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20 जनवरी 2025 · JAN 20 , 2025

प्रथम दृष्टि: नई सदी की नई फसल

नई सहस्त्राब्दी में नई तकनीक भले ही ईजाद हुई हो लेकिन साहित्य, कला, संगीत जैसी विधाओं में नए प्रयोग न के बराबर हुए। न ही इनमें ऐसे उत्कृष्ट काम हुए जिन्हें कालजयी के संज्ञा दी जा सके। तमाम सकारात्मक तब्दीलियों के बावजूद समाज की मूलभूत समस्याएं मुंह बाये खड़ी रहीं
तकनीक के नाम रही नई सहस्त्राब्दी

जब भी कोई ऐसी क्रांतिकारी खोज होती है जिसके कारण आम और खास आदमी की जिंदगी बदल जाए, तो अंग्रेजी में उसके लिए एक कहावत मशहूर है, ‘इट इज द बेस्ट इन्वेंशन सिंस द स्लाइस्ड ब्रेड’ (यह डबलरोटी के बाद सबसे बेहतर आविष्कार है)।

कभी-कभी डबलरोटी की जगह व्हील यानी पहिया का प्रयोग होता है। जाहिर है, मानव सभ्यता के इतिहास में डबल रोटी या पहिया के आविष्कार को क्रांतिकारी परिवर्तन का कारक समझा गया। इन दोनों आविष्कारों से पहले मनुष्य ने पत्थर से आग जलाना और लोहे के औजार बनाना सीख लिया था, जिसकी वजह से उसकी जिंदगी में बेशुमार सहूलियतें मुहैया हुईं। तब से लेकर आज तक, जब मानव जाति मंगल और अन्य ग्रहों पर गुजर-बसर करने की संभावनाओं को टटोल रही है, न जाने कितनी महत्वपूर्ण खोजें हुईं जिनकी बदौलत हमारा जीवन बेहतर बनता गया। ऐसे आविष्कारों की फेहरिस्त लंबी है।

दूसरी शताब्दी में कागज और फिर पंद्रहवीं शताब्दी में प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार ने समाज में बौद्धिक क्रांति की अलख जगाई। दसवीं शताब्दी में गन पाउडर, बारहवीं सदी में कंपास से लेकर अठारहवीं शताब्दी में वैक्सीन और उन्नीसवीं सदी में टेलीफोन-टेलीग्राफ और स्टीम इंजन जैसे आविष्कारों ने लोगों के जीवन को सरल और सुगम बनाने में महती भूमिका निभाई। इस दिशा में बीसवीं सदी सबसे महत्वपूर्ण साबित हुई जब हवाई जहाज और रेडियो-टेलीविजन से लेकर पेनिसिलिन और इंटरनेट जैसे आविष्कार हुए। यह कहना कि पिछली सदी में खींची गई लकीर को बड़ा नहीं किया जा सकता, गलत होगा। मनुष्य का जिज्ञासु मन हर वक्त नई खोज करने को आतुर रहता है। यही वजह है कि पिछली सदी के साथ पिछली सहस्त्राब्दी बदलने के बाद भी नए आविष्कार बदस्तूर जारी हैं।

देखा जाए, तो सिर्फ पिछले 25 साल में इतने क्रांतिकारी परिवर्तन हुए कि हमारी पूरी दुनिया बदल गई। न सिर्फ हमारी दिनचर्या बल्कि आदतें भी बदल गईं। ये परिवर्तन इतने सहज ढंग से हुए कि हमें पता ही नहीं चला। पच्चीस बरस पूर्व जब सहस्त्राब्दी के बदलने की आहट सुनाई दे रही थी, तो तमाम तरह की आशंकाएं व्यक्त की गईं। कहा गया कि सदी परिवर्तन के कारण होने वाला Y2K बग या वायरस दुनिया भर में कंप्यूटर प्रणाली को ध्वस्त कर देगा। अंततः सारी आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं।

दरअसल, पिछले 25 वर्षों में विज्ञान और निरंतर बदलती तकनीक की बदौलत जितनी तब्दीली दुनिया ने अनुभव की है, उतने कम अंतराल में शायद ही पहले कभी किया हो। इन तब्दीलियों से इस कदर बदलाव आए कि उन्हें चमत्कार से कम नहीं समझा जाना चाहिए। इनमें से अधिकतर परिवर्तन डिजिटल क्रांति के कारण संभव हुए। इस युग में रोज नए-नए ऐप बन रहे हैं, जो जीवन को पहले से अधिक सरल बनाने के काम आ रहे हैं। जिन आविष्कारों की बदौलत ये परिवर्तन हुए उनकी नींव पिछली सदी के आखिरी कुछ दशकों में पड़ चुकी थी, लेकिन उसका लाभ पिछले ढाई दशकों में मिला, चाहे वह यूपीआइ के कारण पैसे की लेनदेन की प्रक्रिया का सरलीकरण हो या घर बैठे रेस्तरां से खाना मंगवाने की सुविधा। इस सदी की शुरुआत तक पैसा निकालने के लिए बैंकों में लंबी कतारें दिखतीं थीं, टैक्सी सेवा पाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती थी और नई फिल्म देखने के लिए पास की टॉकीज में जाने के अलावा कोई दूसरा माध्यम न था। अब सब कुछ मोबाइल की एक क्लिक पर उपलब्ध है। यही तकनीकी आधार जैसा देशव्यापी पहचान पत्र बनाने का आधार बनी। 

इसका दूसरा पहलू भी है। डिजिटल दुनिया के प्रादुर्भाव का असर सिर्फ हमारी निजी जिंदगी पर नहीं पड़ा। इसके कारण व्यापक स्तर पर हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में परिवर्तन दिखे, जो अच्छे और बुरे दोनों साबित हुए। एक ओर हमारे जीवन को आसान बनाने वाले ऐप थोक भाव में बने, वहीं हमारी जिंदगी में खलल डालने वाले परिवर्तन भी हुए। आउटलुक का यह वर्षांत विशेषांक इसी पर आधारित है।

एक तरफ डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध सूचनाओं की भरमार ने लोगों का दृष्टिकोण व्यापक किया, तो दूसरी ओर किसी विषय की तह तक जाने के लिए उनमें धैर्य की कमी दिखी। हर चीज को जल्दी समझने या निपटाने की आतुरता ने ऐसी नई पीढ़ी को जन्म दिया जो सब कुछ जल्दी पाने की होड़ में है।

नई सहस्त्राब्दी में नई तकनीक भले ही ईजाद हुई हो लेकिन साहित्य, कला, संगीत जैसी विधाओं में नए प्रयोग न के बराबर हुए। न ही इनमें ऐसे उत्कृष्ट काम हुए जिन्हें कालांतर में कालजयी के संज्ञा दी जा सके। यही नहीं, तमाम सकारात्मक तब्दीलियों के बावजूद समाज की मूलभूत समस्याएं मुंह बाये खड़ी रहीं। कोई ऐसा ऐप नहीं बना जो बेरोजगारी को दूर कर सके या महंगाई से निजात दिलवा सके। महिलाओं की सुरक्षा सहित समाज में व्याप्त तमाम असमानताओं की खाई को पाटने वाले ऐप का अब भी इंतजार है। बड़ा सवाल यह है कि क्या इन समस्याओं का निदान महज किसी ऐप के इंस्टाल करने से हो सकता है, अगर उसमें हमारी सोच बदलने की ताकत न हो?

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