Advertisement
18 मार्च 2023 · MAR 18 , 2024

स्मृति: मानवाधिकारों का बुलंद पैरोकार

सबसे प्रतिष्ठित न्यायविद और देश के कानूनी इतिहास के इस दिग्गज का ऐतिहासिक मामलों और संवैधानिक कानून में योगदान अद्वितीय है
फली एस. नरीमन (1929-2024)

सबसे प्रतिष्ठित न्यायविद और देश के कानूनी इतिहास के इस दिग्‍गज का ऐतिहासिक मामलों और संवैधानिक कानून में योगदान अद्वितीय है। 1929 में जन्मे नरीमन ने 1950 में बॉम्बे के सरकारी लॉ कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने 1949 में बॉम्बे हाइकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की और 1971 में सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील की हैसियत से पहुंचे। वे 1972 से 1975 तक अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल रहे, लेकिन 1975 में इंदिरा गांधी सरकार की इमरजेंसी की घोषणा पर इस्तीफा दे दिया। पद्म भूषण, पद्म विभूषण से सम्मानित राज्यसभा के सदस्य रहे। वे लोगों के अधिकारों, समानता, धर्मनिरपेक्षता और संवैधानिक मूल्यों की वकालत करते थे।

अपनी आत्मकथा व्हेन मेमोरी फेड्स में नरीमन ने धर्मनिरपेक्ष भारत में ही जीने और मरने की इच्छा व्‍यक्‍त की है। वे अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के आलोचक रहे। पिछले साल द वायर के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने भारत के बारे में ‘एक परोक्ष आपातकाल की तरह है, लेकिन इसमें मुस्लिम, अल्पसंख्यक विरोधी भावना शामिल है’ कहा था।

आइ.सी. गोलकनाथ बनाम पंजाब, 1967 के मामले में, नरीमन ने दलील पेश की कि अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति की सीमा है। संविधान के भाग III में निहित मौलिक अधिकारों में फेरबदल नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ बहुमत से इस दलील से सहमत हुई। फैसला आया कि संसद ऐसा कानून नहीं बना सकती जो संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो।

न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली में भारतीय न्यायपालिका में नरीमन का योगदान प्रमुख रूप से उन तीन मामलों में अभूतपूर्व है, जिसके त‍हत न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली स्थापित और बरकरार है। ये द्वितीय न्यायाधीश मामला, 1993 का है; तृतीय न्यायाधीश मामला, 1998; और 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) को चुनौती। 1993 में सेकेंड जजेज केस के रूप में चर्चित सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम केंद्र मामले में नरीमन ने 1981 में सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले को चुनौती दी। उन्‍होंने दलील दी कि न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों के मामलों में प्रधान न्यायाधीश की सिफारिशों को बाध्यकारी माना जाना चाहिए, क्योंकि न्यायाधीश ही न्यायाधीशों की नियुक्ति पर अधिक सक्षम राय दे सकते हैं और ऐसा नहीं हुआ, तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता भंग होगी। 1993 में, नौ न्यायाधीशों की पीठ नरीमन के तर्कों से सहमत हुई और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की स्थापना की गई, जिसे सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्टों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बाध्यकारी सिफारिशें करने का काम सौंपा गया। यह व्‍यवस्‍था आज तक मौजूद है। 1998 में नरीमन ने न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर स्पष्टीकरण के संबंध में तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायण के संदर्भ के जवाब देने में अदालत की मदद की। अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रधान न्‍यायाधीश को न्यायिक नियुक्तियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट के अन्य न्यायाधीशों से परामर्श करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का आकार भी तीन से बढ़ाकर पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों तक कर दिया गया।

2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 के जरिए संविधान संशोधन किया गया, जिसके तहत न्यायिक नियुक्तियों के लिए आयोग बनाने का प्रावधान था, जिसके सदस्‍य प्रधान न्‍यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट के दो अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय कानून मंत्री और दो ‘प्रख्यात व्यक्ति’ शामिल होते। प्रख्यात व्यक्तियों का चयन प्रधान न्‍यायाधीश, प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता की समिति करती। नरीमन ने तर्क दिया कि केंद्र सरकार और विधायिका की दखलंदाजी से न्यायपालिका की स्वतंत्रता भंग होगी। आखिर सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीश नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम प्रणाली को बहाल रखा और एनजेएसी को असंवैधानिक करार दिया।

2002 में टीएमए पई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक मामले में, नरीमन ने निजी शैक्षणिक संस्थानों को अपने प्रतिष्ठान स्थापित करने और प्रबंधनू करने के अधिकार के लिए तर्क दिया, यह अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) में सुरक्षित है, जो किसी भी पेशे या व्यवसाय से जुड़ने की स्वतंत्रता देता है। इस दलील के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सरकार के नियम ‘संस्था के अल्पसंख्यक चरित्र को नष्ट नहीं कर सकते हैं या स्थापित और संचालन करने के अधिकार को महज छलावा नहीं बना सकते हैं।’

उन्हें जीवन में बस एक पछतावा रहा। नरीमन ने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन बनाम केंद्र मामले में यूनियन कार्बाइड की वकालत की थी।

Advertisement
Advertisement
Advertisement