मतदान के घटते या बढ़ते प्रतिशत की व्याख्या सियासी दल अपने-अपने ढंग से करते हैं। सत्तारूढ़ पार्टियां मतदान केंद्रों पर लंबी कतारों को अपने व्यापक समर्थन के रूप में देखती हैं तो विपक्षी दल इसे सत्ता-विरोधी लहर का प्रतीक बताते हैं। इसके विपरीत, दिलचस्प यह है कि मतदाताओं की घटती संख्या को परस्पर विरोधी दल अपने-अपने हितों के अनुकूल मानते रहे हैं। दरअसल मतदान के घटते-बढ़ते प्रतिशत के कारणों पर किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है। एक तरफ मतदान केंद्रों पर दिखने वाली भारी भीड़ किसी सत्तारूढ़ दल को उसके प्रदर्शन के आधार पर एक मौका और देने के लिए भी उमड़ती रही है, तो दूसरी ओर उससे नाराज होकर उसे सत्ता से बाहर करने के लिए भी। कभी किसी नए दल या गठबंधन को अपार जनसमर्थन इसलिए भी मिलता रहा है कि पुराने दलों से जनता का मोहभंग हो जाता है। कारण कुछ भी हो, आम तौर पर चुनावी विश्लेषक यह मानते हैं कि अगर मतदान प्रतिशत औसत से बहुत अधिक है तो जनता किसी के पक्ष में या विपक्ष में जोरशोर से अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग करती है।
मतदान का घटता प्रतिशत भले ही किसी पार्टी के प्रति लोगों के घटते या बढ़ते रुझान को रेखांकित करता हो, यह मतदाता की उदासीनता को निश्चित रूप से चिन्हित करता है। इस बार लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 2019 के पिछले आम चुनाव की तुलना में मतदान प्रतिशत में लगभग तीन प्रतिशत की कमी आई है। बिहार के चार संसदीय क्षेत्रों में तो यह पांच प्रतिशत से भी कम है। पिछले तीन-चार दशकों के दौरान मतदाताओं को अपने मत का प्रयोग करने को प्रेरित करने के लिए न जाने कितने जागरूकता अभियान चलाए गए हैं। मीडिया के तमाम माध्यमों से लेकर लोकप्रिय हस्तियों को इस मुहिम का हिस्सा बनाया गया है, जो हर चुनाव के पहले आम लोगों से ‘लोकतंत्र के उत्सव में अपने मताधिकार का प्रयोग करने’ की अपील करते रहे हैं, लेकिन अभी 19 अप्रैल को संपन्न हुए चुनाव के आंकड़ों से स्पष्ट है कि अब भी देश के मतदाताओं में अपने इस कर्तव्य और अधिकार की महत्ता के प्रति जागरूकता की कमी है। इस बार लगभग एक-तिहाई मतदाताओं ने प्रथम चरण के चुनाव में शिरकत करने से परहेज किया। यह संसदीय लोकतंत्र के लिए चिंता का विषय है। उम्मीद है आम चुनाव के अगले चरणों में मतदान प्रतिशत बढ़ेगा।
आखिर मतदान करने के प्रति आम मतदाताओं की उदासीनता के कारण क्या हैं? क्या वजहें हैं कि जिस चुनाव से उनके हित और भविष्य के सवाल सीधे जुड़े रहते हैं, वे उससे नहीं जुड़ते। हर बार की तरह इस बार भी यह कहा जा रहा है कि देश के अधिकतर इलाकों में प्रचंड गर्मी के करण मतदान प्रतिशत में कमी आई है। एक आकलन यह भी है कि लोगों का इस चुनाव के प्रति वैसा उत्साह नहीं है जो पहले देखा गया है। कुछ विश्लेषक यह तर्क देते हैं कि चुनाव ‘एकतरफा’ होने के कारण ऐसा हुआ है। ये सभी महज आकलन हैं। इस देश में पूर्व में लोगों ने भयंकर गर्मी के मौसम से लेकर शीतलहर के बीच अपने मत का प्रयोग किया है। मतदाताओं ने पहाड़ों पर चढ़ कर और नदियों के दूसरे किनारे जाकर वोट दिया है। यह कहना कि महज प्रतिकूल मौसम से आम मतदाताओं की उदासीनता बढ़ी है, तथ्य से परे होगा। इसके अन्य कारण भी होने चाहिए।
एक प्रमुख कारण निश्चित रूप से चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार होता है। कई क्षेत्रों में तो मतदाता इस वजह से भी वोट नहीं देते हैं कि उनकी पसंद का कोई भी उम्मीदवार मैदान में नहीं होता। उन्हें या तो चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों से उम्मीद नहीं होती है या वे उनके पिछले प्रदर्शन से निराश हो चुके होते हैं। ऐसे मतदाताओं की चुनावी प्रक्रिया में भागीदारी आश्वस्त करने के लिए चुनाव आयोग ने पिछले कुछ चुनावों से ‘नोटा’ का भी प्रावधान किया है। अगर कोई मतदाता चुनाव लड़ने वाले किसी उम्मीदवार को अपना मत नहीं देना चाहता तो वह ईवीएम में ‘नोटा’ यानी ‘इनमें से कोई नहीं’ बटन का प्रयोग कर सकता है। इससे कम से कम मतदाता की चुनावी प्रक्रिया में सहभागिता तय होती है, लेकिन ऐसे मतदाताओं की संख्या उन लोगों की तुलना में अब भी नगण्य है जो मतदान केंद्र जाने की जहमत नहीं उठाते। विडंबना है कि शहरी क्षेत्रों में ऐसा अधिकतर देखा जाता है।
संसदीय लोकतंत्र में आम चुनावों की सबसे बड़ी खूबसूरती आम नागरिक का मताधिकार ही है। हर पांच वर्ष में उन्हें अपनी पसंद का उम्मीदवार और सरकार चुनने का मौका मिलता है। इसलिए हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि इस प्रक्रिया में शामिल होकर अपने मताधिकार का प्रयोग जरूर करें। उम्मीदवारों की जीत और सरकार का चुनाव बहुमत के आधार पर ही होता है। जितनी बड़ी संख्या में लोग मतदान करेंगे, संसद में उतनी ही बड़ी संख्या में उनका प्रतिनिधित्व होगा। इसलिए यह आवश्यक है कि मतदान का प्रतिशत अधिक से अधिक हो। आज के डिजिटल युग में यह संभव है कि मतदान प्रतिशत को बढ़ाने के लिए नई तकनीक का सहारा लिया जाए और लोगों को मतदान केंद्रों तक लाने के लिए पारंपरिक तरीकों से इतर नए विकल्पों पर विचार किया जाए।