महाराष्ट्र में अहमदनगर जिले में प्रसिद्ध शनि शिंगणापुर मंदिर और मुंबई में हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश की सफल मुहिम चलाकर चर्चा में आईं तृप्ति देसाई की सबरीमला मुहिम असर नहीं दिखा पाई। कथित तौर पर 1500 सदस्यों वाले भूमाता ब्रिगेड की, जिसका मुख्यालय पुणे में है, प्रमुख को पिछले पखवाड़े कोच्चि हवाई अड्डे से लौटना पड़ा। इससे उभरे विवादों और तमाम मुद्दों पर उनसे कंचन श्रीवास्तव ने विस्तार से बातचीत की। कुछ अंशः
आपने दो साल पहले घोषणा की थी कि सबरीमला में हर उम्र की स्त्रियों के प्रवेश के लिए अभियान छेड़ेंगी। आपने अभी तक कुछ भी नहीं किया और अब जब मुद्दा बड़ा हो गया, तो आप अचानक इसमें कूद पड़ीं। क्यों?
हां, मैंने पूजा स्थलों पर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव खत्म करने के लिए हाजी अली दरगाह और शनि शिंगणापुर मंदिर मामले में जीत के बाद सबरीमला के लिए अभियान की घोषणा की थी। मैंने सबरीमला देवास्म बोर्ड को पत्र भी लिखे। हालांकि, मैंने अपने फैसले को टाल दिया, क्योंकि लोगों ने मुझे बताया कि यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही लंबित है। सर्वोच्च न्यायालय के 28 सितंबर के फैसले ने हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश के लिए रास्ता खोल दिया और हमने सोचा कि मंदिर प्रशासन और केरल सरकार फैसले को लागू कराएगी। हालांकि, भारतीय जनता पार्टी और अन्य हिंदू समूहों के तीखे विरोधों के कारण ऐसा नहीं हो सका। तब मंदिर बंद कर दिया गया और 16 नवंबर को दोबारा खोला गया। दक्षिणपंथी समूहों ने फिर से सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए महिलाओं को प्रवेश नहीं करने दिया। इन घटनाओं ने हमें सबरीमला के लिए मुहिम शुरू करने को प्रेरित किया।
कोच्चि हवाई अड्डे पर आपके साथ जो हुआ, उसके बारे में बताइए। जब आपको मजबूरन अभियान खत्म कर महाराष्ट्र लौटना पड़ा।
मैंने 16 नवंबर को घोषणा की कि हम 17 नवंबर को सबरीमला में प्रवेश करेंगे। हमने पहले ट्रेन से जाने का फैसला किया था, लेकिन मार डालने की सैकड़ों धमकियां मिलने के बाद यह विचार छोड़ दिया। फिर हमने फ्लाइट से कोच्चि जाने का फैसला किया। सबरीमला का प्रवेशद्वार और विरोध प्रदर्शन के केंद्र नीलक्कल मंदिर से लगभग 150 किमी दूर है।
मैंने धमकियों का हवाला देकर अपनी कोच्चि योजना के बारे में सिर्फ केरल पुलिस और मुख्यमंत्री कार्यालय को बताया था। मुख्यमंत्री कार्यालय से मेरी चिट्ठी का जवाब नहीं मिला और पुलिस ने मौखिक तौर पर मुझे वीआइपी सुरक्षा देने से इनकार कर दिया। फिर, मेरी कोच्चि योजना के बारे में खबर लीक कर दी गई। नतीजतन, हिंदू समूह हवाई अड्डे पर इकट्ठे हो गए। जैसे ही हम सुबह वहां पहुंचे, तो हवाई अड्डा सुरक्षा कर्मचारियों ने बाहर कानून-व्यवस्था की गंभीर स्थिति का हवाला देकर अंदर रहने के लिए कहा। उस समय शायद 50 प्रदर्शनकारी ही बाहर थे। हवाई अड्डे के बाहर लगभग 150 पुलिसकर्मी थे, जिन्होंने हमें एक घंटे तक इंतजार करने के लिए कहा, ताकि प्रदर्शनकारी जगह छोड़कर चले जाएं। जब हमने किसी होटल जाने के लिए टैक्सी बुक करने की कोशिश की, तो प्रदर्शनकारियों ने उन्हें धमकी दी और उन्हें दूर कर दिया। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने शाम को बैठक की और बताया कि अगर हम हवाई अड्डे से बाहर जाने पर जोर देते हैं, तो कानून-व्यवस्था नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। हवाई अड्डा अधिकारियों ने भी हमसे अपना अभियान रद्द करने की अपील की, क्योंकि इस गतिरोध से अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की साख पर सवाल उठते और संचालन प्रभावित होता। हमने केरल के लोगों की भलाई के लिए घर लौटने का फैसला किया।
प्रदर्शनकारी भगवान अयप्पा के ब्रह्मचर्य का हवाला देते हैं और उनका तर्क है कि यह आस्था का मुद्दा है न कि लैंगिक भेदभाव का। आप इसका कैसे जवाब देती हैं?
यह लैंगिक भेदभाव का ही मामला है। यह दुखद है कि 21वीं सदी में भी महिलाओं को प्रार्थना करने के समान अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। हिंदू धर्म में सुधार की जरूरत है, लेकिन प्रदर्शनकारी इसके खिलाफ हैं। इसलिए वे अंधविश्वासों का प्रचार करते हैं कि महिलाओं के प्रवेश से हालिया बाढ़ जैसी त्रासदी आ जाएगी। वे न सिर्फ मासूम भक्तों को डराते हैं, बल्कि महिलाओं की भावनाओं को भी ठेस पहुंचाते हैं।
क्या आपको वाकई यकीन था कि बड़ी संख्या में मौजूद प्रदर्शनकारियों के सामने सात लोगों की आपकी टीम जीत पाएगी? आपके आलोचक भी कहते हैं कि क्या यह मीडिया में सुर्खियां बटोरने का राजनैतिक स्टंट नहीं है?
नहीं, हमने अपने परिवारों से कहा था कि मुमकिन है कि हम जीवित न भी लौट पाएं। हम सभी अपनी जान की बाजी लगाकर भी मकसद के लिए लड़ना चाहते थे। कोई भी व्यक्ति जीवन दांव पर लगाकर राजनैतिक स्टंट नहीं करेगा।
शनि शिंगणापुर और हाजी अली दरगाह में पूजा के समान अधिकारों के लिए सफल लड़ाई के बाद भी काफी सुर्खियां बनी थीं, जबकि हम यह चाहते भी नहीं थे। जो भी लोगों के मुद्दों या सुधारों के लिए बहादुरी से लड़ता है, उसे मीडिया कवरेज मिलता ही है। जो लोग महिला अधिकारों के खिलाफ हैं, उन्हें भी आगे आना चाहिए और प्रचार पाने के लिए कुछ अच्छा करना चाहिए।
क्या आप इस संबंध में केरल पुलिस और सरकार की भूमिका से संतुष्ट हैं?
नहीं, मैंने उन्हें कुछ दिन पहले जानकारी दे दी थी। हमारा रास्ता साफ करने की जगह उन्होंने प्रदर्शनकारियों को हवाई अड्डे पर लंबे समय तक इकट्ठा होने की इजाजत देकर परोक्ष रूप से उनकी मदद की। केरल सरकार के दोहरे रवैया का भंडाफोड़ हो गया। मुख्यमंत्री विजयन को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू कराने के लिए स्पष्ट निर्णय लेना चाहिए, क्योंकि दक्षिणपंथी शीर्ष अदालत के आदेश का उल्लंघन करने की कोशिश कर रहे हैं। केरल में भाजपा और आरएसएस वोटबैंक के लिए सबरीमला मुद्दे पर बड़ा राजनैतिक खेल खेल रहे हैं। कांग्रेस और वामपंथी दलों ने भी राजनैतिक कारणों से अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है।
शीर्ष अदालत ने जनवरी में फैसले पर फिर से विचार करने के लिए अपनी सहमति दे दी है। क्या आप भी अदालत का रुख करेंगी?
सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू कराने में विफल रहने के कारण केरल सरकार को अदालत में चुनौती देने के मुद्दे पर हम कानूनी राय ले रहे हैं।
लोग आपको अवसरवादी और भाजपा की कठपुतली बताते हैं, जो गंभीर मसलों से ध्यान हटाने के लिए धार्मिक मुद्दों में दखल देती हैं?
मेरा भाजपा, कांग्रेस या किसी अन्य राजनैतिक समूह से कोई संबंध नहीं है। लोग सिर्फ मुझे बदनाम करने और हमारी मुहिम को पटरी से उतारने के लिए ऐसे आरोप लगाते हैं।
महाराष्ट्र में आपकी मुहिम सफल रही, लेकिन केरल में सफल नहीं हो पाई। महाराष्ट्र में प्रदर्शनकारियों, मंदिर प्रशासन और केरल सरकार के दृष्टिकोण के बीच क्या बड़ा अंतर है?
मुझे महाराष्ट्र में भी धमकियां मिलीं और हम पर हमला किया गया, लेकिन मौत की धमकी तब मिली जब मैंने सबरीमला मुद्दे को उठाया। यह चौंकाने वाला है, क्योंकि केरल को पूरी तरह से साक्षर राज्य माना जाता है। महाराष्ट्र में मंदिर और दरगाह प्रशासन ने अदालत के आदेशों का पालन किया था। दरअसल, महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने भी महिलाओं का समर्थन किया था और हर कीमत पर उनके प्रवेश को आश्वस्त किया था। केरल सरकार में यह प्रतिबद्धता नहीं दिखती है। यह विडंबना है कि भाजपा भी सबरीमला में महिलाओं के प्रवेश के खिलाफ है।
काफी अरसे से लंबित इस मुद्दे का क्या कोई समाधान है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस दिन देश की महिलाओं और उनके समान अधिकारों के समर्थन में खड़े हो जाएंगे, उस दिन यह मुद्दा तुरंत निपट जाएगा। उन्हें बस भाजपा को इस मुद्दे से दूर रहने के लिए कहना है।
क्या आप फिर से मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश करेंगी? और कब?
हम निश्चित रूप से ऐसी कोशिश फिर करेंगे। हालांकि, मैं अभी तारीख और समय नहीं बताऊंगी।
प्रार्थना करने का समान अधिकार एक अच्छी बात है, लेकिन क्या देश की सभी महिलाओं को अभी इसकी ही जरूरत है? महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न, असमान वेतन, कन्या भ्रूणहत्या और श्रम में महिलाओं की भागीदारी का कम होना, इन मुद्दों के बारे में क्या राय है?
मेरा संगठन महाराष्ट्र के 13 जिलों में बलात्कार, घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न के पीड़ितों के लिए बहुत काम कर रहा है। हम शराब और कन्या भ्रूणहत्या के निषेध के लिए काम करते हैं। हमारी ताइगीरी (दीदीगीरी) टीम यौन उत्पीड़कों और पत्नियों की पिटाई करने वालों से निपटती है। प्रार्थना करने का समान अधिकार मेरे एनजीओ के काम का एक हिस्सा है और यह भी महत्वपूर्ण है।
क्या आप किसी राजनैतिक दल में शामिल होंगी या भविष्य में चुनावी राजनीति में किस्मत आजमाएंगी?
नहीं, मैं न तो किसी राजनैतिक दल में शामिल होऊंगी और न ही चुनाव लड़ूंगी। मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर ही खुश हूं, तो अपनी आजादी क्यों दांव पर लगाऊं।