चाहे फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस में प्रॉक्सी के जरिए मेडिकल प्रवेश परीक्षा में टॉप करने वाला मुरली प्रसाद शर्मा हो, व्हाई चीट इंडिया में इंजीनियरिंग के एक छात्र से दूसरों के प्रश्न पत्र हल करवाने वाला राकेश सिंह हो या जॉली एलएलबी 2 में माइक पर परीक्षार्थियों को नकल करवाने वाला वकील जगदीश्वर मिश्रा हो, ये सब फिल्मों के ही नहीं बल्कि असल जिंदगी के भी किरदार हैं। देश का शायद ही कोई राज्य होगा और शायद ही कोई परीक्षा होगी, जहां धांधली का ग्राफ ऊंचा ही ऊंचा उठता न गया हो। जैसे-जैसे परीक्षा के तरीके आधुनिक होते गए, धांधलेबाज ‘जहां चाह-वहां राह’ बनाते गए। बल्कि परीक्षाएं ऑनलाइन होने के बाद तो जैसे घोटालों में तेजी आई है और घोटालेबाज खुलेआम व्यवस्था को चुनौती देते नजर आ रहे हैं। वजह नौकरियों के घटते मौके हों या कुछ और, लोग भी इन परीक्षाओं में पास होने के लिए लाखों की रकम देने को तैयार बैठे हैं। वैसे इसका कोई ठोस आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन जानकार मानते हैं कि हर साल यह धंधा कई सौ करोड़ रुपये का होता है। ताजा मामला मेडिकल की प्रवेश परीक्षा नीट का है। 12 सितंबर को हुई इस परीक्षा में असली की जगह नकली परीक्षार्थी बिठाने और प्रश्नपत्र लीक होने की बात सामने आई। इस सिलसिले में जयपुर पुलिस ने जयपुर, कोटा और दिल्ली से 13 लोगों को गिरफ्तार किया। इनमें छह मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्र हैं। वाराणसी पुलिस ने भी जूली कुमारी नाम की छात्रा को गिरफ्तार किया है जो त्रिपुरा की हिना विश्वास की जगह परीक्षा दे रही थी। इन सबके पीछे सॉल्वर गैंग का हाथ है।
राजस्थान में पकड़े गए गैंग का सरगना राजन राजगुरु नाम का शख्स बताया जाता है, जिसे 2010 में राजस्थान प्री मेडिकल टेस्ट दूसरी रैंक मिली थी। पेपर लीक कराने के बदले उसने 35 लाख रुपये लिए। यह रैकेट किस तरह पूरे देश में फैला है, उसका अंदाजा इस बात से चलता है कि पकड़े गए छात्र देहरादून मेडिकल कॉलेज, भरतपुर मेडिकल कॉलेज और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे हैं। पेपर लीक कराने में मददगार एक परीक्षा केंद्र के इंचार्ज राम सिंह को भी पकड़ा गया है।
बीएचयू की बीडीएस सेकेंड ईयर की छात्रा जूली त्रिपुरा की जिस हिना की जगह परीक्षा में बैठी थी, उसके पिता गोपाल विश्वास ने बेटी को मेडिकल प्रवेश परीक्षा में पास कराने के लिए 25 लाख रुपये में सौदा तय किया था। यहां जो सॉल्वर गैंग सक्रिय था उसका सरगना पटना का पीके नाम का शख्स बताया जाता है। उसे लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के छात्र शाहिद और बिहार के खगड़िया के विकास सॉल्वर उपलब्ध कराते थे। वाराणसी पुलिस ने इन दोनों को भी गिरफ्तार किया है।
नीट से पहले इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा जेईई (मेन) में भी ऐसा ही हुआ। अब तो धांधलेबाज चोटी के संस्थानों में दाखिला दिलाने के लिए सीधे अभिभावकों को फोन करने लगे हैं। ऐसा ही एक फोन पटना के रतीश झा के पास आया। फोन करने वाले ने कहा कि हम लोग एनआइटी और दूसरे संस्थानों में एडमिशन करवाते हैं। हम जैसा कहेंगे, उस तरह से फॉर्म भरना है। झा ने कहा, “फॉर्म तो पहले ही भर दिया है, अब कैसे करेंगे,” तो उसने कहा कि उसमें सेंटर बदलने का विकल्प होता है। उसने यह भी कहा कि 10 से 12 लाख रुपये लगेंगे, पैसे एडमिशन के बाद देने हैं। झा के पास दोबारा फोन आया कि बिट्स पिलानी में एडमिशन हो जाएगा। जब झा ने कंप्यूटर साइंस में एडमिशन की बात की तो तीसरी बार फोन में बताया गया कि 14 से 15 लाख रुपये लगेंगे। एडमिशन कैसे करवाएंगे, यह पूछने पर बताया कि आपको 99 पर्सेंटाइल मिल जाएगा, इतना नंबर मिलने पर एडमिशन होना निश्चित है।
इस वर्ष जेईई मेन के चौथे चरण की परीक्षा 26 अगस्त से 2 सितंबर तक हुई। झा ने तो धांधली करके बेटे का दाखिला कराने से मना कर दिया, लेकिन उन्हें मालूम था कि ऐसा संभव है। उनके बेटे का एक सहपाठी पढ़ाई में बहुत कमजोर था, किसी तरह पास होता था। लेकिन उसे 99 पर्सेंटाइल अंक मिल गए थे।
सीबीआइ ने इस सिलसिले में दिल्ली-एनसीआर, पुणे, जमशेदपुर, इंदौर और बेंगलूरू समेत 19 जगहों पर छापेमारी की और 11 लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें नोएडा के कोचिंग सेंटर एफिनिटी एजुकेशन प्राइवेट लिमिटेड के दो डायरेक्टर और चार कर्मचारी तथा सोनीपत के एक प्राइवेट कॉलेज के कुछ कर्मचारी भी शामिल हैं। जांच एजेंसी के अनुसार परीक्षार्थी के कंप्यूटर का रिमोट एक्सेस लेकर विशेषज्ञ सवालों के जवाब लिखते थे। इसके लिए सोनीपत के एक परीक्षा केंद्र को चुना गया था। बदले में वे परीक्षार्थी की दसवीं और बारहवीं की मार्कशीट, यूजर आइडी, पासवर्ड और 12 से 15 लाख रुपये का पोस्ट डेटेड चेक अपने पास रखते थे।
यह परीक्षा ऑनलाइन होती है जिसे 2017 में स्थापित नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) आयोजित करवाती है। इसने टीसीएस आइओएन को जेईई मेन्स ऑनलाइन परीक्षा की जिम्मेदारी सौंपी है, जो देश की सबसे बड़ी डिजिटल एसेसमेंट कंपनी है। कुछ जानकार मानते हैं कि धांधलेबाजों ने पूरे सिस्टम पर नियंत्रण कर लिया है और वे बिना किसी डर के ऐसा कर रहे हैं। उनका कहना है कि किसी को 99.5 पर्सेंटाइल तभी मिल सकता है जब उसे प्रश्नपत्र पहले से मिल जाए।
इसलिए कांग्रेस प्रश्नपत्र लीक होने का आरोप लगा रही है। पार्टी के नेता राहुल गांधी ने ट्वीट किया, “जेईई मेन परीक्षा ब्रीच हुई है। इन परीक्षाओं में भाग लेने वाले छात्र कड़ी मेहनत करते हैं, तमाम तरह की परेशानियों का सामना करते हैं। वे एक साफ-सुथरी परीक्षा के हकदार हैं। सरकार लीपापोती में ही बेहतर है।” पार्टी ने इसे घोटाला करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग की है। पार्टी ने कहा है कि एनटीए की अन्य परीक्षाओं की भी जांच कराई जाए। पार्टी का कहना है कि शिक्षा मंत्रालय और एनटीए को 2020 और 2021 में लगातार जेईई परीक्षा में गड़बड़ियों के लिए क्यों न जवाबदेह माना जाए।
एनटीए महानिदेशक विनीत जोशी ने प्रश्नपत्र लीक होने और सिस्टम ब्रीच की बात से इनकार किया। उन्होंने कहा कि यहां मूल परीक्षार्थी की जगह किसी और ने परीक्षा दी है। एनटीए ने इस साल अब तक ऐसे नौ मामले पकड़े हैं। पिछले साल गुवाहाटी के एक केंद्र में ऐसा मामला सामने आया था। एजेंसी ने उस परीक्षार्थी का नतीजा रद्द कर दिया और तीन साल तक उस पर रोक लगा दी। इस बार भी कार्रवाई की जा रही है। एनटीए ने इस बात से इनकार किया है कि वह धोखाधड़ी रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रही है। उसने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित वीडियो एनालिटिक्स का प्रावधान किया गया है, जिसमें परीक्षा केंद्रों की मॉनिटरिंग होती है। सुबह 5:30 बजे से लाइव वीडियो रिकॉर्ड किया जाता है। परीक्षा से पहले या बाद में किसी तरह की संदिग्ध हलचल होने पर सॉफ्टवेयर अलर्ट कर देता है।
धांधली में गिरफ्तार जूली और उसकी मां बबीता देवी
एनटीए ने संदिग्ध परीक्षा केंद्रों की पहचान के लिए कई मानदंड तय किए हैं। जैसे, क्या किसी परीक्षा केंद्र के सफल परीक्षार्थियों की संख्या राष्ट्रीय औसत से अधिक है? इन मानदंडों के आधार पर 120 संदिग्ध परीक्षा केंद्रों की पहचान की गई। उनमें से 23 को ब्लैकलिस्ट किया गया है और बाकी पर नजर रखी जा रही है। इनके अलावा 419 परीक्षार्थियों को भी निगरानी सूची में रखा गया।
जेईई मेन परीक्षा में पिछले साल भी गड़बड़ी पकड़ी गई थी। परीक्षा में 99.8 फीसदी अंक हासिल कर असम में प्रथम आने वाले नील नक्षत्र दास के खिलाफ शिकायत आई कि परीक्षा में वह नहीं, कोई और बैठा था। जांच में बात सही पाई गई। नील और उसके पिता डॉ. ज्योतिर्मय दास समेत सात लोगों को गिरफ्तार किया गया। इनमें गुवाहाटी स्थित कोचिंग इंस्टीट्यूट ग्लोबल एजुकेशन लाइट के मालिक भार्गव डेका और टीसीएस के दो कर्मचारी भी थे। शिकायत के अनुसार दास ने कोचिंग इंस्टीट्यूट को 15 से 20 लाख रुपये दिए थे।
ऑनलाइन का दंश
जब परीक्षाएं ऑनलाइन होने लगीं तो कहा गया कि इनमें धोखाधड़ी संभव नहीं है। इनमें प्रश्न पत्र कागज पर नहीं छपते। विशेषज्ञ सवालों का बैंक तैयार करते हैं और सॉफ्टवेयर एल्गोरिदम उन्हें चुनता है। प्रश्नपत्र टेस्ट सेंटर पर भेजे जाने से पहले एनक्रिप्टेड होते हैं। परीक्षार्थी के क्लिक करने पर ही वह खुलता है। परीक्षार्थियों के प्रश्नपत्र भी अलग-अलग होते हैं। लेकिन व्यापम घोटाले की जांच करवाने वाले आइएएस तरुण पिथोड़े आउटलुक से कहते हैं, “हमने जांच की, सिस्टम को बदला और ऑनलाइन परीक्षा शुरू करवाई। इसके बावजूद हम चैन से नहीं बैठ सकते, क्योंकि गड़बड़ी करने वाले नए-नए तरीके तलाशते रहते हैं। हमें उनसे एक कदम आगे रहना पड़ेगा, तभी इस धांधली को रोका जा सकता है।” घोटाला सामने आने के बाद वहां की व्यवस्था सुधारने के लिए पिथोड़े को व्यापम का डायरेक्टर बनाया गया था।
धांधलेबाजों ने विदेशी संस्थानों में दाखिले के लिए होने वाली परीक्षाओं को भी नहीं बख्शा है
व्यापम घोटाले के व्हिसिलब्लोअर डॉ. आनंद राय तो ऑनलाइन परीक्षा को गड़बड़ी के लिए सबसे मुफीद मानते हैं। इनको लीक करना बहुत आसान है। वे कहते हैं, “ऑनलाइन में जो घोटाला होता है उसे बाद में पकड़ना मुश्किल है, क्योंकि बाद में सर्वर से डेटा हटा दिया जाता है। अगर गड़बड़ी करने वालों को पकड़ भी लिया, तो उसे साबित करना और कठिन होता है।”
डॉ. राय की पहल के बाद मध्य प्रदेश सरकार हाल ही में कृषि विस्तार अधिकारी समेत चार परीक्षाएं रद्द करने पर मजबूर हुई। कृषि विस्तार अधिकारी पद के लिए 10-11 फरवरी को आयोजित परीक्षा में एक ही इलाके के 10 छात्र टॉपर हुए, जबकि उनका पुराना स्कूल-कॉलेज का रिकॉर्ड अच्छा नहीं था। मध्य प्रदेश सरकार ने परीक्षा तो रद्द कर दी, लेकिन अभी तक एफआइआर दर्ज नहीं हुई है। राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने स्वीकार किया कि चारों परीक्षाओं में सिस्टम हैक करके प्रश्नपत्र लीक किए गए थे। डॉ. राय के अनुसार, “मध्य प्रदेश में 2016 से ऑनलाइन परीक्षा चल रही है और तब से इसमें गड़बड़ियां जारी हैं।”
“सजा तो छोटे-मोटे को ही हुई। पैसे लेने वाले तो ज्यादातर बच गए। सीबीआइ की जांच में भी कुछ खास नहीं हुआ”
डॉ. आनंद राय, व्यापम विह्सिलब्लोअर
केंद्र और राज्य के संस्थानों ने ऑनलाइन परीक्षा तो शुरू कर दी, लेकिन इसका जिम्मा निजी कंपनियों को दे दिया जाता है। यह ठेका देने में भी गड़बड़ी की शिकायतें आम हैं। हाल ही में ऐसा मामला मध्य प्रदेश में सामने आया। जबलपुर की मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी से संबद्ध कई कॉलेजों में जून में बीडीएस और नर्सिंग की परीक्षा हुई। कई छात्रों के परीक्षा में न बैठने के बावजूद पास होने और कुछ के नंबर बढ़ाए जाने की शिकायतें आईं। आरोप है कि इन छात्रों से 10 से 50 हजार रुपये लिए गए। एक्टिविस्ट अखिलेश त्रिपाठी की शिकायत पर जांच के लिए समिति बनी, जिसने यूनिवर्सिटी के एक्जाम कंट्रोलर समेत कई कर्मचारियों और माइंड लॉजिक्स इंफ्राटेक नाम की निजी कंपनी को दोषी पाया। कंपनी को प्रश्नपत्रों की डिलीवरी करने और रिजल्ट तैयार करने का जिम्मा दिया गया था, जबकि आगरा यूनिवर्सिटी ने पहले ही उसके खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई थी। समिति की रिपोर्ट के बाद यूनिवर्सिटी ने कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया। कंपनी पर छात्रों की आंसरशीट सीधे यूनिवर्सिटी को देने के बजाय उन्हें अपने पास रखने और नंबरों में हेरफेर करने का आरोप था।
सभी राज्य प्रभावित
परीक्षा घोटाले से शायद ही कोई प्रदेश अछूता हो। असम में पिछले साल सितंबर में 557 सब इंस्पेक्टर की भर्ती के लिए होने वाली परीक्षा प्रश्नपत्र लीक हो जाने के कारण रद्द करनी पड़ी। इसके लिए 66 हजार से अधिक लोगों ने आवेदन किया था। इसमें असम के मुख्य सचिव कुमार संजय कृष्ण के भाई और करीमगंज के एसपी कुमार संजीत कृष्ण, पूर्व डीआइजी पीके दत्ता और भाजपा नेता दिबान डेका समेत 50 से अधिक गिरफ्तारियां हुईं। इसी तरह, उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा विभाग ने 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती निकाली थी। यह परीक्षा 6 जनवरी 2019 को आयोजित की गई और 12 मई 2020 को नतीजे घोषित किए गए। लेकिन 150 में से 142 अंक पाने वाला धर्मेंद्र पटेल देश के राष्ट्रपति का नाम नहीं बता सका तो घोटाले का खुलासा हुआ। पहले इलाहाबाद हाइकोर्ट ने और फिर सुप्रीम कोर्ट ने सहायक शिक्षकों की भर्ती पर रोक लगा दी।
धांधली के खिलाफ एनएसयूआइ का प्रदर्शन
ऐसे घोटालों में दक्षिण के राज्य भी पीछे नहीं। तमिलनाडु में 2019 में नीट परीक्षा में असली की जगह नकली परीक्षार्थी बिठाने का मामला सामने आया था। पिछले दिनों राज्य लोक सेवा आयोग की ग्रुप 4 के लिए आयोजित परीक्षा में पता चला कि टॉप 100 में से 40 परीक्षार्थियों ने रामेश्वरम और किलाकराई केंद्रों पर परीक्षा दी थी। जांच में धांधली का गजब का तरीका सामने आया। परीक्षार्थियों से दो कलम इस्तेमाल करने को कहा जाता था। साधारण कलम से नाम, रजिस्ट्रेशन नंबर आदि लिखा जाता था। दूसरी कलम से आंसरशीट भरी जाती थी। उसमें ऐसी स्याही होती थी जिसकी लिखावट कुछ घंटे बाद उड़ जाती थी। बाद में रिकॉर्ड क्लर्क की मदद से आंसरशीट लेकर गायब हो चुके जवाब की जगह सही जवाब लिखे जाते थे। इस मामले में चेन्नै के अजय कुमार नाम के शख्स को पकड़ा गया था।
प्रवेश परीक्षाओं का दबाव इतना अधिक होता है कि तमिलनाडु में हाल ही दो नीट परीक्षार्थियों ने खुदकुशी कर ली। इसके बाद वहां की विधानसभा ने 13 सितंबर को एक बिल पारित किया, जिसके तहत प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में नीट के आधार पर दाखिला नहीं होगा। बारहवीं के नतीजों के आधार पर ही दाखिला मिलेगा। भाजपा को छोड़ बाकी सभी पार्टियों ने इस बिल का समर्थन किया। हालांकि इस बिल पर राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी होगी। तमिलनाडु के राजनीतिक दल इस तर्क के साथ राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षाओं का विरोध करते रहे हैं कि ये प्राइवेट कोचिंग लेने में सक्षम संपन्न लोगों के पक्ष में हैं। ग्रामीण छात्रों को इससे नुकसान होता है।
धांधलेबाजों ने विदेशी संस्थानों में भर्ती के लिए होने वाली परीक्षाओं को भी नहीं बख्शा है। अमेरिका और कनाडा के शिक्षण संस्थानों में भर्ती के लिए जीआरई (ग्रैजुएट रिकॉर्ड एग्जामिनेशन) परीक्षा होती है। कोरोना के दौर में घर से परीक्षा देने की छूट दी गई। धांधलेबाज परीक्षार्थी को घर से ही परीक्षा देने का विकल्प चुनने के लिए कहते हैं। परीक्षा से एक दिन पहले उन्हें किसी खास इंस्टीट्यूट में बुलाया जाता है। वहां परीक्षार्थी के सामने कोई जानकार बैठता है। एक खास एंगल से मोबाइल फोन से परीक्षार्थी के स्क्रीन से सवालों की फोटो ली जाती है। उसके बाद सामने बैठा विशेषज्ञ पर्ची या हाथ के इशारे से सही जवाब बताता है। पहले जीआरई में औसत अंक 270 से 280 होता था, लेकिन घर से परीक्षा का विकल्प मिलने के बाद यह बढ़कर 310 से 325 हो गया है। अंक इस बात पर निर्भर करता है कि आपने कितने पैसे दिए हैं। हैदराबाद, विजयवाड़ा, गुंटूर समेत कई शहर इस धोखाधड़ी के केंद्र बन गए हैं।
डॉ. राय के अनुसार ऑनलाइन परीक्षा की धांधली पकड़ने के लिए एनआइसी के अधिकारी या दूसरे विशेषज्ञ होने चाहिए। इसे पकड़ना पुलिस के बस की बात नहीं। वे 2016 में डेंटल मेडिकल एडमिशन टेस्ट (डीमैट) और 2017 में एम्स की परीक्षा में गड़बड़ी सामने लेकर आए थे। उसकी सीबीआइ जांच भी हुई थी। उन्होंने नीट-पीजी प्रवेश परीक्षा में भी सर्वर की हैकिंग पकड़ी थी। ऑनलाइन परीक्षा के लिए प्रोमेट्रिक दुनिया की सबसे विश्वसनीय एजेंसी मानी जाती है। सरकार ने उसे ही नीट-पीजी का ठेका दिया था। डॉ. राय कहते हैं, “हमने उसके सिस्टम में भी खामियां उजागर कीं और इस बात को कंपनी ने भी कोर्ट में स्वीकार किया। कंपनी के सिस्टम में खामियों के लिए आखिर कौन जवाबदेह है?”
डॉ. राय का सवाल वाजिब है। हर साल लाखों लोग प्रवेश या नौकरी की परीक्षा देते हैं। उन पर करोड़ों लोगों का जीवन निर्भर होता है। इतनी बड़ी आबादी के प्रभावित होने के बावजूद कम लोगों को ही घोटाले की सजा मिलती है। जांच के बाद एक हजार से ज्यादा व्यापम परीक्षार्थियों की उम्मीदवारी रद्द की गई, कई सरकारी कर्मचारी बर्खास्त हुए। लेकिन राय के मुताबिक “सजा तो छोटे-मोटे लोगों को ही हुई- जिन्होंने पैसे दिए और दलालों को। पैसे लेने वाले तो ज्यादातर बच गए। सीबीआइ के हाथ में जाने के बाद भी जांच में कोई खास प्रगति नहीं हुई। कुछ प्राइवेट कॉलेजों के मालिक जरूर गिरफ्तार हुए हैं।” सवाल है कि क्या किसी भी राज्य में असली गुनहगारों को सजा हुई? शायद नहीं।
घोटाले के दम पर शानो शौकत
परीक्षा घोटाले का पहला बड़ा मामला 2003 में तब सामने आया जब सीबीआइ ने बिहार के नालंदा जिले के गांव खद्दी लोदीपुर निवासी सुमन कुमार सिंह उर्फ रंजीत कुमार सिंह उर्फ रंजीत डॉन को दिल्ली में गिरफ्तार किया। यह गिरफ्तारी कैट परीक्षा के पेपर लीक कराने के मामले में हुई थी। जांच में पता चला कि वह मेडिकल और इंजीनियरिंग समेत कई परीक्षाओं के पेपर लीक कराने का नेटवर्क चलाता था। वह डेढ़ साल जेल में रहा, लेकिन गिरफ्तारी से पहले करीब एक दशक तक उसने शाही जिंदगी जी। उसके पास कई आलीशान मकान और महंगी कारों का काफिला था। यहां तक कि वह हेलीकॉप्टर खरीदने की सोच रहा था।
धोखाधड़ी की इस कला में डॉ. इरशाद खान को रंजीत का गुरु माना जाता है। ‘इंजन-बोगी’ सिस्टम खान के दिमाग की ही उपज मानी जाती है। इंजन या सॉल्वर कोई मेधावी छात्र होता है जो बोगी यानी असली परीक्षार्थी की मदद करता है। तीन साल तक खान के साथ काम करने के बाद रंजीत ने अपना ‘धंधा’ अलग कर लिया। खान ने हमेशा रंजीत या इस तरह के किसी रैकेट से संबंध होने से इनकार किया है। हालांकि राज्य और केंद्र की जांच एजेंसियों ने कई परीक्षाओं के सिलसिले में उससे पूछताछ की है।
रंजीत ने 1979 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसने दरभंगा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस डिग्री ली थी। हालांकि इसमें भी फर्जीवाड़े के आरोप लगे। उसने मुंबई में रेडॉन्स नाम से फार्मा कंपनी खोली थी। 1980 के दशक में ही पटना में उसकी मुलाकात परीक्षा ‘सेटिंग’ करने वालों से हुई। परीक्षार्थी एक ही लिफाफे में आवेदन पत्र भेजते थे, इससे उन्हें एक क्रम में रोल नंबर मिल जाता था। इनमें कुछ ‘इंजन’ और कुछ ‘बोगी’ होते थे। अलग-अलग परीक्षाओं के प्रश्न पत्र के लिए वह चार से 15 लाख रुपये तक लेता था।
‘इंजन’ के लिए वह पटना के कोचिंग सेंटर से मेधावी छात्रों को चुनता था। ऐसे ही एक शख्स डॉ. हरिशंकर चौधरी की भी गिरफ्तारी हुई थी। संजीव नाम का एक शख्स भी गिरफ्तार किया गया था जो परीक्षा पत्र की छपाई करने वाले मुंबई के एक प्रेस में काम करता था। प्रश्नपत्र बनाने वाली समिति के सदस्यों से भी उसके ताल्लुकात थे। अगर किसी परीक्षा के प्रश्नपत्र उसे नहीं मिले तो परीक्षा केंद्र के सुपरिटेंडेंट को रिश्वत देकर अपने सभी क्लाइंट छात्रों को एक ही कमरे में बिठाने की व्यवस्था करता था।
रंजीत की गिरफ्तारी उसके गांववालों और परिजनों के लिए बड़ा झटका थी। कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि वह घोटालेबाज है। गांववालों को लगता था कि डॉक्टर के रूप में उसकी प्रैक्टिस खूब चलती है और उसकी दवा कंपनी भी काफी मुनाफे में है। वह 2004 में बेगूसराय लोकसभा सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा। हार गया लेकिन उसे 60,000 वोट मिले। 2005 के विधानसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी ने हिलसा सीट से टिकट दिया था हालांकि उस चुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा। उसे 2015 में लोजपा के टिकट पर विधान परिषद चुनाव में भी हार मिली।
जेईई मेन परीक्षा ब्रीच हुई है। मेहनत करने वाले छात्रों का हक छीना जा रहा है। सरकार लीपापोती में मशगूल है।
राहुल गांधी, कांग्रेस नेता