आज के दौर में भारत में खिलाड़ियों खासकर क्रिकेटरों की आमदनी का जरिया असीमित हो गया है। मैच फीस और टूर्नामेंट जीतने पर मिलने वाली भारी-भरकम राशि के अलावा विज्ञापनों, फिल्मों और सोशल मीडिया सहित अनेक माध्यमों से उन्हें अकूत धनराशि प्राप्त होती है। ऐसा नहीं है कि वे उसके हकदार नहीं हैं। मैदान में अपना खेल कौशल दिखाने वाले खिलाड़ियों के मुरीदों की संख्या करोड़ों में होती है। इसलिए आज हर खिलाड़ी की अपनी ब्रांड वैल्यू होती है। यह बात सिर्फ सचिन तेंडुलकर, महेंद्र सिंह धोनी या विराट कोहली जैसे सुपरस्टार खिलाड़ियों पर लागू नहीं होती है। इस दौर में कुछेक टेस्ट मैच या एक-दिवसीय मैच खेलने वाले खिलाड़ी भी अपने दम पर स्टार हैं, जिन्हें पैसे के मामले में भविष्य की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। सुकून देने वाली बात यह भी है कि अब सिर्फ क्रिकेटर ही इस देश में खेल का स्टार या सुपरस्टार नहीं है। अन्य खेलों के महारथियों की भी काफी पूछ है, चाहे वह बैडमिंटन की सायना नेहवाल और पीवी संधू हों या जेवलिन थ्रो में ओलंपिक का गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज चोपड़ा। कबड्डी खेलने वाले कई खिलाडियों के नाम हर खेलप्रेमी की जुबां पर है। लंबा अरसा नहीं बीता है जब क्रिकेट छोड़ बाकी खेलों के खिलाड़ियों को यह शिकायत होती थी कि इस देश में सारा पैसा सिर्फ क्रिकेटरों के नसीब में लिखा होता है।
इसमें शक नहीं कि आज भी क्रिकेटरों के तुलना में अन्य खेलों के सुपरस्टारों की आय कम होती है, लेकिन अब पहले जैसी स्थिति नहीं है। क्रिकेट में पैसा अधिक है क्योंकि इसे चाहने वाले भी अधिक हैं। इसी वजह से टेलीविजन प्रसारण अधिकार या आइपीएल जैसे टूर्नामेंट के जरिए इस खेल में धन की बारिश होती है, लेकिन टेलीविजन पर अब कबड्डी लीग को भी लाखों दर्शक मिलते हैं। दिलचस्प यह भी है कि आज कई खिलाड़ियों की आय लोकप्रिय फिल्म कलाकारों से अधिक है। अस्सी के दशक की शुरुआत में जब अमिताभ बच्चन बॉलीवुड में लोकप्रियता के शिखर पर थे, तो उन्हें प्रति फिल्म 25 लाख रुपये से ऊपर का मेहनताना मिलता था। उसी दौर में जब भारत ने 1983 का क्रिकेट वर्ल्ड कप जीता था, तो उस दौरान कपिल देव की टीम के सभी खिलाड़ियों को प्रति मैच लगभग 2,100 रुपये की राशि क्रिकेट बोर्ड से मिलती थी। गौरतलब है कि उस टीम में सुनील गावस्कर जैसे स्टार प्लेयर थे जिनकी लोकप्रियता किसी बड़े फिल्म स्टार से कम नहीं थी। लेकिन, उस समय फिल्म स्टार और क्रिकेटर की आय के बीच जमीन-आसमान का फासला हुआ करता था। आज न सिर्फ विराट कोहली और रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ी बल्कि सचिन तेंडुलकर जैसे पूर्ववर्ती खिलाड़ी की आय भी विभिन्न माध्यमों से करोड़ों में है, जो किसी बड़े फिल्म स्टार की आय से कम नहीं है।
यह उस दौर जैसा नहीं है जब देश का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ियों के पास रिटायर होने के बाद आमदनी का कोई नियमित स्रोत नहीं होता था। उनमें कई खिलाडी उत्कृष्ट योगदान के लिए देश के सबसे बड़े खेल सम्मान से भी नवाजे जाते थे। अपने जमाने के मशहूर फुटबॉलर चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह का उदाहरण सामने है, जिन्होंने भारतीय टीम की कप्तानी भी की थी। साठ के दशक में उनका शुमार एशिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में होता था और अपनी प्रतिभा के बल पर उन्हें 1969 के एशिया XI टीम में शामिल किया गया था। दो वर्ष बाद 1971 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से भी नवाजा गया। वे करियर के शीर्ष पर मोहन बगान और ईस्ट बंगाल जैसे मशहूर क्लबों में भी खेल चुके थे। लेकिन सी. प्रसाद के नाम से मशहूर इस खिलाड़ी का बाकी जीवन खराब आर्थिक हालत में गुजरा। उन्हें बिहार राज्य पथ परिवहन में नौकरी तो मिली लेकिन वर्षों तक उन्हें वेतन नहीं मिला। बकाया वेतन पाने के लिए उन्होंने धरना दिया, कई मुख्यमंत्रियों को ज्ञापन दिए, लेकिन वाजिब हक पाने में वर्षों बीत गए। अर्जुन अवार्ड मिलने के कारण उन्हें खेल के कई समारोहों में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया जाता, लेकिन उनकी खराब माली हालत की न कोई सरकार सुध लेती, न ही कोई खेल संगठन। एक समय हताश होकर उन्होंने अर्जुन अवार्ड को बेचने की घोषणा की। ऐसा करने वाले वे देश के अकेले खिलाड़ी नहीं थे। अपने जमाने के कई मशहूर खिलाड़ियों ने भी मजबूर होकर ऐसा कदम उठाया।
सौभाग्यवश आज स्थिति ऐसी नहीं है। आज रिटायर होने के बाद भारत के फुटबॉल कप्तान सुनील छेत्री की स्थिति सी. प्रसाद जैसी नहीं है। टेलीविजन पर कमेन्ट्री के अलावा उनके पास आय के कई साधन हैं जिसके कारण उन्हें किसी हुकूमत या खेल संगठन पर आश्रित होने की मजबूरी नहीं है। यह दर्शाता है कि आज के खिलाड़ियों को उनका वाजिब हक मिल रहा है। आर्थिक अनिश्चिताओं और सी. प्रसाद जैसे खिलाड़ियों के हश्र देखने के कारण पुराने दौर में युवा खेल को करियर बनाने में झिझकते थे, लेकिन आज लाखों किशोर खेल को करियर बनाना चाहते हैं और खेल के लिए उनका जुनून ही इसकी एकमात्र वजह नहीं है।