हल्की पीली, घुंधली-सी रोशनी में धुएं के उठते गुबार के बीच किसी पश्चिमी रॉक ऐंड रॉल धुन पर हीरो और हां, एक शोख हसीना के इर्दगिर्द धमाल जारी है। इससे आपको सत्तर के दशक की कोई फार्मूला फिल्म याद आ जाएगी, जो बहुत-से भारतीयों के जेहन में नशे की काली दुनिया का स्वरूप उभारती है। यह अलग बात है कि भारतीय सिनेमा हकीकत का आईना बमुश्किल ही दिखाता है। इसमें ‘आधुनिकता’ और खासकर ‘एलीट वर्ग’ और उसकी ‘पापी’ जिंदगी के प्रति हिकारत की छौंक लग जाए तो प्रतिशोध की विचारधारा ठाठें मारने लगती है। सो, अगर अचानक कोई धनी-मानी हाथ लग जाए तो थोड़े समय के लिए असली समस्या पीछे ठेल दी जाती है और इस तरह अंतरराष्ट्रीय तस्करी, तीखे नशे की गोलियां और रासायनिक मादक पदार्थों का धंधा, किशोर-किशोरियों को लगती लत सब पर परदा पड़ जाता है।
जरा इन दो घटनाओं का फर्क और उन पर सरकारी एजेंसियों और लोगों की प्रतिक्रिया पर गौर कीजिए, जिससे अंदाजा लगता है कि हम असली समस्या के प्रति कितने गंभीर हैं और आखिर हमारी नजर कहां है।
-पहली यकीनन अंतहीन मीडिया ट्रायल की शिकार एक्ट्रेस रिया चक्रवर्ती की है, जिसे आखिरकार "ड्रग्स सिंडिकेट का सक्रिय सदस्य" होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है। मामला सह-आरोपियों करन अरोड़ा और अब्बास रमजान अली लखानी के पास से मिले महज 59 ग्राम मारिजुयाना पर टिका है। मारिजुयाना या गांजा भारत में अपेक्षाकृत एक हल्के पारंपरिक नशे की वस्तु है, जिसके प्रति धीरे-धीरे दुनिया भर में नजरिया बदलता जा रहा है और कानूनी तथा मेडिकल वर्जनाएं हल्की पड़ने लगी हैं। रिया कथित तौर पर वह वस्तु हासिल करने के लिए 10 साल की सजा पा सकती हैं, जिसे 2015 में लगभग आधा अमेरिका चख चुका है।
-दूसरा मामला तो नशे के ठेकेदारों के गिरोह का है। हां, हल्की-सी देसी छौंक के साथ। सुशांत सिंह राजपूत-रिया चक्रवर्ती प्रकरण के सुर्खियों में छाने के करीब दस महीने पहले मैक्सिको के सिनालोआ कार्टेल परिवार के कुछ सदस्य जयपुर आए थे। बेशक, दावा यही था कि वे पर्यटन के लिए आए। सिनालोआ को अमेरिकी सरकार “दुनिया भर में ड्रग सप्लाई के लिए अब तक का सबसे ताकतवर ड्रग सिंडिकेट” बताती है। उस वक्त खुफिया एजेंसियों ने सिनालोआ कार्टेल के सदस्यों की यात्रा पर सतर्क किया था, लेकिन किसी भी सरकारी एजेंसी ने उस अलर्ट पर हरकत में आने की जहमत नहीं समझी। उन एजेंसियों में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) भी था। और बेशक, मीडिया में भी कहीं कोई हरकत नहीं हुई। सिनालोआ सिंडिकेट मुख्य रूप से कोकीन, हेरोइन और मेथाफेटामाइन जैसे कड़े नशे का धंधा करता है।
इन दोनों घटनाओं में एजेंसियों की प्रतिक्रिया का फर्क हैरान करने वाला है, और इससे पता चलता है कि पूरा तंत्र कैसे काम करता है। जयपुर होटल के बाहर न तो कैमरेवालों की धक्का-मुक्की हुई, न प्राइम टाइम पर सूत्रों के हवाले से खुलासे हुए। दरअसल, असली अपराधियों पर फंदा डालने के लिए ऐसा कुछ होता भी नहीं है, उसमें तो खुफिया तंत्र चुपचाप काम करता है। सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, “सिनालोआ कार्टेल के सदस्य भारत में क्यों आए थे, उनकी जयपुर यात्रा के पीछे की कहानी क्या है, वे यहां किन लोगों से मिले, इन सब चीजों को जानने की कोई कोशिश नहीं की गई।”
इसी तरह, नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेटरिएट (एनएससीएस) ने एनसीबी को अफगानिस्तान-पाकिस्तान बॉर्डर पर ड्रग का काला धंधा करने वाले अफगान ड्रग माफिया लॉर्ड हाजी सलीम के बारे में जानकारी दी थी। ऐसा माना जाता है कि भारत में हेरोइन की बड़ी खेप में तस्करी का जिम्मेदार सलीम ही है। पिछले चार वर्षों में भारत में हेरोइन की खेप एक बार में 100 किलोग्राम से लेकर 1500 किलोग्राम तक पकड़ी गई है। एजेंसियों का मानना है, यह सभी हेरोइन सलीम के जरिए ही आई थी। सूत्रों के अनुसार, सलीम भारत में हेरोइन की ज्यादातर तस्करी अरब सागर के रास्ते करता है। एक सूत्र ने आउटलुक को बताया, “इतना गंभीर मामला होने के बावजूद लगता है कि सलीम को पकड़ने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस भी नहीं जारी किया गया है।”
यह लापरवाही बिलाशक गंभीर है और कड़े नशे की तस्करी के सभी डेटा यही बताते हैं कि इसकी उपलब्धता कठिन नहीं है। इसलिए कई जानकारों को संदेह होता है कि अनेक स्तरों पर सांठगांठ जारी है। एनसीबी का ध्यान इस पर तो नहीं या कम दिखता है, जबकि हाई-प्रोफाइल मामलों को वह फौरन लपक रही है।
अमूमन यह एजेंसी व्यक्तियों के पास थोड़ी-बहुत नशे की खपत पर हाथ नहीं डालती है। इस देश में गांजा, भांग, चरस और कुछ हद तक अफीम का इस्तेमाल संस्कृति का हिस्सा है, इसलिए अधिकारी व्यक्तिगत खपत के मामलों को अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। एम्स में नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर (एनडीडीटीसी) के 2019 के एक सर्वेक्षण का अनुमान है कि देश में 3.1 करोड़ लोग मारिजुयाना का सेवन करते हैं। मुंबई पुलिस के नारकोटिक्स सेल के एक अधिकारी कहते हैं, “अगर हम ऐसे लोगों पर कार्रवाई करने लगें तो हरिद्वार और पुरी में रहने वाले साधु जो अपनी चिलम में गांजा भर कर पीते हैं, पुष्कर मेले में आने वाले पर्यटक जो चरस का सेवन करते हैं, होली के मौके पर भांग का इस्तेमाल करने वाले, राजस्थान में शादियों और दूसरे सामाजिक आयोजनों में अफीम का इस्तेमाल करने वाले सभी गिरफ्तार हो जाएंगे।” वे हंसते हुए हल्के-फुल्के ढंग से कहते हैं, “अगर एनसीबी बॉलीवुड में ड्रग का इस्तेमाल करने वालों पर कार्रवाई करने लगे तो समझ लीजिए मुंबई की सबसे बड़ी इंडस्ट्री खत्म हो जाएगी।”
मुंबई के चर्चित पूर्व पुलिस प्रमुख जुलिओ रिबेरो का भी मानना है कि एनसीबी का काम ड्रग का इस्तेमाल करने वालों को पकड़ना नहीं है। वे कहते हैं, “मेरी राय में लोगों को गिरफ्तार करने की जगह उन्हें काउंसलिंग देने की जरूरत है, ताकि वे ड्रग का सेवन छोड़ने के लिए प्रोत्साहित हो सकें। रिया तो बड़े खेल में केवल एक मोहरा है, जो इस समय राजनीति का खेल दिखता है। इस खेल में कई बड़ी मछलियां हैं, एनसीबी को उन्हें पकड़ना चाहिए।”
हालांकि एनसीबी के इस रवैए के लिए उसके प्रमुख राकेश अस्थाना की अपनी दलीलें हैं। गुजरात काडर के ये आइपीएस अधिकारी एनसीबी के साथ सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के भी महानिदेशक हैं। उन्होंने आउटलुक को बताया “रिया जैसे लोग युवाओं के रोल मॉडल होते हैं, ऐसे में उन्हें माफ नहीं किया जा सकता है। हमें लोगों के सामने ऐसा उदाहरण पेश करना होगा, जिससे लोग ऐसा करने से बचें। जहां तक आगे की कार्रवाई की बात है तो एजेंसी रिया के बयान के आधार पर दूसरे लोगों से भी पूछताछ करेगी और जांच बढ़ाई जाएगी” (देखें इंटरव्यू)। रिया और उसके भाई शौविक तथा दूसरों से हासिल जानकारी के आधार पर एनसीबी शायद बॉलीवुड के दूसरे लोगों पर भी फंदा कसेगी। कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री में भी इसकी आंच पहुंच रही है। राज्य के क्राइम ब्रांच ने एक्ट्रेस रागिनी द्विवेदी और संजना गलरानी के अलावा आठ दूसरों को रेव पार्टी आयोजित करने और पेडलर्स होने के आरोप में गिरफ्तार किया है। रिया मामले की जांच के दौरान एनसीबी ने एक ड्रग रैकेट का पर्दाफाश किया और 3.5 किलोग्राम क्यूरेटेड मारिजुयाना और बड जब्त किया है। इस समय एक ग्राम बड की कीमत करीब 5000 रुपये है, जो प्रमुख रूप से अमेरिका और कनाडा से मंगाई जाती है। एनसीबी के एक अधिकारी का कहना है कि बड की खेप दिल्ली से मुंबई और वहां से गोवा भेजी जाती रही है। एनसीबी अधिकारियों का यह भी दावा है कि बड सप्लायर कुछ बॉलीवुड हस्तियों के संपर्क में भी थे।
वरिष्ठ वकील और नॉरकोटिक्स मामलों के विशेषज्ञ रमेश गुप्ता का कहना है कि जब सीबीआइ रिया मामले की जांच कर रही थी तो एनसीबी को बीच में आने की जरूरत नहीं थी। ड्रग तस्करी और उसकी बिक्री को रोकने की जिम्मेदारी राज्य पुलिस, कस्टम, सीबाआइ, प्रवर्तन निदेशालय, डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस जैसी दूसरी एजेंसियों के पास भी है। उन्होंने आउटलुक से कहा, “एनसीबी का गठन 1986 में इन एजेंसियों और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के बीच ताल-मेल बैठाने के लिए किया गया था। यही नहीं, इस तरह के मामलों की जांच के लिए सीबीआइ पूरी तरह सक्षम है। एनसीबी को शामिल करने की मुझे एक वजह यह नजर आती है कि ब्यूरो के सामने किसी आरोपी का दिया बयान न्यायालय में मान्य होता है, जबकि सीबीआइ के सामने दिए गए बयान की न्यायालय में कोई अहमियत नहीं होती है। इसलिए शायद कोई मजबूत साक्ष्य नहीं मिलने के कारण एनसीबी को लगाया गया। लगता है, रिया के बयान को ही कुबूलनामा मानकर पेश करने की सोच है। लेकिन अब रिया ने अपने बयान को वापस ले लिया है, ऐसे में पुराने बयान की साक्ष्य के रूप में अहमियत बहुत कम रह गई है।”
गुप्ता के मुताबिक रिया के खिलाफ ड्रग की अवैध बिक्री के लिए पैसा देने के आरोप के तहत एनडीपीएस की कड़ी धारा 27ए लगाई गई है, ताकि उसे जमानत न मिल सके। गुप्ता सवाल करते हैं, “एनसीबी और दूसरी एजेंसियां उन लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रही हैं, जो युवाओं तक ड्रग की आपूर्ति कर रहे हैं। परेशान करने वाली बात यह है कि कार्रवाई नहीं होने की वजह से ज्यादा से ज्यादा युवा नशे की चपेट में आ रहे हैं।”
वाकई, स्कूल और कॉलेज के छात्रों में ड्रग और नशीली दवाओं का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। छात्र मारिजुयाना, एलएसडी, एटीएस और एमडीएमए जैसे ड्रग्स धड़ल्ले से ले रहे हैं। यही नहीं, कई बार वे कफ-सिरप और दर्दनाशक दवाओं का इस्तेमाल नशे के लिए करते हैं। युवाओं में ड्रग का प्रचलन पिछले कुछ समय से पूरी दुनिया में बढ़ा है। गुड़गांव में एक प्रतिष्ठित स्कूल के एक बच्चे के ड्रग कनेक्शन मामले की जांच करने वाले एक पुलिस अधिकारी का कहना है, “आज युवा न केवल ड्रग का इस्तेमाल कर रहे हैं बल्कि अपने साथियों के लिए ड्रग खरीदने के पैसे जुटा रहे हैं। अच्छी क्वॉलिटी वाला 10 ग्राम वीड करीब 5,000 रुपये में मिलता है, जिसका 40 ज्वाइंट या जोटा में इस्तेमाल किया जा सकता है।”
एक अन्य पुलिस अधिकारी ने बताया, “दो साल पहले 12वीं का एक प्रतिभावान छात्र अपने स्कूल के दो साथियों को गांजा बेचते पकड़ा गया था। पकड़े जाने के बाद उसने स्वीकार किया था कि वह ड्रग की खरीद-फरोख्त में शामिल है। साथ ही उसने दावा किया कि ड्रग के इस्तेमाल से उसकी मानसिक क्षमता बढ़ जाती है। हालांकि मामला सामने आने के बाद कुछ अभिभावकों ने पुलिस को सूचना दी थी, लेकिन स्कूलवालों का कहना था मामले को आगे न बढ़ाया जाए, अगर ऐसा करते हैं तो बच्चे का भविष्य बर्बाद हो जाएगा। उसके बाद पुलिस ने पूरे मामले को लड़के के माता-पिता और स्कूल पर छोड़ दिया था।”
उन्होंने मौजूदा परिस्थितियों को मुश्किल भरा बताते हुए कहा कि आज के दौर में कोई पान वाला भी ड्रग की सप्लाई कर सकता है। ऐसे में इस पर अंकुश लगाना आसान नहीं है। छात्र तो अब नए-नए तरीके भी सीख रहे हैं। मसलन, आज छात्रों में “लीन” का प्रचलन बढ़ा है। इसे वे कोडिन मिले हुए कफ सिरप, स्प्राइट जैसे सॉफ्ट ड्रिंक, जॉली रांचर जैसी कैंडी मिलाकर बनाते हैं, जो उन्हें बहुत तेजी से सुरूर देता है।
ड्रग्स का धंधा पूरी दुनिया में फैला है और भारत की भौगोलिक स्थिति उसकी सप्लाई में अहम भूमिका निभाती है। भारत हेरोइन और हशीश का उत्पादन करने वाले देशों के बीच में स्थित है। गोल्डन ट्रायंगल (थाइलैंड-लाओस-म्यांमार) और गोल्डन क्रीसेंट (अफगानिस्तान-पाकिस्तान-ईरान) के कई देशों की सीमाएं भारत से मिलती हैं। इसकी वजह से भारत में ड्रग्स को पहुंचाना आसान हो जाता है। वैसे तो कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, पर एजेंसियों के अधिकारियों के अनुसार देश में हर साल करीब 10 लाख करोड़ रुपये का ड्रग कारोबार किया जाता है। यह आकलन एजेंसियों द्वारा जब्त की गई ड्रग्स और सूचना के आधार पर किया गया है।
हालांकि रिसर्च ऐंड एनॉलिसिस विंग (रॉ) के एक अधिकारी के अनुसार 10 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा काफी कम मालूम पड़ता है, क्योंकि यह मान कर चलिए कि देश में 90 फीसदी ड्रग कंसाइनमेंट पकड़ा ही नहीं जाता है। ऐसे में यह बात समझनी होगी कि देश में इतने बड़े पैमाने पर ड्रग के अवैध धंधे तभी चल सकते हैं जब एजेंसियों के भ्रष्ट अधिकारी तस्कर और पैडलर्स से मिले हों। हकीकत यह है कि इस अवैध धंधे में बहुत पैसा है और इसमें शामिल सभी की मोटी कमाई होती है।
गोवा के पूर्व डीजीपी नीरज कुमार पुराने दिनों की याद करते हैं कि कैसे उन्हें गोवा में नेताओं के हस्तक्षेप का सामना करना पड़ा, जब उन्होंने गोवा में ड्रग के धंधे को खत्म करने की कोशिश की थी। उन्होंने उस दौर की बातों को अपनी किताब खाकी फाइल्स में गोवा पर लिखे एक अध्याय में कही है। उसके अनुसार, 2006 में उन्होंने जब रेव पार्टियों, अवैध रूप से गोवा में रुकने वाले विदेशियों और ड्रग की अवैध बिक्री रोकने की कोशिश की तो उन्हें एक विधायक ने कहा कि आपने छुट्टियां मनाने के लिए प्रसिद्ध गोवा की छवि को खराब कर दिया। वे कहते हैं, “नेताओं और अपराधियों का गठजोड़ बहुत मजबूत होता है। ऐसे में एक पुलिसवाले के लिए किसी राज्य में कुछ बदलाव करना काफी मुश्किल भरा होता है।” उन्होंने आउटलुक को यह भी बताया कि नाइजीरिया, इजरायल और रूस के विदेशी नागिरक गोवा में चार्टर्ड प्लेन से आते हैं और उनके जरिए गोवा में ड्रग के अवैध बिजनेस का पूरा ईकोसिस्टम तैयार हो गया है।
हालांकि गोवा में ज्यादातर कोकीन और सिंथेटिक ड्रग केटामिन की तस्करी विदेश से की जाती है, लेकिन भारत में भी बड़े पैमाने पर अवैध रूप से ड्रग का उत्पादन होता है। ज्यादातर ड्रग्स हिमाचल प्रदेश के मलाना से आती है। इसके अलावा कानूनी रूप से उगाए जाने वाले पोस्ते का इस्तेमाल अवैध हेरोइन बनाने में किया जाता है। इस समय दवा में इस्तेमाल के लिए सेंट्रल ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में अफीम की खेती के लिए लाइसेंस देता है, लेकिन अवैध रूप से इसकी खेती ओडीशा और पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर की जाती है।
भारत में विभिन्न प्रकार के नशीले पदार्थों की कोई कमी नहीं है। यहां भांग, हशीश, चरस, कोकीन से लेकर डॉक्टरों द्वारा लिखी जाने वाली दवाओं जैसे ट्रामैडॉल, कोडीन, डिजायनर ड्रग जैसे मेथाफेटामाइन, गोलियां जैसे याबा या जाबा- सभी प्रकार की ड्रग्स का इस्तेमाल धड़ल्ले से अवैध रूप से हो रहा है। भारत में विदेश से आने वाली अवैध ड्रग्स म्यांमार की सीमा से मणिपुर, मिजोरम पहुंचाई जाती है। इसी तरह पाकिस्तान से पंजाब, राजस्थान, गुजरात, जम्मू-कश्मीर में पहुंचती है। फिर, नेपाल से उत्तर प्रदेश और बिहार में पहुंचाई जाती है। इसके अलावा मैक्सिको, कोलंबिया से भेजी गई ड्रग्स ब्राजील, अफ्रीका, दुबई होते हुए अरब सागर के जरिए भारत में पहुंच जाती है। समुद्री तट पर पहुंचने के बाद गोवा और कर्नाटक के रास्ते देश के दूसरे इलाकों में भेजी जाती है। कई बार तस्कर हवाई रास्ते का भी इस्तेमाल करते हैं।
मनोहर पर्रीकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज ऐंड एनॉलिसिस की रिसर्च फेलो पुष्पिता दास ने आउटलुक को बताया, “आपूर्ति की समस्या कभी नहीं आने वाली है। जब तक ड्रग्स की मांग रहेगी, आपूर्ति होती रहेगी। ड्रग के अवैध कारोबार में मुनाफा बहुत ज्यादा है। ऐसे में सीमा पर तैनात सुरक्षा बलों के लिए अवैध रूप से आ रही ड्रग को पकड़ना प्राथमिकता में नहीं रहता है। यहां तक कि सख्त कानून और प्रावधान होने के बावजूद अमेरिका में भी ड्रग की तस्करी नहीं रोकी जा सकी है।”
भारत में कोकीन प्रमुख रूप से दक्षिण अमेरिका से कोक गैंग के जरिए आती है। यह गैंग नेपाल, दिल्ली, गोवा और मुंबई के बीच काम करता है। सूत्रों का कहना है कि भारत में कोकीन के ग्राहक बहुत अधिक नहीं हैं। इसकी वजह उसका काफी महंगा होना है। उसके बदले में मेथ और याबा गोलियों की काफी मांग रहती है, जो बेहद आसानी से म्यांमार से भारत में पहुंचाई जाती हैं। कोकीन प्रमुख रूप से उच्च वर्ग में इस्तेमाल होती है, जिसने इस वर्ग में हेरोइन की जगह ले ली है।
रॉ के सूत्रों के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के बाद अमेरिका की ड्रग एनफोर्समेंट एजेंसी ने एनसीबी के साथ मिलकर संयुक्त अभियान चलाने के कई प्रस्ताव दिए, लेकिन उनमें से किसी पर अंतिम फैसला नहीं हो पाया है। अमेरिकी प्रस्ताव की एक प्रमुख वजह भारत का दुनिया के उन 20 देशों में शामिल होना है, जहां या तो अवैध रूप से ड्रग्स का उत्पादन होता है या फिर उस देश के रास्ते अवैध धंधा होता है। इस समूह में भारत के अलावा अफगानिस्तान, बोलीविया, म्यांमार, कोलंबिया, कोस्टारिका, डॉमिनिक रिपब्लिक, इक्वाडोर, अल सलवाडोर, ग्वाटेमाला, हैती, होंडुरास, जमैका, लाओस, मैक्सिको, निकारागुआ, पाकिस्तान, पनामा, पेरू और वेनेजुएला जैसे देश शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र के ड्रग्स ऐंड क्राइम ऑफिस ने भी भारत को ड्रग्स के अवैध कारोबार वाले देशों में शामिल किया है। उसने चेताया है कि भारत में ड्रग बेहद आसानी से ऑनलाइन मिल जाती है। संयुक्त राष्ट्र की 2019 की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया भर में इंटरनेट पर ड्रग्स खरीदने का प्रचलन बढ़ रहा है। कुछ ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म ड्रग्स की बिक्री के लिए क्रिप्टोकरंसी का भी इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसका दक्षिण एशिया और खास तौर से भारत में काफी तेजी से प्रचलन बढ़ रहा है। इंटरनेशनल नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड (आइएनसीबी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार कुछ ऑनलाइन वेंडर ने बताया है कि डार्कनेट प्लेटफॉर्म के जरिए एक हजार से ज्यादा ड्रग्स 50 से ज्यादा ऑनलाइन क्रिप्टो-मार्केट प्लेटफॉर्म पर बिक्री के लिए मौजूद हैं।
अमेरिका के ड्रग एनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के अधिकारियों का कहना है कि दक्षिण एशिया से अमेरिका और यूरोप पहुंचने वाली ड्रग्स के लिए भारत परिवहन का बड़ा जरिया बन गया है। उनके अनुसार 90 फीसदी हेरोइन का उत्पादन अफगानिस्तान और पांच फीसदी उत्पादन म्यांमार में होता है। अस्सी के दशक में ईराक-ईरान युद्ध के बाद हेरोइन को यूरोप और अमेरिका पहुंचाने के लिए इस्तेमाल होने वाला पारंपरिक बाल्कन रास्ता बंद हो गया है। ऐसे में हेरोइन ट्रेड के लिए भारत और पूर्वी अफ्रीका का रास्ता अहम हो गया।
अस्सी के दशक में पंजाब और कश्मीर में आतंकवाद के उभरने के बाद से इन राज्यों में आंतकवादियों के जरिए ड्रग्स की तस्करी काफी तेजी से बढ़ी। आतंकवादी इससे होने वाली कमाई का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए करने लगे। इंटेलिजेंस ब्यूरो (आइबी) के एक अधिकारी के अनुसार, “इसकी वजह से देश में ड्रग माफिया और आतंकवादियों का नेटवर्क तैयार हो गया था, जिसे फलने-फूलने में उदारीकरण के माहौल ने काफी मदद की। उस दौरान भारत के उभरते बाजार में लोगों लिए अवैध ड्रंग कंसाइटमेंट भेजे जा रहे थे। इस काम में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ भी शामिल हो गई थी, जो पंजाब में प्रमुख रूप से ड्रग्स की आपूर्ति करने में मदद कर रही थी। उसका उद्देश्य लोगों को नशे की लत में फंसाकर अर्थव्यवस्था को तबाह करना था। धीरे-धीरे ड्रग के अवैध कारोबार ने भारत में काफी गहरे रूप से अपनी पैठ बना ली, अब उसे पूरी तरह से खत्म करना काफी मुश्किल है। अब तो समाज के सभी वर्गों से इसकी मांग बहुत तेजी से आ रही है।”
पंजाब स्पेशल टॉस्क फोर्स के प्रमुख हरप्रीत सिंह सिद्धू आइबी के इस आकलन से सहमत हैं, लेकिन वे यह भी मानते हैं कि ड्रग्स के खिलाफ जंग जरूर जीती जाएगी। उनका कहना है कि एक समय पंजाब इस समस्या से सबसे ज्यादा प्रभावित था, लेकिन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुआई में काफी सख्त कदम उठाए गए हैं। सिद्धू ने आउटलुक को बताया कि राज्य सरकार ने ड्रग्स के दुरुपयोग के खिलाफ काफी व्यापक कार्यक्रम चलाया है, जिसमें रोकथाम और लत छुड़ाने के लिए कार्यक्रम और सख्ती करने जैसे कदम उठाए जा रहे हैं। इस रणनीति का एक और मकसद नशे के आदी हो चुके लोगों की संख्या में कमी लाना है। उनका कहना है कि अगर आप ड्रग की केवल आपूर्ति को रोकेंगे तो लोग दूसरे विकल्पों को तलाशने लगेंगे। सिद्धू के अनुसार जिस तरह बड़े से लेकर छोटे स्तर तक के सप्लायरों की गिरफ्तारी की गई है, वह सख्त कदमों का ही नतीजा है। पंजाब एसटीएफ ने 2017 से अब तक ड्रग संबंधित 39,621 मामले दर्ज किए हैं और 50,225 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनके पास से 1,595 किलोग्राम हेरोइन, 1,721 किलोग्राम अफीम और 1.45 लाख किलो पॉपी हस्क पकड़ी गई है।
जहां तक लत छुड़ाने और ड्रग्स की रोकथाम रोकने की बात है, तो पंजाब सरकार ने करीब 200 ऐसे आउटपेशेंट ओपीऑयड असिस्टमेंट ट्रीटमेंट (ओओएटी) सेंटर बनाए हैं, जहां आकर लोग अपना इलाज करा सकते हैं। इन सेंटर पर अब तक दो लाख मरीजों ने अपना इलाज कराया है। छह लाख से ज्यादा लोगों ने पंजीकरण कराया है। इसके अलावा स्कूल, कॉलेज में भी जागरूकता कार्यक्रम चलाए गए हैं। इनसे 37 लाख विद्यार्थी जुड़े हए हैं। सिद्धू के अनुसार करीब 80 फीसदी विद्यार्थी ऐसे होते हैं, जो अपने साथियों के दबाव में आकर ड्रग्स लेते हैं।
जहां तक मांग कम करने की बात है तो इसके लिए जो रणनीतियां राज्य और केंद्र सरकार के स्तर पर बनाईं गई हैं, वह ज्यादातर कागजों तक ही सीमित रह गई हैं। बेरुखी पर एनसीबी के एक अधिकारी का कहना है, “यहां तक कि क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञापन भी नहीं दिए जा रहे हैं। जहां तक आपूर्ति कम करने के प्रयासों की बात है, तो उसके लिए राज्यों और विभिन्न एजेंसियों को मिलकर रणनीति बनाने की जरूरत है। हम अफगानिस्तान में पैदा की जा रही हेरोइन पर तो लगाम नहीं लगा सकते हैं, लेकिन हिमाचल प्रदेश के बद्दी में स्थित उन फैक्ट्रियों पर तो शिकंजा कस सकते हैं जहां अवैध रूप से एटीएस बनाई जा रही है। जब हम यह कहते हैं कि बड़े ड्रग माफिया पहुंच से दूर हैं, तो हम कम से कम राजनीति और पुलिस में मौजूद भ्रष्ट लोगों पर तो कार्रवाई कर ही सकते हैं, जो ड्रग्स के अवैध कारोबार को बढ़ावा दे रहे हैं। अगर हम रिया के पास मिले 59 ग्राम ड्रग को एक उदाहरण के रूप में पेश कर सकते हैं तो कम से कम 10 सितंबर को बेंगलूरू में स्कूल के बच्चों को सप्लाई के लिए ले जाई जा रही 1,350 किलोग्राम भांग को जब्त करने पर भी कुछ ढोल बजा सकते हैं।”
दरअसल असली समस्या कड़े और रासायनिक नशे की है। लेकिन उस काबू पाने के बदले हम छोटी मछलियों पर फंदा कसके खुश हो रहे हैं।