विधानसभा की 90 में से 31 सीटें जीत कर हरियाणा में इस बार कांग्रेस मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी है। दस साल तक मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा की पहली बार विपक्ष के नेता के रूप में भूमिका भी अहम रहेगी। हरियाणा में विपक्ष और महाराष्ट्र में सरकार की साझेदार की भूमिका में कांग्रेस ने केंद्र की भाजपा सरकार को राज्यों की सियायत में बदलाव का संकेत दिया है। यह बदलाव झारखंड में भी देखने को मिल सकता है। अक्टूबर में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव से दो महीने पहले तक कांग्रेस सत्तारूढ़ भाजपा के आगे कहीं टक्कर में नहीं थी। चुनाव से करीब 45 दिन पहले हुड्डा को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद तेजी से उभरी कांग्रेस ने भाजपा को बहुमत से दूर 40 सीटों पर समेट दिया। परिणामस्वरूप भाजपा को जननायक जनता पार्टी (जजपा) के दस और सात निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनानी पड़ी। विधानसभा चुनाव से पहले अलग पार्टी बनाए जाने की चर्चाओं के बीच कांग्रेस हाइकमान पर दबाव बनाकर चुनाव प्रबंधन समिति की बागडोर थामने में कामयाब रहे हुड्डा अपनी साख बचाने में सफल रहे।
गठबंधन की सरकार बने भले एक महीने से अधिक हो गया, पर सियासी गलियारों में अभी तक इस चर्चा पर विराम नहीं लगा है कि सत्ता से कुछ कदम दूर रही कांग्रेस में यदि समय रहते बदलाव होता, तो नतीजे अलग होते। हुड्डा भी मानते हैं कि उन्हें प्रचार के लिए अधिक समय मिला होता तो कांग्रेस के पक्ष में नतीजे और बेहतर होते। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस में करीब एक दर्जन टिकटें जीतने योग्य उम्मीदवारों को दी जातीं, तो कांग्रेस और भाजपा की सीटें बराबर हो सकती थीं। मई में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को राज्य की सभी 10 सीटों पर जीत मिली थी और इसने 79 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की। तब पार्टी का वोट शेयर 58 फीसदी था। लेकिन पांच महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में वोट शेयर घटकर 36 फीसदी पर आ गया। 28 फीसदी वोट शेयर हासिल करने वाली कांग्रेस और भाजपा के बीच फासला सिर्फ आठ फीसदी का है। लोकसभा चुनाव तक भाजपा के पक्ष में रहने वाला जाट वोट का एक हिस्सा विधानसभा चुनाव में हुड्डा के कारण कांग्रेस के पक्ष में आ गया। जाट वोट शेयर खिसकने का लाभ चुनाव से 10 महीने पहले अस्तित्व में आई जजपा को भी मिला।
कांग्रेस के प्रदर्शन पर राजनीतिक विश्लेषक नवीन छोकर का कहना है कि इसमें दो राय नहीं कि हुड्डा कांग्रेस में मजबूत चेहरा बनकर उभरे हैं, पर विधानसभा चुनाव में 31 सीटें जीतने में अकेले उनका योगदान नहीं है। भाजपा सरकार के प्रति नाराजगी का फायदा भी उसे मिला। रणदीप सुरजेवाला, कुलदीप शर्मा, करण दलाल, आनंद सिंह दांगी जैसे कांग्रेस के बड़े नेताओं को हार का सामना इसलिए करना पड़ा क्योंकि अति-आत्मविश्वास के चलते इन नेताओं के विधानसभा हलकों में प्रचार पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने ध्यान ही नहीं दिया। हुड्डा 90 में 58 सीटों पर अपनी पसंद के उम्मीदवारों को टिकट दिलाने में सफल रहे, लेकिन करीब आधा दर्जन सीटों पर जिताऊ उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिला पाए।
विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस की हुड्डा सरकार के 10 साल के कार्यकाल के दौरान फूलचंद मुलाना का प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहना सरकार व संगठन दोनों के लिए बेहतर रहा, पर 2014 से 2019 के दौरान तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर न तो पार्टी में गुटबाजी कम कर सके, न ही संगठन मजबूत हो पाया। पद से हटाए जाने के बाद तंवर ने पार्टी छोड़ दी। पार्टी के 31 में से 29 विधायक हुड्डा के साथ हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी और पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के पुत्र कुलदीप बिश्नोई के धड़ों का प्रभाव उनके तौशाम और आदमपुर हलकों तक ही सीमित है।
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‘लोगों ने कांग्रेस को बागडोर सौंपने का मन बना लिया था’
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पहली बार विपक्ष के नेता की भूमिका में हैं। उनका मानना है कि विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने का मन बना लिया था। प्रचार के लिए उन्हें और समय मिलता तो पार्टी की सीटें बढ़ सकती थीं। भाजपा, जजपा और निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन से गठबंधन की सरकार के समक्ष मजबूत विपक्ष के तौर पर कांग्रेस की भूमिका क्या रहेगी, इस पर हुड्डा से विस्तृत बात की आउटलुक के हरीश मानव ने। मुख्य अंश:
सत्ता के करीब आते-आते कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में कैसे आ गई?
मेरे मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस की 10 साल की सरकार की उपलब्धियों और भाजपा की पहली सरकार की नाकामियों के चलते उन्हें दूसरी बार बहुमत नहीं मिला। जनमत के खिलाफ सत्ता के लालच में बनी भाजपा, जजपा और निर्दलीय विधायकों की गठबंधन सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी उतरे, यही मेरी कामना है।
चुनाव से पहले जिस तरह कांग्रेस प्रचार में भाजपा की तुलना में कमजोर थी, आपको लग रहा था कि कांग्रेस को 31 सीटें मिलेंगी?
जनता में अंडर-करंट था। पूरे प्रदेश में मैंने 120 चुनावी रैलियां कीं। मैंने महसूस किया कि लोगों ने फिर से कांग्रेस को प्रदेश की बागडोर सौंपने का मन बना रखा था।
पार्टी हाइकमान ने आपको बड़ी जिम्मेदारी देने में देर की। यदि यही जिम्मेदारी पहले दी होती तो क्या कांग्रेस की सरकार बन सकती थी?
हमें प्रचार के लिए समय कम मिला। समय मिला होता तो प्रदर्शन और बेहतर हो सकता था।
कहा जा रहा है कि टिकट बंटवारे में पूरी तरह आप की चली। फिर भी कई योग्य उम्मीदवार टिकट से वंचित रह गए। टिकटों का बंटवारा सही हुआ होता तो क्या नतीजे कांग्रेस के पक्ष में और बेहतर होते?
टिकट पार्टी हाइकमान के निर्देश पर जिताऊ व योग्य उम्मीदवारों को ही दिए गए। कुछ सीटों पर बेहतर उम्मीदवार हो सकते थे, जिनसे कांग्रेस का प्रदर्शन और बेहतर होता।
सरकार को अब किन मुद्दों पर घेरने की तैयारी है?
प्रदेश में अवैध खनन जोरों पर है। इसकी जांच सीबीआइ या हाइकोर्ट के मौजूदा जज से कराई जानी चाहिए। धान घोटाले की भी जांच हो। किसानों को धान और बाजरा के भाव एमएसपी से कम मिल रहे हैं। इन फसलों की सरकारी खरीद सीमा भी प्रति एकड़ के हिसाब से तय की गई है। नोटबंदी और जीएसटी से परेशान छोटे कारोबारी अब मंदी से परेशान हैं। सरकारी कर्मचारियों को एचआरए का एरियर नहीं दिया जा रहा है। गरीबों को हमने 100-100 गज के 3.82 लाख प्लॉट दिए, पर भाजपा की पहली सरकार ने एक भी प्लॉट गरीबों को नहीं दिया है।
आपके विचार से गठबंधन सरकार के समक्ष क्या चुनौतियां हैं?
भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार बने एक महीने से ज्यादा हो गया है। चुनाव से पहले जनता से किए वादे पूरे करने के लिए ‘न्यूनतम साझा कार्यक्रम’ लागू करें। इसके लिए अभी तक कोई तैयारी नहीं है।
आपको लगता है कि गठबंधन सरकार पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाएगी?
गठबंधन सरकार जनता से किए वादे पूरे करे और अपना कार्यकाल भी पूरा करे, इसके लिए मेरी शुभकामनाएं हैं।
कांग्रेस मजबूत विपक्ष की भूमिका में है। संगठन की मजबूती के लिए क्या तैयारी है?
पिछले पांच साल से कांग्रेस का संगठन खड़ा नहीं हो पाया था। जनवरी 2020 से संगठन के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। मार्च 2020 तक प्रदेश में कांग्रेस का एक मजबूत संगठन होगा।
गुटों में बंटी कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था। विधानसभा चुनाव में बेहतर पदर्शन से क्या गुटबाजी कम हुई है?
कांग्रेस की स्थिति बहुत बेहतर हुई है। प्रदेश में पार्टी के सभी नेता एक साथ खड़े हैं।