ढाई हजार वर्ष पुराना बौद्ध धर्म भले भारत से उखड़ गया हो लेकिन भगवान बुद्घ एशिया के कई देशों के लिए खासे मायने रखते हैं। बेशक, सैलानियों के लिए बुद्ध से जुड़े स्थल आकर्षण के केंद्र भी हैं। यही कारण है कि भारत सरकार बुद्ध का "सांस्कृतिक कूटनीति" के रूप में इस्तेमाल करती रही है और समय-समय पर बौद्ध देशों के निमंत्रण पर भारत से बुद्ध के अवशेष वहां जाते रहे हैं। इससे उन देशों के साथ भारत के रिश्ते और मजबूत होते हैं तथा भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि भी बनती है।
मोदी 2022 में बुद्ध की जन्मस्थली नेपाल की लुंबिनी में भी गए, और वहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर फॉर बुद्धिस्ट कल्चर का उद्घाटन किया था। पिछले दिनों 30 साल के बाद भगवान बुद्ध के चार पवित्र अवशेषों को वायु सेना के विशेष विमान से थाईलैंड भेजा गया। इसका राजनैतिक महत्व इस बात से पता चलता है कि ये अवशेष 22 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ भेजे गए, जिसका नेतृत्व बिहार के राज्यपाल राजेंद्र अर्लेकर ने किया। इसमें सामाजिक न्याय तथा अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र सिंह भी शामिल थे।
प्रतिनिधि मंडल रवाना होने से पहले संस्कृति सचिव गोविंद मोहन ने दिल्ली में बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर इस पूरी यात्रा की विशेष घोषणा की और इसके महत्व को भी बताया। उन्होंने कहा कि इससे भारत और थाईलैंड के राजनयिक संबंध और मजबूत होंगे। 1952 से समय-समय पर बौद्ध देशों में ये अवशेष भेजे जाते रहे हैं। भगवान बुद्ध के अवशेषों को भेजा जाना कोई सामान्य घटना नहीं होती है बल्कि वहां के राजनीतिक सांस्कृतिक तथा जनजीवन के लिए राष्ट्रीय महत्व की घटना होती है। वहां कई दिनों तक उत्सव का माहौल रहता है और लाखों लोग बुद्ध के अवशेष देखने के लिए आते हैं।
भारत में बुद्ध के 20 अवशेष राजधानी के राष्ट्रीय संग्रहालय में हैं और दो अवशेष कोलकाता के इंडियन म्यूजियम में है। लेकिन दिल्ली की जनता को इस बात की कम जानकारी होगी और इन अवशेषों के देखने के लिए बौद्ध देशों की तरह राजधानी में कभी कोई भीड़ नजर नहीं आई। लेकिन थाईलैंड में जब वहां के सैन्य विमान अड्डे पर चार पवित्र अवशेष (बुद्ध की हड्डियां) पहुंचे तो वहां पारंपरिक मंत्रोच्चार के साथ भव्य स्वागत किया गया। अगले दिन बैंकाक के एक विशेष मंडप में इन अवशेषों को रखा गया।
प्रदर्शनीः बैंकाक में बुद्ध के अवशेष
बिहार के राज्यपाल राजेंद्र अर्लेकर ने इन चार अवशेषों को वहां के प्रधानमंत्री श्रेथा थाविसिन को सौंपा जबकि वीरेंद्र सिंह ने भगवान बुद्ध के दो शिष्यों के अवशेषों को उप-प्रधानमंत्री सोमस्क थेपसुतीन को सौंपा, जो सांची के स्तूप से ले जाए गए थे। यह पहला मौका था जब भगवान बुद्ध के दोनों शिष्यों के अवशेष विदेश भेजे गए हों। बुद्ध के इन दोनों शिष्यों अर्हन्त सारिपुत्र और महामुदगलयान का निधन बुद्ध के जीवन काल में ही हो गया था और उनके अवशेष सांची के स्तूप में मौजूद हैं। थाईलैंड में 26 दिनों तक इन अवशेषों की प्रदर्शनी रहेगी। इस समय पूरी दुनिया में 52 करोड़ बौद्ध हैं। भारत में तो उनकी संख्या मात्र एक करोड़ ही है और उन्हें अल्पसंख्यक का दर्ज दिया गया है लेकिन एशिया तथा दक्षिण एशिया के अनेक देशों में भगवान बुद्ध की महिमा बरकरार है।
भारत में बुद्ध अब पर्यटन के जरिये विदेशी मुद्रा कमाने के साधन भी हैं। सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए रेलवे का बुद्ध सर्किट भी बनाया, ताकि लोग भगवान बुद्ध से जुड़े स्थलों की यात्रा कर सकें।
बुद्ध के अवशेषों की कथा भी कम दिलचस्प नहीं है। बुद्ध के ये अवशेष उत्तर प्रदेश के पिपरवहा में खुदाई में मिले थे। कुशीनगर में महानिर्वाण के बाद बुद्ध की अस्थियों को लेकर उत्तराधिकारियों के बीच विवाद भी हुए और युद्ध भी। फिर 8 भागों में उनके अवशेष को बांटा गया था।
उत्तर आधुनिक भौतिक समाज में बुद्ध के संदेशों को लोग कम ही अपनाते हैं पर बुद्ध की मूर्तियां, कैलेंडर आदि आज ड्राइंग रूम में शोभा की वस्तु जरूर हैं। पर बुद्ध की अहिंसा और शांति का संदेश दुनिया के लिए आज भी प्रासंगिक बना हुआ है, चाहे राजनीति कितनी ही हिंसा से पटी क्यों न हो।