इस बार पंजाब विधानसभा का चुनाव चेहरों के लिए याद किया जाएगा। विभिन्न दलों के घोषित-अघोषित नौ मुख्यमंत्री चेहरे मैदान में हैं। सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के दबाव में 20 फरवरी को मतदान से पहले मुख्यमंत्री चेहरे का ऐलान करने की बात कही है। कांग्रेस के चार संभावित चेहरों में चन्नी और सिद्धू के अलावा सुनील जाखड़ और प्रताप बाजवा हैं। शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन का सीएम चेहरा सुखबीर बादल हैं। आम आदमी पार्टी ने भगवंत मान को आगे किया है तो 22 किसान संगठनों के संयुक्त समाज मोर्चा का सीएम चेहरा बलबीर सिंह राजेवाल हैं। भाजपा, पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस और सुखदेव सिंह ढींढसा की शिअद (सयुंक्त) के गठबंधन का सीएम चेहरा अभी सामने नहीं आया है। लेकिन इस खेमे में कैप्टन अमरिंदर के साथ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अश्वनी शर्मा का नाम आ रहा है।
चन्नी को भरोसा है कि पंजाब के 32 फीसदी दलित मतदाता उनकी अगली पारी आश्वस्त करेंगे। कैबिनेट मंत्री ब्रहम महिंद्रा ने आउटलुक से कहा, “मैंने तो हाईकमान से सिफारिश की है कि चन्नी को ही अगला सीएम उम्मीदवार घोषित किया जाए। उन्हें अगला सीएम पेश करने से प्रदेश की 32 फीसदी दलित आबादी का कांग्रेस को साथ मिल सकता है। अकाली-बसपा, आप और संयुक्त समाज मोर्चा के सीएम उम्मीदवार जट्ट सिख हैं। इससे भी कांग्रेस को मदद मिलेगी।”
कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के लिए चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच लड़ाई छिड़ी है। 27 जनवरी की जालंधर रैली में राहुल गांधी ने चन्नी और सिद्धू को साधने का प्रयास किया। मंच पर राहुल गांधी ने दोनों को शपथ दिलाते हुए कहा, “मुख्यमंत्री तो एक बनेगा, पर पार्टी से बगावत किए बगैर दूसरा उसका समर्थन करेगा।” जवाब में चन्नी ने उपलब्धियां गिनाते हुए अगला मौका दिए जाने की बात कही, तो सिद्धू ने भी संकेत दिए कि वे दर्शनी घोड़ा बनकर नहीं रहना चाहते।
चन्नी-सिद्धू की लड़ाई कांग्रेस पर भारी पड़ सकती है, इसलिए कोई तीसरा या चौथा चेहरा भी सामने आ सकता है। पूर्व प्रदेश पार्टी प्रमुख सुनील जाखड़ और सांसद प्रताप सिंह बाजवा के नाम तेजी से उभरे हैं। कांग्रेस मैनिफेस्टो कमेटी के चेयरमैन बाजवा कादियां से अपने विधायक भाई फतेह बाजवा का टिकट कटवाकर मैदान में हैं। पहली बार कांग्रेस ने बाजवा को सिद्धू की टक्कर में अहमियत दी है। कैप्टन अमरिंदर के समय हाशिए पर रहे बाजवा पंजाब कांग्रेस का एक बड़ा चेहरा हैं और सिद्धू के मुकाबले उनकी भी पकड़ कमजोर नहीं है।
उधर, भगवंत मान को सीएम चहरा बनाने से आप की राह कितनी आसान हुई है, यह तो नतीजे बताएंगे, पर सवाल है कि चन्नी, सिद्धू, जाखड़, सुखबीर बादल और कैप्टन अमरिंदर जैसे मंझे खिलाड़ियों के आगे मान कितना टिक पाएंगे। सीएम चेहरे के लिए जनमत के नाम पर पार्टी ने एक फोन नंबर जारी किया था। दावा है कि चार दिन में 21 लाख लोगों ने जवाब दिया जिनमें 93 फीसदी ने मान का समर्थन किया। लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू इसे सीएम स्कैम करार देते हुए आउटलुक से कहते हैं, “एक नंबर पर इतने फोन का मतलब है एक सेकंड में 10 से अधिक फोन कॉल, वह भी 24 घंटे लगातार। आप ने अपने कथित सीएम के नाम पर स्कैम किया है। पार्टी चुनाव से पहले ही जनता पर ऐसा चेहरा थोप रही है जो शराब के नशे में खुद को नहीं संभाल पाता।”
पांच बार मुख्यमंत्री रहे 94 वर्षीय प्रकाश सिंह बादल अपने पुराने हलके लंबी से मैदान में हैं, पर इस बार सीएम की रेस से खुद को बाहर रखा है। देखना है कि अकाली दल के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री चेहरे सुखबीर बादल को पार्टी के भीतर और बाहर कितनी स्वीकार्यता मिलती है। उन पर 2012 से 2017 तक भाजपा के साथ गठबंधन सरकार में बतौर उपमुख्यमंत्री रेत, ट्रांसपोर्ट, केबल और ड्रग्स माफिया को सरंक्षण देने के आरोप हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअबदी का मुद्दा है ही। उनकी पार्टी ने केंद्र के तीन कृषि कानूनों का संसद में समर्थन भी किया था। भले बाद में पार्टी ने कृषि कानूनों का विरोध करते हुए एनडीए से नाता तोड़ लिया, पर किसानों में पार्टी के प्रति नाराजगी कम नहीं हुई है।
पंजाब से लेकर दिल्ली की सीमाओं पर 18 महीने तक डटे किसान नेता भी सियासी दांव आजमा रहे हैं। पंजाब के 22 किसान संगठनों और हरियाणा के गुरनाम सिंह चढूनी की संयुक्त संघर्ष पार्टी के समर्थन से संयुक्त समाज मोर्चा का सीएम चेहरा बलबीर सिंह राजेवाल हैं। किसान संगठनों का मालवा की 65 सीटों पर प्रभाव है, पर भारतीय किसान यूनियन उगरांह (एकता) जैसे पंजाब के सबसे बड़े व मजबूत किसान संगठनों ने संयुक्त समाज मोर्चा को समर्थन न देने का ऐलान किया है। किसान संगठनों के सीएम चेहरे पर सवाल उठाते हुए संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य डॉ. दर्शन पाल ने कहा, “सियासी मैदान में उतरे पंजाब के किसान संगठनों ने यह कदम उठाकर भविष्य के आंदोलन को कमजोर कर दिया है।”
बेरोजगारी, नशा, धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी, कर्ज मुक्त किसानी जैसे अहम मुद्दों को हाशिए पर धकलने वाले तमाम दलों की लड़ाई अब मुख्यमंत्री चेहरों पर आ टिकी है। इस जंग में पंजाब का कौन-सा सरदार सबसे असरदार साबित होगा, यह 10 मार्च को नतीजों से साफ होगा।
नेताओं के बढ़े डेरों के फेरे
पंजाब की सियासत में डेरों का खासा दखल रहा है। प्रदेश में 100 से अधिक छोटे-बड़े डेरे हैं और मतदान की तारीख करीब आते ही तमाम सियासी दलों के नेताओं ने डेरों के फेरे बढ़ा दिए हैं। ब्यास के राधास्वामी डेरे का व्यापक प्रभाव है, इसलिए हर पार्टी का छोटा-बड़ा नेता यहां चुनावी मौसम में नतमस्तक होता है। डेरा सच्चा सौदा का मालवा की 65 सीटों में से 40 पर प्रभाव है। पंजाब में डेरा सच्चा सौदा के 84 डेरे हैं।
आसरे की आसः डेरा सचखंड में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी
वोट के लिए 9 जनवरी को बठिंडा जिले के सलबतपुर में डेरे के नामघर में कई दलों के नेता पहुंचे। इनमें कैबिनेट मंत्री विजय इंदर सिंगला, पूर्व मंत्री साधु सिंह धरमसोत, भाजपा नेता हरजीत ग्रेवाल और सुरजीत ज्याणी, अाप के जगरूप गिल और अकाली दल के गुलजार सिंह शामिल हैं। डेरा की राजनीतिक कमेटी के चेयरमैन राम सिंह ने आउटलुक से कहा, “सही समय पर फैसला लिया जाएगा।” पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के राजनीति शास्त्र के प्रो.खालिद मोहम्मद कहते हैं, “एक-दो फीसदी वोट भी डेरे की वजह से किसी तरफ मुड़ते हैं, तो कांटे की टक्कर वाली सीटों पर बहुत असर होगा।” प्रो. खालिद के अनुसार डेरा मालवा की कई सीटों पर आप के उम्मीदवारों को समर्थन दे सकता है।
डेरा सच्चा सौदा, राधा स्वामी सत्संग, डेरा नूरमहल, डेरा निरंकारी, डेरा सचखंड बल्लां और डेरा नामधारी बड़े डेरे हैं। इनका 117 विधानसभा सीटों में से 66 सीटों पर खासा प्रभाव है। चुनाव प्रचार के दौर में कई नेता जालंधर स्थित डेरा सचखंड बल्लां के चक्कर लगा चुके हैं। आप के अरविंद केजरीवाल, अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल, मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, उप-मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा, नवजोत सिंह सिद्धू भी इनमें शामिल हैं। यह डेरा रविदासिया समुदाय का प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र है। पंजाब में 32 प्रतिशत मतदाता अनुसूचित जाति के हैं।
छह साल से समाधिस्थ आशुतोष महाराज के जालंधर स्थित दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के डेरा नूरमहल का दलित बहुल दोआबा क्षेत्र में खासा प्रभाव है। राधास्वामी डेरा ब्यास का भी बड़े तबके में प्रभाव है। जट्ट सिख होने के नाते डेरा प्रमुख बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों की हर दल के जट्ट सिख नेताओं में अच्छी पैठ हैं। पहले की तरह इस बार न तो बाबा ढिल्लों ने अभी तक किसी नेता के साथ डेरे का चक्कर लगाया है, न किसी और बड़े डेरे ने किसी को समर्थन देने का ऐलान किया है। मतदान में करीब तीन हफ्ते का समय है। देखना है, इस बार डेरों का राजनीतिक रंग क्या होता है।