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23 जून 2025 · JUN 23 , 2025

पूरब का मोर्चाः नाजुक त्रिकोण की लहरें

सीमा पर चीन के साथ तनाव जारी और उसकी रणनीतिक पहल से म्यांमार और बांग्लादेश सहित दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के त्रिकोण की राजनैतिक अनिश्चितता से सीमा पर चुनौतियां बढ़ीं
अपना पालाः बिम्सटेक में जुंटा जनरल मिन आंग के साथ मोदी

इस साल 27 फरवरी को मिजोरम की राजधानी आइजोल में एक दिलचस्प राजनैतिक घटनाक्रम हुआ। बांग्लादेश और म्यांमार की सीमा से लगे देश के पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम के मुख्यमंत्री ललदुहोमा की मौजूदगी में म्यांमार के दो कबायली विद्रोही गुटों ने विलय समझौते पर हस्ताक्षर किए। चिनलैंड काउंसिल (सीसी) कई वर्षों से पश्चिमी म्यांमार के चिन राज्य में सक्रिय है। फिर इंटरिम चिन नेशनल कंसल्टेटिव काउंसिल (आइसीएनसीसी) 2021 में बनी, जो ज्यादातर सीसी के टूटे हुए गुटों का छतरी समूह है। ये दोनों समूह म्यांमार के सैन्य जुंटा के खिलाफ लड़ रहे हैं, जो फरवरी 2021 में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार के तख्तापलट के बाद सत्ता पर काबिज है।

मुख्यमंत्री ललदुहोमा ने सीसी और आइसीएनसीसी के साथ विलय को सुगम बनाने में अपनी भूमिका को म्यांमार के सैन्‍य जुंटा के खिलाफ चिन लोगों के संघर्ष में मदद को अपने मिशन का हिस्‍सा बताया। विलय के बाद अब नाम चिन नेशनल काउंसिल (सीएनसी) रखा गया है।

असल में मिजोरम के मिजो, पड़ोसी मणिपुर के कुकी, म्यांमार के चिन और आस-पास के राज्यों के चिन और बांग्लादेश के चटगांव पहाड़ी इलाकों के बॉम एक ही जातीय समूह से जुड़े हैं। उन्हें सामूहिक रूप से ‘जो’ समुदाय कहा जाता है। ‘जो’ लोग अंतरराष्ट्रीय और राज्य सीमाओं में बंटे हुए हैं, लेकिन उनमें जातीय एका है।

फिर भी, म्यांमार के कबायली विद्रोही समूहों को एकजुट करने के लिए किसी भारतीय मुख्यमंत्री की कोशिश अहम घटनाक्रम था। वजह यह कि भारत ने फरवरी 2021 के तख्तापलट के बाद से म्यांमार के मामले में दोहरा रुख बनाए रखा है। भारत ने जुंटा सरकार को औपचारिक मान्‍यता नहीं दी है, लेकिन अपने आर्थिक और रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए आधिकारिक संबंध जारी रखा है। नई दिल्ली में एक सेमिनार में लोकतंत्र समर्थक विपक्षी खेमे के लोगों की मेजबानी भी की गई थी।

शी के साथ यूनुस

शी जिनपिंग के साथ मोहम्मद यूनुस

आइजोल का घटनाक्रम मणिपुर और नगालैंड के मैतेई और नगा हथियारबंद गुटों के बार-बार दोहराए आरोपों के बीच हुआ है कि भारतीय सुरक्षा बलों का एक वर्ग मणिपुर और म्यांमार के कुकी-चिन बागियों की मदद कर रहा है। कुकी विद्रोही, बदले में, भारत के मैतेई और नगा अलगाववादी गुटों को निशाना बनाते रहे हैं, जिन्‍हें म्यांमार के सैन्‍य जुंटा की शह हासिल है।

म्यांमार के जो समुदाय के ललदुहोमा की पार्टी के खुले समर्थन से ये अटकलें शुरू हो गईं कि क्या भारत वहां चिन प्रांत के बागी गुटों, खासकर जो जातीय पृष्ठभूमि के लोगों के साथ जुड़ाव बढ़ा रहा है, जो अब भारत के साथ म्यांमार की सीमा पर बड़े इलाकों में काबिज हैं।

हालांकि, अप्रैल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान तख्तापलट के बाद पहली बार सैन्‍य जुंटा के नेता सीनियर जनरल मिन आंग ह्लाइंग से मुलाकात की। इस मुलाकात से जुंटा सरकार के साथ सहयोग का संकेत गया। म्यांमार की अनिश्चित स्थिति ने भारत और चीन सहित कई देशों को कूटनीतिक दुविधाओं में डाल दिया है। अगस्त 2024 के बाद से बांग्लादेश में स्थिति ने क्षेत्रीय जटिलता को और बढ़ा दिया है, जब भारत समर्थक शेख हसीना सरकार का छात्र-आंदोलन के नेतृत्व में तख्‍तापलट हो गया था।

बांग्लादेश में भारत का हसीना के पक्ष में साफ झुकाव रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के कई नेताओं को शरण दी गई है। भारत के साथ तनाव के बीच अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस चीन की ओर झुकते जा रहे हैं, जो मार्च 2025 में चीन की उनकी चार दिवसीय यात्रा सहित कई कदमों में दिखता है। ढाका में सियासत पर नजर रखने वाले यूनुस सरकार की नीतियों पर बढ़ते अमेरिकी असर को भी देख रहे हैं। म्यांमार और बांग्लादेश की सरकारों के साथ दोस्‍ताना रिश्‍ता बनाए रखना भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के लिए जरूरी है, जिसका मकसद दक्षिण पूर्व एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करना है। यह म्यांमार और बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों में शरण लेने वाले भारत के बागी और अलगाववादी ताकतों पर नजर रखने के लिए भी महत्वपूर्ण है। हालांकि, बांग्लादेश में उग्र इस्लामी गुटों के फिर से संगठित होने के संकेत असम और पश्चिम बंगाल में चिंताएं बढ़ा रहे हैं।

सतर्क गुणा-भाग जरूरी

देश का पूर्वोत्तर मोर्चा भू-राजनैतिक भूलभुलैया जैसा बन गया है, जहां भीतरी और बाहरी मामलों के बीच की सीमा अक्सर धुंधली हो जाती है। दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के बीच का यह त्रिकोणीय सीमावर्ती इलाके में विविध जातीय समुदायों के नाजुक संबंधों और अस्थिर राजनैतिक चुनौतियों का अजीब घालमेल है।

देश के पश्चिमी मोर्चे पर तो पाकिस्तान और पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी गुट मुख्य चिंता का विषय हैं, लेकिन इस क्षेत्रीय त्रिभुज में कई खिलाड़ी हैं। कई जातीय समूहों और देशों के बीच परस्पर विरोधी हितों की वजह से यह क्षेत्र लगातार अशांत रहता है। शायद देश में कहीं और आंतरिक स्थिरता राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इतनी महत्वपूर्ण नहीं है।

सीमा के आर-पार मौजूदगी वाले विविध जातीय समूहों, जातीय आकांक्षाएं और राष्ट्रीय हितों की वजह से अप्रत्याशित सक्रियता है। इन सब वजहों से इस क्षेत्र में लगातार टकराव चलता रहता है। इसमें नई अस्थिरता फरवरी 2021 में म्यांमार में वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लाइंग ने सत्ता पर कब्जा कर लिया। लोकतंत्र समर्थक ताकतों ने एक छाया सरकार राष्ट्रीय एकता सरकार (एनयूजी) का गठन किया, जिसने सैन्य जुंटा से लड़ने के लिए अपनी हथियारबंद शाखा पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ) का गठन किया और गृहयुद्ध शुरू हो गया।

इस गृहयुद्ध में म्यांमार की सेना का भारत से लगी सीमा पर नियंत्रण नहीं रह गया है। मणिपुर और मिजोरम की सीमा से लगे म्‍यामांर चिन प्रांत में सैन्‍य जुंटा ने चिन नेशनल आर्मी (सीएनए), चिनलैंड डिफेंस फोर्स (सीडीएफ) और कुकी नेशनल आर्मी (केएनए) जैसे जातीय विद्रोही गुटों के गढ़ों पर हवाई हमले किए।

जैसे-जैसे चिन प्रांत में हवाई हमलों से तबाही मची, तो उसका असर भारत में भी पड़ा। मिजोरम और मणिपुर में बड़े पैमाने पर शरणार्थी आए। मिजोरम में जो आबादी बहुसंख्यक है, वहां शरणार्थियों का गर्मजोशी से स्वागत किया गया है।

लेकिन मणिपुर में जो आबादी अल्पसंख्यक है, उसके साथ दूसरे अल्‍पसंख्‍यक समुदाय नगा हैं। मणिपुर के बहुसंख्‍यक मैतेई गुटों ने जो लोगों की आमद से राज्य की आबादी का संतुलन बदलने पर चिंता व्यक्त की है। मैतेई गुटों ने आप्रवासियों को बाहर निकालने का अभियान तेज कर दिया है।

बढ़ते तनाव के कारण मई 2023 में मैतेई और जो सशस्त्र गुटों के बीच नए सिरे से खूनी संघर्ष छिड़ गया। इससे दो वर्षों में लगभग 300 लोगों की जान चली गई और मैतेई अलगाववादी गुटों के फिर से उभरने की आशंका बढ़ गई।

हालात संगीनः इंफाल में कुकी-मैतेई संघर्ष

हालात संगीनः इंफाल में कुकी-मैतेई संघर्ष

म्यांमार के साथ भारत के सीमा प्रतिबंध भी बताते हैं कि किसी भी कदम के कई नतीजें हो सकते हैं। घुसपैठ, नशीली दवाओं और हथियारों की तस्करी और सीमा पार विद्रोही समूहों की आवाजाही को रोकने के लिए, भारत ने मुक्त आवागमन व्यवस्था को सीमित कर दिया, जिसके तहत सीमा पर रहने वालों को बिना वीजा के आर-पार 16 किमी तक जाने की इजाजत है। अब इसके बदले संरक्षित क्षेत्र व्यवस्था फिर से लागू की गई है, जिसमें विदेशी नागरिकों की आवाजाही पर प्रतिबंधित है और सीमा पर बाड़ लगाई जा रही है।

लेकिन इन कदमों से सीमा-पार पारंपरिक संबंधों में रुकावट का खतरा है, खासकर जो और नगा जातीय समूहों के बीच। नाम न बताने की शर्त पर इंफाल के एक पत्रकार कहते हैं, ‘‘इन फैसलों से मैतेई लोगों को सीमा सुरक्षा और आबादी के संतुलन में बदलाव की रोकथाम का भरोसा दिलाया है, लेकिन इससे जो और नगा लोगों में नाराजगी है। इसके अलावा, भारत-म्यांमार सीमा क्षेत्र में आबादी का एक बड़ा हिस्सा सीमा-पार अनौपचारिक व्यापार पर निर्भर करता है।’’

ढाका स्थित राजनैतिक शोधकर्ता अल्ताफ परवेज कहते हैं, ‘‘भारत-बांग्लादेश-म्यांमार के बीच स्थिति इसलिए सबसे जटिल है कि सभी देशों की अपनी भीतरी समस्याएं हैं।’’ उनके मुताबिक, सबसे खास यह है कि जो समुदाय सीमा के आर-पार अपनी एकजुटता दिखा रहे हैं। क्या एकजुटता की यह भावना तीनों देशों में जो जातीय मूल के लोगों के लिए ग्रेटर जो होमलैंड जालिंगम की मांग में नए सिरे से जान डाल देगी, यह देखना अभी बाकी है। परवेज कहते हैं, ‘‘इस मुद्दे से निपटने की कुंजी उनकी जातीय एकता की भावना के प्रति सहानुभूति ही है, क्योंकि यह भावना आज की प्रशासनिक सीमाओं से बहुत पहले से बनी हुई है।’’

बागियों से कैसे निपटें

मई 2025 तक स्थिति और भी जटिल हो गई। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएम-आइएम) के इसाक-मुइवा गुट के एक प्रमुख नेता इकाटो चिशी स्वू कथित तौर पर एच.एस. रामसन और अबशालोम रमन के नेतृत्व वाले कट्टरपंथी बागी गुट में शामिल होने के लिए म्यांमार चले गए। इससे नगा शांति वार्ता खतरे में पड़ गई और नगा सशस्त्र संघर्षों के फिर से उभरने की आशंका पैदा हो गई है।

पूर्वोत्‍तर में सबसे खतरनाक बागी गुटों में एक एनएससीएम-आइएम का ठिकाना नगालैंड में है और ऐतिहासिक रूप से म्यांमार के नगालैंड-सीमावर्ती क्षेत्रों में इसकी मौजूदगी रही है। भारत से स्वतंत्रता की मांग करने वाले इस गुट ने 1997 से भारत सरकार के साथ युद्धविराम संधि किया है। यह गुट अब ग्रेटर नगालैंड राज्य की मांग कर रहा है जिसमें असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल होंगे। इसका तीनों राज्यों ने विरोध किया है।

भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने 2024 में एक अदालत को बताया कि म्यांमार में स्थित एनएससीएम-आइएम के ‘चीन-म्यांमार’ मॉड्यूल ने प्रतिबंधित मैतेई अलगाववादी गुटों ने कांगलेई याओल कानबा लुप (केवइकेएल) और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के काडरों को भारत में घुसने में मदद की ताकि वे जो लोगों पर आतंकी हमले कर सकें। केवाइकेएल और पीएलए इंफाल घाटी के सात विद्रोही गुटों में है, जो मणिपुर को भारत से अलग करने की मांग कर रहे हैं और म्यांमार और बांग्लादेश के ठिकानों से काम कर रहे हैं।

एनआइए के आरोपों ने नगा और मैतेई दोनों को नाराज कर दिया। एनएससीएन-आइएम ने आरोप लगाया कि भारतीय सशस्त्र बल कुकी का पक्ष ले रहे हैं। हालांकि बाद में एनएससीएन-आइएम और सरकार के बीच संबंधों में नरमी आई, लेकिन स्वू के कदम ने अनिश्चितता पैदा कर दी है। संघर्ष विराम का विरोध करने वाला एक अन्य गुट एनएससीएन-के (युंग आंग) म्यांमार के नगा स्व-प्रशासित क्षेत्र में सागाइंग क्षेत्र के उत्तरी भाग में सक्रिय है, जिसकी सीमा भारत के नगालैंड और चीन के युन्नान प्रांत के साथ लगती है।

म्यांमार के सागाइंग, चिन और राखीन प्रांतों में कई भारतीय अलगाववादी और सशस्त्र विद्रोही गुट सक्रिय हैं, जो अक्सर म्यांमार स्थित जातीय सशस्त्र गुटों की मदद करते हैं। जो गुटों में कुकी नेशनल आर्मी (केएनए) चिन और सागाइंग में सक्रिय है। वह म्यांमार की काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (केआइए) के साथ मिलकर सैन्‍य जुंटा के ठिकानों पर हमले करते हैं। केआइए के एनएससीएन के साथ ऐतिहासिक संबंध हैं। केएनए और केआइए दोनों ही अराकान आर्मी (एए) के साथ संबंध बनाए रखते हैं, जो मुख्य रूप से म्यांमार के राखीन प्रांत में सक्रिय है।

जोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी (जेडआरए) चिन और सागाइंग से सक्रिय हैं, जिसका म्यांमार की चिन नेशनल आर्मी (सीएनए) के साथ सीधा संपर्क है। सीएनए के मिजोरम के मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) के साथ ऐतिहासिक संबंध हैं, जिसने 2023 में ललदोहुमा के जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के हाथों सत्ता गंवा दी थी। एमएनएफ के अराकान आर्मी के साथ भी ऐतिहासिक संबंध हैं।

हालाकि, चिन प्रांत में सक्रिय जोमी रिवोल्यूशनरी ऑर्गनाइजेशन (जेडआरओ) का म्यांमार के सैन्य जुंटा के साथ रिश्‍ता है। मणिपुरी अलगाववादी गुटों में, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) सागाइंग में सक्रिय है, और जुंटा के साथ संबंध बनाए रखती है। असमिया विद्रोही गुट यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम-इंडीपेन्डेंट (उल्फा-आइ) के भी म्यांमार में अड्डे हैं और कथित तौर पर जुंटा के साथ मिली हुई है।

इंफाल के पत्रकार प्रदीप फंजौबाम के मुताबिक, म्यांमार में राजनैतिक अनिश्चितता भारत के विद्रोही गुटों के लिए फिर से संगठित होने के लिए उपजाऊ जमीन तैयार कर रही है। वे कहते हैं, ‘‘हम बहुत सारे नए समीकरणों के उभरने की बात सुन रहे हैं।’’ वे कहते हैं कि सरकार ऐसे समय में दुविधाग्रस्‍त दिखती है जब निर्णायक कार्रवाई आवश्यक है। फंजौबाम कहते हैं, ‘‘सरकार को यह तय करना होगा कि वह क्या करने देगी और क्या नहीं। आतंकवादी समूहों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने के बजाय, सरकार एक समूह को दूसरे के खिलाफ खड़ा करने का पुराना खेल खेलने में व्यस्त है।’’ अतीत में, भारत ने बागी गुटों के शिविरों को नष्ट करने के लिए म्यांमार के साथ संयुक्त सैन्य अभियान चलाए हैं। भारत-बांग्लादेश संबंधों में बढ़ती खटास भी सीमा पार के विद्रोहियों के खिलाफ बांग्लादेश के सहयोग की संभावनाओं को कम करती है।

चीन की चुनौती

भारत-चीन कूटनीतिक संबंधों में आई नरमी के बीच, सीमा पर तनाव बना हुआ है क्योंकि दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य और आम बुनियादी ढांचे के विकास में तेजी ला रहे हैं। चीन ने अरुणाचल प्रदेश की चीन सीमा से कुछ किलोमीटर उत्तर में यारलुंग त्सांगपो नदी पर ‘दुनिया के सबसे बड़े बांध’ के निर्माण को भी मंजूरी दे दी है। इस बांध से भारत को डर है कि ब्रह्मपुत्र में पानी का प्रवाह प्रभावित हो सकता है।

फिर, म्यांमार और बांग्लादेश में रणनीतिक जमीन हासिल करने के लिए चीन के कदम भी अहम हैं। वह बांग्लादेश के साथ तीस्ता नदी के पानी तक पहुंच और बंगाल की खाड़ी के माध्यम से हिंद महासागर तक चीनी पहुंच जैसी संवेदनशील रणनीतिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर बातचीत करना चाहता है। चीन ने म्यांमार में अपनी उपस्थिति इस हद तक बढ़ा ली है कि जुंटा सरकार को अक्सर लोकतंत्र समर्थक ताकतें ‘चीनी कठपुतली’ कहती हैं, जिन्हें कुछ पश्चिमी समर्थन प्राप्त है।

ग्राफिक

चीन का चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा पर फोकस बना हुआ है। क्यौकफ्यू डीप सी पोर्ट जैसे बुनियादी ढांचे से हिंद महासागर तक चीन की पहुंच बढ़ेगी। म्यांमार ने सार्वजनिक सुरक्षा सेवा कानून लागू किया है, जिससे चीनी सुरक्षा बलों को म्यांमार में चीनी व्यापारिक उपक्रमों की सुरक्षा करने की अनुमति मिल गई है। देश ने चीनी नववर्ष को आधिकारिक सार्वजनिक अवकाश के रूप में भी मान्यता दी है।

शायद चीनी हितों को सुरक्षित करने के लिए म्यांमार के सैन्य जुंटा के प्रयासों के पुरस्कार के रूप में, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 9 मई को मास्को में म्यांमार के सैन्य जुंटा नेता, वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लाइंग से मुलाकात की। यह जुंटा के लिए मनोबल बढ़ाने वाला था। उन्‍होंने संकेत दिया कि उनके पक्ष में चीन और रूस हैं। चीन की गतिविधियों पर नजर रखने वाले एक भारतीय खुफिया अधिकारी के अनुसार, जुंटा नेता के साथ शी की बैठक म्यांमार की स्थिति पर चीन के साथ रूस के गठबंधन को दिखाती है। रूस और चीन प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता हैं।

इससे पहले, बागी गुटों पर चीन ने अपना असर दिखाया। उसने म्यांमार नेशनल डेमोक्रेसी अलायंस आर्मी (एमएनडीएए) को उत्तरी शान राज्य में लैशियो का नियंत्रण जुंटा को सौंपने के लिए राजी किया। यह शहर चीन के बुनियादी ढांचे और आर्थिक हितों के लिए अहम है। वास्तव में, चीन विद्रोही समूहों से महत्वपूर्ण शहरों से दूर रहने का आग्रह कर रहा है। हालांकि, जुंटा के लिए चीन का साहसिक समर्थन विद्रोहियों और लोकतंत्र समर्थक ताकतों के बीच इसकी छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। राजनैतिक जानकारों का मानना है कि म्यांमार के कुछ हिस्सों में चीन विरोधी भावना बढ़ रही है।

 

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