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मानवीय संवेदनाओं की जय

मुंबई की झोपड़पट्टी धारावी और वहां के बाशिंदों को अलग ढंग से दिखाया गया तो मिला ऑस्कर
स्लमडॉग मिलेनियर का दृश्य

मानवीय संवेदनाओं से भरी स्लमडॉग करोड़पति शुरू होती है, कौन बनेगा करोड़पति शो के जैसे एक दृश्य से। क्विज मास्टर प्रेम (अनिल कपूर) के साथ है कॉल सेंटर में चाय पिलाने वाला 18 साल का छोकरा जमाल (देव पटेल)। दो करोड़ रुपये जीतने के नजदीक है जमाल। हैरत है मुंबई के कुख्यात स्लम धारावी का अधपढ़ छोकरा जमाल यहां पहुंचा कैसे? लेकिन उसके जवाब सुनकर देश का हर टीवी दर्शक चाहने लगा है जमाल जीते! दो करोड़ रुपये झटक ले! पुलिस की नजर में जमाल फ्रॉड है या उसके हर सही उत्तर के पीछे कोई गुप्त षड्यंत्र है, जमाल को हिरासत में लेकर इंस्पेक्टर सलीम (इरफान खान) अपने क्रूर सार्जेंट श्रीनिवास (सौरभ शुक्ला) के साथ गुत्थी सुलझाने में लगा है। थर्ड डिग्री हथकंडे जमाल पर अपनाए जा रहे हैं। जमाल का एक ही जवाब है, “मुझे उत्तर आता था।” लेखक विकास स्वरूप के उपन्यास ‘क्यू ऐंड ए’ पर आधारित फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर (स्लमडॉग करोड़पति) के मूल में अद्‍भुत रस है। हर प्रश्न के साथ हम देखते हैं दीनहीनों के दुख-दर्द, सपने, इरादे। नई जुगत निकालते, हंसते-खेलते, नाचते-गाते-जीते रहते लोगों की जिंदगी। पहला सवाल: “जंजीर फिल्म का हीरो कौन था?”

बस इस जैसे हर सवाल के साथ जुड़ी है जमाल के जीवन की कोई न कोई घटना। फिर शुरू होता है फ्लैश बैक का सिलसिला। यह सवाल जाता है जमाल के कठिन बचपन तक। उसकी मानसिकता तक। उसे जो करना होता था वह उसे किसी न किसी तरीके से करके ही रहता था। अपनी हर चाहत पूरा करने के लिए जीवट के साथ तैयार।

बच्चा जमाल (आयुष महेश खेड़ेकर) फट्टों से बने सामूहिक शौचालय के बक्से में बैठा है। देर लग रही है। बाहर खड़े हैं कई लोग अपनी बारी के इंतजार में। चिढ़ कर एक बच्चा दरवाजा बाहर से बंद कर देता है। तभी हेलीकॉप्टर की आवाज आती है। शोर मचता है, “शूटिंग के लिए अमिताभ आ रहा है! अमिताभ!” अमिताभ! जमाल का हीरो! कुछ भी कर दिखाने वाला महानायक! जिसका फोटो जमाल चौबीसों घंटे अपने साथ रखता है। शौचालय से बाहर निकलने का दरवाजा बंद है और जमाल को आटोग्राफ लेने हैं। लेने हैं तो लेने हैं!

फिल्मी अमिताभ की तरह उसे भी हर हालत में अपना मकसद पूरा करना है। अमिताभ के फिल्मी करतबों के दृश्य उसकी आंखों के सामने घूम रहे हैं। संडास से निकलने का कोई रास्ता नहीं है। वह एक हाथ में अमिताभ का फोटो ऊपर उठाए, दूसरे से नाक बंद कर विष्ठा के गहरे कुंड में कूद पड़ता है। सड़ांध भरे मल से लथपथ, भीड़ को धकेलता अमिताभ तक पहुंचता है और आटोग्राफ लेकर ही लौटता है। दर्शक उसके जीवट, दृश्य की वीभत्सता के साथ उसमें निहित ऐब्सर्ड और विचित्र हास्यप्रद कृत्य से चमत्कृत हो उसकी लगन को सराह रहे हैं। यह निर्देशक डेनी बायल का करिश्मा है कि एक ही फिल्म में वे कई रसों का सम्मिश्रण कर पाए और दर्शकों को अपने साथ रख सके।

मां सांप्रदायिक दंगों की भेंट चढ़ गई। एक रात मूसलाधार बारिश से बचने के लिए दर-ब-दर सलीम और जमाल किसी खोखे में शरण लिए हैं। दूर अनाथ बच्ची (रूबियाना अली) ठिठुरती हुई बारिश में बैठी है बेसहारा। सलीम के मना करने पर भी दयालु जमाल उसे भी बुला लेता है। तब से तीनों साथ-साथ रहते हैं।

शराफत और दया के पुतले कुछ लोग सांप्रदायिक दंगों के शिकार लावारिस बच्चों को गाड़ियों में लाद कर ले जा रहे हैं। ‘दरशन दो घनश्याम मेरी अंखियां प्यासी रे!’ जैसा भजन गवाने वाले ये लोग बच्चों की नजर में दयावतार बन जाते हैं। वास्तव में इन ‘भले दुष्टों’ का काम था अनाथ बच्चों को भिखमंगी के धंधे में डालना। इसके लिए स्वभाव से तेज सलीम को काम दिया गया। भाई जमाल की बारी आई तो सलीम जागा। भट्टी पर बड़ी कलछी में तेल गरम किया जा रहा है। बिजली की तेजी से सलीम ने कलछी तेल डालने वाले पर ही फेंक दी। सलीम, जमाल और लतिका बच निकले। इधर-उधर भागते दौड़ते रेल की पटरियों पर जा पहुंचे। सलीम, जमाल ट्रेन के आखिरी डिब्बे में चढ़ गए। पीछे दौड़ती लतिका नीचे छूट गई।

रात में टिकट कलेक्टर उन्हें पटरी पर धकेल देता है। ढलान पर पटकनियां खाते दोनों बेदम हो जाते हैं। सुबह हुई, तो आंखें मलता जमाल पूछता है, “क्या हम बहिश्त में हैं!” सामने जो है वह बहिश्त से कम नहीं है, ‘ताज महल’। अज्ञानी बच्चे अपनी तरह समीकरण निकालते हैं कि यह कोई फाइव स्टार होटल है! यहां दोनों के लिए अधकचरा ज्ञान और खरा धन कमाने के मौके ही मौके हैं। विदेशियों को टूटी-फू़टी हिंदी, इग्लिश में वे बताते हैं, “शाहजहां बिल्डिंग फाइव स्टार होटल फॉर वाइफ,” “वाइफ डाइड इन ट्रैफ्रिक ऐक्सीडेंट,” “हमने तो सुना था वह चाइल्ड बर्थ में मरी,” “यही तो, गाइड नो टेल करेक्ट स्टोरी, शी गोइंग टू हॉस्पिटल, डाइज इन एक्सीडेंट!”

घटनाक्रम जमाल और सलीम के रास्ते अलग कर देता है। दोनों को एक-दूसरे के बारे में कुछ नहीं पता। कॉल सेंटर में काम करता जमाल अच्छी इंग्लिश बोलना सीख गया है, कंप्यूटर पर पते सर्च करने में माहिर हो गया है। वह पता लगा ही लेता है कि सलीम अब लतिका के साथ कहां रहता है। 

कहानी अंतिम से पहले प्रश्न तक आ पहुंची है। दो करोड़ रुपये के आखिरी सवाल पर जमाल अब तक जीते पूरे एक करोड़ दांव पर लगा देता है। वह तो बचपन की सहेली लतिका को फिर खोजने के लिए खेल रहा है! सवाल है, “थ्री मस्केटियर्स उपन्यास का तीसरा मस्केटियर कौन था?” जमाल को उत्तर याद नहीं है। केवल सलीम सहायता कर सकता है। दर्शकों की सांसें अटक जाती हैं। जमाल के लिए पूजा-पाठ हो रहे हैं। अंतिम लाइफ लाइन फोन ए फ्रेंड में वह सलीम को फोन लगवाता है। पर सलीम तो जावेद को मार कर मर चुका है। फोन कोई नहीं उठाता। सलीम फोन लतिका को दे गया था। क्विज मास्टर प्रेम पटाक्षेप करने को तैयार है। तभी लतिका फोन उठाती है। उत्तर देती है, “मुझे नहीं पता।” लतिका मिल गई! दो करोड़ रुपये क्या करने हैं! वह एक उत्तर चुन लेता है यूं ही। कमाल हो गया! जमाल जीत गया!

स्लमडॉग मिलेनियर बंबइया फिल्म है। सह निर्देशिका लवलीन टंडन इसे “हिंदी कमर्शियल सिनेमा का हॉलीवुड को सलाम” कहती हैं। निर्देशक बायल ने इस फिल्म पर दीवार, सत्या, कंपनी, सलाम बांबे, तारे जमीन पर जैसी हिंदी फिल्मों का प्रभाव स्वीकार किया है।

(लेखक चर्चित फिल्म पत्रिका माधुरी के संपादक रहे हैं)

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