वैक्सीन के विकास को समझने के लिए हमें सबसे पहले उसके बैकग्राउंड को समझना होगा। भारत में वैक्सीन विकसित करने का काम कुछ निजी कंपनियों ने अपने जिम्मे लिया हुआ है। इस पूरी प्रक्रिया में सरकार की केवल यही भूमिका रही है, कि परीक्षण के लिए सरकार ने वायरस स्ट्रेन को पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी तक पहुंचाया है। इसके अलावा मुझे नहीं लगता है कि सरकार ने वैक्सीन विकसित करने की प्रक्रिया में एक रुपये से ज्यादा खर्च किया है। इस समय चाहे सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया हो या फिर भारत बॉयोटेक, जाइडस कैडिला, डॉ रेड्डीज या दूसरी कोई कंपनी वह अपने प्रयासों से ही वैक्सीन विकसित करने में लगी हुई हैं। ऐसे में अगर सरकार चाहती थी कि वैक्सीन का तेजी से उत्पादन हो, तो उसके लिए उसे बीते मार्च-अप्रैल में ही नीतिगत स्तर पर फैसले लेने चाहिए थे।
वैक्सीन विकसित होने की प्रक्रिया में भी सरकार वही कर रही है, जो उसने कोरोना के संक्रमण को रोकने में किया। यानी सरकार वैक्सीन को लेकर भी तीन कदम पीछे ही चल रही है। सरकार ने निजी कंपनियों के भरोसे वैक्सीन को उनकी गति के आधार पर विकसित होने के लिए छोड़ दिया। अब सरकार वैक्सीन वितरण की बात कर रही है। यह मुझे कोई बहुत प्रोत्साहित नहीं कर रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब यह निजी कंपनियां वैक्सीन का लाइसेंस लेकर रजिस्ट्रेशन करा लेगी। तो जिस तरह खुले बाजार में किसी उत्पाद की बिक्री होती है, वैसे ही वैक्सीन भी मिलेगी। यानी लोग पैसे देकर वैक्सीन खरीदेंगे। ऐसे में अब सरकार के पास क्या उपाय है? वह भी इन्ही कंपनियों से खरीदकर ही वैक्सीन का वितरण करेगी। जिसके बाद ही वह यह तय कर पाएगी, कि उसे वैक्सीन मुफ्त में वितरित करनी है या फिर उसके लिए लोगों को पैसे देने होंगे। ऐसे में जब तक हमें सरकार की वैक्सीन वितरण की नीति का पता नहीं चलेगा, तब तक हमारे लिए कुछ भी कहना काफी मुश्किल होगा।
अभी तक भारत में जो भी टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है, वह मुफ्त रहा है। साथ ही यह भी समझना होगा कि भारत में चलाया जा रहा टीकाकरण अभियान बच्चों के लिए है। जबकि कोविड-19 वैक्सीन सभी उम्र के लोगों को लगाई जाएगी। ऐसे में हमें इस तरह के टीकाकरण का पहले से कोई अनुभव नहीं है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इसके लिए हमारी सरकार तैयार है? अगर ऐसा नही है तो टीकाकरण की सफलता संदेह में आ जाएगी। जहां तक कोविड वैक्सीन की उपलब्धता की बात है। तो इस समय तीन प्रमुख वैक्सीन हैं जो सबसे पहले बाजार में उपलब्ध हो सकती हैं। इसमें सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की वैक्सीन तीसरे चरण में हैं, स्पूतनिक-वी भी दूसरे-तीसरे चरण में हैं, भारत बॉयोटेक की वैक्सीन भी तीसरे चरण के लिए तैयार है। ऐसे में हम जनवरी-फरवरी में उम्मीद कर सकते हैं कि वैक्सीन ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया के पास परीक्षण के लिए पहुंच जाएगी। उसके बाद कम से कम दो हफ्ते डीसीजीआई को समय लेगा। अगर इस दौरान कोई अड़चन नहीं आती है, तो हम उम्मीद कर सकते हैं, मार्च-अप्रैल 2021 तक वैक्सीन का रजिस्ट्रेशन हो जाएगा। सरकार अग्रणी भूमिका निभाए तो वैक्सीन जनवरी-फरवरी में भी उपलब्ध हो सकती है।
सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती वैक्सीन वितरण को लेकर आएगी। क्योंकि अभी तक उसको लेकर कोई ठोस नीति सामने नहीं आई है। यह समझना भी जरूरी है कि वैक्सीन की सभी को जरूरत नहीं है। जो लोग संक्रमण से ठीक हो चुके हैं, उन्हें वैक्सीन की जरूरत नही है। इसके अलावा हमें उन क्षेत्रों की भी पहचान करनी होगी, जहां वैक्सीन की जरूरत है और कहां पर वैक्सीन की जरूरत नही है। क्षेत्रों की पहचान के बाद यह हमें यह तय करना होगा कि जिन्हें वैक्सीन देनी है, उन्हें पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर वैक्सीन मिलेगी या फिर उसमें हम प्राथमिकता तय करेंगे। उदाहरण के तौर पर स्वास्थ्य कर्मी, डायबिटीज, हाइपर टेंशन से बीमार लोग, 60 साल से उम्र के लोगों को, बच्चों, फैक्ट्री में काम करने वाले और जरूरी सेवाएं देने वालों को प्राथमिकता दी जा सकती है। इन चीजों को करने में पैसे की जरूरत नहीं है, बल्कि इसके लिए समय की जरूरत है। जिसमें शायद हम पीछे चल रहे हैं।
एक सवाल यह भी उठ रहा है कि वैक्सीन वितरण में कोल्ड चेन की समस्या आ सकती है। किसी भी तरह की वैक्सीन को ठंडे तापमान की जरूरत होती है। लेकिन मेरा मानना है कि यह कोई बड़ी चुनौती नहीं है। अस्सी के दशक में जब टीकाकरण अभियान का विस्तार हो रहा था। उस वक्त मेरे सामने भी यह सवाल आया था। तब मैने कहा था कि देश के हर कोने में आइसक्रीम वाला पहुंच जाता है। जिसके पास फ्रीजर होता है। जब आइसक्रीम हर जगह पहुंच सकती है तो वैक्सीन क्यों नहीं ? जब 80 के दशक में यह समस्या नहीं थी तो 2020 में कैसे हो सकती है। अगर कोई वैक्सीन ऐसी आती है जिसमें -20 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की जरूरत होगी, तब कोल्ड चेन की समस्या आ सकती है। लेकिन अगर कोविड-19 वैक्सीन के -8 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की जरूरत हुई तो किसी तरह की समस्या नहीं आएगी। हमें यह भी यह देखना होगा कि अगर वैक्सीन का वितरण वार्ड तक सीमित रहेगा, तो कोल्ड चेन समस्या नहीं बनेगी, लेकिन अगर वैक्सीन लोगों के घर-घर लगाने की योजना है, तो समस्या आएगी।
एक और सवाल उठ रहा है कि वैक्सीन की कीमत क्या होगी। यहां भी सरकार ने अभी तक कुछ नहीं स्पष्ट किया है। उसने जरूर चुनाव वाले राज्य में मुफ्त वैक्सीन देने का वादा किया है। सरकार को यह भेदभाव नहीं करना चाहिए। कंपनियों के पास दिक्कत यह है कि उन्हें नहीं पता है कि वह कितने डोजेज का उत्पादन करेंगी। इसलिए सरकार तीन कदम पीछे चल रही है।
(लेखक एम्स के सेंटर ऑफ एडवांस्ड रिसर्च एंड वॉयरोलॉजी के पूर्व डायरेक्टर रह चुके हैं। यह लेख प्रशांत श्रीवास्तव से बातचीत पर आधारित है)