शीर्ष नेताओं, पत्रकारों और एक्टीविस्टों के स्मार्टफोन में इजरायली जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए तथाकथित सेंध लगाने की घटना सामने के बाद भारत की राजनीति में इन दिनों उथल-पुथल मची हुई है। इतने व्यापक पैमाने पर सर्विलांस का मामला इससे पहले 2010 में सामने आया था। तब राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (एनटीआरओ) पर जीएसएम मॉनिटरिंग मशीनों के इस्तेमाल के आरोप लगे थे। तत्कालीन गृह सचिव गोपाल कृष्ण पिल्लई के अनुसार हैकिंग और सर्विलांस, चाहे वह अधिकृत हो या अनधिकृत, व्यापक स्तर पर हो रहा है। उनसे भावना विज-अरोड़ा की बातचीत के मुख्य अंशः-
आपके विचार से पेगासस सर्विलांस की हद क्या है?
यह सिर्फ भारत की बात नहीं है। ऐसा 40 अन्य देशों में हुआ है और वहां कानून के ज्यादा बड़े उल्लंघन हुए हैं। भारत में तो 300 मामले हैं, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक मेक्सिको में 15,000 फोन नंबर की निगरानी की गई। अधिकृत या अनधिकृत तौर पर हैकिंग और सर्विलांस व्यापक स्तर पर हो रहा है। कंपनियां भी ऐसा करती हैं। ऐसा सोचना मूर्खता होगी कि मेरा फोन हैक नहीं हुआ है। आपको यह मान कर चलना चाहिए आपका फोन हैक किया गया है, या आपके ईमेल अलग-अलग लोग पढ़ रहे हैं। सरकारी और निजी क्षेत्र, दोनों के पास आपके फोन तक पहुंचने के अनेक रास्ते हैं।
इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप का कहना है कि वह आतंकवादियों और अपराधियों की ट्रैकिंग के लिए सिर्फ सरकारों को पेगासस लीज पर देती है।
यह स्पष्ट नहीं कि सूची कहां से आई है। कोई भी एक वेबसाइट पर ऐसी सूची डाल कर कह सकता है कि यह टैप या हैक किए गए फोन की सूची है। सरकारी और निजी, दोनों एजेंसियां ऐसी निगरानी कर सकती हैं। असल समस्या है कि अधिकृत फोन टैपिंग भी सिर्फ जियो या एयरटेल जैसे सर्विस प्रोवाइडर के जरिए नहीं होती। सरकार पेगासस या दूसरी सैकड़ों एजेंसियों के सॉफ्टवेयर के जरिए ऐसा कर सकती है। हर कोई कर रहा है। चाहे वह अमेरिका की सरकार हो, चीन की, ब्रिटेन की या रूस की। राष्ट्रपति ओबामा जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल का फोन टैप कर रहे थे। यह जानकर मर्केल बेहत क्षुब्ध हुईं। टेक्नोलॉजी के विकास के साथ इसका तरीका बदलता रहेगा।
अधिकृत फोन सर्विलांस का तरीका क्या है?
केंद्र सरकार में सिर्फ गृह सचिव फोन टैपिंग की इजाजत दे सकता है। इसके लिए 10 अधिकृत एजेंसियों से आग्रह आते हैं। कारण जानने के बाद ही अनुमति दी जाती है और वह 60 दिनों के लिए होती है। 60 दिनों के बाद दोबारा आग्रह भेजना पड़ता है। यह प्रक्रिया बेहद सख्त है और आतंकवादियों, अपराधियों या मनीलॉन्ड्रिंग के मामलों में ही इसकी अनुमति दी जाती है। अनधिकृत टैपिंग को साक्ष्य नहीं माना जाता, क्योंकि चार्जशीट में बातचीत के ट्रांसस्क्रिप्ट के साथ गृह सचिव के आदेश की प्रति भी लगानी पड़ती है। मेरे गृह सचिव रहते (2009-11) 4,000 फोन की सर्विलांस हुई थी।
पेगासस प्रोजेक्ट को कैसे समझा जाए?
मेरी समझ में यह नहीं आता कि सरकार यह क्यों नहीं कहती कि ‘हमने यह रिपोर्ट देखी है। हम इसकी जांच करेंगे कि देश में हमारे सिवाय और कोई अनधिकृत तरीके से तो ऐसा नहीं कर रहा है।’ अगर सरकार अनधिकृत तरीके से ऐसा कर रही है तो उसका कोई सबूत नहीं मिलेगा, क्योंकि सॉफ्टवेयर किसी और को आउटसोर्स किया जाएगा जो हैकिंग करेगा। अगर कोई सरकारी एजेंसी पेगासस का इस्तेमाल कर फोन की निगरानी कर रही है तो उसके लिए गृह सचिव की अनुमति जरूरी है। मान लीजिए राहुल गांधी का फोन टैप करने की इजाजत मांगी गई। सामान्य तौर पर गृह सचिव इसकी इजाजत नहीं देगा। बहुत खास सबूत न हो तो किसी पत्रकार का फोन टैप करने की अनुमति भी नहीं दी जाती है। मेरे दो साल के कार्यकाल में किसी भी मीडियाकर्मी का फोन टैप करने का आग्रह नहीं आया। लेकिन ऐसा करने के अनेक दूसरे रास्ते हैं। इसलिए डाटा निजता का कानून जरूरी हो जाता है। तब हम निजी तौर पर सर्विलांस करने वाले के खिलाफ स्वतंत्र रेगुलेटर से जांच की मांग कर सकते हैं।
क्या आपको लगता है कि स्वतंत्र नियामक के साथ डाटा निजता कानून की जरूरत है?
डाटा निजता कानून के ड्राफ्ट में स्वतंत्र नियामक का प्रावधान है। लेकिन इसमें सरकार को पूरी तरह छूट दी गई है।