व्यापम घोटाले में पहली पीआइएल दायर कर उसे बड़े पैमाने पर उजागर करने वाले सरकारी चिकित्सक डॉ. आनंद राय का नाम व्यापम के व्हिसिल ब्लोअरों में सबसे चर्चित है। आजकल उनके ऊपर एक बायोपिक बन रही है। इसके बावजूद डॉ. राय को आज भी इतना परेशान किया जा रहा है कि उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। आउटलुक के लिए आदित्य सिंह ने उनसे बात की
व्यापम घोटाले की जांच में फिलहाल क्या स्थिति है?
व्यापम के अंतर्गत अब तक केवल 2011 तक की परीक्षाओं की जांच हुई है, जबकि हमने उनको 2005 तक के साक्ष्य दिए थे। जुलाई 2015 में जब सीबीआइ को जांच सौंपी गई, उस समय तक करीब 250 एफआइआर दर्ज थीं। ये सारी एफआइआर तो सीबीआइ को ट्रांसफर हो गईं लेकिन एसटीएफ के पास लंबित शिकायतों को सीबीआइ को नहीं सौंपा गया। सीबीआइ का कहना था कि उनके पास इतना स्टाफ नहीं है। एसटीएफ सारी शिकायतों को वेरिफाइ करने के बाद एफआइआर करती थी, तो उसके पास अब भी करीब 1200 शिकायतें लंबित हैं।
अब भी बड़े पैमाने पर डॉक्टरी परीक्षाओं में घोटाला हो रहा है?
सिर्फ डॉक्टरी नहीं, पूरे देश में सभी तरीकों की ऑनलाइन परीक्षाओं में घपला चल रहा है। ऑनलाइन परीक्षाओं को सबसे सुरक्षित बताया जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि इसमें घुसना सबसे आसान है। सर्वर हैक किया जा सकता है। यह हमने साबित कर दिखाया है। डीमैट (डेंटल मेडिकल एडमिशन टेस्ट) परीक्षा हमने कैंसिल करवाई। उस वक्त हमने हाइकोर्ट से मॉनिटरिंग करवाई थी। इसके बाद साबित हुआ कि सर्वर हैक हुआ था। बाद में मैंने 2017 में नीट-पीजी (एमडी-एमएस प्रवेश परीक्षा) में हैकिंग को एक्सपोज किया था। उसी साल मैंने एम्स में पेपर लीक को एक्सपोज किया था। नीट-पीजी को अमेरिका की प्रोमेट्रिक कंपनी करवाती है और एम्स की परीक्षा टीसीएस कंपनी करवाती है। जब इन दो बड़ी कंपनियों के सिस्टम में लूपहोल हैं तो छोटी-मोटी कंपनियां कैसे परीक्षाएं करवाती होंगी, आप सोच सकते हैं। जैसे, यहां एडुकेटी नाम की एक संस्था ने शिक्षक पात्रता परीक्षा करवाई थी, जिसमें पूरे पेपर बाहर आ गए थे। तेरह लाख लोगों ने यह परीक्षा दी थी। पेपर का स्क्रीन शॉट वायरल हो गया था। नेताओं को ये सब सूट करता है। वे घोटाला करते हैं, अपने कैंडिडेंट प्लांट करते हैं और पंद्रह दिन के अंदर पूरे डेटा को राइट-ऑफ कर देते हैं। पुराने जमाने में जब लिखित परीक्षाएं हुआ करती थीं उस समय एविडेंस एक्ट के मुताबिक पांच साल तक उत्तर पुस्तिकाओं को रखना पड़ता था। अब ये लोग पूरे डेटा को पंद्रह दिन में ही खत्म कर देते हैं।
ऐसा कोई नियम बना दिया गया है... ?
नहीं, ऐसा कोई नियम नहीं है। उनका कहना है कि वे अपने सर्वर को एंगेज नहीं रख सकते। आखिर कितना डेटा रखें? हमारे यहां इतने सर्वर ही नहीं हैं। आखिर तेरह लाख लोगों का डेटा कब तक सुरक्षित रखेंगे। इसी की आड़ लेकर वे सुबूत खत्म कर देते हैं और घोटाला करते हैं। जैसे, अभी पिछले साल एक परीक्षा हुई थी जिसमें दस के दस लोग फर्जी थे। हम लोगों ने मुद्दा उठाया तो सरकार ने परीक्षा रद्द कर दी लेकिन सरकार ने आरोपितों के खिलाफ एफआइआर तक नहीं की। जांच की क्या कहें। आखिर जांच क्यों नहीं की? साफ है कि मंशा में खोट है।
यानी व्यापम के दागी डॉक्टर अब भी सिस्टम में मौजूद हैं?
डॉक्टर दागी नहीं हैं, डॉक्टर तो क्लाइंट हैं। दागी तो सीएम शिवराज हैं, उनकी पत्नी हैं, पूरा सिस्टम दागी है। जो डॉक्टर या उनके पैरेंट हैं, वे तो बस क्लाइंट हैं। अगर कोई दारू की दुकान खोल के बैठे तो आदमी दारू खरीदने आएगा न? ऐसे ही जब नेता सीटें बेचने बैठे हों तो लोग खरीदने आएंगे ही। जिस सिस्टम ने इस भ्रष्ट तंत्र को बनाया, असल दोषी तो वह है।
दिग्विजय सिंह की शिकायत पर जो ताजा गिरफ्तारी हुई है, उसे कैसे देखते हैं?
केवल अपराध दर्ज करने के लिए एफआइआर शुरुआती कदम है। इसके बाद जांच होती है। जांच कौन सी पुलिस कर रही है, यह सवाल है। फिर आती है चार्जशीट। फिर आती है सरकारी वकील की बारी। सरकारी वकील का पूरा सिस्टम भ्रष्ट है। पूरे एजी ऑफिस में आरएसएस के भ्रष्ट लोग बैठे हैं। वे लोग केस हार जाते हैं। वे केस हार जाएंगे तो कोई क्या बोलेगा कि जज ने बरी कर दिया। वास्तव में जज ने बरी नहीं किया, बल्कि सरकारी वकील ने कायदे से केस ही नहीं लड़ा। अगर अपराधी बरी हो गया तो ऊपर के कोर्ट में अपील क्यों नहीं की गई? किसी भी बड़े मामले में एजी ऑफिस ने अपील नहीं की। जैसे-तैसे करके बड़ी मुश्किल से तो एफआइआर होती है और अंत में आरोपित बरी हो जाता है। बाद में सजा किसको होती है, पिरामिड में सबसे नीचे वाले को। जो छोटे लोग हैं जैसे, कैंडिटेट को, उसके पिता को, सॉल्वर, ऐसे लोगों को ही सजा हो रही है। इसमें जो पैसा सबसे ऊपर जिसके पास तक गया उसको तो कभी सजा नहीं हुई इस मामले में।
आपकी बड़ी कहानियां सुनी हैं कि आप शिवराज से मिले थे...
मैंने स्टिंग किया था उनका और हाइकोर्ट में लगाया था। उन्होंने मेरा और मेरी पत्नी का मिड सेशन में ट्रांसफर कर दिया था। कई दिन से मिलने का प्रयास कर रहे थे वे। आखिर उन्होंने मिलने को बुला लिया। मैंने स्टिंग कर लिया और हाइकोर्ट में लगा दिया कि देखिए साहब ये हमें मैनिपुलेट कर रहे हैं, परेशान कर रहे हैं। उन लोगों के पास फिर कोई चारा नहीं बचा, तो हमारा ट्रांसफर कैंसिल कर पिटीशन को ही इनफेक्चुअस करा दिया था। इसके बाद मैंने नरोत्तम मिश्रा का एक स्टिंग किया, जिसमें वे सरकार गिराने की साजिश कर रहे थे। मुझे उन लोगों ने बुलाया ही था सरकार गिराने के लिए, सिंधिया से पहले...।
बड़े खतरनाक आदमी हैं आप...
कुछ नेता तो बस फंस गए थे उस समय वरना मैं उनके लिए नहीं गया था। मेरे निशाने पर तो कोई और था।
तो क्या इसीलिए आपसे बदला लिया गया, जरा से मामले में पिछले साल बंद कर दिया...
चलता है। डरेंगे तो कैसे काम चलेगा।