हिंदुत्ववादी नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी को महात्मा गांधी की हत्या की थी और इस दिन को राष्ट्रीय शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। हालांकि, राष्ट्रपिता के खिलाफ जहर उनके जीवनकाल में और उनकी शहादत के बाद भी लगातार उगला जाता रहा, लेकिन पिछले तीन दशकों के दौरान इसमें विशेष तेजी आई है। 1990 के दशक के उन वर्षों में जब भारतीय जनता पार्टी के नेता कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने सवाल उठाया था कि महात्मा गांधी को भारत राष्ट्र का सपूत तो माना जा सकता है, लेकिन राष्ट्रपिता नहीं। जब उन्हें बताया गया कि गांधी जी को राष्ट्रपिता कहने वाले पहले व्यक्ति नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे, तब उन्हें चुप हो जाना पड़ा।
हिंदुत्ववादी शक्तियां हमेशा से महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू को भारत-विभाजन के लिए दोषी बताती रही हैं, बिना यह स्वीकार किए कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा ने अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन के खिलाफ चले स्वाधीनता संघर्ष में भाग नहीं लिया। यही नहीं, जब 1942 में महात्मा गांधी ने “अंग्रेजों, भारत छोड़ो” का आह्वान किया, तब भी इन शक्तियों ने खुद को इससे दूर रखा। हिंदू महासभा ने तो उसके बहिष्कार का निर्णय किया और संघ ने उसमें भाग न लेने का। उस समय भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष श्यामाप्रसाद मुखर्जी बंगाल प्रांत में मुस्लिम लीग नेता फजलुल हक की सरकार में मंत्री थे। उन्होंने बाकायदा बंगाल के गवर्नर सर जॉन हर्बर्ट को पत्र लिखकर आंदोलन को कुचलने के लिए आवश्यक कदम सुझाए। भारत-विभाजन के निर्णय में प्रांतीय असेंबलियों की भी भूमिका थी और हर प्रांत की असेंबली में अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को विभाजन के पक्ष या विपक्ष में वोट देना था। बंगाल में हिंदू अल्पसंख्यक थे। हिंदू सदस्यों ने विभाजन के पक्ष में वोट दिया। मुखर्जी की राय थी कि भारत का विभाजन हो या न हो, बंगाल का जरूर होना चाहिए। भारत विभाजन से लगभग दस वर्ष पहले अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर हिंदुओं और मुसलमानों को दो पृथक राष्ट्र बता चुके थे।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 जनवरी को राजघाट जाकर महात्मा गांधी की समाधि पर श्रद्धासुमन चढ़ाए, क्योंकि अभी तक इस वार्षिक कर्मकांड को तिलांजलि नहीं दी गई है। लेकिन साधारण जनता या गांधीवादी कार्यकर्ताओं को देश भर में अनेक स्थानों पर गांधी जी की प्रतिमा पर फूल चढ़ाने या उन्हें श्रद्धांजलि देने से न केवल रोका गया बल्कि गिरफ्तार भी किया गया। दिल्ली में गांधी स्मृति को दिन भर के लिए बंद कर दिया गया ताकि सामान्य जन उस स्थान पर जाकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित न कर सके, जहां गोडसे ने गांधी जी पर गोली चलाई थी। कुछ ही दिन पहले भाजपा के प्रवक्ता और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र अमिताभ सिन्हा ने एक टीवी चैनल पर गोडसे की भर्त्सना करने से इनकार कर दिया था। गुजरात के एक स्कूल में नवीं कक्षा की परीक्षा के एक प्रश्नपत्र में छात्रों से महात्मा गांधी की “आत्महत्या” के बारे में सवाल पूछा गया था। भाजपा सरकारों के फैसलों के खिलाफ विरोध करने वालों को “गद्दार” कहा जा रहा है और केंद्रीय मंत्री और भाजपा के जाने-माने नेता सरेआम उन्हें गोली मार देने के पक्ष में नारे लगवा रहे हैं। इसलिए किसी को बहुत आश्चर्य नहीं हुआ कि 30 जनवरी को ही निष्क्रिय और मूकदर्शक बनी पुलिस की मौजूदगी में एक युवक ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एक छात्र को गोली मार कर जख्मी कर दिया। भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर नाथूराम गोडसे को “देशभक्त” बता चुकी हैं।
महात्मा गांधी ने भारतीयों को अन्याय और अत्याचार का विरोध करने के लिए असहयोग और सत्याग्रह यानी शांतिपूर्ण प्रतिरोध करने के राजनीतिक हथियार से लैस किया। इसके लिए उन्होंने आम भारतीय के मन से डर को दूर किया। पिछले कुछ वर्षों से देश भर में अनेक स्वतःस्फूर्त शांतिपूर्ण आंदोलन उभरते रहे हैं, जिनका बेरहमी के साथ दमन भी किया जाता रहा है।
महात्मा गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि उनके विचारों का सम्मान करके ही दी जा सकती है, क्योंकि वे सभी लोकतंत्र को पुष्ट करने वाले हैं। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि जिस देश और समाज में शांतिपूर्ण प्रतिरोध की गुंजाइश नहीं बचती, वहां लोग मजबूर होकर अंततः हिंसक प्रतिरोध का रास्ता अपनाने पर विवश हो जाते हैं। क्या हम चाहते हैं कि हमारे देश में ऐसी स्थिति पैदा हो?
लोग उसी राजसत्ता का सम्मान करते हैं जो सभी नागरिकों के साथ समदर्शी बनकर बर्ताव करे और किसी के साथ भी न भेदभाव करे न होने दे। लेकिन यदि सरकार के फैसलों का विरोध करना “देशद्रोह” मान लिया जाएगा और पुलिस तथा प्रशासन बिलाहिचक पक्षपात और भेदभाव करेंगे, तो फिर आम नागरिक का उनमें भरोसा कैसे बना रह सकता है? महात्मा गांधी का अहिंसा और सत्य का संदेश पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहा है और नेलसन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर समेत अनेक विश्व नेताओं ने उनसे प्रेरणा ग्रहण की है। यदि गांधी के देश में ही उन्हें हाशिए पर धकेल दिया जाएगा और उनके हत्यारों का महिमामंडन किया जाएगा, तो इससे शेष विश्व को भी नितांत गलत संदेश मिलेगा। गांधी भारत की ही नहीं, पूरे विश्व की विभूति हैं। उनकी विरासत को भुला कर देश में लोकतंत्र और ‘सर्व धर्म समभाव’ की रक्षा नहीं की जा सकती।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, राजनीति और कला-संस्कृति पर लिखते हैं)
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90 के दशक में कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने सवाल उठाया था कि महात्मा गांधी को भारत राष्ट्र का सपूत तो माना जा सकता है, लेकिन राष्ट्रपिता नहीं