आइआइटी के पूर्व छात्र धीरज सिंह की आरटीआइ से पता चला है कि पिछले कुछ साल से आइआइटी में पढ़ने वाले करीब 30 फीसदी छात्रों को नौकरी नहीं मिल रही है और नए आइआइटी में तो यह आंकड़ा 40-50 फीसदी तक है। धीरज सिंह से आइआइटी छात्रों की बेरोजगारी दर और वैश्विक रोजगार बाजार के बदलते परिदृश्य और छात्रों तथा शिक्षकों की गुणवत्ता पर खास बातचीत के संपादित अंशः
हाल ही में आइआइटी बॉम्बे ने अपने प्लेसमेंट के आंकड़े जारी किए, जिसके मुताबिक 25 फीसदी छात्रों को नौकरी नहीं मिली और सबसे कम पैकेज सालाना 4 लाख रुपये का रहा है। इसके मायने क्या हैं?
आइआइटी बॉम्बे के प्लेसमेंट की पूरी रिपोर्ट देखें, तो करीब 2,414 छात्रों ने प्लेसमेंट में हिस्सा लिया। इसमें से 1,979 छात्रों ने प्लेसमेंट में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया जबकि 433 प्लेसमेंट में शामिल तो हुए लेकिन उतने सक्रिय नहीं थे। यानी प्लेसमेंट में सक्रिय और असक्रिय रूप से हिस्सा लेने वालों में 1,475 छात्रों को नौकरी मिली और 937 छात्रों को नहीं मिली। इस हिसाब से सिर्फ 61 फीसदी को नौकरी मिली और 39 फीसदी से ज्यादा को नौकरी नहीं मिली। देश में 23 आइआइटी हैं। कई नए आइआइटी में बेरोजगारों की दर 50-60 फीसदी है।
आइआइटी बॉम्बे जैसे संस्थान के एक छात्र को महज चार लाख रुपये सालाना का पैकेज मिला। आप इसे कैसे देखते हैं?
यह तथ्य भ्रामक है। एक गणना के अनुसार, आइआइटी बॉम्बे का औसत पैकेज 17-18 लाख रुपये है। इस बार नौकरी पाने वाले 1,475 छात्रों में 206 छात्र ऐसे हैं जिनका पैकेज 10 लाख रुपये से भी कम है। यानी औसत का आधा। सबसे कम सालाना पैकेज चार लाख रुपये है।
आइआइटी से ही निकले नारायणमूर्ति के मुताबिक, आइआइटी के 80 फीसदी छात्र इंडस्ट्री के लिए तैयार नहीं हैं। कई रिपोर्ट में यह भी आया है कि अब क्वालिटी में गिरावट आ रही है। आप इसे कैसे देखते हैं?
कोविड के दौरान टीसीएस और इंफोसिस जैसी कंपनियों ने छह लाख छात्रों को नौकरी पर रखा और इस साल सिर्फ 60,000 को रखा है। क्या तब उनमें टैलेंट था और अब गायब हो गया? दरअसल, बात यह है कि हायरिंग मार्केट आर्थिक स्थितियों और कारोबारी माहौल के हिसाब से काम करती है, स्किल या टैलेंट देखकर नहीं। अगर डिमांड नहीं होगी तो हायरिंग नहीं होगी। आइआइटी खड़गपुर के पिछले दस साल के आंकड़ों पर नजर डालें, तो करीब 30 फीसदी को नौकरी नहीं मिली है। दरअसल, नई नौकरियां नहीं आ रही हैं, सिर्फ रिप्लेसमेंट किए जा रहे हैं।
आइआइटी के पूर्व छात्र धीरज सिंह, जिनकी आरटीआइ से आइआइटी के प्लेसमेंट दर में गिरावट सामने आई
क्या जॉब प्लेसमेंट कम होने में एआइ की भी कोई भूमिका है?
पिछले कुछ साल में ऐपल, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और टेस्ला जैसी बड़ी कंपनियों से करीब पांच लाख लोगों को निकाला गया है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की है। अब ग्रोथ पर कम और प्रॉफिट पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। एआइ का असर कैंपस प्लेसमेंट पर भी दिख रहा है। दरअसल, आइआइटी में एक-तिहाई प्लेसमेंट सॉफ्टवेयर सेक्टर में होता है और यही सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित है।
जो नए आइआइटी खुले हैं, उनके इंफ्रास्ट्रक्चर और शिक्षकों की गुणवत्ता पर भी सवाल उठ रहे हैं। सरकार को नए आइआइटी खोलने पर ध्यान देना चाहिए या पुराने को बेहतर बनाने पर?
नए और पुराने आइआइटी का सवाल ही नहीं उठता। दरअसल, पुराने आइआइटी में तो स्थिति और भी खराब है। नए आइआइटी में चार-पांच हजार छात्र पढ़ते हैं जबकि पुराने आइआइटी में 10-15 हजार छात्र पढ़ते हैं। इतने छात्रों को पुराने आइआइटी में प्लेसमेंट मिलनी मुश्किल हो रही है, वहां बेरोजगारी की दर बहुत ज्यादा है।
आपके हिसाब से क्या होना चाहिए?
कई बातें हैं। छात्रों को सबसे पहले अपने कौशल को निखारना होगा। नौकरी तभी मिलेगी जब कौशल बाजार की मांग के अनुरूप होगा। मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर ज्यादा ध्यान देना होगा। सॉफ्टवेयर डेवलपर्स की मांग कम हो गई है और उनकी जगह सिर्फ एक चिप ले रही है। संस्थानों की समस्या यह है कि वे हर साल प्लेसमेंट करते हैं, लेकिन औद्योगिक विकास हर साल एक जैसा नहीं होता। इसलिए रोटेशनल बेसिस पर प्लेसमेंट होनी चाहिए ताकि ज्यादा लड़कों को नौकरी मिल सके।