कला और कलाकारों को राज्याश्रय इतिहास के हर दौर में रहा है। आजादी के बाद तो कलाकारों और हर क्षेत्र की प्रतिभाओं को सम्मानित करने और उन्हें सुविधाएं मुहैया कराने पर विभिन्न सरकारों के दौरान जोर रहा है। इसी के तहत अपने क्षेत्र में अविस्मरणीय उपलब्धि हासिल करने वाले कई कलाकारों को राजधानी दिल्ली में मकान आवंटित किए गए हैं लेकिन अब आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने पंडित बिरजू महाराज, वसीफुद्दीन डागर, कुचिपुड़ी नृत्य के दिग्गज जयराम राव और उनकी पत्नी वनश्री राव, गायिका रीता गांगुली, पेंटर जतिन दास, सांस्कृतिक इतिहासकार सुनील कोठारी, नृत्यांगना कमलिनी जैसे कुल 27 कलाकारों को दिल्ली में आवंटित सरकारी आवास खाली कराने नोटिस दिया है। इन सभी वरिष्ठ कलाकारों को 31 दिसंबर 2020 तक अपना मकान खाली करना होगा। मोटी जानकारी के मुताबिक 1970 के दशक से अवॉर्ड प्राप्त कई कलाकार दिल्ली में आवंटित विभिन्न घरों में रहते आए हैं। संस्कृति मंत्रालय की अनुशंसा पर तीन-तीन साल की अवधि के लिए नाममात्र के किराए पर कलाकारों को ये घर दिए गए थे, जिनमें 14 मकान एशियाड विलेज में हैं। तब से इन मकानों का साल-दर-साल नवीनीकरण होता रहा है।
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में कैबिनेट आवास समिति ने संस्कृति मंत्रालय के उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, जिसमें दिल्ली में आवंटित 27 सरकारी आवासों को कलाकारों से ‘मुक्त’ किया जाना है। लंबे समय से रह रहे कलाकारों पर बस इतनी ‘कृपा’ की गई है कि उन्हें उन पर बकाया राशि ‘माफ’ कर दी गई है। आवास और शहरी मामले के मंत्रालय के एक अधिकारी ने आउटलुक को बताया कि हर कलाकार पर लगभग एक से डेढ़ करोड़ रुपया बकाया है। आवास और शहरी मामले मंत्रालय के अधिकारी राजीव जैन ने तस्दीक की कि 27 कलाकारों को नोटिस दिया गया है और “कोई भी मकान जीवन भर के लिए नहीं होता।” साथ ही जिन्हें मकान आवंटित हैं, “ऐसी कोई श्रेणी” है नहीं। जैन का कहना था कि कलाकारों को 2014 में ही मकान खाली करने चाहिए थे। असल में इन कलाकारों को मकान खाली करने का संस्कृति मंत्रालय का नोटिस तभी दिया गया था। लेकिन जो भी हो, इन दलीलों में कला और कलाकारों के प्रति संवेदनशीलता कतई नहीं दिखती।
नोटिस मिलने पर बिरजू महाराज की पहली प्रतिक्रिया गुस्से भरी थी। उन्होंने एक अखबार से बातचीत में कहा था कि उन्हें घर से बाहर निकाला गया, तो वे सारे सम्मान और पुरस्कार वापस लौटा देंगे। आउटलुक ने जब उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही, तो उनके सहयोगी ने सिर्फ इतना ही कहा, “महाराज जी ने तय किया है कि वे अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे। उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। वे उस पत्र के जवाब का इंतजार कर रहे हैं।”
प्रसिद्ध चित्रकार जतिन दास ने भी प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति को पत्र लिखा है लेकिन उन्हें अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। वह कहते हैं, “ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि संस्कृति मंत्रालय में कोई सलाहकार नहीं है, जो कलाकारों के बारे में बता सके। हमारे देश में कोई भी स्थाई राष्ट्रीय सांस्कृतिक नीति नहीं है। जो भी है सब एडहॉक हैं। हम देश के जिम्मेदार नागरिक हैं, कलाकार हैं, जिन्होंने देश के लिए बहुत कुछ किया है। आखिर ऐसी छोटी-छोटी बातों के लिए किसी कलाकार को प्रधानमंत्री तक क्यों जाना पड़ता है।” वे यह भी कहते हैं कि अगर मकान खाली कराए गए तो वे “एशियाड विलेज में टेंट गाड़ कर रहेंगे।”
आउटलुक के कई बार संपर्क करने पर भी संस्कृति मंत्री प्रहलाद पटेल से कोई संपर्क नहीं हो सका। उनके मंत्रालय के अधिकारी नीतिन त्रिपाठी ने कहा कि मंत्रालय ने आवास एवं शहरी मामले के मंत्रालय से अनुरोध किया है कि वे उन कलाकारों से घर खाली न कराए, जो बाजार की दर से किराया देने को तैयार हों। लेकिन आवास और शहरी मामले मंत्रालय के अधिकारी राजीव जैन का कहना है कि घर तो हर कलाकार को खाली करना होगा, इसमें बाजार की दर का कोई सवाल ही नहीं है। मंत्रालय और सरकार के रवैये से लग रहा है कि सरकार कलाकारों को बेघर करने के बार में दृढ़ है। हालांकि इस मामले में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि कलाकारों के लिए निर्धारित कोटे के कई घर पहले से ही खाली पड़े हुए हैं।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, इस मामले के शुरू होते ही संस्कृति मंत्री प्रहलाद पटेल ने स्पष्ट किया था कि 60 साल से ऊपर की उम्र का कोई भी कलाकार आवंटित घर में नहीं रह सकता या ये मकान दो बार के लिए तीन-तीन साल के लिए दिए जा सकते हैं और कलाकार की प्रति माह आय 20,000 रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए। पटेल ने कहा था, “लेकिन लोग इन सरकारी घरों में कई साल से रह रहे हैं।”
लेडी श्रीराम कॉलेज में एमए में टॉपर रहीं और बाद में कला क्षेत्र की ओर मुड़ गई वनश्री राव सौम्यता से पूछती हैं, “क्या कोई कलाकार कभी सेवानिवृत्त होता है?” उनका कहना है कि सरकार को सोचना चाहिए कि इस उम्र में हम लोग कहां जाएंगे। वे कहती हैं, “सरकार को चाहिए कि वह हम जैसे लोगों को भी ध्यान में रखकर नई नीति बनाए।” वे इस बात से भी आहत हैं कि सोशल मीडिया पर ऐसा दुष्प्रचार चल रहा है कि उन लोगों ने लक्जरी घरों में ‘अवैध कब्जा’ जमा रखा है। वनश्री राव और उनके पति जयराम राव को कुचिपुड़ी का ‘लीविंग लीजेंड’ कहा जाता है। पिछले 40 साल से वे नृत्य साधना कर रहे हैं और अभी 60 की उम्र में उन्होंने एक डांस कंपनी खोली है। सरकार की इस दलील पर कि सरकारी अधिकारियों को भी रिटायरमेंट के बाद सरकारी आवास खाली करना पड़ता है? इस सवाल के जवाब में वह कहती हैं, “60 साल की उम्र में भी मैं काम कर ही हूं। यानी मैं रिटायर नहीं हूं। सरकारी कर्मचारी और कलाकार के बीच क्या मेल। कर्मचारी जब रिटायर होता है, तो उसे प्रोविडेंड फंड मिलता है, पेंशन मिलती है। कलाकार को तो इसमें से कुछ भी नहीं मिलता।”
दिल्ली के एशियाड विलेज में छोटे-से घर में रह रहीं राव से बात करने पर पता चलता है कि कलाकारों पर यह संकट पहली बार नहीं आया है। इससे पहले मनमोहन सिंह सरकार के वक्त भी इस तरह का नोटिस जारी किया गया था लेकिन प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से रुक गया था। लेकिन इस बार सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं दिया जा रहा है।
मौजूदा मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सांस्कृति इकाई संस्कार भारती के राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री अमीर चंद ने इस नोटिस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। अमीरचंद ने आउटलुक से कहा, “मानवीय दृष्टिकोण से भी कोविड के समय यह कार्रवाई उचित नहीं है। अभी तो हमने कलाकारों से मकान खाली न कराए जाने की सार्वजनिक अपील की है। लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला, यदि कुछ न हुआ तो फिर संबंधित मंत्रालयों के अधिकारियों से मिलूंगा।” अमीरचंद ने पंडित बिरजू महाराज और उस्ताद वसीफुद्दीन डागर के घर जाकर मुलाकात भी थी।
लॉकडाउन के वक्त से कोलकाता में फंसी हुई 81 साल की रीता गांगुली कहती हैं, “देश में इतने मसले हैं, जिन पर पहले बात होनी चाहिए, लेकिन देखिए सबका ध्यान सिर्फ कलाकारों को बेघर करने पर है।” अगर इस मामले में फैसला नहीं पलटा तो उनका अगला कदम क्या होगा, यह पूछने पर वे एक लंबी चुप्पी के बाद कहती हैं, “अभी, तो सिर्फ सरकार के अगले कदम का इंतजार है और कुछ नहीं। अभी तो कुछ सोचने की स्थिति में भी नहीं हैं।”
सरकार जब कोविड में वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा पर ध्यान देने और उन्हें घर पर ही रहने की सलाह वाली अपील जारी कर रही हैं, ऐसे वक्त में इसी श्रेणी के कलाकारों से छत छीन लेना किसी भी दृष्टि से न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता। वनश्री कहती हैं, “जब हमें यह घर मिला, तब यह सिर्फ हमारे लिए घर नहीं था। बल्कि यह हमारे काम को मिली मान्यता भी थी।” वे कहती हैं, “हमारी सरकार से सिर्फ इतनी गुजारिश है, हम फाइल नहीं बल्कि जीते-जागते इनसान हैं।”
जाहिर है, कलाकारों के बारे में वही पैमाना नहीं हो सकता, जो सरकारी आवास आवंटित करने के दूसरे मामलों में होता है। शायद वह पैमाना रहा भी नहीं है इसीलिए नए नजरिए से देखने की दरकार है।
क्या कोई कलाकार कभी सेवानिवृत्त होता है? सरकार को चाहिए कि वह यह ध्यान में रखकर नई नीति बनाए
वनश्री राव, मशहूर नृत्यांगना
कोई सांस्कृतिक नीति ही नहीं है। मकान खाली कराया गया तो मैं एशियाड विलेज में टेंट लगाकर रहूंगा
जतिन दास, प्रसिद्ध चित्रकार