छत्तीसगढ़ अपने प्राचीन मंदिरों और महोत्सवों के आयोजन के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। इसलिए पर्यटक यहां खिंचे चले आते हैं। यहां पर चक्रधर समारोह, सिरपुर महोत्सव और बस्तर दशहरे का विश्व प्रसिद्ध आयोजन होता है तो दूसरी ओर चित्रकोट जलप्रपात ने विश्व ख्याति अर्जित की है जिसे 'भारत का नियाग्रा फॉल' भी कहा जाता है।
हमारा जीवन एक रंगमंच है। यहां खुशी है, दुख है, संगीत है, नाटक है और चक्रधर समारोह भी। देश के रंगमंच में छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है यह महोत्सव। रायगढ़ के रामलीला मैदान में इस बार यह आयोजन बीते 7 सितंबर से 16 सितंबर तक चला। चक्रधर समारोह में सीएम विष्णु देव साय अलग अंदाज में नजर आए। यहां उन्होंने अपने गृह ग्राम बगिया के कर्मा नर्तकों के साथ मंच पर ढोलक बजाकर कर्मा डांस किया। साय ने कहा, ‘‘गीत और संगीत के क्षेत्र में रायगढ़ और संगीत सम्राट महाराज चक्रधर का खास स्थान है। संगीत सम्राट महाराज चक्रधर जी ने शास्त्रीय संगीत कला को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, एक नई पहचान दी, संगीत की विरासत को विशाल और समृद्ध बनाया।’’
चक्रधर समारोह
चक्रधर समारोह एक सर्वकालिक एवं निरंतर गतिमान उत्सव है। यह महाराजा चक्रधर सिंह के सांगीतिक व्यक्तित्व का स्पंदित रूपांकन है, जो अच्छे तबला और सितार वादक होने के साथ तांडव नृत्य में भी निपुण थे। राजा चक्रधर की याद में 1985 से गणेश चुतुर्थी के अवसर पर यहां के राजघराने ने चक्रधर समारोह की शुरुआत की जो दस दिनों तक मनाया जाता है। इस वर्ष आयोजित समारोह में देश-विदेश के नामी गिरामी कलासाधकों ने अपनी प्रस्तुति दी। पूर्व में आयोजित समारोहों में शहनाई वादक उस्ताद बिसमिल्लाह खान, बांसुरी वादक हरि प्रसाद चौरसिया, गजल गायक गुलाम अली खान, जगजीत सिंह, कथक गुरु बिरजू महाराज, फिरतू महाराज, पंडवानी गायिका तीजन बाई, छन्नूलाल मिश्रा, रूपकुमार राठौर, उदित नारायण, हेमा मालिनी, पंकज उदास, चंदन दास, सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान जैसे कलाकारों ने इस मंच को सुशोभित किया है। यह समारोह रायगढ़ शहर में मनाया जाता है जोकि राजधानी रायपुर से 250 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां सड़क और रेल मार्ग से पहुंचा जा सकता है।
सिरपुर महोत्सव
छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों में महोत्सव व मड़ई-मेला का आयोजन खास पर्व व तिथियों में किया जाता है। इनमें सिरपुर महोत्सव का विशेष महत्व है। प्रतिवर्ष यह महोत्सव महानदी तट पर माघ पूर्णिमा के दिन से शुरू होता है। सिरपुर अपने ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के कारण आकर्षण का केंद्र हैं। यह पांचवीं से आठवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कोसल की राजधानी था। सिरपुर शिव, वैष्णव, बौद्ध धर्मों का प्रमुख केन्द्र भी है। सिरपुर महोत्सव आधुनिकता के दौर में भी अपनी प्राचीन संस्कृति और भव्यता को बनाए हुए है। युवा पीढ़ी को यहां की बौद्ध विरासत तथा लोककला एवं संस्कृति को जानने का अवसर मिलता है। सिरपुर के खास आकर्षणों में से एक लक्ष्मण मंदिर है जो पूरे भारत के मंदिरों में से वास्तुकला में सबसे अच्छा माना जाता है। इस शहर के अन्य आकर्षणों में आंनद प्रभु कुरी विहार, तुरतुरिया, बुद्ध विहार, राम मंदिर, बारनवापारा वन्यजीव अभयारण्य और गंधेश्वर मंदिर भी शामिल है। सिरपुर राजधानी रायपुर से तकरीबन 80 किमी और महासमुंद जिले से 35 किमी की दूरी पर स्थित है जहां बस और कार द्वारा पहुंचा जा सकता है।
बस्तर दशहरा
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का दशहरा पूरी दुनिया में मशहूर है। यह दुनिया में सबसे ज्यादा दिनों तक मनाया जाने वाला पर्व है जो 75 दिनों तक चलता है और बस्तर के सभी आदिवासी समाजों की सामाजिक समरसता का एक उदाहरण है। इस अवसर पर श्रद्धालु लकड़ी के विशाल रथ को खींचते हैं। आमतौर पर दशहरे का संबंध भगवान राम से माना जाता है लेकिन बस्तर के दशहरे का संबंध महिषासुर का वध करने वाली मां दुर्गा से जुड़ा हुआ है। बस्तर के विश्व प्रसिद्ध दशहरे पर रथ यात्रा की शुरुआत चालुक्य वंश के चौथे राजा पुरुषोत्तम देव ने की थी। उन्हें जगन्नाथ पुरी के राजा ने लहुरी रथपति की उपाधि देते हुए 16 चक्कों का रथ भेंट किया था। लगभग 800 सालों से भी अधिक समय से चली आ रही परंपरा को पूरा करने के लिए बस्तर महाराजा मां काछन देवी से अनुमति लेने काछन गुड़ी पहुंचते हैं। माता से आशीर्वाद मांगते हैं कि बस्तर सहित प्रदेश में खुशहाली बनी रहे और दशहरा पर्व बिना किसी विघ्न के पूरा हो सके। इसके बाद दशहरा की शुरुआत होती है। बस्तर दशहरा महोत्सव का केन्द्र जगदलपुर शहर है, जो राजधानी रायपुर से 300 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां सड़क और वायु मार्ग से पहुंचा जा सकता है।
भोरमदेव महोत्सव
छत्तीसगढ़ के पुरातात्त्विक, धार्मिक, पर्यटन और ऐतिहासिक महत्व के स्थल भोरमदेव मंदिर में राज्य सरकार ने भोरमदेव महोत्सव की शुरुआत की है। यह मंदिर एक हजार वर्ष प्राचीन माना जाता है तथा भगवान शिव को समर्पित है। यह छत्तीसगढ़ के कवर्धा से 18 किमी. दूर तथा राजधानी रायपुर से 125 किमी. की दूरी पर स्थित है जहां सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। मंदिर के चारों ओर मैकल पर्वतसमूह है, जिनके मध्य हरी भरी घाटी में यह मंदिर है। मंदिर के सामने एक सुंदर तालाब भी है। इस मंदिर की बनावट खजुराहो तथा कोणार्क के मंदिर के समान है जिसके कारण लोग इस मंदिर को 'छत्तीसगढ का खजुराहो' भी कहते हैं। इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने बनवाया था। ऐसा कहा जाता है कि गोंड राजाओं के देवता भोरमदेव थे एवं वे भगवान शिव के उपासक थे। भोरमदेव, शिवजी का ही एक नाम है, जिसके कारण इस मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा। राज्य सरकार प्रतिवर्ष भोरमदेव महोत्सव का आयोजन करती है।
चित्रकोट जलप्रपात
चित्रकोट जलप्रपात को भारत का नियाग्रा फॉल भी कहा जाता है। इसे सबसे चौड़ा जलप्रपात होने का गौरव प्राप्त है। यह बस्तर स्थित जगदलपुर से 38 किमी दूर इंद्रावती नदी पर स्थित है। नदी का पानी घने वनस्पतियों के बीच से बहता है और लगभग 95 फीट की ऊंचाई से गिरता है। घोड़े की नाल के आकार का यह जलप्रपात, जुलाई से अक्टूबर के बीच मानसून के दौरान और उसके बाद सबसे अच्छा दिखाई देता है। इसकी विशेषता यह है कि वर्षा के दिनों में यह रक्त-लालिमा लिए हुए होता है तो गर्मियों की चांदनी रात में यह बिल्कुल सफेद दिखाई देता है। जगदलपुर से 40 कि.मी और रायपुर से 300 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह जलप्रपात छत्तीसगढ़ के प्रमुख पिकनिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। सघन वृक्षों एवं विंध्य पर्वतमालाओं के मध्य स्थित इस जलप्रपात से गिरने वाली विशाल जलराशि पर्यटकों का मन मोह लेती है।