आज 41 वर्षीय कपिल शर्मा की गिनती भारतीय मनोरंजन जगत के सबसे चहेते और अमीर हस्तियों में होती है। वे अपने आप में एक सुपरस्टार हैं, वह भी सिर्फ टेलीविजन पर अपने कॉमेडी शो की बदौलत। उनकी लोकप्रियता बॉलीवुड के किसी बड़े सितारे से कम नहीं। लेकिन उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उन्होंने परदे पर पूरे कॉमेडियन तबके को वह शोहरत दिलाई है, जो वर्षों पहले कहीं खो गई थी। लेकिन यह कामयाबी उन्हें आसानी से नसीब नहीं हुई। पिता की असमय मृत्यु के बाद उन्हें संघर्ष के तमाम जद्दोजेहद से गुजरना पड़ा, जिससे किसी भी बिना गॉडफादर वाले काबिल इंसान को शीर्ष पर पहुंचने के लिए गुजरना पड़ता है। हालांकि कपिल अपने संघर्ष के दिनों को महिमामंडित नहीं करना चाहते। वे कहते हैं, “मैंने म्यूजिकल आर्केस्ट्रा में काम किया, शादियों में भी गाने भी गाए, नौकरी या टीवी पर ब्रेक पाने के कोशिश में कई बार रिजेक्ट भी हुआ, लेकिन मैं सफलता की तलाश में लगा रहा। मैंने हिम्मत नहीं खोई। मैं लौटकर भी क्या करता? मैं इसके अलावा कुछ और नहीं कर सकता था। मैंने बीएसएफ और पुलिस में नौकरी की अर्जी लगाई, लेकिन वहां भी रिजेक्ट हुआ। जैसा अक्सर होता है, दस लोगों की नौकरी के लिए दस हजार से ऊपर लोग पहुंचे हुए थे।” संयोगवश कपिल ने 2007 में टीवी पर ‘लाफ्टर चैलेंज’ नामक कार्यक्रम को देखा, उसके ऑडिशन में शामिल हुए और चुन लिए गए। वे कहते हैं, “मैंने पहली बार किंगफिशर एयरलाइंस से मुंबई की हवाई यात्रा की। धीरे-धीरे मेरे रास्ते अपने आप खुलते चले गए। मैं कॉलेज के दिनों में यूथ फेस्टिवल में कुछ स्किट किया करता था, मेरे लिए वही अनुभव बहुत काम आया। मैंने जो कुछ भी अमृतसर में किया, उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा।”
कपिल शर्मा की कामयाबी के पीछे अगर सही समय पर आया उनका शो था, तो उतना ही अहम उनका पारिवारिक फॉर्मेट था और उसे निभाने वाली टीम थी
वे बताते हैं, “मैंने निजी जिंदगी में कई छोटे-मोटे काम किए हैं, कोका-कोला कंपनी में काम किया। मेरे दोस्त पूछते थे कि मैं क्यों शादियों में गाने गाता हूं, लेकिन उन दिनों से मैंने बहुत कुछ सीखा जो आज मेरे काम आ रहा है। इसलिए तो मैं अपनी आने वाली फिल्म ज्विगाटो में अपने आम आदमी वाले किरदार के साथ जुड़ सका।”
शुरुआत में कपिल ने स्टैंड-अप कॉमेडी भी किया। उस दौर के अधिकतर स्टैंड-अप कॉमिक अंग्रेजी में मुख्यतः अभिजात्य वर्ग के लिए क्लबों में अपना कार्यक्रम किया करते थे, लेकिन कपिल ने जमीन से जुड़ी हिंदी कॉमेडी के माध्यम से मध्यवर्ग में अपनी पैठ बना ली। 2013 में उन्होंने टेलीविजन पर अपना कॉमेडी शो शुरू किया, जो जबरदस्त हिट हुआ। उसके बाद उनके करियर में नई उछाल आई और उनका शो फिलहाल अपने वर्तमान स्वरूप ‘द कपिल शर्मा शो’ के रूप में बदस्तूर जारी है, जहां हर सप्ताहांत विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियां उनसे हंसी-मजाक के माहौल में गुफ्तगू करने को इकट्ठा होती हैं।
हालांकि 2017-18 के दौरान वे विवादों में भी घिरे। साथी कलाकारों से मारपीट, गाली-गलौज, शराब पीने की लत, सेट पर बड़े सितारों को इंतजार करवाने जैसी खबरें भी आईं और ऐसा लगा मानो स्टारडम का नशा उनके सिर चढ़ गया है। एक समय ऐसा भी हुआ जब वे मानसिक अवसाद के भी शिकार हुए, लेकिन कपिल जल्द ही उस दौर से उबरे और वापस उसी शिद्दत से अपने कॉमेडी शो करने लगे, जिसके लिए वे जाने जाते हैं।
अर्चना पूरण सिंह के साथ कपिल शर्मा
भारतीय मनोरंजन जगत खासकर हिंदी सिनेमा जगत के इतिहास में हास्य कलाकारों को शायद ही कभी गंभीरता से लिया गया, भले ही अपनी कला में वे कितने ही निपुण रहे हों। भले ही उनके नाम से दर्शक सिनेमाघरों में खिंचे चले आते हों, लेकिन अपने बूते पर कोई कॉमेडियन स्टार कम ही बन पाया। पचास के दशक में किशोर कुमार कई सफल हास्य फिल्मों के नायक बने, लेकिन उस दौर में भी हिंदी सिनेमा के त्रिदेव – दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद – के समक्ष कॉमेडी करने वालों के हैसियत बराबर की नहीं समझी गई। भले ही चलती का नाम गाड़ी (1957) जैसी उनकी फिल्म गोल्डन जुबिली हिट होती, उन्हें इंडस्ट्री में संजीदगी से महज इसलिए नहीं लिया गया क्योंकि वे अपनी फिल्मों में ‘मजाकिया’ किरदार निभाते थे। स्टार तो उनके बड़े भाई अशोक कुमार को समझा जाता था, जो फिल्मों में हीरो का गंभीर रोल निभाते थे। फिल्म इंडस्ट्री में या तो दिलीप कुमार जैसे ट्रेजेडी किंग को स्टार समझा जाता था या देव आनंद और राज कपूर को उनकी रोमांटिक फिल्मों के लिए। इसके बावजूद किशोर ने हीरो के रूप में दर्जनों हिट फिल्में कीं।
बाद में नब्बे के दशक के गोविंदा को छोड़ दें तो किसी अभिनेता ने कॉमिक हीरो की मुख्य भूमिका फिल्मों में नहीं निभाई। गोविंदा ने निर्देशक डेविड धवन के साथ एक दर्जन से अधिक सुपरहिट फिल्में कीं, जिनमें उन्होंने सिर्फ और सिर्फ कॉमेडी की, लेकिन नई सदी के आते-आते उनका सितारा भी अस्त हो गया।
इन दो अपवादों को छोड़ दिया जाए तो बॉलीवुड में ऐसे कॉमिक-हीरो शायद ही हुए, जो लंबे समय तक कॉमेडी फिल्मों में काम करते रहे। अपने-अपने दौर में गोप, जॉनी वॉकर, राजेंद्र नाथ और महमूद ने कॉमेडियन के रूप में जबरदस्त लोकप्रियता पाई, लेकिन उन्हें हीरो या स्टार के रूप में शायद ही देखा गया। महमूद एक जमाने में इतने लोकप्रिय थे कि बड़े से बड़े अभिनेता उनके साथ काम करने से इस कारण कतराते थे कि वे अपने साथी कलाकारों पर भारी पड़ जाते थे। हीरो की भूमिका निभाने के लिए महमूद को या तो स्वयं निर्माता बनना पड़ा या छोटे बजट की तथाकथित बी या सी ग्रेड की फिल्मों में काम करना पड़ा। उस दौर में हीरो हीरो होता था और कॉमेडियन कॉमेडियन। प्रतिभाशाली होने के बावजूद कॉमेडियन कभी बड़ा स्टार नहीं हुआ। उनका काम फिल्मों में मुख्य तौर पर गंभीर दृश्यों के बीच दर्शकों को ‘कॉमिक रिलीफ’ पहुंचाना होता था।
सत्तर के दशक में असरानी और देवेन वर्मा जैसे बेहतरीन हास्य कलाकार हुए लेकिन उन्हें भी बस कॉमेडियन ही समझा गया। असरानी ने चला मुरारी हीरो बनने (1977) और हम नहीं सुधरेंगे (1980) जैसी फिल्मों से हीरो बनने का प्रयास किया लेकिन असफल होने के बाद फिर शोले (1975) के जेलर जैसी भूमिकाओं को निभाने के लिए वापस चले गए।
अमिताभ बच्चन जैसे हीरो के अपनी फिल्मों में कॉमेडी करने से हिंदी सिनेमा में पारंपरिक कॉमेडी करने वाले का करियर समाप्त होने लगा। अब उनकी जगह कादर खान और शक्ति कपूर जैसे चरित्र अभिनेता या विलेन की भूमिका करने वाले कॉमेडी करने लगे। नब्बे के दौर के बाद जब नई सदी में नए मिजाज की फिल्में बनने लगीं और मिलेनियल दर्शकों को भाने लगीं, तो उन फिल्मों में कॉमिक रिलीफ के लिए कोई जगह नहीं थी। स्क्रिप्ट में जो थोड़ी-बहुत ह्यूमर की गुंजाइश थी उसे पूरा करने के लिए किसी कॉमेडियन को विशेष रूप से फिल्म में रखने की आवश्यकता न थी। जॉनी लीवर, सतीश शाह, परेश रावल, सतीश कौशक या राजपाल यादव जैसे दक्ष अभिनेता जरूर आए लेकिन उनमें कोई बड़ा स्टार या सुपर स्टार नहीं बन पाया। बॉलीवुड की अधिकतर कॉमेडी फिल्में अक्षय कुमार जैसे बड़े हीरो और स्टार के इर्द-गिर्द लिखी जाने लगीं। बड़े परदे पर वर्षों पुरानी परंपरागत कॉमेडियन की दुनिया और भी सिमटने लगी।
लेकिन इससे इतर, नई सदी में हास्य कलाकारों को एक नई जमीन मिली- पहले टेलीविजन के छोटे परदे पर और बाद में सोशल मीडिया के दौर में यूटयूब जैसे प्लेटफार्म पर या क्लबों और होटलों के लाइव शो के माध्यम से। नई पीढ़ी के दर्शकों को कॉमेडियनों की ऐसे जमात मिली जिन्हें फिल्मों से अलग आम जिंदगी से जुड़ी कॉमेडी कर अपनी पहचान बनानी थी। उन्हें नई पीढ़ी के पसंद की कॉमेडी करनी आती थी।
1 जगदीप, 2 राजेंद्र नाथ, 3 किशोर कुमार, 4 केस्टो मुखर्जी, 5 महमूद, 6 गोप, 7 जॉनी वॉकर, 8 कादर खान, 9 देवेन वर्मा, 10 असरानी, 11 रवि वासवानी, 12 जॉनी लीवर
टेलीविजन से ऐसे ही एक नए कॉमेडियन कपिल शर्मा उभरे जिन्होंने अपनी कॉमेडी शो के माध्यम से हास्य कलाकारों को वह मुकाम दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2007 में टेलीविजन पर लाफ्टर चैलेंज जीतने के बाद कपिल ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पिछले पंद्रह वर्षों में वे निरंतर आगे बढ़ते रहे और आज उनका द कपिल शर्मा शो दुनिया भर में देखे जाने वाले बड़े कार्यक्रमों में एक है। उनकी फिल्म ज्विगाटो प्रदर्शित होने जा रही है, जिसमें वे अपनी कॉमिक इमेज से हटकर संजीदा भूमिका निभा रहे हैं। फिल्म को अभिनेत्री नंदिता दास निर्देशित कर रही हैं, जिन्होंने कपिल के इस किरदार के लिए एक फिल्मफेयर अवॉर्ड नाइट की क्लिपिंग देखकर चुना जिसे वे करण जौहर के साथ संचालन कर रहे थे। गौरतलब है कि कपिल की पहली दो फिल्में किस किसको प्यार करूं (2015) और फिरंगी (2017) बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो चुकी थीं, लेकिन नंदिता को लगा कि कपिल ही उनकी फिल्म में एक फूड डिलीवरी बॉय की भूमिका निभाने के लिए सबसे उपयुक्त हैं। नंदिता की फिल्म ने कपिल को वह मौका दिया है, जो उन्हें अपने कॉमेडी शो के माध्यम से नहीं मिल सकता था- यह साबित करने का कि किसी अभिनेता को किसी एक छवि से बांधा नहीं जा सकता। उनकी कॉमेडियन की छवि के बावजूद उनकी पहली दो कॉमेडी फिल्में नहीं चलीं। हालांकि कपिल का कहना है कि अपनी छवि के बावजूद उन्हें ज्विगाटो के किरदार को निभाने में किसी भी तरह मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा क्योंकि टेलीविजन शो के पहले वे अमृतसर में सीरियस थिएटर कर चुके थे।
अपनी वाकपटुता, सेंस ऑफ ह्यूमर, और अपने अतिथियों के साथ सहज रूप पेश आने के कारण उनका शो इतने वर्षों से लोकप्रिय है, लेकिन वे अपने आप को आज भी जमीन से जुड़ा आदमी समझते हैं। वे कहते हैं, “लोग दूसरे स्टार्स के साथ तो पूछकर सेल्फी लेते हैं, लेकिन मेरे साथ तो बिना पूछे ही धक्का देकर फोटो खींच लेते हैं क्योंकि मैं उन्हें उनका अपना लगता हूं। लोगों का यही प्यार मेरी सबसे बड़ी पूंजी है।”
कपिल का दर्शकों से यही ‘कनेक्ट’ उन्हें मध्यवर्ग की इस पीढ़ी का चहेता नायक बनाता है और हमारे इस अंक की आवरण कथा का भी।