इथोपिया, सीरिया, सूडान, रूस-यूक्रेन और लेबनान तथा गाजा में इजरायल के युद्ध कवर करने के बाद, मिसाइलों-मोर्टार को उड़ते हुए और इलाकों को मलबे में बदलते देखने के बाद यह देख हैरानी होती है कि दक्षिण एशिया शायद इकलौता क्षेत्र है, जहां आम लोग फौरन युद्ध विशेषज्ञ बन बैठते हैं और वह भी अपने ड्राइंग रूम में।
इन विशेषज्ञों की राय सिर्फ लड़ाई के लक्ष्य और तरीके तक ही सीमित नहीं रहती। लगता है, मानो भारत और पाकिस्तान की ताकत उनके एटमी हथियारों या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के दावों या दुनिया भर में आम के निर्यात से नहीं बनती, बल्कि हर मामले में फौरन टांग अड़ाने और उस्तादी झाड़ने की गजब की काबिलियत से बनती है।
अचानक ब्रेकिंग न्यूज आती है, ‘‘सीमा पार मिसाइलें दागी गईं।’’ कुछ ही मिनटों बाद सैलून में बाल काटता आपका नाई बैलिस्टिक मिसाइलों की चाल समझा रहा होता है। वह फौरन बोल उठता है कि मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल री-एंट्री व्हीकल्स (एमआइआरवी) पारंपरिक बमों से बेहतर कैसे हैं और वायु सेना में एक चचेरे भाई का हवाला देकर उसकी पुष्टि करता है (जो, बाद में पता चला, अकाउंट्स में काम करता है।)
एक दोस्त कहता है, “अरे यार, तुम समझ नहीं रहे हो। भारत को पहले गोला-बारूद के जखीरे पर हमला करना चाहिए था, बैरकों पर नहीं।” उसकी फौजी काबिलियत बस इतनी है कि बॉर्डर और उड़ी फिल्म दस बार देख चुका है।
भारत के पाकिस्तान में नौ जगहों पर मिसाइल दागने की आधिकारिक खबर आई, जिसमें निशाने पर बहावलपुर से लेकर लाहौर के पास मुरीदके तक कथित आतंकी ढांचे थे, तो दक्षिण दिल्ली की एक रिहायशी सोसायटी के व्हॉट्सऐप ग्रुप में ज्वालाएं भड़क उठीं। हमारे पड़ोस में रहने वाली एक आंटी इस हमले की सटीकता से खुश नहीं थीं। उन्होंने बताया कि इमारत तो बची हुई है। उन्हें शक इससे भी हुआ कि मारे गाए किसी ने वर्दी नहीं पहनी थी। वे यह भी जानकर निराश थीं कि मिसाइल सीधे वार करने के बजाय अर्द्धगोलाकार चाप में गिरी थी। उन्होंने व्हॉट्सएप ग्रुप में लिखा, ‘‘मिसाइल को सीधे इमारत पर गिराया जाना चाहिए था।’’
जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ने या गोलाबारी की खबरें आती हैं, दोनों देशों के लोग एक अजीब मानसिक अवस्था में पहुंच जाते हैं।
दुकानदार रणनीतिकार, रिक्शा वाले रॉकेट वैज्ञानिक, गृहिणियां भू-राजनैतिक विश्लेषक बन जाती हैं। रक्षा प्रवक्ता की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले ही हर किसी को पता होता है कि प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख को क्या करना चाहिए था। आप हैरान-परेशान हो सकते हैं, जब पानवाला भी शिकायती लहजे में कह उठे, “भाई साहब, निशाना सही नहीं था। मुल्तान के पास उनके तेल डिपो पर हमला करना चाहिए था।”
एक शख्स ने वाकई सोशल मीडिया पर भारतीय वायु सेना से मुल्तान में थोकर नियाज बेग पर हमला करने की अपील की, जहां उसके मुताबिक, आतंकी पनाहगाह है। जब किसी ने टोका कि थोकर नियाज बेग लाहौर में है, मुल्तान में नहीं, तो उसने फौरन पोस्ट हटा ली।
लाजपत नगर के शर्मा जी दिन में एलआइसी एजेंट और शाम घिरते ही माहिर रणनीतिकार बन जाते हैं। उनके पास जैसलमेर के पास भारतीय सेना की तैनाती की ठोस रणनीति थी। वे पूरी शिद्दत से बोले, ‘‘अगर मैं जनरल होता, तो मैं पश्चिम से नहीं, बल्कि पूर्वोत्तर में ब्रह्मोस मिसाइलों को जुटाता। इससे वे भांप ही नहीं पाते।’’ वे यहीं नहीं रुके, ‘‘हमें हाइपरसोनिक्स का इस्तेमाल करना चाहिए, बिल्कुल रूस की तरह। सबसे पहले, हमें उनके ड्रोन को हैक करना होगा। मेरा बेटा हैकिंग जानता है।’’
पाकिस्तान में, सियालकोट के एक दर्जी ने एक्स पर पोस्ट किया, “भारतीय राडार सर्दियों में कमजोर क्यों होता है” और “कोहरे के फायदे” का हवाला दिया।
सैन्य अधिकारी और रणनीतिकार तो जोखिमों की गणना करते हैं और जटिल भू-राजनैतिक नतीजों पर विचार करते हैं। लेकिन ड्राइंग रूम जनरल-ऑन-सिम-कार्ड के पास तो बेफिक्र हल है, “कराची पर एटम बम गिराओ और कहानी खत्म?”
“ब्रो, हम दिल्ली पर एटम बम गिराते हैं, तो उसकी मिसाइलें जाम हो जाएंगी क्योंकि हमने उन्हें हैक कर लिया है। हमें नेपाल सीमा से सर्जिकल स्ट्राइक करनी चाहिए, आखिरी वार।”
भारत में एक्स पर एक शख्स की सलाह, भारत “रिवर्स मिसाइल” दागे, जो रुकावट पर वापस उछल जाए।
एक पाकिस्तानी टीवी चैनल पर फैसलाबाद में ट्रैक्टर स्पेयर पार्ट्स बेचने वाले चौधरी साहब पूरे जोशो-खरोश से फौज को शाहीन-3 मिसाइल दागने का हुक्म दे रहे थे, उन्हें पूरा भरोसा था कि उससे बेंगलूरू दहल जाएगा। उसने कहा, ‘‘हम वक्त क्यों बर्बाद कर रहे हैं? एक वार करो और खत्म कर दो।’’ पाकिस्तान में एक वायरल फेसबुक पोस्ट ने दावा किया कि भारत का मिसाइल हमला इसलिए नाकाम हुआ क्योंकि ‘‘हमारे फौजियों ने एक साथ सूरह यासीन का पाठ किया।’’ इस पोस्ट को पाकिस्तान के पूरे टैंक इन्वेंटरी से ज्यादा लाइक मिले।
यह सब सिर्फ फर्जी जानकारियों वाले व्हॉट्सऐप आंटियों और अंकलों तक सीमित नहीं है। अपने सामरिक और रक्षा कवरेज के लिए चर्चित एक संपादक 2016 में भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद श्रीनगर पहुंचे, डल झील पर सेना के एक रिटायर कर्नल के साथ एक घंटे का लाइव कार्यक्रम प्रसारित किया। कर्नल साहब ने ‘‘17 घंटे में मुजफ्फराबाद तक सेना के पहुंचने’’ की योजना पूरे भरोसे और जोशोखरोश से बताई थी।
इस बार, करगिल युद्ध को कवर करने से चर्चित हुए एक वरिष्ठ भारतीय पत्रकार ने कराची बंदरगाह के ‘‘तबाह’’ होने के बारे में एक्स पर पोस्ट किया, तो मैंने एक पूर्व सहकर्मी से संपर्क किया जो अब कराची में रहता है। वह डिनर के लिए निहारी लाने के खातिर एक रेस्तरां के बाहर इंतजार कर रहा था।
वहां कई और लोग अपने ऑर्डर का इंतजार कर रहे थे। उसमें किसी ने सहज ढंग से कहा, “मोदी चुनाव से पहले एक और हमला करेगा।” दूसरे ने कहा, “इमरान खान ने पहले ही यह बता दिया था। इमरान के जेल जाने के बाद भारत की हिम्मत बढ़ गई है।” एक महिला ने बड़बड़ाते हुए कहा, “जंग सबके फायदे में है। हथियार इंडस्ट्री यही चाहती है।” इस बीच मेरे दोस्त की निहारी आ गई और वह चला गया।
उधर, सीमा पर थके-मांदे, गुमनाम सेना के जवान अपनी जान जोखिम में डालकर वहां तैनात हैं। सीमावर्ती गांवों में गोलीबारी झेल रहे हैं। लेकिन उन्मादी संयम बरतने की सलाह देने वाले राजनयिकों को कायर बताते हैं। सवाल पूछने वाले पत्रकारों को देशद्रोही करार दिया जाता है। कोई भी यह कहने की हिम्मत करता है कि युद्ध कोई वीडियो गेम नहीं है, उस पर न जाने कैसे-कैसे आरोप मढ़ दिए जाते है और कहा जाता है, ‘‘तो, हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें।’’
बड़बोले व्हॉट्सऐप योद्धाओं और रणनीतिकारों को क्या मालूम कि जंग का क्या मतलब है। जंग का नजारा देखना हो तो सीरिया में अलेप्पो से होम्स तक के हाल देख लीजिए। बस्तियां, मोहल्ले बर्बाद हो गए, लोग बेघर हो गए, हजारों बच्चे अनाथ हो गए। फौजियों को सम्मान के साथ दफनाया गया और हफ्ते भर में भुला दिया गया।
बहुत कम लोगों को याद होगा कि एक शख्स आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या ने दुनिया को प्रथम विश्व युद्ध में धकेल दिया था। उसमें 50 लाख से 2.2 करोड़ लोग मारे गए और 2.3 करोड़ घायल हुए। फिर, द्वितीय विश्व युद्ध 1939 में पोलैंड सीमा के पास ग्लीविट्ज में एक जर्मन रेडियो स्टेशन पर नाजी हमले के बाद शुरू हुआ, नतीजन 5 से 5.5 करोड़ लोग और 2.1 से 2.5 करोड़ सैनिकों की मौतें हुईं।
आज भारत और पाकिस्तान में हालात इतने संगीन हैं कि बहुत कम नेताओं को युद्ध की कीमत का अंदाजा है। पहले, संसद पर हमले, आइसी-814 विमान के अपहरण या 2008 के मुंबई आतंकी हमलों के वक्त ऐसे नेता थे, जो हालात को पूर्ण युद्ध की दिशा में जाने से रोकने में सक्षम थे।
कहते हैं, जब एक अधिकारी ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से कहा कि कूटनीतिक फायदे के लिए अपहृत विमान को लाहौर या दुबई में उड़ाया जा सकता है, तब वाजपेयी ने उसे डांट पिलाई और कहा कि अंतरराष्ट्रीय जगत में बढ़त के लिए 300 लोगों की जान की बाजी नहीं लगाई जा सकती।
(इफ्तिखार गिलानी फिलहाल तुर्किए के अंकारा में स्थित पत्रकार हैं। विचार निजी हैं)