क्या मोदी 2.0 का पहला बजट किसानों की अपेक्षाओं पर खरा उतरता है, कृषि क्षेत्र की विकट स्थिति को देखते हुए यह सवाल अहम हो जाता है। सरकार ने कृषि और अन्य गतिविधियों का आवंटन बढ़ाकर 1,51,518 करोड़ रुपये कर दिया है। पिछले साल इसका आवंटन 63,836 करोड़ रुपये और संशोधित आवंटन 86,602 करोड़ रुपये था। किसानों का जीवन प्रभावित करने वाले ग्रामीण विकास का भी बजट 1,35,109 करोड़ रुपये (संशोधित) से बढ़ाकर 1,40,762 करोड़ रुपये किया गया है।
यह सवाल उठने का पहला कारण है कि मोदी 1.0 सरकार ने पिछले पांच साल में किसानों की अपेक्षाएं बढ़ाई हैं क्योंकि किसानों की आय सुधारने और कृषि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था दुरुस्त करने के लिए सरकार ने कई कदम भी उठाए। दूसरे, छोटे और सीमांत किसान, बंटाईदार किसान, आदिवासी और महिला किसानों सहित अधिकांश किसानों की स्थिति बहुत खराब है क्योंकि वे कम आय के कुचक्र में फंसे हैं। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने को सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उनमें ए2 प्लस एफएल (कृषि लागत और किसानों का मेहनताना) जोड़कर तय की गई लागत के ऊपर 50 फीसदी लाभ जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना, 585 थोक मंडियों को जोड़कर ई-नैम का विकास, 22,000 ग्रामीण हाटों में सुधार और उन्हें थोक मंडियों से जोड़ना, लघु सिंचाई पर खास ध्यान देने के साथ सिंचाई में निवेश बढ़ाना, फसल बीमा योजना और हाल की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना शामिल हैं।
इन योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू किया जाता, तो कृषि अर्थव्यवस्था और किसानों की आर्थिक स्थिति सुधर जाती। दुर्भाग्यवश इन योजनाओं को लागू करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इस बात के संकेत नहीं हैं कि किसानों की वास्तविक आय 2022 तक दोगुनी हो जाएगी। 2015-16 में किसानों की दोगुनी आय की योजना लॉन्च हुए चार साल हो चुके हैं, लेकिन इसे लागू करने का वास्तविक रोडमैप तैयार नहीं हो पाया है। पीएम किसान सम्मान निधि योजना में कई खामियां हैं। भूमिहीन बटाईदार किसानों को इस योजना में लाने के लिए अभी तक कोई प्रयास नहीं हुए हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, ओडिशा, पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में बंटाईदार किसान हैं।
ध्यान देने की बात यह है कि देश में 50 फीसदी से ज्यादा कृषि क्षेत्र असिंचित है। किसानों की दोगुनी आय पर बनी कमेटी का कहना है कि यह लक्ष्य पाने के लिए 2022 तक न्यूनतम 53 फीसदी कृषि क्षेत्र को सुनिश्चित सिंचाई के तहत लाना आवश्यक है। हाल के लोकसभा चुनाव के समय जारी भारतीय जनता पार्टी के संकल्प-पत्र में उल्लेख है कि सभी 68 लंबित बड़ी सिंचाई परियोजनाएं दिसंबर 2019 तक पूरी हो जाएंगी। लेकिन इसके लिए बजट आवंटन कहां है? यद्यपि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का आवंटन बढ़ाकर 9,682 करोड़ रुपये किया गया है जो पिछले साल 8,251 करोड़ रुपये था। इसके बावजूद सिंचाई परियोजनाएं पूरी करने के लिए आवंटन पर्याप्त नहीं है। फसल बीमा योजना के तहत आवंटन 12,976 करोड़ रुपये (संशोधित) से बढ़ाकर 14,000 करोड़ रुपये किया गया है। यह भी इस लिहाज से अपर्याप्त है कि इस साल संभावित सूखे के कारण बीमा योजना में कृषि क्षेत्र बढ़ने की संभावना है। इस समय बीमा योजना में अभी 28 फीसदी कृषि भूमि और 27 फीसदी किसानों को ही जोखिम से सुरक्षा प्राप्त है।
बजट में फूड प्रोसेसिंग, कटाई के बाद की सुविधाओं और कृषि अनुसंधान में निवेश के लिए पर्याप्त आवंटन नहीं है। फूड प्रोसेसिंग के लिए किसान संपदा योजना के लिए आवंटन पिछले साल के 1,313 करोड़ रुपये से घटाकर 1,102 करोड़ रुपये किया गया है। पिछले साल का आवंटन संशोधित करके 870 करोड़ रुपये किया गया था। इस साल कृषि और सहायक गतिविधियों का बजट मुख्य रूप से पीएम किसान सम्मान योजना के लिए 75,000 करोड़ रुपये आवंटित किए जाने के कारण लगभग दोगुना हुआ है। यह राहत उपाय की तरह ज्यादा है, न कि पूंजीगत व्यय के तौर पर। उत्पादकता पर इसका असर नगण्य ही रहेगा।
इसका सकारात्मक पहलू है कि तंगी में जी रहे किसानों को सम्मान योजना और पेंशन योजना से कुछ राहत मिलेगी। इसके अलावा मत्स्य संपदा योजना से फिशरीज के विकास को भी मदद मिल सकती है। नीली क्रांति के लिए इस साल 560 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। अगले पांच साल में दस हजार किसान उत्पादक संगठन बनेंगे। इससे किसानों को बड़े पैमाने पर उत्पादन का लाभ मिलेगा और वे अपनी आर्थिक उन्नति कर सकेंगे। सरकार किसानों को ई-नैम का फायदा दिलाने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करेगी। कृषि-ग्रामीण उद्योगों में उद्यमिता कौशल के लिए बजट में 80 बिजनेस इंक्यूबेटर और 20 टेक्नोलॉजी इंक्यूबेटर बनाने का उल्लेख है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार बढ़ाने में मदद मिलेगी। बजट में जीरो बजट फार्मिंग की भी चर्चा है। इससे लागत घटाने, आय बढ़ाने और टिकाऊ खेती को प्रोत्साहन देने में मदद मिलेगी।
कृषि के साथ ग्रामीण विकास के लिए बजट आवंटन में बढ़ोतरी और बुनियादी सुविधाओं में भारी निवेश के लिए वित्त मंत्री का संकेत स्वागत योग्य है। लेकिन कई उप क्षेत्रों की जरूरतों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। अगर यह नहीं हुआ तो बेहतर मूल्य दिलाने वाली फसलों, पशुपालन, फिशरीज और ग्रामीण गैर-कृषि कामधंधों को बढ़ाकर जरूरी विविधीकरण लाना मुश्किल होगा। हाल के निर्णयों जैसे कटाई उपरांत सुविधाओं, सिंचाई और जल संरक्षण के लिए बजट में पर्याप्त आवंटन नहीं मिला है। बजट में कम से कम प्राथमिकताएं तय की जा सकती थीं और इस दिशा में आवश्यक उपाय हो सकते थे। संभव है कि प्रधानमंत्री की इच्छानुसार मुख्यमंत्रियों की कमेटी किसानों की दशा सुधारने के लिए कृषि में निवेश की सही प्राथमिकताएं तय करेगी। पीएम नरेंद्र मोदी पर बहुत भरोसा होने के कारण किसानों को उम्मीद है कि अगले पांच साल में उनकी सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। मोदी है तो मुमकिन है!
(लेखक काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट में प्रोफेसर और कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के पूर्व चेयरमैन हैं)