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हॉकीः‘एक टीस-सी है, नया रोल इसलिए’

मैं हमेशा मार्गदर्शक के रूप में यहां रहूंगी, अगली पीढ़ी का मार्गदर्शन करूंगी
रानी रामपाल

भारतीय महिला हॉकी की स्टार रानी रामपाल की 28 नंबर की जर्सी को हॉकी इंडिया ने सम्मान के तौर पर रिटायर कर दिया। अब वे गुरु की टोपी पहनने को तैयार हैं। 16 साल तक मैदान पर भारतीय हॉकी के उतार-चढ़ाव को करीब से देखने वाली ‘हॉकी की रानी’ अपने संन्यास की घोषणा के बाद अगली चुनौती को लेकर उत्सुक हैं।

रानी ने आउटलुक से अपने रिटायरमेंट के बारे में कहा, ‘‘मैंने 16 साल इस खेल को दिए हैं। मेरा बचपन, मेरी जवानी और बीच का सारा समय हॉकी के लिए समर्पित रहा। आज जहां मैं हूं, यह मुकाम मुझे हॉकी ने ही दिया है। भला मैं इससे दूर कैसे जा सकती हूं। मैं हमेशा मार्गदर्शक के रूप में यहां रहूंगी, अगली पीढ़ी का मार्गदर्शन करूंगी।’’

रानी सिर्फ 29 साल की हैं। इतनी कम उम्र में संन्‍यास क्‍यों। इस सवाल के जवाब में वह बताती हैं, ‘‘मेरा मानना है कि हर खिलाड़ी सही समय का इंतजार करता है। अपने खेलने के दिनों के बारे में सोचना एक सुंदर एहसास है। हॉकी में अभी बहुत कुछ बाकी है और मैं उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहती हूं, खासकर जहां युवा लड़कियों को अधिक मदद की जरूरत है।’’

रानी ने 2008 में ओलंपिक क्वालीफायर के दौरान मात्र 14 वर्ष की उम्र में भारत की ओर से खेलने वाली सबसे युवा हॉकी खिलाड़ी बनी थीं। उन्होंने 254 अंतरराष्ट्रीय मैचों में 205 गोल किए। महत्वपूर्ण गोल करने की क्षमता रखने वाली कुशल फॉरवर्ड खिलाड़ी, रानी अब कुशल मेंटर बनना चाहती हैं।

भारतीय हॉकी प्रणाली में क्या कमी है, इसका प्रत्यक्ष अनुभव करने के बाद रानी का मानना है कि खिलाड़ियों को शारीरिक प्रशिक्षण के अलावा मानसिक प्रशिक्षण की भी आवश्यकता है। रानी ने कहा, ‘‘मेरे समय में मानसिक तैयारी पर शायद ही ध्यान दिया जाता था। हम रणनीतिक और तकनीकी रूप से मजबूत थे, लेकिन मानसिक रूप से, हमारे लिए टूटना आसान था। हॉकी सिर्फ शारीरिक ताकत की बात नहीं है, इसमें दिमाग का भी बहुत बड़ा रोल होता है।’’

अपने नए रोल को लेकर उन्होंने कहा, ‘‘संरक्षक के रूप में, मेरा प्राथमिक ध्यान खिलाड़ियों को मानसिक रूप से मजबूत करने पर होगा। मैं खिलाड़ियों के लिए खड़े रहना चाहती हूं, उन्हें खुद पर विश्वास करने और अपने लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करना चाहती हूं। मेरे लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि वे क्या महसूस कर रही हैं और किस दौर से गुजर रही हैं। मैं ऐसी मेंटर बनना चाहती हूं, जो खिलाड़ियों के दिमाग और उनके पारिवारिक जीवन में क्या चल रहा है, उससे वाकिफ हो। मेरा लक्ष्य वह बदलाव लाना है, जिसकी मुझे खेलते समय मार्गदर्शन और खिलाड़ी कंडीशनिंग में आवश्यकता थी।’’

रानी 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों से लेकर 2021 के टोक्यो ओलंपिक तक चौथे स्थान पर रहने के दुख को अच्छी तरह जानती हैं। टोक्यो का अनुभव आज भी उनके मन को बेचैन करता है। उन्होंने कहा, ‘‘एक बेचैनी है, एक पछतावा है, लेकिन जीवन किसी पल के लिए रुकता नहीं। चलता रहता है।’’

हालांकि, रानी ने अपनी पीड़ा को चमकदार मुस्कान के पीछे छिपाकर पूरी सच्चाई से कहा, ‘‘चौथे स्थान पर आना किसी भी एथलीट के लिए सबसे बुरी बात है, क्योंकि आप जानते हैं कि आप पोडियम पर हो सकते थे। आप अफसोस करते हैं, काश, हमने इसे किसी और तरह से किया होता।’’ अंततः यह एक झटका है लेकिन सीखने का अवसर होता है। हम सभी को सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए। लेकिन अगर मैं कहूं कि मैं अभी भी इसके बारे में नहीं सोचती तो यह झूठ होगा। एक टीस-सी है। मुझे लगता है कि मैं आगे बढ़ चुकी हूं, लेकिन कभी-कभी, सोने से पहले, यह फिर से मेरे दिमाग में आ जाता है।’’

टोक्यो ओलंपिक को रानी के लिए गेम-चेंजर माना जा रहा था, लेकिन उसके बाद का साल, 2022, उनके 16 साल के करियर में ऐसा साल साबित हुआ जिसे वह भूलना चाहेंगी। चोटों से जूझते हुए उन्हें एक के बाद एक असफलताओं का सामना करना पड़ा। जब उन्हें लगा कि अब वह ठीक हो गई हैं और वापसी के लिए तैयार हैं, तो उन्होंने पाया कि विश्व कप में उन्हें बाहर कर दिया गया है, जहां भारत नौवें स्थान पर रहा तथा राष्ट्रमंडल खेलों में भी भारत को कांस्य पदक मिला था।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उस समय उन्होंने खुले तौर पर लिए गए निर्णयों की आलोचना करते हुए कहा था, ‘‘इसका सबसे अच्छा जवाब मुख्य कोच जानके स्कोपमैन या चयनकर्ता दे सकते हैं, क्योंकि मुझे इसका जवाब नहीं पता।’’

इसमें कोई दोराय नहीं कि भारत को उनकी अनुपस्थिति काफी खल रही थी और उनके द्वारा छोड़ा गया खालीपन भारत को काफी महंगा भी पड़ा। उनकी अगुवाई में टीम आक्रमक खेलती थी, लेकिन उनके बिना गोल करना मुश्किल हो गया था। यहां तक कि टोक्यो ओलंपिक में भी उन्होंने टीम के लिए पहला गोल किया था। अंततः भारत पेरिस ओलंपिक के लिए अर्हता प्राप्त करने में भी असफल रहा, जो ओलंपिक पदक जीतने के इतने करीब पहुंचने के तीन साल बाद हुआ एक बेहद दुखद घटनाक्रम था।

यह पूछे जाने पर कि अब वह 2022 के बारे में कैसा महसूस करती हैं, रानी ने कहा, ‘‘मेरा एक लंबा करियर रहा है, इसलिए मुझे उस वर्ष पर ध्यान देने की आवश्यकता महसूस नहीं होती है। हर अनुभव आपको कुछ न कुछ सिखाता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। मैंने भी बहुत कुछ सीखा है। मैं मिले हुए सभी सबक के लिए आभारी हूं। यहां तक कि उन सबको के लिए भी जिनके बारे में मुझे पहले पता नहीं था। मुझे अपने करियर पर गर्व है। जीवन कर्म पर आधारित है इसलिए मुझे खुशी है कि मैंने अपना 100 प्रतिशत दिया।’’

अपने बहिष्कार और चोटों से उबरने के बारे में रानी का कहना है, ‘‘यह बहुत कठिन है। यह कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल है। हम सभी खिलाड़ी होने से पहले इंसान हैं। आपके पास भावनाएं और संवेदनाएं हैं। यह स्वाभाविक है कि आप संदेह महसूस करें, सोचें कि क्या आप इसके लायक हैं या क्या यह सही रास्ता है। लेकिन समय सबसे बेहतर मरहम है। उससे बेहतर घाव को कोई नहीं भर सकता। आपको एक ब्रेक लेने, रोजमर्रा की भागदौड़ से दूर रहने और हमेशा संघर्ष करने की जरूरत होती है।’’

रानी अपने करियर के तीन सर्वश्रेष्ठ पलों का जिक्र करती हैं। वे कहती हैं, ‘‘पहला वह था जब मुझे भारतीय जर्सी मिली;। तब मैं सिर्फ 14 साल की थी। इसके बाद दो ओलंपिक में खेलना और अंत में जब खेल रत्न से सम्मानित किया गया। ये तीनों पल मैं कभी नहीं भूल सकती।’’

उनके तीन सबसे खराब अनुभवों में वे 2016 के ओलंपिक गिनती हैं, जहां भारत 12वें स्थान पर रहा था। इसके बाद टोक्यो ओलंपिक और 2022 में चोट का सिलसिला।

बहरहाल, रानी अब एक नई भूमिका निभाएंगी। इस बार वे हॉकी इंडिया लीग (एचआइएल) के सूरमा हॉकी क्लब की कोच और मेंटर होंगी। उनका सपना था कि लैंगिक समानता हो।  अपने खेल के दिनों को याद करके वह कहती हैं, ‘‘जब मैं खेलती थी, तो मेरा सपना था कि महिलाओं की लीग हो। और अब ऐसा हो रहा है। शुरुआत हमेशा मुश्किल होती है लेकिन फिर सिलसिला चल पड़ता है। मुझे पूरा भरोसा है कि भविष्य के संस्करणों में और भी टीमें इसमें खेलेंगी। मैं इस ऐतिहासिक क्षण का हिस्सा बनकर बहुत ही ज्यादा खुश हूं।’’

 

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