अपनी वेल यात्रा से भाजपा ने द्रमुक को रक्षात्मक होने पर मजबूर कर दिया, जो अपनी तथाकथित हिंदू-विरोधी छवि को बदलने की कोशिश करती दिखी। द्रमुक प्रमुख एम.के. स्टालिन ने भी वेल यात्रा की, जिससे साफ है कि वह भाजपा के प्रोपेगेंडा में फंसते नजर आ रहे हैं। द्रमुक हिंदू विरोधी पार्टी नहीं है, यह साबित करने के लिए उसने घोषणापत्र में कई वादे किए हैं। मसलन, राज्य में मंदिरों के जीर्णोद्धार और कुंभाभिषेकम के लिए एक हजार करोड़ का फंड, पर्वतीय मंदिरों के लिए रोप-वे, देश के प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों की तीर्थयात्रा के लिए राज्य के एक लाख भक्तों को 25,000 रुपये देने का वादा, हिंदू संत वल्लार के वडालुर गांव के मंदिरों के कलाकारों को वित्तीय सहायता देना और अंतरराष्ट्रीय केंद्र की स्थापना करना।
द्रमुक का कहना है कि तमिलनाडु के लोग भले ही मंदिर जाने वाले हैं, उन्होंने हमेशा धर्म को राजनीति से अलग रखा है। लेकिन अचानक राज्य में मंदिरों को सरकार के नियंत्रण से मुक्त करने का अभियान शुरू होने से द्रमुक की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
हालांकि इस अभियान का समर्थन करना द्रमुक के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि वह शुरू से मंदिरों के मामले में सरकार की शक्तियों को कमजोर करने के कदमों का विरोध करती रही है। नई मांग पूरी होने पर स्थानीय मंदिरों के न्यासियों को अधिक स्वायत्तता मिल जाएगी। लेकिन सरकार के नियंत्रण के बाद से राज्य के सैकड़ों मंदिर जर्जर अवस्था में पहुंच गए हैं, वहां भारी अव्यवस्था है और मूर्तियों की तस्करी और चोरी बढ़ी है। जमीनों पर कब्जा बढ़ने से मंदिरों की कमाई भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है।
मंदिरों की संपत्तियों को बचाने की मुहिम चला रहे टी.आर. रमेश का कहना है, “राज्य सरकार के विभाग अक्सर मंदिर की भूमि पर कब्जा कर लेते हैं, जिसे केवल हाइकोर्ट के आदेशों से रोका जा सकता है। ये भूमि और भवन पूरी तरह से मंदिर के हैं और सैकड़ों वर्षों में अनगिनत लोगों के मालिकाना हक से गुजरे हैं। ऐसे में वास्तविक मालिकाना हक का कोई रिकॉर्ड नहीं है। अहम बात यह है कि जो किरायेदार मंदिर की इन संपत्तियों का उपयोग कर रहे हैं, वे बहुत कम या न के बराबर पैसा दे रहे हैं।”
वर्तमान चुनाव में मंदिर मुद्दे का खूब इस्तेमाल किया जा रहा है। मंदिरों का नियंत्रण स्थानीय लोगों को दिए जाने के मुद्दे को भाजपा ने लपक लिया है। उसने अपने घोषणा पत्र में इस कदम का समर्थन किया है। अब धार्मिक और आध्यात्मिक गुरु भी इस आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं।
आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव ने ईशा फाउंडेशन में शिवरात्रि के अवसर पर भक्तों से कहा कि वे मंदिरों का नियंत्रण अपने हाथों में लें ताकि उनका पुनरुद्धार किया जा सके। उन्होंने कहा, “ईस्ट इंडिया कंपनी ने हमें ऐसी विरासत दी, जिसमें तमिलनाडु के हिंदू मंदिर सरकार के नियंत्रण में आ गए। इस वजह से तमिलों की महान परंपराओं का पतन हुआ और अब लोगों को मौजूदा व्यवस्था से घुटन होने लगी है। एचआर एंड सीई (हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ व्यवस्था विभाग) राज्य में 44,121 मंदिरों की देखभाल करता है। उसने स्वयं मद्रास हाइकोर्ट को बताया कि 11,999 मंदिरों के पास रोज पूजा करने के भी पैसे नहीं हैं।” वासुदेव ने यह भी कहा, “जब मुस्लिम, ईसाई और सिख अपने पूजा स्थलों को नियंत्रित कर सकते हैं तो हिंदू मंदिरों पर क्यों सरकारों का अधिकार होना चाहिए?”
द्रमुक को अंदेशा है कि आध्यात्मिक गुरु का अभियान भाजपा के हिंदू एजेंडे के समर्थन में है। पार्टी के एक विधायक ने कहा, “जग्गी वासुदेव के अभियान से न केवल द्रमुक को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि परोक्ष रूप से भाजपा और उसके सहयोगियों को मदद मिलेगी।” इन आरोपों का खंडन करते हुए जग्गी ने कहा, “हम किसी राजनीतिक दल के खिलाफ नहीं हैं। हम केवल यह चाहते हैं कि जो भी दल सत्ता में आए, वह हिंदू भावनाओं का समर्थन करे और मंदिरों का नियंत्रण लोगों के हाथों में दे जिससे एक बार फिर मंदिरों की संपन्नता लौट सके।”
भाजपा मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करेगी और भक्तों को उसका प्रशासन सौंपेगी। धर्मांतरण विरोधी कानून लाएगी और गोहत्या पर प्रतिबंध लगाएगी
तमिलनाडु में भाजपा का घोषणापत्र
मेरी पत्नी मंदिर जाती है
एम.के. स्टालिन, द्रमुक अध्यक्ष