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झारखंड: हेमंत के नए सुहाने सपने

सरकार के एक साल पूरा होने पर मुख्यमंत्री ने पेश की नई पर्यटन और खेल नीति, राजनैतिक पकड़ भी मजबूत की
दुमका में मल्टीपर्पज प्रोजेक्ट का उद्घाटन करते मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन

सत्ता में साल भर पूरे होने पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आम चलन की तरह हजारों करोड़ रुपए की योजनाओं का शिलान्यास किया, उद्घघाटन किया और वादे किये, मगर कुछ अलग-सा दिखा तो पर्यटन, उद्योग और खेल को लेकर नीति। कोरोना के कारण जब राज्य की माली हालत ठीक न हो तो बहुत कुछ करने के लिए नहीं रह जाता। इसके बावजूद कुछ नीतियों को लेकर हेमंत सोरेन ने सपने परोसे। उससे लगता है कि उन्होंने ठीक ही कहा था कि कोराना काल में कुछ करने की स्थिति नहीं थी, उस दौरान उन्होंने कार्यपालिका, नीतियों और संभावित अवसरों को समझने और गढ़ने का काम किया।

प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज झारखंड में आधारभूत संरचना को तराशने और उसकी ब्रांडिग करके पर्यटकों को लुभाने के लिए हेमंत सोरेन सरकार ने अपनी पर्यटन नीति में सुधार की कोशिश शुरू कर दी है। सरकार की कोशिश है कि लातेहार, नेतरहाट, बेतला, चांडिल, दलमा, मिरचैया, बेतलसूद को इको टूरिज्म के तौर पर विकसित किया जाए। नेतरहाट में चीड़ के पेड़ और मैग्नोलिया सनसेट पॉइंट को पर्यटकों के लिए खास तौर से विकसित किया जा रहा है। साथ ही झारखंड को फूलों की घाटी बनाने की भी तैयारी है। राज्य में कई ऐसी जगहें हैं, जहां, खूबसूरत झील-झरने और फॉल हैं लेकिन प्रदेश की जनता ही इनसे अनभिज्ञ है। अब नई पर्यटन नीति के तहत सरकार ने पर्यटन स्थालों को कई श्रेणियों में बांट दिया है। धार्मिक, इको, कल्चरल, रूरल, क्राफ्ट ऐंड कुजिन, एडवेंचर, वीकेंड गेटवे, फिल्म, वॉटर स्पोर्ट्स एवं रिक्रिएशन पार्क, वेलनेस और माइनिंग टूरिज्म इसमें खास है। निर्णय लिया गया है कि इस तरह के पर्यटन स्थलों को चिन्हित कर जरूरी डाक्यूमेंटेशन किया जाए, ताकि इन जगहों को पहचान मिले और देश-विदेश के पर्यटक यहां आ सकें। प्रसाद योजना के तहत बाबाधाम देवघर का विकास किया जा रहा है। खूबसूरती के लिए मशहूर चुटूपालू घाटी में विजिटर्स गैलरी, रांची के धुर्वा में ट्राइबल थीम पार्क, साहिबगंज, सरायकेला-खरसावां और दुमका में हैंडीक्राफ्ट टूरिज्म  सेंटर खोले जाएंगे। साथ ही राजमहल-साहिबगंज-पुनई चौक गंगा फेरी सर्किट, दुमका और रांची में रूरल टूरिज्म सेंटर, मसानजोर में एडिशनल टूरिस्ट कॉम्लेक्स की योजना पर काम चल रहा है। इसी तरह शिवगादी, साहिबगंज, मसानजोर और दुमका में एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए योजना बनाई गई है। सरकार का आकलन है कि इन गतिविधियों से करीब 75 हजार लोगों को रोजगार का अवसर मिलेगा। साथ ही पर्यटक आने से राज्य का खजाना भी समृद्ध होगा। 

राज्य सरकार उद्योग के क्षेत्र में भी संभावना तलाश रही है। उद्योगों के विकास और नए इनिशेटिव को बढ़ावा देने के लिए इंडस्ट्री प्रमोशन टीम बनाए जाने की योजना है, जो देश-दुनिया में उद्योग के क्षेत्र में हो रहे नए काम की समीक्षा करेगी और उद्यमियों को यहां आने के लिए आकर्षित करने का काम करेगी। इज ऑफ डूइंग बिजनेस के तहत 2015 में झारखंड की रैंकिंग 68 फीसदी के साथ तीसरी थी, जो 2020 में 99 फीसदी के साथ पांचवें स्थान पर पहुंच गई। हेमंत शासन के दौरान एक साल में 68 औद्योगिक इकाइयां उत्पादन में आईं, जिनमें करीब 580 करोड़ का निवेश हुआ और 4062 लोगों को रोजगार मिला। इनमें वस्त्र उद्योग में 164.48 करोड़ रुपये का निवेश हुआ और 2550 लोगों को रोजगार मिला। वहीं ऑटो कंपोनेंट में 120 करोड़ रुपये का निवेश हुआ। फिलहाल 52 अन्य इकाइयों की योजना है, जिनमें 4951.86 करोड़ रुपये का निवेश और 4286 लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है। इनमें चाईबासा का रुंगटा माइंस 903 करोड़ रुपये और गिरिडीह में अतिबीर इंडस्ट्रीज 986 करोड़ रुपये का निवेश कर रहे हैं। सरकार फूड प्रोसेसिंग क्षेत्र में टोमैटो कैचप और चीली सॉस से आगे बढ़ कर इसका व्यापक विस्तार कर बाजार मुहैया कराने की योजना बना रही है।

राज्य में सरकार के एक साल पूरे होने के मौके पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रांची के बीजूपाड़ा में 35 करोड़ की लागत से फार्मा पार्क, धनबाद के निरसा में 31.32 करोड़ रुपये की लागत से बन रहे लेदर पार्क तथा स्फूमर्ति योजना के तहत अनेक इकाइयों का शिलान्यास किया।

खेल और खिलाड़ियों को लेकर भी राज्य सरकार बहुत संजीदा है। सरकार के एक साल पूरा होने पर खेल नीति का भी लोकार्पाण किया गया। इसमें स्कूली स्तर पर खेल की अनिवार्यता, पदक जीतने पर नकद पुरस्कार, पुराने खिलाड़ियों को पेंशन, बेहतर प्रदर्शन करने वालों को सीधे सरकारी नौकरी, ओलंपिक में स्वर्ण पदक पर दो करोड़ रुपये, सिर्फ मान्यता प्राप्त खेल संघों को ही अनुदान जैसे प्रावधान किए गए हैं। फुटबॉल को बढ़ावा देने के लिए फुटबॉल फेडरेशन के साथ पिछले माह एक एमओयू भी साइन किया गया है और इसे टेक्निकल पार्टनर भी बनाया गया है।

अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ, तो सूबे को अपने अंदाज में गढ़ने का श्रेय हेमंत सोरेन ले ही जाएंगे। मगर इसके लिए जरूरी है कि सुविधाओं के साथ सुरक्षा मिले, क्योंकि इन दोनों के बिना उनके सपने अधूरे रह सकते हैं।

तीखी हुई नेता प्रतिपक्ष की लड़ाई

झारखंड में नेता प्रतिपक्ष का विवाद गहराता जा रहा है। अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का विलय करके भाजपा में शामिल हुए बाबूलाल मरांडी के खिलाफ दलबदल का मामला फंसा होने से एक साल से सदन में कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है। हालांकि बीते साल 17 दिसंबर को रांची हाइकोर्ट के विधानसभा अध्यक्ष रबीन्द्रनाथ महतो के स्वत: संज्ञान लेकर दलबदल मामले की सुनवाई पर स्‍थगन आदेश से इसमें एक नया मोड़ आ गया है। हाइकोर्ट के फैसले के बाद विधानसभा अध्यक्ष ने मामले की सुनवाई तो रोक दी मगर जिस दिन हाइकोर्ट का फैसला आया, उसी दिन गुमला से झामुमो विधायक भूषण तिर्की और भाकपा माले के पूर्व विधायक राजकुमार यादव ने दलबदल कानून के तहत बाबूलाल के खिलाफ कार्रवाई की शिकायत कर दी। विधानसभा अध्यक्ष ने दोनों शिकायतों को अलग-अलग दर्ज करते हुए बाबूलाल मरांडी को नोटिस जारी कर दिया।

झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने 17 फरवरी को अपनी पार्टी का भाजपा में विलय का ऐलान किया, तब झाविमो के दो विधायक बंधु तिर्की और प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल हो गए और विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा ने बाबूलाल को विधायक दल का नेता बना दिया। झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी ने अपने दो विधायकों बंधु तिर्की और प्रदीप यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण निष्कासित कर दिया था। बाद में बंधु और प्रदीप कांग्रेस में शामिल हो गए। इधर राज्यसभा चुनाव के दौरान निर्वाचन आयोग ने मतदान के लिए बाबूलाल मरांडी को भाजपा विधायक के रूप में मान्यता दे दी मगर तिर्की और यादव को निर्दलीय के रूप में मान्यता दी। बाद में विधानसभा अध्यक्ष ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे 10वें शिड्यूल के तहत दलबदल का मामला मानकर सुनवाई शुरू की। बाबूलाल मरांडी कहते हैं कि बिना किसी शिकायत के विधानसभा अध्यक्ष का स्वत: संज्ञान लेना अनुचित है। वैसे भी राज्यसभा चुनाव के दौरान निर्वाचन आयोग उन्हें भाजपा सदस्य के रूप में मतदान की मान्यता दे चुका है। उनका कहना है, “लगता है कि अदालत का फैसला आने के दिन ही दोनों से शिकायत का आवेदन मंगवाया गया।”

विधानसभा अध्यक्ष रबींद्रनाथ महतो कहते हैं, “बाबूलाल मरांडी को सदन में भाजपा विधायक और उस नाते नेता प्रतिपक्ष की मान्यता देने के मामले में वे वही कर रहे हैं जो, संविधान सम्मत है।” मुख्यमंत्री के इशारे पर यह सब होने के भाजपा के आरोप पर पलटवार करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कहते हैं, “राजनीति करने का एकाधिकार सिर्फ भाजपा का नहीं है। जब भाजपा की सरकार थी तब झारखंड विकास मोर्चा के विधायक तोड़े गए थे। तब इन लोगों ने पांच साल तक इस पर कोई निर्णय नहीं किया था। न मैं निगेटिव पॉलिटिक्स करता हूं, न ऐसा करने की इच्छा है।”

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और भाजपा विधायक सीपी सिंह इसे राजनीति से प्रेरित बताते हैं। वे कहते हैं, “सरकार नहीं चाहती कि बाबूलाल मरांडी नेता प्रतिपक्ष बनें।” विधानसभा अध्यक्ष रह चुके, कांग्रेस के आलमगीर आलम का कहना है कि किसी की शिकायत के बिना भी विधानसभा अध्यक्ष स्वत: संज्ञान ले सकते हैं।

माना जा रहा है कि हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ विधानसभा अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। बाबूलाल मरांडी ने भी कैविएट दाखिल कर दी है कि उनका पक्ष सुना जाए। इस पूरे मामले ने भाजपा के उस सपने पर पानी फेर रखा है, जिसमें वह किसी जनजातीय नेता को नेता प्रतिपक्ष बनाना चाहती थी। नेता प्रतिपक्ष न होने से सूचना आयोग और मानवाधिकार आयोग में नियुक्ति का काम भी ठप है।

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