यह विडंबना ही है कि हरियाणा की ऐतिहासिक नगरी पानीपत से जनवरी 2015 में शुरू की गई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ मुहिम की ब्रांड एंबेसडर रहीं ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक और कई अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता विनेश तथा संगीता फोगाट महिला खिलाड़ियों की अस्मिता की रक्षा की विकट लड़ाई लड़ रही हैं। लेकिन यहां एक विडंबना और है। फोगाट बहनों के गांव बलाली में उच्च शिक्षा के लिए कोई स्कूल नहीं है। आठवीं कक्षा से आगे की पढ़ाई के लिए यहां के बच्चों को करीब पांच किलोमीटर दूर झोझू गांव जाना पड़ता है।
सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय न होना उनके पढ़ाई छोड़ने का बड़ा कारण बना हुआ है। पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट में 26 मई को हरियाणा सेकेंडरी शिक्षा विभाग के निदेशक डॉ. अंशज सिंह ने हलफनामे में बताया कि राज्य के 538 सरकारी स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं हैं जबकि लड़कों के लिए 1047 सरकारी स्कूलों में अलग शौचालय नहीं है। दिसंबर, 2022 को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट में भी बताया गया था कि “907 सरकारी स्कूलों में लड़के-लड़कियां साझा शौचालय का प्रयोग करते हैं।”
यही नहीं, 236 स्कूलों में बिजली नहीं है। 131 स्कूलों में पेयजल कनेक्शन नहीं है। 2651 स्कूलों के छात्र दूषित पानी पीने को मजबूर हैं क्योंकि यहां नलों में पाइप लाइन के जरिए पेयजल की आपूर्ति नहीं होती और 321 स्कूल बगैर चारदिवारी के चलाए जा रहे हैं।
यूं तो हलफनामे में निदेशक ने भरोसा दिलाया है कि चालू वित्त वर्ष में तमाम स्कूलों में शौचालय, पेयजल और बिजली कनेक्शन जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया करा दी जाएंगी। शिक्षा मंत्री कंवरपाल गुज्जर भी दावा करते हैं कि एक साल के भीतर कोई भी सरकारी स्कूल शौचालय, पेयजल और बिजली आपूर्ति के बगैर नहीं रहेगा। लेकिन शिक्षा का बजट देखकर मंत्री के दावे में दम नहीं लगता। हलफनामे में उक्त अधिकारी ने ही बताया कि कुल बजट का सिर्फ एक फीसदी निमार्ण कार्यों के लिए आंवटित होता है। जानकारों के मुताबिक सरकारी स्कूलों के इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण के लिए 1784 करोड़ रुपये की जरूरत है जबकि चालू वित्त वर्ष 2023-24 के लिए बजट मात्र 424 करोड़ रुपये का है। हाइकोर्ट के हलफनामे में बचे हुए विद्यालयों में शौचालयों, पेयजल और बिजली आपूर्ति पर 46 करोड़ रुपए खर्च करने का वादा किया गया है।
बड़ी संख्या में लड़कियां हाइस्कूल तक नहीं पहुंच पातीं। पांचवीं कक्षा के बाद ही वे स्कूल छोड़ देती हैं। बजट सत्र में पेश की गई 2021-2022 की रिपोर्ट की मुताबिक, पहली से पांचवीं कक्षा तक की लड़कियों की ड्रॉपआउट संख्या शून्य है जबकि छठी से आठवीं में 0.2 प्रतिशत और नौवीं से दसवीं कक्षा में यह 5 प्रतिशत रहा है। हायर सेकेंडरी तक 36.61 फीसदी लड़कियां पढ़ाई छोड़ देती हैं। कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर प्रो. अविनाश चावला कहते हैं, “ड्रॉपआउट के कई कारणों में परिवार की दयनीय आर्थिक स्थिति के अलावा घर से स्कूल की दूरी और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा भी है।”
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के निवार्चन क्षेत्र करनाल के देवीपुर गांव की लड़कियों को आज भी कॉलेज जाना नसीब नहीं है, क्योंकि गांव से कॉलेज जाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट नहीं है। पहली बार इस गांव की लड़की नैना और उसकी 14 सहेलियों ने जिद कर 2022 में कॉलेज जाना शुरू किया था। स्कूल के रूट पर गांव से बस तो चलती है पर लौटने में देर हो जात है। गांव के सरपंच कुष्ण कुमार कहते हैं, “बस का समय ठीक करने का हल नहीं निकल पाया है।”
हिसार से 22 किलोमीटर की दूर सीसवाला गांव में 12वीं तक का स्कूल गांव से करीब 10 किलोमीटर दूर है। स्कूल जाने-आने का कोई साधन नहीं है। 1954 में बना पांचवीं कक्षा तक का यह स्कूल 1982 में 10वीं तक हो गया। उसके बाद स्कूल को 12वीं तक अपग्रेड करने की मांग को लेकर गांव वाले पिछले दो वर्षों से आंदोलनरत हैं।
टोक्यो ओलंपिक में एथलेटिक्स में पहला गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज चोपड़ा के गांव खंडरा की बेटियां भी 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हैं। आगे की पढ़ाई के लिए गांव से 12 किलोमीटर दूर स्कूल जाने के लिए सरकारी बस सेवा नहीं है। नीरज के चाचा सतीश चोपड़ा कहते हैं, “नीरज के पदक जीतने के बाद गांव वालों को 12वीं तक स्कूल खुलने की जगी उम्मीद पूरी नहीं हो सकी।”
कल्पना चावला से लेकर अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शतरंज खिलाड़ी मास्टर तनिष्का कोटिया तथा उनकी बहन राधिका कोटिया ने हरियाणा की बेटियों में जनून भरा है। लेकिन शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं न होने की वजह से पढ़ाई अधूरी छोड़ने वाली गांव की बेटी पढ़ेगी नहीं तो आगे बढ़ेगी कैसे?