शिवरीनारायणः जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण स्थान पर रुककर भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे। किंवदंती है कि शबरी के नाम पर ही शिवरीनारायण नाम पड़ा। यहां जोंक, महानदी और शिवनाथ नदी का संगम है। यहां नर-नारायण और शबरी का मंदिर भी है। मंदिर के पास एक ऐसा वट वृक्ष है, जिसके पत्ते दोने के आकार के हैं। राजधानी रायपुर से शिवरीनारायण 128 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए सड़क और रेल मार्ग का इस्तेमाल किया जा सकता है।
सीताबेंगरा गुफाः
सरगुजा जिले में रामगढ़ की पहाड़ी में तीन कक्षों वाली सीताबेंगरा गुफा है। इसे देश की सबसे पुरानी नाट्यशाला कहा जाता है। कहा जाता है वनवास काल में राम यहां पहुंचे थे, यह सीता का कमरा था। कालीदास ने मेघदूतम् की रचना यहीं की थी। यह कोरिया जिले में है। राम के वनवास काल का पहला पड़ाव यही माना जाता है। सीताबेंगरा गुफा नदी के किनारे स्थित है, जहां गुफाओं में 17 कक्ष हैं। इसे सीता की रसोई के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्यटन स्थल को देखना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको अंबिकापुर पहुंचना होगा जोकि रायपुर से 336 कि.मी की दूरी पर स्थित है। अंबिकापुर बस और रेल मार्ग से पहुंचा जा सकता है। सीताबेंगरा गुफा देखने के लिए बस और कार का विकल्प उपलब्ध है।
माता कौशल्या की जन्मस्थली चंदखुरीः
छत्तीसगढ़ में चंदखुरी को भगवान श्री राम का ननिहाल कहा जाता है। यहां कौशल्या माता का एक प्राचीन मंदिर है, जिसे 10वीं शताब्दी में बनाया गया था। माता कौशल्या का यह धाम अब और भी सुंदर और भव्य हो चुका है। राजधानी रायपुर के करीब ने माता कौशल्या के प्राचीन मंदिर की खूबसूरती देखने लायक है। यह मंदिर तालाब के बीचों बीच बना हुआ है और आस पास जहां तक देखें, वहां खूबसूरत दृश्य ही दिखाई देता है। चंदखुरी राजधानी रायपुर से लगा हुआ है। बस या कार द्वारा पहुंचा जा सकता है।
जटायु शिलाः
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में स्थित दण्डकारण्य में माना जाता है कि जटायु ने रावण से युद्ध करते समय प्राण त्यागे थे। इस जगह को जटायु शिला कहा जाता है जोकि कोण्डागांव के फरसगांव से करीब दो किलोमीटर दूर जगदलपुर रोड पर है। यहां जाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग 30 से नीचे उतरकर दायीं ओर जंगल में 600 मीटर जाना होता है। इस इलाके में विशालकाय चट्टानें और बड़े पत्थर एक-दूसरे से सटे या खड़ी बनावट में हैं। यहां कोई रास्ता नहीं है और कोई संकेतक भी नहीं लगा है। घने जंगल में खोजते हुए आगे बढ़ना होता है। फरसगांव पहुंचने के लिए राजधानी रायपुर से बस या कार का विकल्प उपलब्ध है।