केंद्र और झारखंड सरकार के बीच छाया युद्ध सी स्थिति है। केंद्र के पास सरना कोड का मामला लंबित है, तो हेमंत सरकार के पास भी भाजपा के पुराने कार्यकाल में हुए कई मामलों की फाइलें हैं। केंद्र के ‘सीबीआइ रथ’ को रोकने के लिए वह पहले ही जांच एजेंसी के सीधे प्रवेश पर रोक लगा चुके हैं। हेमंत सरकार ने राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का नारा दिया है। वह भ्रष्टाचार के मामलों में एसीबी (एंटी करप्शन ब्यूरो) से जांच की सिफारिश करते रहे हैं। लेकिन सितंबर के अंत में मामला तब बिगड़ गया जब मुख्यमंत्री के करीबी और राज्य के एक बड़े कारोबारी अमित अग्रवाल के ठिकाने पर आयकर के छापे पड़े। हेमंत सोरेन ने अमित अग्रवाल के ठिकानों पर छापे को एक प्रकार से खुद पर हमले के रूप में देखा। इसके बाद केंद्र के साथ उनके रिश्तों में तीखापन बढ़ गया है। इस प्रकरण के तुरंत बाद हेमंत सरकार ने मैनहर्ट घोटाला, जेरेडा घोटाला, छात्रवृत्ति घोटाला की जांच एसीबी को सौंप कर पूर्ववर्ती सरकार को घेरने की कवायद तेज कर दी। उनके निशाने पर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास हैं।
इसके बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारखंड में सीबीआइ की सीधी एंट्री पर रोक लगा दी। सीबीआइ को अब झारखंड में किसी भी मामले की जांच शुरू करने से पहले राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी। इस पर भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी का कहना है, “बार-बार भ्रष्टाचार की जांच कराने की बात करने वाली सरकार का सीबीआइ पर प्रतिबंध लगाना बताता है कि दाल में कुछ काला है। सरकार भयभीत है और जांच से बचने के लिए यह कवायद चल रही है।” इधर राज्य में यह आम चर्चा है कि हेमंत सोरेन के करीबी अमित अग्रवाल एक तरह से शैडो सीएम हैं। कोलकाता में उनके घर पर पड़े छापे में एक डायरी मिली है, जिसमें कई लोगों के नाम हैं। कहा जा रहा है कि हेमंत सोरेन को डर है कि इस डायरी के सहारे सीबीआइ उनके घर तक भी पहुंच सकती है। यही वजह है कि जांच एजेंसी को रोकने के लिए सरकार ने यह चाल चली है।
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने आउटलुक से कहा, “अवैध संपत्ति मामले में सोरेन परिवार बच नहीं सकता। लोकपाल के कहने पर परिवार की 80 संपत्तियों के संबंध में सीबीआइ को जांच सौंपी गई है और हेमंत के करीबी रहे अमित अग्रवाल के ठिकानों पर छापे के क्रम में अग्रवाल के कोलकाता स्थित ठिकाने से एक रजिस्टर बरामद हुआ है, जिसमें नेताओं सहित दो सौ अफसरों के नाम हैं।” दुबे का मानना है कि अमित अग्रवाल के ठिकाने पर रेड की वजह से हेमंत सोरेन ज्यादा तिलमिलाए हैं। वह यह भी कहते हैं कि सोरेन एमवी राव को स्थायी डीजीपी नहीं बना पाए। सरकार के खजाने में पैसे नहीं हैं इसलिए वे कभी सरना कोड तो कभी एसीबी जांच का जुमला फेंक जनता को ठग रहे हैं। उनका आरोप है कि हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन ने बालू कंपनी बनाई है।
लेकिन हेमंत सोरेन जवाबी कार्रवाई करना जानते हैं, इसलिए अमित अग्रवाल के ठिकानों पर रेड पड़ते ही एक सप्ताह के भीतर उन्होंने रांची में सीवेज-ड्रेनेज के डीपीआर का जिम्मा गलत तरीके से मैनहर्ट कंपनी को सौंपने की जांच एसीबी को सौंप दी। इससे साफ जाहिर हो गया कि वह क्या संदेश देना चाहते हैं। इसमें तत्कालीन नगर विकास मंत्री रघुवर दास सहित अन्य को आरोपी बनाया गया है। झारखंड में सत्ता और अपनी सीट गंवाने के बाद रघुवर दास को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया था। पार्टी कार्यालय में उनके स्वागत की तैयारी चल ही रही थी कि मैनहर्ट घोटाले की एसीबी जांच का फरमान आ गया। इतना ही नहीं, एक पखवाड़ा बीतते-बीतते जेरेडा (झारखंड रिन्युएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी) के पूर्व निदेशक निरंजन कुमार सहित चार के खिलाफ 170 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच का जिम्मा भी एसीबी को सौंप दिया गया है। इसके अलावा जाली बैंक गारंटी के आधार पर हैदराबाद की कंपनी को टेंडर देने और संबंधित फाइल दबाए रखने का भी मामला है। भारतीय डाक-तार के लेखा एवं वित्त सेवा के अधिकारी को गलत तरीके से जेरेडा का निदेशक बनाने का आरोप भी रघुवर दास पर है। बहुचर्चित अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति घोटाले में जांच का जिम्मा भी एसीबी को सौंप दिया गया है। रघुवर दास के साथ तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री लुईस मरांडी भी जांच के घेरे में हैं। चर्चा है कि जांच में दूसरे बड़े लोगों के भी नाम आ सकते हैं। रघुवर शासन में ग्लोबल स्किल समिट के दौरान एक दिन में एक लाख से अधिक लोगों को नियुक्ति पत्र देने के मामले की जांच का भी आदेश हो चुका है। हेमंत सोरेन के पास जीएसटी, कोल कंपनियों पर बकाया, तीन मेडिकल कॉलेजों में नामांकन, बिजली मद में राज्य के खजाने से पैसे काट लेने जैसे मामलों की लंबी फेहरिस्त है। यह सब ऐसे वक्त में है, जब केंद्र सरना कोड पर असमंजस में है। यदि केंद्र सोरेन पर हमला करता है, तो सोरेन का तरकश भी खाली नहीं है।