी रोड पर श्रीराम का विशालकाय मंदिर बनाया गया जोकि रामभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।

इतिहासकार सुभाष पांडे बताते हैं कि भगवान राम ने धमतरी से कांकेर, कांकेर से रामपुर, जुनवानी, केशकाल घाटी शिव मंदिर, राकसहाड़ा, नारायणपुर, चित्रकोट वाटरफॉल शिव मंदिर, तीरथगढ़ वॉटरफॉल, सीताकुंड, कोटी माहेश्वरी, कुटुमसर गुफा और सुकमा जिले के रामा राम मंदिर से होकर दक्षिण भारत के लिए प्रस्थान किया था। वहीं शोधकर्ता विजय भारत ने बताया कि भगवान राम ने अपने 14 साल के वनवास के दौरान दण्‍डकारण्य में ही अपना ज्यादा समय बिताया था।

रामलला दर्शन योजना

छत्तीसगढ़ सरकार औसतन 850 श्रद्धालुओं को अयोध्या स्थित रामलला मंदिर के निःशुल्क दर्शन करवा रही है। श्री रामलला दर्शन योजना के तहत श्रद्धालुओं को पूरा पैकेज दिया गया है जिसमें छत्तीसगढ़ से अयोध्या जाने, वहां ठहरने की व्यवस्था, मंदिर दर्शन, नाश्ते और खाने की भी व्यवस्था होती है। इस ट्रेन में टूर एस्कॉर्ट, सुरक्षा कर्मी और चिकित्सकों का दल भी मौजूद रहता है। ट्रेन में यात्रा कर रहे लोग भजन-कीर्तन करते हुए एक भक्तिमय माहौल में श्री रामलला के दर्शन करने के लिए जाते हैं और एक आध्यात्मिक यात्रा के साक्षी बनते हैं।

राम वनगमन पथ के 75 प्रमुख स्थल

छत्तीसगढ़ का पर्यटन विभाग राम वनगमन पथ में 20 नए स्थल शामिल किए जाने की तैयारी में जुट गया है। विभाग स्थलों को चिह्नित कर उनके विकास की नई कार्ययोजना तैयार कर रहा है। इन स्थलों में ज्यादातर लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। ये सभी स्थल पर्यटन के बड़े केंद्र के रूप में विकसित होंगे। रामायणकालीन ऋषियों के आश्रमों की बात करें तो धमतरी जिले के सिहावा की विभिन्न पहाड़ियों में मुचकुंद आश्रम, अगस्त्य आश्रम, अंगिरा आश्रम, शृंगि ऋषि, कंकर ऋषि आश्रम, शरभंग ऋषि आश्रम एवं गौतम ऋषि का आश्रम है। भगवान राम ने दण्डकारण्य के आश्रम में इन ऋषियों से भेंटकर कुछ समय व्यतीत किया था। धमतरी राजधानी रायपुर से 80 किमी की दूरी पर स्थित है।

रामनामी समाज: मेरे मन में राम, तन में राम

रामनामी समुदाय

मेरे मन में राम, तन में राम, रोम रोम में राम हैं..बचपन से सुनते आ रहे एक भजन की इन लाइनों का भाव यही है कि भगवान राम हमारी संस्कृति और जीवन में ऐसे रचे बसे हैं कि सब कुछ राम के नाम हो गया है। छत्तीसगढ़ में रामनामी समाज राम का अनन्य भक्त है जो एक अनोखी परंपरा का पालन सालों से करता आ रहा है। इस समाज के लोग अपने पूरे शरीर पर भगवान राम का नाम गुदवाते हैं। इस परंपरा के पीछे एक बड़ी बगावत की कहानी है।

कहा जाता है कि एक समय में ऊंची जाति के लोगों ने रामनामी समाज का बहिष्कार कर दिया था और मंदिरों में प्रवेश बंद कर दिया था। इसके बाद विरोध में रामनामी समाज के लोगों ने अपने शरीर पर राम नाम लिखवाना शुरू कर दिया। छत्तीसगढ़ के रामनामी समाज की यह परंपरा वाकई में अद्भुत और अनोखी है। इस समाज के लोग राम नाम को अपने शरीर पर टैटू बनाकर भगवान राम के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा प्रकट करते हैं। इसके पीछे का तर्क यह है कि वे मन और आत्मा से भगवान राम के प्रति जागरूक रहते हैं। इस समाज में मात्र नाम में आस्था होती है और वे मूर्ति पूजा या मंदिर जाने के बजाय राम नाम का जप करते हैं।

रामनामी समाज अपनी धार्मिक पहचान को इस टैटू के माध्यम से व्यक्त करता है, जो समाज की विशिष्टता को दर्शाता है। इसके साथ ही यह परंपरा समाज की सांस्कृतिक धरोहर का भी हिस्सा है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है। इस परंपरा के तहत लोग न केवल अपने शरीर को, बल्कि अपने जीवन को भी राम नाम से जोड़ते हैं। यह एक ऐसा अनूठा तरीका है जिससे वे अपने धर्म और आस्था को मनाते हैं।

 

 

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