लता मंगेशकर का मशहूर गीत कांटा लगा के रीमिक्स वीडियो से चर्चित अभिनेत्री शेफाली जरीवाला की असामयिक मृत्यु ने देश में युवाओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होने की जरूरतों की अहमियत फिर बढ़ा दी है। बीते कुछ वर्षों में चर्चित हस्तियों सहित आम लोगों की भी युवावस्था में हृदयाघात से मौत हुई है। उनमें अधिकतर नौजवान अपनी सेहत के प्रति लापरवाही, खराब खानपान, अनियमित जीवनशैली और बढ़ते मानसिक तनाव के कारण समय से पहले जिंदगी से हाथ धो बैठे। अलबत्ता, उनमें ऐसे भी थे, जो अपनी सेहत के बारे में न सिर्फ सजग, बल्कि संयमित जीवन जी रहे थे। किसी के जीवन का अंत किसी समारोह में हंसते-गाते हो गया तो कोई अपनी शादी में ही जान गवां बैठा। ऐसी घटनाओं से यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या देश की युवा पीढ़ी वाकई अपनी सेहत के प्रति लापरवाह है या असमय मौत की वजहें कुछ और हैं?
आजकल हर गली-चौराहे पर अत्याधुनिक व्यायामशाला यानी जिम खुल रहे हैं, जहां जोशीले नौजवानों की भीड़ सुबह-शाम उमड़ती है। वहां पर्सनल ट्रेनर और डायटीशियन के साथ-साथ तमाम सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। कोई तीन महीनों में सिक्स-पैक वाला गठीला बदन चाहता है तो कोई दो-ढ़ाई महीनों में बीस-तीस किलो वजन घटाना चाहता है। उनमें कई बिना किसी चिकित्सक के मशवरे के तरह-तरह के प्रोटीन सप्लीमेंट से लेकर स्टेरॉयड तक का सेवन करते हैं, जो अक्सर जोखिम भरा होता है।
वैसे, युवाओं के हृदयाघात से असमय मृत्यु की घटनाएं पिछले दिनों सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में देखी गईं। कुछ विशेषज्ञों ने इसे कोरोना वैक्सीन का साइड इफेक्ट बताया तो किसी ने लोगों की अनियंत्रित जीवनशैली को इसका कारण माना। आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी सही वजह ढूंढने के लिए कई अनुसंधान हो रहे हैं। अंतिम निष्कर्ष जो भी निकले, लेकिन इसमें दो मत नहीं कि पिछले दो-तीन दशकों में युवाओं की जीवनशैली और खानपान में भारी बदलाव आया है, जिससे उनमें उच्च रक्तचाप और मधुमेह के मर्ज बढ़े हैं। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, बाजारवाद और शहरीकरण के बढ़ते दौर में आज के युवा जल्द से जल्द सफलता पाने की गलाकाट स्पर्धा के कारण सेहत को नजरअंदाज कर रहे हैं। यह सही है कि अनियमित दिनचर्या, घर में रहने के बावजूद होटल से खाना मंगाने की प्रवृति और नियमित व्यायाम या अन्य शारीरिक गतिविधियों के प्रति उदासीनता से वे मधुमेह और दिल की बीमारियों को दावत दे रहे हैं।
आज भारत को दुनिया का ‘डायबिटीज कैपिटल’ के रूप में जाना जाता है। कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार पश्चिमी देशों की तुलना में भारत के लोगों में दिल की बीमारियों की शुरुआत दस वर्ष पहले हो जाती है। कई स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसका कारण अनुवांशिक भी मानते हैं। कारण जो भी हो, इसमें शक नहीं कि देश में स्वास्थ्य के प्रति जागरूक युवाओं की संख्या कम है। विकसित देशों में तो लोग नियमित स्वास्थ्य परीक्षण कराते रहते हैं, ताकि समय रहते किसी बीमारी का समुचित इलाज हो सके।
भारत में आज भी ऐसे लोगों की संख्या बेहद कम है जो नियमित रूप से अपना चेकअप करवाते हैं। वैसे तो देश के लगभग हर बड़े शहर में निजी क्षेत्र के फाइव-स्टार हॉस्पिटल खुल चुके हैं जो लोगों को तमाम तरह के मेडिकल चेक-अप की महंगी सुविधाएं मुहैया कराते हैं, जो आम आदमी की पहुंच से बाहर होती हैं। सरकारी अस्पतालों में या तो सुविधाओं का घोर अभाव है या मरीजों की कतार इतनी लंबी होती है कि इलाज या चेक-अप कराने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। दिल्ली या राज्यों की राजधानियों में स्थापित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जैसे अस्पतालों में बेहतर व्यवस्थाएं तो हैं लेकिन वहां भी मरीजों का नंबर महीनों बाद आता है। आज देश में आयुष्मान भारत सहित कई योजनाएं लागू हैं जिनके कारण आम लोगों को इलाज करने में काफी सहूलियत मिली है, लेकिन देश की आबादी का एक बड़ा तबका आज भी अपनी सेहत को दुरुस्त रखने के लिए जरूरी सुविधाओं से वंचित है।
सुदूर इलाकों में रहने वाले सैकड़ों लोग इलाज के लिए अभी भी महानगर का रुख करते हैं, क्योंकि उनके गृह नगर या गांव के करीब स्थित सरकारी स्वास्थ्य केंद्र जर्जर स्थिति में हैं। किसी भी सरकार के पास इतने संसाधन या प्राथमिकताएं नहीं होती हैं, जिससे देश में हर आदमी के लिए मुफ्त या सस्ते स्वास्थ्य परीक्षण की व्यवस्था हो सके, लेकिन इस जरूरत से कतई इनकार नहीं किया जा सकता कि आधारभूत सुविधाओं को बढ़ाने की दरकार है, ताकि लोग सस्ते में स्वास्थ्य परीक्षण करा सकें। नियमित जांच की व्यवस्था से युवाओं में सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ेगी, जिससे असामयिक मौतों में कमी आएगी। देश में हर क्षेत्र की अपनी समस्याएं हैं, यह कैसे संभव हो पाएगा, इस पर नीति-निर्माताओं को मंथन करने की जरूरत है।