सधी हुई चाल से विरोधियों को मात देने वाले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इन दिनों खुद दबाव में दिख रहे हैं। ताजा संकट माइनिंग लीज और आय से अधिक संपत्ति के आरोपों पर केंद्रीय एजेंसियों का कसता शिकंजा है। पहले ही मॉब लिंचिंग विरोधी विधेयक, पंडित रघुनाथ मुर्मू ट्राइबल यूनिवर्सिटी विधेयक और झारखंड वित्त विधेयक को वापस करके राज्यपाल रमेश बैस उनकी मुश्किलें बढ़ा चुके हैं। मॉब लिंचिंग और ट्राइबल यूनिवर्सिटी विधेयक हेमंत सरकार का एजेंडा थे। यही नहीं, राज्यपाल ट्राइबल एडवाइजरी कमेटी नियमावली में फेरबदल के लिए वापस कर चुके हैं, जिसमें सदस्यों के मनोनयन के राज्यपाल के अधिकार को खत्म कर मुख्यमंत्री को दिया गया था। इधर झारखंड हाइकोर्ट ने भी उनकी परेशानियां बढ़ा दी हैं।
दरअसल एक जनहित याचिका की सुनवाई के बाद 11 अप्रैल को हाइकोर्ट ने मेगा स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स और 34वें राष्ट्रीय खेल में घोटाले की जांच सीबीआइ को सौंप दी है। खेल घोटाले की जांच एसीबी (एंटी करप्शन ब्यूरो) 2010 से अब तक पूरी नहीं कर पाई है। कॉम्पलेक्स निर्माण में दो सौ करोड़ रुपए और खेल सामग्री खरीद में 28.34 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप हैं। 34वें राष्ट्रीय खेल आयोजन के लिए गठित कमेटी के अध्यक्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन (हेमंत सोरेन के पिता) थे। इस तरह अदालत ने सीबीआइ के लिए शिबू सोरेन से भी पूछताछ का रास्ता खोल दिया है। इसके अलावा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने हाट बाजार बंदोबस्ती टेंडर विवाद को लेकर बरहरवा थाना में 2020 में दर्ज केस के आधार पर प्रिवेंशन ऑफ मनी लाउंड्रिंग एक्ट के तहत ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम के साथ हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्र एवं अन्य के खिलाफ भी जांच शुरू कर दी है।
यही नहीं, सोरेन के खिलाफ मुख्यमंत्री रहते हुए खुद के नाम माइनिंग लीज के मामले में भी संकट गहरा गया है। पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने इस संबंध में राज्यपाल से शिकायत की थी। शिकायत यही है कि मुख्यमंत्री और खान विभाग के मंत्री रहते हुए सोरेन ने अपने नाम रांची के अनगड़ा में पत्थर खदान का पट्टा लिया है। राज्यपाल ने इसे चुनाव आयोग के पास भेज दिया और आयोग ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर इस संबंध में जानकारी मांगी है। वहीं शिवशंकर शर्मा की जनहित याचिका पर अप्रैल के दूसरे सप्ताह में सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन और न्यायाधीश एस.एन. प्रसाद की पीठ ने खान मंत्री के नाते सोरेन को नोटिस जारी किया है। अब खबर है कि सोरेन ने लीज सरेंडर कर दिया है। हालांकि हेमंत सोरेन ने माइनिंग लीज पहले से ले रखी थी और 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान संपत्ति घोषणा में उसका उल्लेख किया था कि उसका नवीनीकरण प्रक्रिया में है। बहरहाल चुनाव आयोग अगर इसे ‘ऑफिस ऑफ प्रॉफिट’ के दायरे में पाता है, तो उनकी विधानसभा सदस्यता पर खतरा मंडरा सकता है।
उधर, भाजपा के गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे के एक ट्वीट से राजनैतिक हलकों में नए कयास उभर आए हैं। निशिकांत दुबे ने ट्वीट किया है, “मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी भाजपा की शरण में? बुरे काम का बुरा नतीजा, यानी जैसी करनी वैसी भरनी।” हालांकि झामुमो ऐसी किसी भी बात का खंडन करती है। उधर, सोरेन पर कांग्रेस की ओर से भी न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर अमल करने का दबाव बढ़ रहा है। हाल ही में कांग्रेस के नए प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय अपनी पांचवीं रांची यात्रा में सोरेन से मिलने पहुंचे थे।
माइनिंग लीज का विवाद परवान चढ़ा ही हुआ है कि हाइकोर्ट ने सोरेन और उनके भाई बसंत सोरेन और करीबी लोगों पर शेल कंपनी के जरिये धन निवेश के मामले की सुनवाई करते हुए रजिस्ट्रार ऑफ कंपनी को नोटिस जारी कर कथित कंपनियों में निवेश की जानकारी मांगी। प्रवर्तन निदेशालय से भी इस मामले में जानकारी मांगी है। इस संबंध में शिवशंकर शर्मा ने जनहित याचिका में आरोप लगाया था कि सोरेन, उनके परिजन और करीबी लोगों ने 400 शेल कंपनियों में निवेश कर रखा है।
अब देखना है कि इस चौतरफा घेरेबंदी से सोरेन कैसे निकलते हैं। उन्होंने इसे भाजपा की बदले की कार्रवाई बताया है और केंद्र के खिलाफ बाकी गैर-भाजपा मुख्यमंत्रियों के साथ मोर्चा खोलने का संकेत दिया है। हाल में उन्होंने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की उस मांग का समर्थन किया कि एयरपोर्टों का अगर निजीकरण किया जाता है तो निजी कंपनी को राज्य सरकार को भी रॉयल्टी देनी होगी। संभव है, आगे इसके सियासी फलक और खुलें।