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कर्नाटक : नाटक पूरा बदलाव अधूरा

मुखिया शांति से बदला लेकिन नए मुख्यमंत्री के लिए असंतोष चुनौती
नए मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई (बाएं) और भावुक बी.एस. येदियुरप्पा

आखिरकार कर्नाटक में फेरबदल बिना किसी बड़े विवाद के हो गया। प्रदेश में भाजपा के सबसे सशक्त नेता बी.एस. येदियुरप्पा के 26 जुलाई को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के अगले दिन घंटे भर में नया नेता चुन लिया गया। लेकिन पार्टी केंद्रीय नेतृत्व बड़े बदलाव की जोखिम नहीं ले पाया और येदियुरप्पा के विश्वासपत्र बासवराज बोम्मई को नया मुख्यमंत्री बना दिया गया। 61 साल के बासवराज जनता पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री एस.आर. बोम्मई के बेटे हैं और 2008 में ही भाजपा में आए हैं। आरएसएस से उनका नाता नहीं है और अपनी सोशलिस्ट पृष्ठभूमि के साथ मध्यमार्ग पर चलने के हिमायती हैं। असल में आरएसएस से जुड़े नेता खासकर बी.एल. संतोष और हाल में सरकार्यवाह बने होसबोले की ओर से बदलाव का दबाव ज्यादा था। लेकिन राज्य में लिंगायत वोटों की अहमियत के कारण शायद यह नहीं हो सका। येदियुरप्पा और बोम्मई दोनों लिंगायत हैं।

नए मुख्यमंत्री दिल्ली पहुंचे और भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा से मिलने के बाद मंत्रिमंडल को अंतिम रूप दिया। कुल 29 मंत्री बनाए गए, जिनमें 23 पुराने और तीन नए चेहरे हैं। आठ मंत्री लिंगायत हैं। इससे पिछले हफ्ते येदियुरप्पा ने यह कहकर सस्पेंस बना रखा था कि मैं पार्टी आलाकमान के निर्देशों का इंतजार कर रहा हूं। अपनी सरकार के दो साल पूरे होने के मौके पर आयोजित समारोह में जब बोलने के लिए वे खड़े हुए तब भी परिस्थितियां अनिश्चित थीं। आखिरकार वह उनका विदाई भाषण साबित हुआ। अंततः इस्तीफा देने की बात कहते हुए वे रो पड़े।

मुख्यमंत्री के रूप में येदियुरप्पा का दो साल का कार्यकाल असंतोष से भरा रहा, हालांकि इसकी उम्मीद पहले से थी। जुलाई 2019 में जनता दल-सेकूलर और कांग्रेस की गठबंधन सरकार को गिराने के बाद भाजपा ने वहां सरकार बनाई थी। यह सरकार तब के सत्तारूढ़ गठबंधन कुछ टूटे हुए विधायकों के समर्थन पर बनी, जिन्हें पुरस्कारस्वरूप मंत्री पद भी दिया गया। भाजपा की प्रदेश इकाई पहले ही धड़ों में बंटी थी, नई सरकार बनने के बाद असंतोष और बढ़ने लगा। पार्टी के विधायक अक्सर दिल्ली का दौरा करने लगे। कुछ ने तो खुलकर भ्रष्टाचार और मुख्यमंत्री के परिवार के सदस्यों पर हस्तक्षेप का आरोप लगाया।

येदियुरप्पा ने भी इस कार्यकाल को ‘अग्निपरीक्षा’ बताया। विदाई भाषण में वे बोले, “केंद्र ने दो महीने तक मुझे मंत्रिपरिषद ही गठित करने नहीं दिया। कहीं सूखे की नौबत थी तो कहीं बाढ़ आई हुई थी। मैं पागलों की तरह भाग रहा था। हर कदम पर अग्निपरीक्षा थी। अब डेढ़ साल से कोरोना का प्रकोप है।”

 

येदियुरप्पा को हटाने से कहीं लिंगायत समुदाय की नाराजगी न झेलनी पड़े, यह सोचकर उसी समाज के बोम्मई को कमान सौंपी गई

 

राजनीतिक टीकाकार ए.नारायण कहते हैं, “पहले की घटनाओं के विपरीत इस बार मुख्यमंत्री बदलने की कोई स्पष्ट वजह नहीं बताई गई, सिवाय इसके कि येदियुरप्पा की उम्र 75 साल से ज्यादा है।” वरिष्ठ लिंगायत नेता येदियुरप्पा बड़े क्षत्रप की हैसियत रखते हैं। उनके जाने के बाद कर्नाटक भाजपा में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का नियंत्रण बढ़ेगा। नारायण के अनुसार कर्नाटक में भाजपा के लिए किसी भी बदलाव में बड़ा जोखिम है। पार्टी काफी हद तक लिंगायत समुदाय पर निर्भर है। प्रदेश में 16-17 फीसदी आबादी इसी समुदाय की है। येदियुरप्पा के इस्तीफा देने से पहले करीब 200 लिंगायत संत बेंगलूरू में इकट्ठा हुए थे, जिसे एक तरह की चेतावनी माना जा रहा था।

राजनीतिक विचारकों का मानना है कि कर्नाटक में भाजपा का प्रसार तो तेजी से हुआ लेकिन वैचारिक स्तर पर प्रसार वैसा नहीं है। पार्टी के हिंदुत्व का समर्थन करने वाले ज्यादातर लोग तटीय और मलनाड इलाकों में ही हैं। राजनीतिक टीकाकार नरेंद्र पणी कहते हैं, “येदियुरप्पा ने लिंगायतों को जोड़ने का काम किया।” लिंगायत समुदाय की प्रधानता दूसरे राजनीतिक दलों में भी दिखती है। कांग्रेस नेता शमानुर शिवशंकरप्पा और एम.बी. पाटील ने येदियुरप्पा के मसले कहा कि अगर भाजपा लिंगायत समुदाय को नाराज करती है तो उससे कांग्रेस को फायदा हो सकता है।

इस बीच बोम्मई ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के तत्काल बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई घोषणाएं कीं- किसानों के बच्चों के लिए 1000 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति, वरिष्ठ नागरिकों और विधवाओं के लिए पेंशन तरी और विकलांग भत्ते में बढ़ोतरी।

फिलहाल योदियुरप्पा के खिलाफ असंतोष जताने वालों समेत सभी विधायकों ने बोम्मई का समर्थन किया है। अब जब विधानसभा चुनाव में दो साल से भी कम का समय रह गया है, तो भाजपा अपने भीतरी असंतोष दोबारा पनपने का जोखिम नहीं उठा सकती है।

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