आयकर छापों के बाद आई सीबीडीटी की रिपोर्ट कांग्रेस से ज्यादा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के लिए मुसीबत बन गई है। रिपोर्ट आने के बाद शिवराज सिंह पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ओर से हमले हो रहे हैं। रिपोर्ट में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कई समर्थकों के नाम हैं, जो अब भाजपा के विधायक और मंत्री हैं। भाजपा के हलकों में शिवराज सिंह पर उन मंत्रियों से इस्तीफा लेने का दबाव बढ़ रहा है। दूसरी ओर कांग्रेस पुराने आयकर छापों में उनके ओएसडी का नाम उजागर कर हमलावर हो उठी है। दरअसल मामला यह है कि लोकसभा चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के कई करीबी लोगों पर आयकर छापे डाले गए थे। उसके बाद सीबीडीटी ने रिपोर्ट तैयार कर चुनाव आयोग को सौंपी थी। आयोग ने उसी को आधार बनाकर मध्य प्रदेश सरकार से उन लोगों पर कार्रवाई करने को कहा है, जिनके नाम इसमें शामिल हैं। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के अलावा उस समय की कांग्रेस सरकार के पचास से ज्यादा विधायक और कई मंत्रियों के नाम शामिल हैं। आज उनमें से ग्यारह विधायक और दो मंत्री भाजपा में हैं। ये सभी सिंधिया समर्थक विधायक थे जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गए।
इस खबर के खुलासे के बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पलटवार किया और 2013 के आयकर छापों के दौरान मिले दस्तावेजों को सार्वजनिक कर दिया। उनमें उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के बीच हुए पैसों के लेनदेन का उल्लेख है। उसमें शिवराज सिंह के वर्तमान ओएसडी नीरज वशिष्ठ का नाम भी है। इसके बाद शिवराज सिंह पर दोनों ओर से हमले शुरू हो गए हैं। कांग्रेस लगातार हमलावर है। दिग्विजय सिंह ने खुली चुनौती दी है कि अगर कांग्रेस के नेताओं पर कार्रवाई होती है, तो शिवराज सिंह और नरेंद्र मोदी पर भी होनी चाहिए वरना कांग्रेस सड़क से अदालत तक की लड़ाई लड़ेगी। इस पूरे घटनाक्रम से शिवराज सिंह बैकफुट पर दिख रहे हैं। कांग्रेस के हमलों के साथ ही उनकी पार्टी में भी उनके विरोधी सक्रिय हो गए हैं। पार्टी की ओर से शिवराज सिंह पर दबाव बनाया जा रहा है कि जिन सिंधिया समर्थक मंत्रियों के नाम रिपोर्ट में आए हैं, उनसे इस्तीफा लिया जाए। लेकिन शिवराज सिंह ऐसा नहीं करना चाह रहे क्योंकि इससे उन्हें सिंधिया की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। पार्टी में शिवराज के विरोधियों ने अब उनके इस्तीफे के मांग उठानी भी शुरू कर दी है।
ऐसी स्थिति में राज्य सरकार के हाथ पूरी तरह बंध गए हैं। पहले राज्य सरकार रिपोर्ट के आधार पर कुछ अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज करने जा रही थी लेकिन दिग्विजय सिंह के खुलासे और रिपोर्ट में सिंधिया समर्थकों के नाम होने से सारी कार्रवाई रोक दी गई है। इस पूरे मामले पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने साफ किया है कि कानून अपना काम करेगा, चाहे कोई कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो। लेकिन कोई कार्रवाई होती दिख नहीं रही है। उधर, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा है कि उनके पास अभी तक कोई नोटिस नहीं आया है। आखिर सरकार ऐसे कैसे जांच कर रही है कि किसी से कोई पूछताछ ही नहीं हो रही है। कांग्रेस के प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि कमलनाथ सरकार को बदनाम करने की साजिश लोकसभा चुनाव से पहले ही रची गई थी। इसी के तहत ये आयकर छापे डाले गए थे। उस दौरान छापों में कुछ भी नहीं मिला था।
सीबीडीटी की रिपोर्ट में शिवराज सरकार में सिंधिया समर्थक दो मंत्रियों और समर्थन दे रहे कई विधायकों के भी नाम हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या इन लोगों पर एफआइआर दर्ज होगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जो रिपोर्ट सरकार के पास आई है, उसमें कांग्रेस के साथ भाजपा के लोगों के भी नाम हैं। इसी कारण शिवराज सरकार बैकफुट पर है। इस रिपोर्ट के आधार पर सरकार आगे बढ़ती है, तो उसके अपने लोगों पर भी आंच आ सकती है, लिहाजा असमंजस बना हुआ है। इसकी संभावना काफी कम है कि राज्य सरकार इस रिपोर्ट के आधार पर आगे कुछ करेगी। दूसरी ओर इस रिपोर्ट के रूप में भाजपा संगठन के पास सिंधिया समर्थकों पर लगाम कसे रखने का एक बड़ा हथियार जरूर हाथ लग गया है।