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2024की चुनौतियां/ हिमाचल प्रदेश: सत्ता बनाम रिवाज की लड़ाई

सरकारी कर्मचारियों और महंगाई, बेरोजगारी से लोगों की नाराजगी का लाभ लेने की फिराक में कांग्रेस, मगर भाजपा मोदी के जादू के सहारे
प्रधानमंत्री मोदी की एक रैली

हिमाचल प्रदेश में चुनावी बयार बह रही है। चार राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा के विधानसभा चुनावों में रिकॉर्ड जीत दर्ज कर चुकी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का उत्साह चरम पर है। वह न सिर्फ हिमाचल के आगामी विधानसभा चुनाव बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भी कमर कस चुकी है। इस बार भी भाजपा ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को ही विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का चेहरा बनाया है। ठाकुर ने नारा दिया है, ‘राज नहीं रिवाज बदलेंगे’, जिससे स्पष्ट है कि भाजपा यहां एक ही दल के लगातार दो बार राज न कर पाने की परिपाटी को तोड़ना चाह रही है। ठाकुर अपनी हर सभा में इस बात को दोहरा रहे हैं कि अबकी भाजपा और कांग्रेस के बीच सत्ता की अदला-बदली का खेल खत्म हो जाएगा।

इसके बावजूद ठाकुर के सामने इस बार दोहरी चुनौती है। कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी (आप) 68 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रही है। यह पार्टी पंजाब में चुनाव जीत चुकी है। वहां के मुख्यमंत्री भगवंत मान, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया राज्य के गठन के बाद से ही विपक्ष की जगह कब्जाने की पूरी कोशिश में हैं। दिल्ली के मॉडल वाली मुफ्त बिजली, वृद्ध पेंशन, रोजगार गारंटी और भ्रष्टाचार-मुक्त सरकार का वादा करके वे लोगों को लुभाने में लगे हैं।

विपक्षी कांग्रेस खुद को भाजपा के खिलाफ सत्ता का मुख्य दावेदार मानती है पर इस बार अपने चुनाव प्रचार के लिए उसके पास एक विश्वसनीय चेहरे की कमी है। पार्टी ने प्रचार की कमान छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राजस्थान के उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट को सौंपी है। बघेल के मुताबिक मुख्यमंत्री पद के लिए किसी भी चेहरे को सामने नहीं रखा जाएगा।

आम आदमी पार्टी के केजरीवाल तथा भगवंत मान का रोड शो

आम आदमी पार्टी के केजरीवाल तथा भगवंत मान का रोड शो

भाजपा की निगाह केवल विधानसभा चुनाव पर ही नहीं है बल्कि उसकी व्यापक योजना 2024 के संसदीय चुनाव को लेकर है। इसीलिए उसके चुनाव प्रचार का आरंभ यहां खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। वे दो बार राज्य का दौरा कर चुके हैं और इस माह लोकसभा क्षेत्रों मंडी, कांगड़ा और हमीरपुर (बिलासपुर में) में उनकी तीन और यात्राएं प्रस्तावित हैं। 

हिमाचल प्रदेश में चार लोकसभा सीटें हैं। भाजपा को यहां 3.27 लाख से 4.77 लाख के बीच मार्जिन से रिकॉर्ड जीत 2019 में हासिल हुई थी। असेंबली सीट का एक भी ऐसा क्षेत्र नहीं था जहां भाजपा के मार्जिन को कांग्रेस पीछे छोड़ सकी हो। देश के किसी भी राज्य में पड़े कुल वोटों में भाजपा की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा हिमाचल में रही थी, जहां 72 प्रतिशत वोटों में उसका 69.11 प्रतिशत हिस्सा था। कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिरकर 27.30 पर पहुंच गया था।

इसके बावजूद नवंबर 2021 में भाजपा को गहरा झटका लगा, जब मंडी की संसदीय सीट पर सांसद रामस्वरूप शर्मा के निधन के बाद हुए उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह ने जीत हासिल की। मौजूदा मुख्यमंत्री इसी सीट से आते हैं लिहाजा भाजपा के लिए यह झटके से ज्यादा शर्म की बात रही।

इसके अलावा तीन असेंबली सीटों पर हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस को जीत मिली। उनमें एक सीट राज्य की सेब पट्टी में भाजपा के प्रभुत्ववाली जुब्बल-कोटखाइ थी। अन्य दो में एक वीरभद्र सिंह के निधन के चलते खाली हुई थी और दूसरी फतेहपुर की कांगड़ा सीट कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुजान सिंह पठानिया की मौत के बाद खाली हुई थी।

नवंबर 2021 के उपचुनाव से पहले तक भाजपा लगातार यहां 2014 और 2019 में जीतती आ रही थी, जिसके पीछे मुख्य कारण नरेंद्र मोदी का जादू और राष्ट्रवाद का नारा रहा। वीरभद्र सिंह की अगुआई में 2012 का विधानसभा चुनाव भले कांग्रेस ने जीता था लेकिन उसके बाद 2014 के लोकसभा चुनावों में चारों सीटों शिमला, हमीरपुर, मंडी और कांगड़ा पर भाजपा की जीत हुई। मोदी के नाम पर भाजपा की ऐसी तगड़ी लहर चली थी कि वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह भाजपा के नए उम्मीदवार रामस्वरूप शर्मा के हाथों मंडी में हार गई थीं, हालांकि 2021 के उपचुनाव में शर्मा के निधन के बाद यह सीट वापस उनकी झोली में चली गई।

मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार त्रिलोक जामवाल बताते हैं, ‘‘वीरभद्र सिंह का निधन जुलाई 2021 में 86 साल की अवस्था में हुआ। इससे उपजी सहानुभूति के चलते प्रतिभा सिंह उस सीट पर जीत गईं। सरकार और पार्टी के लिए बेशक यह एक झटका था। पार्टी काडर का नैतिक बल टूट गया। उसे लग रहा था कि कांग्रेस की वापसी हो रही है। उसके बाद से हमने कुछ चीजों में सुधार किया है। अब हम 2022 और 2024 में फिर से जीतने की कोशिश में हैं।’’   

उपचुनाव में मिले लाभ को भुनाने और वीरभद्र सिंह के निधन से उपजी सहानुभूति के चलते कांग्रेस ने प्रतिभा सिंह को राज्य में कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया है। वे बेशक असेंबली चुनाव नहीं लड़ेंगी लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर उनकी महत्वाकांक्षा किसी से छुपी हुई नहीं है। उन्हें इस पद की दौड़ में दो अन्य  कांग्रेसी चुनौती दे रहे हैं- कांग्रेस के प्रचार कमेटी अध्यक्ष सुखविंदर सुखु और सदन में विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री।

पार्टी को ताजा झटका पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा के रूप में लगा है, जिन्होंने कांग्रेस की स्टीयरिंग कमेटी के प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया है। यह कांग्रेस की प्रचार रणनीति पर निश्चित रूप से हिमाचल में असर डालेगा। इसके बावजूद मुकेश अग्निहोत्री का मानना है कि देश में कांग्रेस की बहाली हिमाचल से ही शुरू होने जा रही है। वे याद करते हैं कि 2003 में कांग्रेस ने यहां असेंबली चुनाव जीता था और उसके ठीक बाद 2004 में लोकसभा चुनाव भी जीता था।

कांग्रेस ने 2003 में 43 असेंबली सीटों पर जीत हासिल की थी, बाद में लोकसभा की चार में से तीन सीटें उसने जीतीं। इकलौती हमीरपुर की सीट भाजपा को मिली। अग्निहोत्री कहते हैं कि पार्टी की किस्मत अब बदल रही है।

वे कहते हैं, ‘‘सरकार विरोधी तगड़ा माहौल है। आरएसएस की मुहर की तरह काम कर रहे जयराम ठाकुर के नेतृत्व में महंगाई, बेरोजगारी और भाजपा का माफिया राज लोगों में आक्रोश पैदा कर रहा है। सबसे बड़ा वोटबैंक यानी 2.30 लाख सरकारी कर्मी पूरी तरह भाजपा के खिलाफ हैं। हमने छत्तीसगढ़ और राजस्थान की तर्ज पर पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा किया है।’’

जाहिर है, हिमाचल प्रदेश की दोध्रुवीय राजनीति में तीसरे खिलाड़ी के लिए ज्यादा जगह नहीं है, इसलिए असेंबली चुनाव हो या फिर 2024 का लोकसभा चुनाव, लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच ही रहेगी। राजनीतिक विश्लेषक अंबाचरण वशिष्ठ कहते हैं, ‘‘हिमाचल प्रदेश पंजाब नहीं है। इसका अपना एक राजनीतिक इतिहास है। आम आदमी पार्टी पहाड़ों में बहुत पैठ नहीं बना पाई है। जिस तरह उत्तराखंड में उसकी बुरी हार हुई वैसे ही यह हिमाचल में भी कोई खास नुकसान नहीं कर पाएगी। उसके आने से ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होगा, बीजेपी को नहीं।’’

उपचुनाव के नतीजों से उत्साहित और वीरभद्र सिंह के निधन से उपजी सहानुभूति के चलते कांग्रेस ने प्रतिभा सिंह को कमान सौंपी है

उपचुनाव के नतीजों से उत्साहित और वीरभद्र सिंह के निधन से उपजी सहानुभूति के चलते कांग्रेस ने प्रतिभा सिंह को कमान सौंपी है

वे याद करते हैं कि कैसे 2012 में तीसरे मोर्चे का प्रयोग पिट गया था जब तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), स्वर्गीय रामविलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी और मायावती की बसपा मिलकर विकल्प बनने में नाकाम रही थीं। केवल पंडित सुखराम वाली हिमाचल विकास कांग्रेस (एचवीसी) 1998 में कांग्रेस को हरा सकी है। इसी के बाद भाजपा ने एचवीसी के साथ गठजोड़ किया और धूमल मुख्यमंत्री बने।

उस समय भी हालांकि मामला केवल कांग्रेस को राज्य की सत्ता से बाहर रखने का नहीं था बल्कि सिर पर 1999 का लोकसभा चुनाव था। उसके मद्देनजर भाजपा ने अपने गठबंधन सहयोगी एचवीसी को एक लोकसभा सीट दे दी। नतीजा- तीन पर भाजपा और एक पर एचवीसी की जीत हुई।

चार्ट

राज्य में 1972 तक कांग्रेस का वर्चस्व था। ‘राज्य निर्माता’ कहे जाने वाले डॉ. वाइएस परमार जैसी शख्सियत के नेतृत्व में कांग्रेस बार-बार सत्ता में आती रही। पहली बार उसे आपातकाल के बाद झटका लगा जब जनता पार्टी ने 68 में से 53 सीटों पर जीत हासिल कर ली और एक तरह से रिकॉर्ड बना डाला। इतना ही नहीं, चारों लोकसभा सीटों पर भी जनता पार्टी की जीत हुई। कांग्रेस ने 1982 में ठाकुर रामलाल की अगुआई में दलबदल और कुछ निर्दलीयों के सहयोग से एक बार फिर सरकार बना ली। इसके बाद से आवाजाही का सियासी खेल हिमाचल में शुरू हुआ। तब से लेकर अब तक कोई भी सत्तासधारी दल पांच साला चुनाव में अपनी वापसी नहीं कर सका है।

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